यूँ ही राह चलते चलते - 13 Alka Pramod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यूँ ही राह चलते चलते - 13

यूँ ही राह चलते चलते

-13-

यशील सप्रयास वान्या से दूर रहने का प्रयास कर रहा था और इस परिवर्तन को अर्चिता अनुभव कर रही थी । अवश्य संकेत के आने से यशील वान्या से विमुख हो गया है उसने अंदाज लगाया। उसका मन किया कि वह संकेत के चारों ओर धन्यवाद का ढेर लगा दे। उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया, आज उसे विश्वास हो गया था कि सच्चा प्यार सफल होता ही है । वह उसी आनन्द में पूरी तरह डूब उतरा रही थी ।

संकेत ने वान्या से पूछा ‘‘तुम्हें कौन सी ज्यूलरी पसंद आयी ?’’

‘‘ क्यों तुमसे क्या मतलब ’’ वान्या ने आवेश में कहा । यशील में आये परिवर्तन से वह अनभिज्ञ नहीं थी। हो न हो संकेत का आवश्यकता से अधिक उसके आगे पीछे घूमना ही इसका कारण है नहीं तो वह उसे इस तरह उपेक्षित नहीं करता ।

इसी कारण ने संकेत को वान्या की दृष्टि में घोर अपराधी बना दिया था और वह उसको देखते ही चिढ़ जाती थी उसी प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप संकेत के सामान्य से प्रश्न पर उसने उसे झिड़क दिया।

संकेत को आधात लगना स्वाभाविक था शनैः शनैः यशील के प्रति उसके मन में शत्रुता का भाव जन्म लेने लगा था। उसकी छठी इन्द्रिय ने उसे जो संकेत दिया था वह अब विश्वास में बदलने लगा था।संकेत ने स्वंय को संयमित किया उसने वान्या को प्रसन्न करने के लिये कहा ‘‘ मैं तो इस लिये पूछ रहा था कि तुम्हें जो भी पसंद मैं गिफ्ट दे दूँ। ’’

‘‘ मुझे तुमसे कोई गिफ्ट नहीं चाहिये’’ वान्या ने दो टूक जवाब दिया।

अब संकेत का संयम का बाँध दरकने लगा था उसने कहा ‘‘ मैं सब समझ रहा हूँ कि तुम मुझसे इतनी रूड क्यों हो रही हो। ’’

वान्या भड़क गयी ‘‘ क्या समझ रहे हो जरा मैं भी सुनूँ ?’’

संकेत सकपका गया वह सीधे-सीधे यशील का नाम ले कर स्वयं को छोटा सिद्ध करना नहीं चाहता था, अतः टालने के उद्देश्य से बोला ‘‘ रहने दो मैं कहना नहीं चाहता। ’’

वान्या अड़ गयी ‘‘ नहीं इतना सभ्य बनने की जरूरत नहीं है, जो तुम कहना चाहते हो साफ -साफ कहो आज फैसला हो जाए ।’’

संकेत ने पूछा ‘‘ तुम मुझे यशील के कारण इग्नोर कर रही हो न ?’’

वान्या जानती थी कि संकेत यही कहेगा और सच भी यही था, उसने आक्रोश में कहा ‘‘हाँ तो तुम क्या कर लोगे और हू आर यू, तुम होते कौन हो मेरी लाइफ में इन्टरफियर करने वाले ?’’

संकेत उसकी स्पष्ट स्वीकारोक्ति से आहत हो गया उसे ऐसी आशा नहीं थी उसकी आशा की किरण अँधेरे में जा समायी। उसने दुखी हो कर उसकी आँखों में देखते हुए कहा ‘‘ मै तो तुम्हे सब कुछ समझता था, क्या- क्या सपने देखे थे तुम्हें ले कर और तुम कह रही हो कि मैं होता कौन हूँ तुम्हारी लाइफ में इन्टरफियर करने वाला ।’’

वान्या को उसे दुख से कुछ लेना-देना नहीं था इस समय तो वह अपने हाथ से छूटती यशील को डोर को ले कर चिन्तित थी वह स्पष्ट अनुभव कर रही थी कि रस्साकशी में यशील की डोर उसके हाथ से छूट कर अर्चिता के पाले में खिंचती जा रही है और उसे दृढ़ता से थामने के लिये वो किसी को भी आहत कर सकती थी।अपनी हार की आशँका से वह बौखला रही थी और राह में आते संकेत पर सारा का सारा आक्रोश निर्दयता से उसने उड़ेल दिया था। वह बोली ‘‘मैंने कभी तुम्हे ऐसा कोई इम्प्रेशन नहीं दिया है, न ही तुमसे कोई कमिटमेन्ट है मेरा ।’’

‘‘ कमिटमेन्ट कह कर नहीं दिया जाता है यहाँ आने से पहले तुम इतना रूड नहीं थी।’’

‘‘ रूड न होने का मतलब यह नहीं कि मैं तुममे इन्वाल्व हूँ । ’’

‘‘ पर मुझे विश्वास है कि अंकल ने मुझे यह टूर ज्वाइन करने को इसीलिये कहा था क्योंकि वो मुझे और तुम्हें ले कर कुछ सोच रहे हैं ’’संकेत ने वान्या से जीत न पाने पर अंकल का सहारा लिया।

पर वान्या अडिग रही उसने कहा ‘‘ वो पापा और तुम्हारे बीच की प्राब्लम है अब मैं एडल्ट हूँ और पापा भी मुझे किसी बात के लिये जबरदस्ती नहीं कर सकते।’’

संकेत जानता था कि वान्या जो कह रही है वह अक्षरशः सत्य है वान्या जैसी स्वतंत्र और हठी लड़की श्री मातोंडकर के कहने से उसकी नहीं हो जाएगी। उस पर लता जी भी पता नही क्यों उसे छोड़ कर वान्या की पसंद पर ही अपनी मुहर लगा रही थीं।

रास्ते में सब एक दूसरे का खरीददारी देख रहे थे, अपने-अपने सामान की चर्चा कर रहे थे । कोच में अपनी जेब खाली करने के बाद भी पर्याप्त सरगर्मी थी। निमिषा थोड़ी चुप थी । अनुभा समझ गई कि उसे वो पेन्डेन्ट न लेने का दुख है ।

वान्या को यशील के व्यवहार में आया अचानक बदलाव समझ नहीं आ रहा था पर उससे उसके दूर जाने का कारण पूछना उसे उसके स्वाभिमान के विरुद्ध लगा। एक दिन उसे चन्दन एकांत में मिल गया तो उसने उससे पूछना उचित समझा। वह चंन्दन को एक ओर ले गयी और बोली ‘‘ चन्दन मुझे तुम्हारा एक फेवर चाहिये’’।

चन्दन से अपने हृदय पर हाथ रख कर नाटकीयता से कहा ‘‘ज़हे नसीब मुझे तो कोई लड़की कभी इस लायक ही नहीं समझती कि कुछ माँगे, तुम बोलो तो मैं आकाश से तारे तोड़ कर ला दूँगा, सूरज पश्चिम में उगा दूँगा, दिन को रात बना दूँगा........’’

‘‘बस बस बस ’’ वान्या ने उसे टोकते हुए कहा ‘‘ इतना सब करने की जरूरत नहीं है मुझे तुमसे यशील के बारे में कुछ पूछना है ।’’

‘‘ ओ गाड फिर वही यशील आ टपका वो तो मुझे सपने में भी नहीं छोड़ेगा वहाँ भी मैं अगर किसी हसीन लड़की का सपना देख रहा होऊँगा तो वो आ कर मुझसे छीन ले जाएगा’’ चन्दन ने दुखी चेहरा बना कर कहा।

वान्या ने कहा‘‘ प्लीज चन्दन आय एम सीरियस ।’’

चन्दन ने कहा ‘‘ओ0के मैडम बताओ मैं तुम्हारी क्या हेल्प करूं?’’

वान्या ने हिचकते हुए पूछा ‘‘तुम मुझे यह बताओ कि यशील आज कल मुझसे दूर-दूर क्यों रहता है क्या अर्चिता ने मेरे विरुद्ध उसके कान भरे हैं या उसे संकेत को ले कर कोई गलतफहमी हो गयी है ।’’

चंदन समझ रहा था कि वान्या उससे ऐसा ही कुछ पूछेगी पर वह सच बता कर स्वयं को उसका दोषी बनाना नहीं चाहता था अतः उसने बात को टालते हुए कहा ‘‘ उसकी बात वह ही जाने, तुम उससे ही क्यों नहीं पूछती ।’’

पर वान्या इतनी आसानी से मानने वाली नहीं थी उसने कहा ‘‘ मुझे टालो नहीं मुझे सब पता है यशील तुमसे हर बात शेअर करता है ।’’।

थोड़ी बहुत ना नुकुर के बाद उसने झिझकते हुए बता दिया कि श्री मातोंडकर ने उसे दिन वेनिस में यशील से क्या कहा था । यह सुनते ही वान्या आपे से बाहर हो गयी और तुरंत पैर पटकती हुयी अपने पापा के पास पहुँच गयी। श्री मातोंडकर उस समय दिन भर की थकान के बाद होटल के कमरे में विश्राम कर रहे थे वान्या ने जा कर सीधे पूछा‘‘ पापा आपको यशील से इस तरह कहने की क्या जरूरत थी ?’’

‘‘ क्या कहा मैंने?’’

‘‘पापा मुझे सब पता है आप उससे इतने रूड कैसे हो सकते हैं ?’’

‘‘इसमें रूड होने की क्या बात है, मैं उसे किसी गलतफहमी में रखना नहीं चाहता था, और तुम भी सुन लो उससे इतनी दोस्ती करने की कोई जरूरत नहीं है ’’श्री मातोंडकर ने अपना मंतव्य स्पष्ट किया ।

‘‘ पापा अब मैं बच्ची नहीं हूँ । ’’

‘‘इसीलिये कह रहा हूं बिहेव लाइक मैच्योर गर्ल ।’’

वान्या ने बहस की ‘‘पापा मैं उसे पसंद करती हूँ और वह एक अच्छा लड़का है, आपको क्यों नही पसंद है ?’’

‘‘मुझे उससे कुछ लेना देना नहीं पर वह महाराष्ट्र्रियन नहीं है और मैं अपनी बेटी अपने समाज में दूंगा’’श्री मातोंडकर ने कहा।

‘‘चाहे वह आपकी बेटी को पसंद हो या न हो ?’’

‘‘ तुम लोगों की यही तो खराबी है कि बाहरी दिखावे रंग रूप से प्रभावित हो जाते हो और बाद में रोते हो। तुम जानती ही क्या हो उसके बारे में ? अपने समाज का लड़का होगा तो कोई समस्या आये तो हमारा पूरा समाज खड़ा होगा और दूसरे समाज में कोई तुम्हें पूछेगा भी नहीं दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंकेगा ।’’

‘‘प्राब्लम होगी ही क्यों? थिंक पाजिटिव’’वान्या ने बहस की ।

‘‘तुम मुझे मत सिखाओ मैंने दुनिया, देखी है जिस लड़के के लिये तुम अपने पापा से विरोध कर रही हो कल वही तुम्हारे दुख का कारण बनेगा ।’’

तभी लता जी ने प्रवेश किया, उन्हें देख कर वान्या बोली ‘‘ मम्मा देखो पापा ने यशील को पता नहीं क्या कह दिया वो मुझसे बात भी नहीं करता। ’

लता जी ने अपने पति को घूरते हुए कहा ‘‘ मुझे पता है इनके मन में तो वो आर्थेाडाक्स संकेत बसा है न ।’’

फिर उनको सम्बोधित करते हुए बोलीं ‘‘ आप अच्छी तरह सुन लीजिये मैं आपकी एक न चलने दूंगी, मेरी बेटी जिसे चाहेगी उसी के साथ अपना जीवन बिताएगी ।’’

वो वान्या का हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में चली गयीं और मानव को श्री मातोंडकर के पास सोने भेज दिया।

क्रमशः----------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com