दो बाल्टी पानी - 17 (14) 531 1k 2 गुप्ताइन का घर पास में होने से ठकुराइन की चीख उनके घर तक आराम से पहुंच गई |"गुप्ता जी, अरे उठो ना, देखो बाहर कौन चीख रहा है"? गुप्ता जी को जगाते हुए गुप्ताइन ने कहा |गुप्ता जी नींद में बोले, "अरे कोई नहीं चीख रहा है, तुम सो जाओ" इतना कहकर गुप्ता जी ने फिर करवट बदल ली और खर्राटे भरने लगे, गुप्ताइन ने फिर गुप्ता जी को हिलाकर कहा," अरे उठो ना देखो बाहर जाकर क्या हुआ? कोई तो था…"? गुप्ता जी ने फिर कहा, "अरे सोने दो ना… चीख तो तुम्हें सुनाई पड़ी तो तुम देखो जाकर, या हर काम करने का ठेका हमीं ने ले रखा है क्या"? गुप्ताइन ने गुस्से में कहा, "बड़े शेर बन रहे हो… ठीक है, सुबह उठ कर देखो.. कैसा गीदड़ बनाती हूं"| इतना कहकर गुप्ताइन भी पैर पसार कर सो गई |रात का अंधेरा गांव के साथ-साथ लोगों के दिलों में भी बढ़ रहा था, रात के करीब एक बजे किसी ने ठाकुर साहब के घर का दरवाजा खटखटाया तो ठाकुर साहब ने उठकर दरवाजा खोला और बोले," अरे ठकुराइन तुम कहां थी इतनी रात गए, अरे हमारी तो आंखें लग गई थी, चलो सो जाओ तुम, मिश्राइन के घर पर इतनी देर तक बैठी रही, अरे बता कर जाती" |ठकुराइन ने ठाकुर साहब की किसी बात का जवाब नहीं दिया और चुपचाप जाकर लेट गई |अगली सुबह जब ठकुराइन सो कर उठी तो ठाकुर साहब बड़ी जोर उन्हें देखकर चिल्लाए, "अरे क्या कर लिया तुमने, कुछ लाज सरम है, या वो भी खा गई हो"| ठकुराइन ने घूर के देखा और बोली," का बकवास है…? सुबह-सुबह ही चढ़ा ली का, कोई काम धंधा तो है नहीं चले है सुबह-सुबह हमारी खोपड़ी खाने, अरे इन्हें का पता कैसे मौत के मुहँ से वापिस आए हैं " |ठाकुर साहब गुस्सा गए और बोले, " अरी भैंस चुप हो जा वरना तुझे आज यही खटिया में बांध दूंगा, अरे हमारी तो पूरी बिरादरी में तूने नाक कटा दी, अरे सुक़र है अम्मा जिंदा नहीं है, वरना तो वो दोबारा मर जाती तुझे देखकर" |ठकुराइन ने साड़ी का पल्लू कमर में खोंस कर कहा, "अरे मर जाती तो मर जाती… बढ़िया रहता, अरे आज तो फैसला होकर रहेगा, इस घर में तुम रहोगे या हम" |ठाकुर साहब ने मूछों को ताव देते हुए कहा," अरे तेरे लक्षन तो हमें पहले से ही पता थे, तुझे देख कर ही हमें शक हो गया था कि तू एक दिन ऐसे ही परिवार का नाम साबुन लगा के धों देगी लेकिन पिताजी….. पिताजी ने पता नहीं तुझमें का देखा, बड़ी सुलक्ष्मी भोली भाली लगी उनको" |ठकुराइन तन तनाते हुए बोली, " अरे हमें भी पता था, ठाकुरों के नाम पर तुम छिले हुए केले हो जिसका गुदा कोई पहले ही खा गया हो और छिलका बचा हो, अरे तुमसे अच्छा तो किसी के साथ भाग जाते, न फूटी कौड़ी घर में न तुम्हारी जेब में, ऐसा पता होता कि ठाकुर से नहीं किसी भीखमांगे से शादी हो रही है तो हम कतई नहीं करते, हाय.. री हमारी किस्मत.. फूट गई"| ठाकुर साहब ने अपने दांत पीसते हुए कहा," ये ससुरा का बात है, कल से भागने की बड़ी चुल्ल मची है, बड़ी बातें हो रही है घर से भागने की, अरे भागना है तो भाग जा ना बार-बार बोलती किसको है, अरे क्लेश कटेंगे घर के, अरे तेरे लक्षण तो सही में अब हमें दिख रहे हैं, तू आज इस घर से भाग जा, वही सही रहेगा, लाज नहीं आती इतनी बड़ी बिटिया हो गई है उससे कहती है कि मैं घर से भाग जा रही हूं और बात करती है… आज तू भाग ही जा घर से, आज हम भगाते हैं तुझे"|इतना कहकर ठाकुर साहब ठकुराइन की ओर बढ़े कि तभी वहां स्वीटी आ गई |आगे की कहानी अगले भाग में ‹ पिछला प्रकरण दो बाल्टी पानी - 16 › अगला प्रकरण दो बाल्टी पानी - 18 Download Our App रेट व् टिपण्णी करें टिपण्णी भेजें Ayaan Kapadia 4 महीना पहले Shilpa S Ninama 5 महीना पहले Akash Saxena 6 महीना पहले Arpi 7 महीना पहले Suresh 7 महीना पहले अन्य रसप्रद विकल्प लघुकथा आध्यात्मिक कथा उपन्यास प्रकरण प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान કંઈપણ Sarvesh Saxena फॉलो उपन्यास Sarvesh Saxena द्वारा हिंदी हास्य कथाएं कुल प्रकरण : 36 शेयर करे आपको पसंद आएंगी दो बाल्टी पानी द्वारा Sarvesh Saxena दो बाल्टी पानी - 2 द्वारा Sarvesh Saxena दो बाल्टी पानी - 3 द्वारा Sarvesh Saxena दो बाल्टी पानी - 4 द्वारा Sarvesh Saxena दो बाल्टी पानी - 5 द्वारा Sarvesh Saxena दो बाल्टी पानी - 6 द्वारा Sarvesh Saxena दो बाल्टी पानी - 7 द्वारा Sarvesh Saxena दो बाल्टी पानी - 8 द्वारा Sarvesh Saxena दो बाल्टी पानी - 9 द्वारा Sarvesh Saxena दो बाल्टी पानी - 10 द्वारा Sarvesh Saxena