अमोघ प्रेम Priyamvada Dixit द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अमोघ प्रेम

दिसंबर की ठण्ड और संडे। दोनों अक्सर देर तक सोने की वजह बन ही जाते है। हमेशा की तरह आज भी जैसे ही मैंने चादर से मुँह बाहर निकाला तो आँखें बिस्तर के सिरहाने रखे फोटो फ्रेम पर रुक गयी; सामने रेयान की तस्वीर थी।

“हैप्पी बर्थडे रेयान”, मैंने फ्रेम में लगी तस्वीर को उठाते हुए कहा। तभी मोबाइल बजने लगा। मैंने फोटो फ्रेम वापिस सिरहाने रखते हुए मोबाइल उठाया तो देखा कि मोनिका कॉल कर रही है ।

“हेल्लो मोनिका”, इतना कहते ही उधर से आवाज आयी “गुड मोर्निंग प्रिया। आज ऑफिस आ रही है ना?”

“नहीं आज मैं ऑफिस नहीं आ पाऊगी क्योंकि आज रेयान से मिलने जाना है, लेकिन मैंने तेरा प्रेजेंटेशन बनाकर कल रात को ही तुझे मेल कर दिया था”, इतना बोलकर मैं एक हाथ मे मोबाइल पकड़े दूसरे हाथ से अपने बालों का जूडा बनाने लगती हूँ ।

“आज तूने बचा लिया प्रिया, वरना बॉस तो मेरा जीना मुश्किल कर देते”, इतना सुनकर मैं हँसने लगी। “चल, आज तू रेयान के साथ मस्ती कर कल ऑफिस में मिलते है।” इतना कह कर उसने फ़ोन रख दिया।

और मैं, मैं फिर से रेयान की तस्वीर को निहारने लगी। बड़ी-बड़ी आँखें, उन आँखों में कुछ कर गुजरने की चाहत । दिल को सूकून देने वली उसकी मुस्कूराहट, तस्वीर से दिल तक सुकून अपना रास्ता बना चुका था। काफी देर तक उस रास्ते को निहारने के बाद मैं चाय बनाने रसोई की तरफ चली जाती हूँ।

चाय बनाते वक़्त ना जाने क्यों आज एक अरसे बाद वो गाना गुनगुने का मन करने लगा जो कॉलेज टाइम में मेरा पसंदीदा गाना हुआ करता था, जिसको सुनकर रेयान ने मेरे पास आकर मजाकिया अंदाज में कहा था “एक अजनबी हसीना से????????”, वो “से ” पर रुक गया। मेरी तरफ लाल गुलाब बढ़ा कर उसने मुझसे जवाब माँगा।

“यूँ मुलाक़ात हो गयी”, मैंने गुलाब को लेते हुए जवाब दिया था। उस पल में हम दोनों के दिल एक हो गये थे । आज भी वो पल सोच कर मेरे आँखें नम हो जाती है । उस पल को याद करके में गाना गुनगुनाते हुए मैनें चाय बनायी और चाय लेकर अपने कमरे की तरफ चली गयी।

“एक अजनबी हसीना से,

यूँ मुलाक़ात हो गयी”.....

यादों में डूबी हुई मैं रेयान के बारे में सोच ही रही थी कि मोबाइल में आये “व्हाट्सऐप मैसेज” ने मेरा ध्यान तोड़ा।

चाय का कप बिस्तर के सिरहाने रखकर मैंने अपना मोबाइल उठाया। जैसे ही व्हाट्सऐप खोला तो लगा कि पूरी दुनिया को मेरे ऑनलाइन आने का इंतज़ार था। कई मैसेजों के बीच एक मेसेज रेयान का भी था। एक नयी प्रेमिका की तरह मैंने सबसे पहले रेयान का मैसेज खोला, मेसेज में रेयान ने आज मिलने का वक्त पूछा था । एक बार तो मन हुआ की उसको जन्मदिन की बधाई दे दूं, फिर लगा कुछ देर और रूक जाना ही ठीक होगा। मैंने तेज़ी से उंगलियां चलाई और उसके मैसेज का जवाब देने लगी।

“मैं तुमको 4 बजे अपने पुराने अड्डे पर मिलूंगी”, इतना लिखकर, उसको भेज दिया और नहाने चली गयी।

नहाते हुए और मुलाकात याद करते हुए मुझे नही पता मैं पानी को रेयान समझ कर कितनी देर तक देखती रही।

“बाप रे 1 बज गया और अभी कुछ भी काम नहीं हुआ है” मैंने दिवार पर लगी घड़ी में समय देखते हुए सोचा और जल्दी से अपने मोबाइल से पेस्ट्री शॉप पर फ़ोन करने लगी।

“हेल्लो, आप पैराडाइस बेकरी से बोल रहे है?”

“हां, जी पैराडाइस बेकरी से बोल रहे है, बताइये....

“भैया मुझे दो पौंड का एक फ्रेश फ्रूट केक का आर्डर देना है। केक मुझे दो घंटे के अंदर चाहिए और हाँ भैया, फ्रूट केक में ऊपर जो फ्रूट्स रखना उसमें जेली मत डालना”

“दीदी वैसे तो हमारी बेकरी में सब ही केक ताज़े होते है पर आप 2 घंटे में केक ले जाना और जैसा आपने कहा है कि तो मैं उसमें जेली नहीं डालूंगा, लेकिन केक पर नाम क्या लिखना होगा?”, बेकरी वाले ने बड़ी शान से अपनी बेकरी की तारीफ करते हुए पूछा ।

“भैया केक पर रेयान लिख दीजिएगा । मैं दो घंटो में आपकी बेकरी से आकर केक ले लूंगी” इतना बोल कर मैंने फ़ोन रख दिया और तैयार होने लगी।

अलमरी खोलते ही मेरी नजरें उस लाल रंग के सलवार-कमीज़ को ढूँढने लगी जो रयान ने मुझे गिफ्ट किया था । कुछ देर बाद मेरी आँखें आकर उस लाल रंग के सलवार-कमीज़ पर रूक गयी जो रेयान ने मुझे गिफ्ट दिया था। मैंने जैसे ही सलवार-कमीज़ बाहर निकाला उस पर पड़ी सिलवटे मुझे अपने रिश्तो जैसी लगी जो कई दिन से किसी कोने में घुसा सा रखा हुआ था।

मुलाकात से पहले हर चीज़ से सिलवटें हट जानी चाहिए। इस बात को ज़हन से हक़ीक़त तक लाने के लिए मुझे प्रेस चाहिए थी।

“यार, मेरी कोई चीज़ कभी सही क्यों नहीं मिलती”, खुद पर चिल्लाते हुए मैं प्रेस ढूंढ़ने लगी। प्रेस करने के बाद जब उस सूट को पहना तो लगा कि आज भी मैं कॉलेज जाने वाली लड़की हूँ। फिर मैं खुद को शीशे में यूँ निहारने लगी मानो पीछे से रेयान मुझे देख कर मुस्कुरा रहा हो। आँखों में काज़ल लगाते वक़्त मेरे मन में रेयान की ही बातें चल रही थी।

“प्रिया, तुम्हारी आँखो में ये काजल अलग ही लगता है। मैं तुम्हारी छोटी भूरी आँखें घंटों निहार सकता हूं..”, रेयान की बोली हुई उस बात ने ही तो मुझे काजल लगाने पर मजबूर किया था। मैं अपने बालों का ज़ूडा बनाने ही जा रही थी फिर मन हुआ आज अपने बाल खोलकर ही चलती हूँ शीशे में बालों को देखकर उनपे इतराने का मन करने लगा। मैं यह सोचकर हँसने लगी कि प्यार का रिश्ता कितना भी पुराना क्यों न हो वो हमेशा नया ही लगता है। तभी ध्यान आया!

“अरे यार, मैंने अपने कान कि बलिया कहाँ रख दी।”

ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉर को जल्दी से खोला और उसमें कान के झुमकें खोजने लगी । कई सारे सामान के बीच मेरी नजर मेरे मंगलसूत्र पर गयी । उसको नजर अंदाज़ करते हुए में फिर बाली खोजने लगी । मुझे कान का तो नहीं मिला पर वो नोज रिंग जरूर मिल गयी जो रेयान ने मुझे फर्स्ट डेट पर दी थी। उसे देखकर मैं पुराने खयालो में डूब गयी। कॉलेज के वो दिन जब रेयान और मैं एकसाथ क्लास करते थे, और पूरा दिन साथ-साथ बिताया करते थे।

उन दिनों जब हम पहली डेट पर गये थे तब......“प्रिया यह तुम्हारे लिए”, इतना बोलते हुए रेयान ने एक छोटा सा बॉक्स मेरी तरफ बढ़ाया था जिसे देखकर मैंने हँसते हुए कहा था “क्या बात है रयान फर्स्ट डेट पे गिफ्ट। तुम तो बहुत आच्छे बॉयफ्रेंड बन रहे हो।”

“बन क्या रहा हूँ, में तो हूँ ही आच्छा”, रेयान ने बड़े गर्व के साथ प्यार भरी आवाज़ में बोला था ।

बॉक्स को जैसी ही मैंने खोला तो उसमें एक नोज रिंग थी। “शुक्रिया रेयान,” मैं तुरन्त बोल पड़ी, “ इस प्यारी से गिफ्ट के लिए पर मैं नोज रिंग नहीं पहनती हूँ।”

“पहन कर तो देखो बहुत अच्छी लगोगी इस नोज रिंग में”

“ये काजल और तुम्हारे लम्बे बाल”

“हाय ये आँखे इन्हीं ने मुझे मार दिया था”, इतना सब बोल कर वो मेरी आँखों में देखने लगा था ।

मैं यादों में डूबी ही थी कि दरवाजे पे घन्टी बजी और मैं जल्दी-जल्दी कानों में बाली पहनते हुए दरवाजा खोलने भागी।

दरवाजा खोला तो सामने आरती खड़ी थी। आरती की नजरें मुझे उपर से नीचे तक देखते जा रही थी। काफी देर देखने के बाद उससे कहा, “दीदी इतनी देर से आवाज दे रही हूँ”, उसने अंदर आते हुए पूछा “कहाँ” और फिर जवाब का इंतज़ार न करते हुए बाकी के सवाल भी पूछ डाले।

“आज तो आप बहुत सुंदर लग रही हो । सलवार कमीज और उपर से खुले हुए बाल, आँखो में काजल। किसी से मिलने जा रही हो क्या?”

“हाँ आरती मैं बाहर जा रही हूँ, तुम घर का काम कर लेना और आज खाना मत बनाना और सुनो... वो बाहर से मेरी ‘हील वाली सैंडल’ दे दो”, मैंने सबकुछ एक साँस में आरती से कहा। आरती ने मुझे हैरानी से देखा,“आप और हील?”

“दीदी, मैंने आजतक आपको कभी हील्स पहनते नहीं देखा आज आप बाकी लड़कियों की तरह तैयार हो रही हो।” इतना बोलकर आरती मुस्कुराते हुए मेरी सैंडल लेने चली गयी।

“यार तू मेरे साथ ना, हील्स पहनकर चला कर वरना ऐसा लगता है कि मैं एक छोटे बच्चे के साथ घुमने निकला हूँ ।” यह बात याद करके मैं मुस्कुराने लगी। फिर शीशे में खुद को देखकर सोचने लगी कि “कहीं मैं ज्यादा तैयार तो नहीं हो रही हूँ न? कहीं इतना तैयार देख कर रेयान हँसने तो नहीं लगेगा न?”

तभी आरती कमरे में आ जाती है और तपाक से बोल पड़ी,“दीदी ज्यादा मत सोचो। तुम बहुत अच्छी लग रही हो” आरती ने मेरे सैंडल देते हुए कहा।

“अच्छा आरती जब तक मैं घर ना लौट आऊं तुम कहीं जाना मत।” इतना कहकर मैं सैंडल पहन लेती हूँ । तैयार होकर खुद को एकबार और शीशे में देखते हुए आरती को आवाज देती हूँ “आरती मेरा बैग और कार की चाबी मुझे देना।”

“आरती जल्दी करो 3 बज गए”, वो दौड़ते हुए आती है । मैं उससे सामान लेकर लिफ्ट की तरफ दौड़ने लगती हूँ । कार के पास आकर में जल्दी से कार का गेट खोलती हूँ और गिफ्ट का बैग पीछे की सीट पर रखकर, कार स्टार्ट करने वाली ही होती हूँ कि तभी रेयान का फ़ोन आ जाता है।

“मैं घर से निकल चूका हूँ और तुम निकली या नहीं”

“हां छोटू मैं भी निकल रही हूँ। वहीं मिलो।” इतना कहकर मैं फ़ोन रख देती हूँ और कार स्टार्ट करके बेकरी की तरफ चल देती हूँ।

बेकरी के पास आकर कार पार्क करके अंदर चली जाती हूँ। ये बेकरी (पैराडाइस बेकरी) इलाहाबाद की सबसे मशहूर बेकरी है।

बेकरी में घुसते ही मैंने काउंटर पर खड़े भैया से पूछा, “भईया मैंने फ्रूट केक का आर्डर दिया था बन गया केक.?” इतना सुनते ही वो मेरे सामने केक का बॉक्स रख देता है...... “हाँ ये लीजिये आपका केक। फ़ोन पर आवाज़ सुन कर लगा था कि शायद आप ही हो क्योंकि हर साल आप ही फ्रेश फ्रूट केक का आर्डर देती हो।”

मैंने उसको पैसे दिए और मुस्कुराते हुए केक लेकर कार की तरफ चल दी । कार में पीछे केक रख दिया और कार चलाने लगी।

कार लाल बत्ती पर रुकी तो मेरी नजरे एक लड़के पर गयी जो ऑटो में बैठा था । २४-२५ साल का वो दुबला लड़का मोबाइल पर किसी से बात कर रहा था, उसको बात करता देख ऐसा लग रहा था कि वो किसी बहुत खास से बातें कर रहा है। उस लड़के की मुस्कुराहट बहुत कुछ बोल रही थी। उसे देखकर मैं भी मुस्कुराने लगी। रेड लाइट जब ग्रीन हुई, मैं कार लेकर वहाँ से चलने लगी।

FM पर “चल-चले अपने घर ऐ मेरे हमसफर” यह गाना सुनते ही मैं गाने की आवाज़ तेज़ कर दी और गाना गुनगुनाते हुए अपनी मंजिल के पास जाने लगी। गाना सुनने के दौरान मेरे मोबाइल पर श्रेया का फ़ोन आया । श्रेया और मैं, बचपन से दोस्त है। हमदोनों एक-दुसरे की ज़िन्दगी की हर छोटी-बड़ी बातें जानते हैं। गाने की आवाज़ कम करते हुए मैंने कार सड़क किनारे रोक दी।

“कहा मर रही है आजकल.?”, मेरी खुशी ने उससे चिल्लाते हुए पूछा।

“कही नहीं यार तेरे बिना कहा मरूँगी?” उधर से भी गरम जोशी से अवाज़ आई।

“वैसे अभी कहाँ है? मै आज रेयान से मिलने जा रही हूँ”, मैंने झेंपते हुए कहा।

“क्या बात है, तूने उसको माफ़ कर दिया”, उसने उत्सुक होकर पूछा।

मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नही था। “यार मुझे आज वो बात नहीं करनी ”, मैंने साहस बटोरते हुए कहा।

“ठीक है परसों मिलो”, उसने उत्सुक होकर बोला ।

“हां परसों मिलते है” इतना सुन कर मैंने मोबाइल वापस सीट पर रख दिया और कार चलाने लगी। एक बार फिर मैंने गाने की आवाज तेज़ की ताकि मेरे मन का शोर थम जाए। कई बार हम बस अपने अंदर का शोर बंद करने के लिए उससे ज्यादा शोर के बीच चले जाते है ।

मैं जब बाबा चौराहा पर पहुँची तो कार एक बार फिर सड़क किनारे लगा कर रेयान के लिए फूल लेने चली गयी। सड़क किनारे लगी उस दूकान में सभी तरह के फूल लगे था वहाँ जाकर मैंने कहा “मुझे पीले गुलाब का एक गुल्गस्ता दे दो”। इतना सुनकर वहाँ मौजूद लड़की गुल्गस्ता बनाने लगी और मैं दूकान में रखे बाकि फूलों को देखने लगी।

वहाँ खड़े होने पर कुछ और बातें मेरे ज़हन में आने लगी।

“रेयान तुमको लड़की होना चाहिए था वैसे भी तुम्हारी हरकतें तो लडकियों वाली हैं और ऊपर से तुम्हें गुलाब भी पसंद हैं तो पीले । तुम हर बार मुझे पीले गुलाब ही देते हो। इतने साल हो गये! कभी तो मुझे मेरी पसंद का फूल दे दिया होता"

“अगर मैं तुमको तुम्हारी पसंद का फूल दूंगा तो तुमको मेरी याद कैसी आएगी?”, उसने ख़ुद को सही साबित करते हुए दिया था। वो पीले गुलाब का एक गुल्गस्ता।

उतने में दूकान पर काम करती उस लड़की ने मेरे हाथ में पीले गुलाब का एक गुल्गस्ता थमा दिया । मैंने उसको पैसे दिए और कार में वापस आ गयी। कार में आकर फूल भी बाकी सामान के साथ रख दिये और सीट-बेल्ट लगाकर कार चलाने लगी। यादें भी अजीब है कभी आँखों को नम कर जाती है तो कभी होटों पर मुस्कान बिखेर जाती है। कार स्टार्ट करके में इंडियन कोफ्फे हाउस की सड़क पर कार मोडती ही हूँ की उतने मै रयान का फ़ोन आजाता है ।

“मोटी कहाँ हो?”

उसने हमेशा की तरह फ़ोन पर कहा।

“मोटी नहीं हूँ मैं!” मैंने बनावटी गुस्से से कहा, “और तुमने अपना मुँह देखा है एकदम बन्दर जैसा है।

“मेरा बाबू गुस्सा हो गया क्या”, मैं कैफ़े हाउस के अंदर हूँ जल्दी आओ।

“हां बस आती हूँ।”

मैंने फ़ोन पर इतराते हुए कहा।

“ठीक है जल्दी आजा मोटी” इतना बोलकर उसने हँसते हुए फ़ोन रख दिया।

मैं इंडियन कैफ़े हाउस पहुंच चुकी थी जहां रेहान मेरा इंतज़ार कर रहा था। ये हम दोनों के मिलने का पुराना अड्डा था। सारा सामान लेकर मैं जल्दी से “इंडियन कैफ़े हाउस” की तरफ चलने लगी तो याद आया की मैं गिफ्ट तो कार में ही भूल गयी। मैं वापस कार की तरफ भागी।

“एक तो यह हील्स ऊपर से मुझे आने में देर भी चुकी थी। आज तो रेयान गुस्से में मुझे मार ही डालेगा । मैं जल्दी-जल्दी कार का गेट खोलकर केक लेकर कैफ़े की तरफ कदम बढ़ाने लगी। कैफ़े में घुसते ही ऐसा लगा कि आज भी मैं कॉलेज में पढ़ती हूँ और क्लास बंक करके पहले की तरह रेयान से मिलने आयी हूँ। इतने सालों में भी यहाँ कुछ नहीं बदला। आज भी कैफ़े में लोगों का हुज़ूम था और आज भी कॉफ़ी हाउस में देश और दुनिया की बातें और लोग मौजूद थे।

मैंने वेटर को केक का बॉक्स दे दिया और उस को कुछ देर बाद टेबल नंबर 3 पर लेकर आने को कहा। मैं सीधे रेयान के पास चली गयी। रेयान काले रंग के लिबास में ऐसा लग रहा था मानो वो रात अपने संग लेकर चल रहा हो। गोरा रंग उसपर उसका काला लिबास। आँखों पर अब फ्रेमलेस चश्मा आगया था। पर उसकी आँखे आज भी किसी को दीवाना कर सकती थी और शरीर पहले से जादा सुडोल हो गया है। कसम से आज भी किसी कॉलेज जाते लड़के की तरह लग रहा था । जैसे ही उसने मुझे अपने पास खड़ा देखा तो चौंक गया। चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला- "तुमको कैसे पता कि मैं यहाँ बैठा हूँ?"

“ओ बन्दर, आज मैच है ना इंडिया- पाकिस्तान का और इस टेबल से मैच सबसे साफ़ दिखता है”, मैंने पर्स टेबल पर रखते हुए बोला। मेरी इस बात पे हम दोनों हंसे, ये हँसी गंगा के पानी जैसी साफ़ और उसमे गोता लगाते बच्चे जैसी बेफ़िक्र थी ।

“तुम मुझे कितना जानती होना मोटी।”

“ये क्या मोटी-मोटी लगा रखा है मैं मोटी नहीं हूँ” मैंने आँखो में गुस्सा दिखाते हुए कहा।

“वो तो मैं प्यार से बोलता हूँ। वैसे तुम आज भी वैसी ही लगती हो जैसी उस वक़्त लगती थी जब पहली बार मैंने तुमको देखा था.”

तभी वेटर ने आ के पूछा, “क्या लेंगे सर?” रेयान कुछ बोलता उससे पहले ही मैंने बोल दिया “2 मसाला डोसा, 1 प्लेट इडली, 1 ब्लैक कॉफ़ी और 1 कोल्ड कॉफ़ी” । इतना सुनकर वेटर चला गया। लेकिन रेयान मुझे देखकर मुस्कुराने लगा”, उसकी नजरे टीवी पर चिपकी हुई थी मानो दुनिया में और कुछ है ही नहीं।

“आज तो इंडिया आराम से जीत जाएगी। चाहो तो शर्त लगा लो!”

“रेयान तुम रहने दो, हारी हुई शर्तों के पैसे तो तुमने आजतक दिये नहीं अब और कोई शर्त नहीं लगानी मुझे”, मैंने रेयान का मजाक उड़ाते हुए कहाँ ।

रेयान कुछ देर चुप रह और जब वो कुछ बोलने ही वाला था कि वेटर केक के साथ आ गया।

“हैप्पी बर्थडे टू यू”, मैंने एक छोटे बच्चे की तरह गाना शुरू किया।

“प्रिया मैं आज यही बोलने वाला था कि तुम मेरा जन्मदिन कैसे भूल गयी लेकिन हरबार की तरह तुमको सब याद रहा”, रेयान ने रुँधे हुए गले से केक काटते हुए कहा।

“मैं तो हूँ ही इतनी अच्छी”, ये लो तुम्हारा गिफ्ट”, मैंने पर्स से गिफ्ट निकलते हुए उसकी तरफ बढ़ा दिया।

“क्या है इसमें”, उसने उत्सूकता से पूछा और गिफ्ट का व्रैप खोलने लगा।

“यार मैं इसी किताब की तलाश कर रहा था तुमको कहाँ से मिली यह किताब?”

मैंने कुछ नहीं कहा और उसके चेहरे की ख़ुशी देखकर मुस्कुराने लगी।

इतने में वेटर आया और टेबल पर डोसा, इडली और कॉफ़ी रख गया। जैसा कि मैं जानती थी रेयान अपने फ़ोन से खाने की फोटो लेने लगता है। “तुम ना एकदम लड़की हो”, मैंने जोर से हँसते हुए कहा।

“यही तो मोमेंट्स होते हैं”, रेयान ने खाने की प्लेट को अपनी तरफ लेते हुए कहा।

“रेयान इस जगह में कुछ नहीं बदला न। ये आज भी वैसा ही है जैसा हमारे कॉलेज के समय पर हुआ करता था। वैसे ही टेबल से बंधी कुर्सियां, दुनिया भर के विषय पर बात करते लोग और यहाँ का खाना 100 साल से वैसा ही चला आ रहा है।”

“ख़ैर छोड़ो, ये बताओ काम कैसा चल रह है फोटोग्राफर साहब आपका?”, कॉफ़ी पीते हुए मैंने इशारों में रेयान से पूछा।

“ठीक ही है ।'' उसने दो टूक जवाब दिया।

“और संध्या कैसी है”, मैंने हिचकती हुई आवाज में पूछा।

“ठीक ही होगी।” उसने फिर दो टूक जवाब दिया।

“हमें अलग हुए 1 साल हो गया।” रेयान ने कुछ वक्त रुक के कहा, “ पिछले नवम्बर में अलग हुए थे। उसको कुछ वक़्त तक आज़ादी चाहिए थी मैंने दे दी।”

उसके माथे पर शिकन और आँखो में गुस्सा दिख रहा था । मैं थोड़ी देर उसको देखती रही और बात को बदलते हुए बोली, “रेयान जब से यह नया फ़ोन लिया है सर दर्द बढ़ गया है। मुझे कोई ऐप चलानी नहीं आ रही है।”

“नाटक की दुकान”, बोलकर वो हँसने लगा।

“आज शुभम से बात हुई वो इंडिया आया हुआ है। मिलने को कह रहा था लेकिन मैंने बहाने से मना कर दिया।”

“कौन कॉलेज वाला शुभम, वही जो कॉलेज टाइम तेरे पीछे पड़ा हुआ था। हाय पुराना प्यार बुला रहा है।” रेयान ने चुटकी लेते हुए कहा। “हाँ अब लगता है कि उससे ही पट जाती तो अच्छा था”, मैंने भी उसको परेशान करते हुए कहा। “बेटा अभी तुमको पता नहीं है कि कितने लोग दिवाने थे मेरे।”

“हाँ बेचारे वो तुम्हारे दिवाने थे और तुम मेरी।

"प्रिया चलो संगम चलते हैं।" रेयान ने अचानक प्लान बनाया। "डूबते सूरज को देखेंगे।" बहुत दिन हुए अपने शहर में घुमे हुए, उतने में वेटर बिल लेकर आ जाता है और मैं उसके हाथ से बिल ले लेती हूँ।

“पैसा मैं दूंगा मेरी ट्रीट थी”, रेयान ने मेरे हाथ से बिल खीचते हुए कहा।

“नहीं, आज नहीं तुम फिर कभी दे देना”, मैंने भी अपनी आवाज़ में तेज़ी लाते हुए कहा। बिल देकर हमदोनों कार की तरफ चलने लगे, प्रिया कार की चाबी दो।

"प्रिया कार की चाबी दो।" उसने कहा।

“रेयान, नहीं! आज तुम बैठो और मुझे अपना ड्राइवर बनने दो”, मैंने ड्राइविंग सीट का गेट खोलते हुए कहा।

कार में बैठते ही रेयान ने मेरे सामने ही हाथ जोड़ कर कहा, “हे शिव जी, हे साईं बाबा, हे देवी माँ, आज बचा लेना मुझे! मैं अपने जन्मदिन के दिन नहीं मरना चाहता।"

“रेयान चुप रहो। मैं इतना बुरा भी ड्राइव नहीं करती।” मेरी आवाज में चंचलता और शिक़ायत लिए मैंने उसको टोका। और हम वहाँ से संगम की ओर चल दिए।

“आज भी इतने पुराने गाने सुनती हो?” रेयान ने मजाक उडाते हुए कहा।

“नहीं मैं नये गाने भी सुनती हूँ” इतना बोलकर मैंने मसान फिल्म का गाना ‘तू किसी रेल सी गुजरती है’ लगा दिया। “रेयान यह गाना सुनो तुमको अच्छा लगेगा।” फिर हम दोनों वो गाना साथ गाने लगते है।

संगम पहुँच कर हम गँगा के किनारे बैठ गए शाम की वो ठंडी हवा हमको छूकर गुजर रही थी। मानो आज वो भी हम को साथ मैं देख कर खुशी से झूम रही हो। गँगा नदी के उपर साइबेरियन पक्षी आकाश में उड़ रहे थे। हम दोनों खामोश होकर बस नदी की तरफ देख रहे थे। इलाहाबाद था तो अपना ही शहर पर काम और ज़िमेदारियों के चलते हम कभी-कभी भूल जाते है कि इस शहर की सुन्दरता, इसमें बसी शांति है।

“प्रिया एक वक़्त था जब मुझे लगता था कि मुंबई या दिल्ली ही ऐसी जगह है जहाँ आप ख़ुशी से रह सकते हो। लेकिन अब लगता है कि जगह नहीं इंसान खास होता है।”

“ये मन भी कितना अजीब होता है न। कभी किसी साधारण सी चीज़ में भी शांति ढूंढ़ लेता है तो कभी बेचैन, किसी चीज़ के पीछे भागता रहता है। जैसे आज संगम के तट पर बैठ कर ही मन ने शान्ति का चोला ओढ़ लिया है।” रेयान यह बोल ही रहा होता है उतने में एक मल्लाह की आवाज काफी दूर से आती है।

“बाबू साहब! नाव की सैर करेंगे?” उसने रेयान की तरफ देखते हुए पूछा। “हाँ बिलकुल चलेंगे भैया, अब गँगा माँ बुलाये और हम ना आये। चलो प्रिया जी”

इतने दिनों बाद उसका एक प्रस्ताव.. मैं मना कैसे करती? रेयान ने खड़े होकर अपने कुर्ते पर लगी रेट साफ़ करते हुए बोला..। नाव में बैठकर हम संगम तट की तरफ चलने लगे और जैसे रेयान की आदत थी वो मल्लाह से बात करने लगा।

“वैसे आजकल पानी कम हो गया है”, रेयान के बोलने से पहले मल्लाह बोल पड़ा। “ नहीं भैया अभी तो पानी बढ़ा है और कुछ दिनों में अभी और बढ़ेगा।” मैं खामोश होकर बैठ गयी और रेयान उस मल्लाह से बात करने लगा।

“लगता है भैया भाभी कम बोलती है”, उस मल्लाह ने मेरी तरफ देख कर पूछा।

“भाभी कम नहीं बहुत ज्यादा बोलती है पर लगता है आज उसके मन की बात नहीं हो रही है।” यह बोलकर रेयान और मल्लाह हँसने लगे।

रेयान कॉलेज के दिनों से ही ऐसा था। किसी से भी बात करके उसको दो मिनट में अपना बना लेता था। और शायद इसी वजह से मैं भी उसकी तरफ आकर्षित हो गयी थी। वो किसी का दुःख दर्द ऐसे सुनता था मानो वो आपका अपना है और शायद इसीलिए पूरे कॉलेज, कॉलोनी, सभी जगह रेयान के चाहने वालों की कमी नहीं थी। वो किसी का भी भाई, बेटा, मामा बड़ी आसानी से बन जाता और फिर बड़ी शान से बोलता कि पूरा भारत ही मेरा परिवार है।

मैं सोच रही थी कि रेयान आकर बोला, “ क्या सोचने लगी, पगली!”

“तुम आजतक नेता जी की तरह सब की परेशानी सुनते हो न। तुम चुनाव क्यों नहीं लड़ लेते”, मैंने जोर से हँसते हुए कहा। वो मुझे एकटक देखने लगा।

“तुम जब खुलकर हँसती हो तो कितनी अच्छी लगती हो और हँसते हुए तुम्हारी छोटी भूरी आँखें, और छोटी हो जाती है। वैसे यह सलवार कमीज तो कुछ जानी-पहचनी लग रही है। तुमने अभीतक संभाल कर रखी थी।”

“हाँ, वो इसका रंग मुझे बहुत पसंद है इसलिए..” मैंने नदी के दूर किनारे को देखते हुए थोड़ा नज़र बचाते हुए कहा।

“अजीब है न”, उसने नाव की तरफ देख के कहा, “मेरा पसंदीदा रंग 'लाल' तुमको पसंद आने लगा और तुम्हारा पसंदीदा रंग 'काला' अब मेरी पसन्द बन गया है।" इतना कहकर रेयान मेरी आँखो में कुछ ढूंढ़ने लगा। हम दोनों एक दूसरे की आँखो में खो चुके थे कि अचानक मेरे मोबाइल की रिंग ने उस पल में खलल डाल दी। मैंने पर्स से फ़ोन निकाला तो मोबाइल की स्क्रीन पर पुनीत नाम लिखा आ रहा था। जब तक मैं फ़ोन उठाती, कॉल कट गयी थी। मैंने पुनीत को मैसेज किया कि थोड़ी देर में कॉल करती हूँ। पुनीत का नाम देखकर मानो रेयान परेशान सा हो गया। उसको समझ नहीं आ रहा था कि कोई और लड़का क्यों मुझे कॉल कर रहा है।

“बात कर लो शायद कोई जरूरी बात करनी हो।” उसने धीमी आवाज में कहा।

“आज ऑफिस नहीं गयी न इसलिए पूछ रहा होगा। रात को बात कर लूंगी उससे। इस समय तो आवाज भी ठीक से नहीं आएगी”

“तो यह साला क्यों मर रहा है। नहीं आई तो नहीं आई!” इतना बोलते हुए रेयान के चहरे का रंग उड़ गया था। पुनीत की कॉल देखकर उसको बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था।

“अरे यार अब कोई मुझे मैसेज भी न करे?” “छोड़ो ये बताओ” मैंने बात बदलते हुए कहा “घर में माँ-बाबा कैसे हैं?” और मोबाइल पर्स में रख लिया।

“अच्छे हैं।”

रेयान ने मेरी आँखो में देखते हुए कहाँ, “पापा बता रहे थे कि तुम हर महीने घर दवाएं भेज देती हो। प्रिया हमें अलग हुए 7 साल हो गये पर तुम आज भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागती। मेरा जन्मदिन हो या माँ-पापा की तबियत का ध्यान रखना हो, इतना कुछ कैसे कर लेती हो?” यह बोलते हुए वो मेरी आँखो में देखने लगा ।

“क्योंकि रेयान शादी के फेरे लेते हुए मैंने सभी वादे दिल से लिए थे”, इतना बोलते ही मेरी आँखों में नमी आ गयी। वो संगम के तट की आवाज, चलती हुई नांव, और पक्षियों के शोर में भी हम दोनों एक-दूसरे की खामोशी को आसानी से सुन पा रहे थे।