सुहागिन या विधवा - 2 Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सुहागिन या विधवा - 2

राघव की आवाज सुनकर राधा अतीत से वर्तमान में लौट आयी।आवाज सुनकर उसे विश्वास हो गया कि आगुन्तक उसका पति ही है।जिसे उसने एक दिन आरती उतारकर विदा किया था।उसने अपना पल्लू सम्हाला और अंदर की तरफ भागी थीं।अपने पति को हाथ पकड़कर उठाते हुए बोली,"जल्दी उठो।"
" क्या हुआ?"आंखे खोलते ही माधव की नज़र राधा पर पड़ी थी,"तुम इतनी घबराई हुई क्यो हो?"
"वो आये है।"
"वो कौन?"माधव ने पूूूछा था।
"तुम्हारे बडे भैया।"
"राघवभैया आये है?"पत्नी की बात सुनकर माधव अविश्वास से बोला,"कैैैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो।पागल हो गई होो।"
"उठो तो औऱ बाहर जाकर खुद ही देेेख लोो।"
राधा के कहने पर माधव कमरे से बाहर गया था।राघव को जीता जागता,सही सलामत देखकर पहले तो वह भी हक्का बक्का रह गया।फिर खुश होते हुए ज़ोर से बोला,"भैया आप?"
और माधव अपने माता पिता को जगाने के लिए दौड़ा था।
जिस राघव की मौत का समाचार सालो पहले आ गया था।जिसे मरा मानकर घरवाले क्रियाकर्म कर चुके थे।उसे ज़िंदा दखकर माता पिता भी स्तब्ध रह गए थे।राघव के जिंदा लौट आने की खबर सुनकर घर मे जगार हो गई थी।घर मे चाचा, ताऊ,चाची सब नज़र आ रहे थे।लेकिन उसे राधा कंही नही दिख रही थी।काफी देर बाद भी उसे राधा की झलक नज़र नही आई।तब वह पूछे बिना नही रह सका,"राधा कन्हा है?"
राधा का जिक्र आने पर माधव और माँ उठकर चले गए।रामदास भी उठते हुए बोले",बीटा थके हारे आये हो।सो जाओ सुबह बात करेंगे।"
एक एक करके सब चले गए थे।और कमरे में अकेला रह गया था,राघव।
राघव,राधा को एक पल के लिए भी नही भूला था।युद्ध के मैदान में राधा का प्यार ही था,जो कई बार मोत छूकर पास से गुज़र गई थी।एक दिन वह ज़ख्मी होकर बेहोश हो गया था।जब होश आया तब क़ैद में पाया था।जर्मनी की जेल में रहकर भी वह राधा को नही भुला।जिस राधा का प्यार उसे मौत के मुंह से बचा लाया था।उसी राधा का कंही पता नही था।वह राधा से मिलने को आतुर था। कैद से छूटते ही उसे भारत भेज दिया गया।देश आजाद हो चुका था।वह राधा की झलक पाने को बेचैन था।
राधा ने स्वप्न में भी नही सोचा था।एक दिन समय उसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर देगा।राधा ने क्षत्रिय वीरांगना की तरह राघव को घर से विदा किया था।पति युद्ध के लिए जा रहा है।यह जानते हुए भी उसने हिम्मत व धैर्य का परिचय दिया था।चिंता या परेशानी चेहरे पर नही छलकने दी थी।वह नही चाहती थी घर से जाते समय पति परेशानी या चिंता साथ लेकर जाए।
पति के सामने वह बिल्कुल नही रोई थी।लेकिन थी तो एक औरत।औरत का दिल कमजोर होता है।पति के चले जाने के बाद हर पल राधा को पति की सलामती की चिंता ही सताती रहती थी।
राघव के ड्यूटी पर पहुचने और उसे बाहर भेजे जाने का समाचार उसे टार से मिला था।युद्ध के अग्रिम मोर्चे पर पहुचने पर जब भी समय मिलता।वह राधा को प्यार भरा पत्र लिखना नही भूलता।
राधा रात दिन भगवान से पति की सलामती की प्रार्थना करती रहती।उसके सकुशल घर लौट आने की दुआ करती।लेकिन उसकी दुआ काम नही आई।युद्ध शुरू होने के बाद एक साल बाद ही सरकार की तरफ से तार आया था,
"राघव नही रहा।"