पटरी पर गाड़ी Annapurna Bajpai द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पटरी पर गाड़ी

रानो आज फिर देर से आयी।कारण पूछने पर भड़क उठी । " का बहू जी , हमहूं मनई हैं , देर अबेर हुई जात है ! घर ते देर निखरे रहे , ससुरा बड़का लड़का बहुरिया दुन्नों निरी गाली बक्कत रहा ! तो हमउ मुंहाचाभर म पर गयीं ।"
अब भला बताओ मकान हमाये घर वाले बनाये रहे रोजु दुन्नों जने इहे मारे हमार परान लिहे ले रहे कि मकान उइ दुन्नों के नाम लिख दें । अब बताओ भला हम का करें ! हमार एक बिटिया औरो तो है हम कहाँ से लाइब एतना पइसा कि बियाह निबट जावे । "
सचमुच उसका कष्ट बड़ा था लेकिन मैं भी क्या करती सारी बात सुनकर उसको दिलासा दी कि शान्त हो जाओ सब ठीक हो जाएगा । लेकिन वह गुस्से से भरी हुई थी बरतनों की उठा पटक से लग रहा था कि वह अंदर से दहक रही है । अगर मैं ज्यादा कुछ कहती हूँ तो फिर से फुँफकार उठेगी । इसलिए उसको जैसा तैसा करने के लिए छोड़ कर ड्राइंग रूम में निराला जी की एक पुस्तक लेकर पढ़ने बैठ गयी । मन ही मन मैं भी भुनभुना रही थी कि आज फिर उल्टा सीधा काम कर जाएगी । समझ नही पा रही थी कि उसको या उसके बेटे को कैसे समझाऊँ ताकि सब कुछ नार्मल हो जाये । उसी समय दरवाजे की घण्टी बजी , द्वार खोला तो सामने मेरी मित्र खड़ी थी । उसे देख अच्छा लगा । कुछ औपचारिक बातचीत के दौरान उनसे मैने रानो की परेशानी का जिक्र किया । उसने कहा , "ये कॉमन बात है केवल इन्ही के घरों में ये समस्या नही ये उच्च वर्ग में पाँव पसारे हैं। कई घर बर्बाद होते देखे है हमने !"
कई घरों में सो कॉल्ड पढ़ी लिखी महिलाएँ यानी कि बहुएँ उन पर केस कर देती हैं और हिस्सेदारी क्लेम कर लेती हैं । बच्चे माता पिता को अलग अकेले रहने को विवश कर देते हैं ।"
उसने बताया कि उसके पड़ोसी शर्मा जी ने अपनी पत्नी के देहांत के बाद मकान और अन्य संपत्ति जो उनकी पत्नी के नाम थी वह बेटी के नाम ट्रांसफर कर दिया , और वसीयत में लिखा कि जो भी मेरा बेटा मेरी अंतिम सांस तक मेरे साथ रहेगा उसको मेरी सारी जायदाद का आधा हिस्सा दे दिया जाय आधा मेरी बेटी के पास ही रहेगा । अब दोनों लड़के और बहुएँ खलबला गए , "अच्छी खासी संपत्ति का आधा हिस्सा बहन को क्यों जाए ?? वो तो अपने घर मे सुख से है ही । उसके पास तो खुद अपने ससुराल की संपत्ति है।"
दोनो ने निर्णय किया कि दोनों एक साथ तो यहाँ रहकर पिताजी की सेवा नही कर सकते । तय हुआ कि एक महीने बड़ा बेटा छुट्टी लेकर उनके साथ रहेगा , एक महीना छोटा बेटा । एक एक महीना बहुएँ आती रहेंगी । जिस समय उनमें से कोई नही आ सकेगा तो पिताजी उनके पास रहेंगे । उतने दिन बेटी रखरखाव करेगी ।
तय शुदा कार्यक्रम को वसीयत में जोड़ दिया गया । अब शर्मा जी चैन से हँसी खुशी जीवन जी रहे हैं कोई शिकायत नहीं । रही बात झगड़ों की वह तो जहाँ चार बरतन होते है खटकते ही हैं । रानो जो उनकी बातें सुन रही थी उसकी भी आँखे चमक उठीं ।और खुशी से काम में लग गयी ।

लघुकथाकार
अन्नपूर्णा बाजपेयी
कानपुर