सफ़ेद शर्ट Priyamvada Dixit द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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सफ़ेद शर्ट

मै तम्शी। बालकनी में बैठी चाय की चुस्कीयों के साथ बाहर मैदान में पसरी धूप की किरणों को निहारते हुए यह सोचने लगती हूँ। सूरज की किरणे भी इस जनवरी की सर्दी को कम नहीं कर पा रही हैं जिसका कारण शायद बर्फीली हवाएँ है। जो सुबह से ही चल रही थी। मै अभी और कुछ सोच पाती इतने में एक ठंडी हवा का झोका मेरे बालों को सहलाता हुआ कहीं दूर निकल गया।

ये हवा मेरे होठों पर एक हल्की सी मुस्कान का सौगात लेकर आई थी। जिसे मैंने चाय के प्याले से निकालकर ख़ुद में डूबो दिया। मै सोचने लगी, ज़िन्दगी के वो दिन कितने ख़ुशनसीब थे। जब मैं एंट्रेंस एग्जाम में टॉप करने के बाद अपनी सहेलियों के साथ “संगम पैलेस” जो कि अलीगढ़ का सबसे ज्यादा चलने वाला पैलेस था उसमें “दिलवाले” देखने गयी थी। फ़िल्म का मजा तब और दोगुना हो गया था। जब पता चला कि अब मुझे अपनी पसंद के कॉलेज में पढ़ने का मौका मिलेगा। हम सब सहेलिया फिल्म शुरू होने से कुछ देर पहेले ही पिक्चर हॉल में जाकर बैठ गए और बड़ी बेसब्री से फिल्म शुरू होने का इंतज़ार करने लगे। फिल्म जैसे ही शुरू हुई, हॉल में लगी बत्ती बंद हो गयी। सब चुप होकर फिल्म में “शाहरुख़ खान” का अभिनय देखने लगे। फिल्म देखते-देखते पता ही नही चला की कब फिल्म की पहेली पेहर खत्तम हो गयी। इंटरवल होने पर मानो सब लोगो ने एक साथ अपना मौन तोडा हो, कुछ रोहित शेट्टी के काम की तारीफ करने लगे, तो कुछ अपनी सीट से उठ कर कैफ़े के तरफ चल दिए। मैं भी उठ कर बहार कैफ़े की तरफ चल दी।

इंटरवल ख़त्म होने के बाद जैसे ही में वापिस हॉल में आई तो मुझसे एक कदम भी चला नहीं जा रहा था। बड़ी मुश्किल से मै अपनी सीट तक पोहचाने ही वली थी कि तभी अचानक पीछे से आये एक झटके से मेरी कोल्ड ड्रिंक, मेरे ठीक आगे की सीट पर बैठे लड़के पर जा गिरी। उसकी सफ़ेद शर्ट पर फैंटा, का नारंगी रंग चढ़ गया और यह देख कर उसका मुह लाल, “उसने गुस्से अपना सर ऊपर उठा कर मेरी तरफ देखा”, उसकी बड़ी-बड़ी आँखो में गुस्से का भूकंप होने की आकांशा। मैंने नज़रे झुकाते हुए उससे माफ़ी तो मांगली मगर मन ही मन अपनी हँसी भला कब तक रोक पाती। उससे माफ़ी माग कर सहेलियों के पास आते ही। उन्हें ये किस्सा सुनाकर मैं जोर से हँस पड़ी, फिर चुपके से उस लड़के की तरफ भी देखने की कोशिश की मगर पाया कि उसकी नज़रे भी मुझपर ही गड़ी हुई थी। फ़िल्म ख़त्म होने के बाद जब सभी सहेलियां अपने-अपने घर को जाने लगी। मैंने देखा कि वो लड़का हमारे पीछे ही चला आ रहा था। मैंने अपने कदमों को और तेज़ कर लिया कि तभी उस लड़के ने पीछे से आवाज़ लगाई।

सुनिये, हमने हैरानी से पीछे देखा और सभी सहेलियां वहीं रुक गयी। वो उनके पास आकर बोला डरो मत मैं तुमपर गुस्सा नहीं करूंगा। अभी आगे कोई बात हो पाती कि तभी मेरी एक सहेली बोल पड़ी।

“अरे आसिफ़ तुम यहाँ कैसे?”

“तुम जानती हो इसे” मैंने प्राची का हाथ अपनी तरफ खीचते हुए पूछा।

“हां, यह आसिफ़ है मेरे दोस्त का बड़ा भाई”

“अरे आसिफ़, तुम्हारी शर्ट भी कोल्ड ड्रिंक पीती है क्या?”,प्राची इतना पूछते ही जोर से हँसने लगी और उसको देख कर हम सब भी अपनी हँसी नही रोक पाए।

“सब आपके दोस्त की मेहरबानी है” आसिफ़ ने मुझे देखते हुए मस्ती से कहा।

“प्राची, मुझे घर जाने में देर हो रही है। मैं घर जा रही हूँ। इतना कहकर मैं वहँ से नज़रे चुरा के जाने लगी। तभी पीछे से आवाज आयी।

“अरे ऐसे क्यों जा रही हो? मैं तुमको अपनी शर्ट साफ़ करने को नहीं कहने वाला।”

इतना सुनते ही मेरे चेहरे पर हँसी आ गयी। माफ़ करना वो पीछे से जोर का धक्का आया था इसलिए मेरे हाथ से कोल्ड ड्रिंक तुम्हरे ऊपर गिर गयी।

“चलो किसी रेस्टोरेंट में चलते हैं।”

आसिफ़ की आवाज़ में ऐसी कशिश थी की मै मन नही कर पाई। में कुछ बोलती उसे पहेले ही प्राची ने मुझे अपने साथ चलने के लिए बोला। हम सब पास के ही एक रेस्टोरेंट में चले गए। रेस्टोरेंट में दाखिल ही होते ही आसिफ़ ने चार चाय का आर्डर दे दिया।

आसिफ़ लगातार मुझे ही निहार रहा था। मगर में इन सब बातो से बेखबर खिड़की के बाहर के नजारों को देखने में लगी थी। अचानक हमारी नजरें मिली तो उसने पुछा।

“मोहतरमा आपका नाम क्या है?।”

उसके इतना पुछने की देरी थी कि झट से मेरे मुँह से निकल गया

“जी तम्शी”

“बहुत प्यारा नाम है”, उसने एकटक मुझे देखते हुए कहा।

मेरा चेहरा शर्म से गुलाबी हो गया पर मैंने भी बिना देर किये पूछ ही लिया।

“आप क्या करते हैं?”

“मैं मेडिकल की पढ़ाई करता हूँ।”

उसके इतना बोलने से पहेले ही वेटर ने टेबल पर चाय रख दी और फिर हमसब चाय पीने लगे और प्रार्ची आसिफ़ से बातें करने लगी।

मेरी दिमाग में यादे ताज़ा हो ही रही थी की आचानक से हकीकत ने मुझे एक बार खयालो से फिर उठा दिया।

“मैडम जी आप धूप में क्यों बैठी हैं? अंदर बैठ जाइये।”

आचानक सलमा, अधेर उम्र की खातून। जो मेरे घर के काम में हाथ बताती है। उसनेयह पूछ कर यादों का सिलसिला तोड़ दिया।

“नहीं-नहीं तुम जाओ मुझे बालकनी की धूप अच्छी लग रही है”

यह बोल कर मैंने सलमा को अंदर भेज दिया। फिर सोचने लगी। कभी-कभी यादों की धूप कितनी अच्छी लगती है। मैदान में पसरी धूप की किरणों को देखते देखते मै फिर यादो में खो जाती हूँ।

हम सब रेस्टोरेंट के बहार आये और ऑटो वाले को आवाज़ देकर रोका और हम सभी सहेलियॉ ऑटो में बैठ गयी। सभी का तो पता नहीं पर आसिफ़ और मेरी नजरें मिली और मैंने उसे मुस्कुराते हुए कहा,

“फिर मिलते है।”

“जी बिल्कुल” इतना सुन कर मैं ऑटो में बैठ कर वहाँ से घर चली आयी।

घर आकर आसिफ़ का ख्याल कही पीछे रह गया। कुछ दिन बाद से ‘अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ में दाखिले लेना की क्रिया शुरू होने वली थी। अब सारा ध्यान था अपनी पसंद के कॉलेज में पढ़ने का मौका मिलेगा।

मौसम आज कुछ नाराज सा मालूम पड़ता था। तेज़ हवा चल रही थी। उसके साथ हल्की बूंदे भी गिर रही थी।

कैनेडी हॉल के चारों तरफ एडमिशन लेने वालों का हुजूम उमड़ चुका था। लड़के और लड़कियां हाथों में दाखिले का फॉर्म लेकर इधर-उधर परेशान घूम रहे थे। इन सभी बीच मै भी शामिल थी। परेशानी इसलिए ज्यादा थी क्योंकि कॉलेज के बाद यूनिवर्सिटी में मेरा पहला दिन था यक़ीनन यह एक नई दुनिया थी।

एक तो एडमिशन की भागमभाग, दूसरा लड़को ने कमेंट करके अलग परेशान कर रखा था। एक फार्म पर प्रॉक्टर के सिग्नेचर के लिए मैं लाइन में कई घंटो खड़ी रही और जब मेरी बारी आई भी तो चपरासी ने बताया कि यह ऑफिस प्रॉक्टर का है ही नहीं। तब क्या था, इतना सुनते ही गुस्से में मेरे मुँह से निकल पड़ा।

“अजीब चूतियापा है”।

इतना सुनते ही मेरे आसपास खड़े लड़के-लड़कियों ने मुझे देखकर ऐसा मुँह बनाया जैसे मैंने कोई गन्दी गली दे दी हो।

यूनिवर्सिटी गेट के बाहर निकलते ही मेरी दोस्त प्राची ने बताया। उसे आज घर जल्दी जाना है। इसलिए अब वो घर जा रही है। इतने में मेरी नजर दूर से आते हुए उस लड़के पर गयी। उस ने काले रंग का कुरता और नीचे जीन्स के साथ मानो उसका पेहनावा उसको बाकि सबसे अलग कर रहा था। पास आते देखा तो वो लड़का मुस्कुराते हुए हमारी तरफ ही आ रहा था। लम्बा कद उस पर उसके बाल हवा के बहाव से उसके चेहरे पर आरहे थे। में एक टक उस नौजवान को देखने लगी। उसके नजदीक आने पर पता चला कि वो कोई और नहीं ‘आसिफ़’ ही था।

“हेल्लो तम्शी, हेल्लो प्राची”

वो कुछ और बोल पाता उससे पहले मेरे मुँह से निकल पड़ा “तुम यहाँ कैसे?”

आसिफ़ बोला “मैं यही से मेडिकल कर रहा हूँ। वैसे तुम इतने गुस्से में क्यों हो?” उसने बड़ी आसानी से मेरे चेहरे से मेरे गुस्से को भाप लिया।

“क्या बताऊँ, सुबह से प्रॉक्टर ऑफिस ढूढ़ रही हूँ अबतक नहीं मिला।”

आसिफ़ ने बड़े प्यार से बोला तुम दोनों चलो मेरे साथ मैं बताता हूँ। कहाँ है प्रॉक्टर ऑफिस। उतने में प्राची बोल पड़ी

“जी आप आज तम्शी को बतायो कहा है प्रॉक्टर ऑफिस, क्युकी आज मुझे जल्दी घर जाना है।” इतना बोल कर प्राची ने हमने अलिविदा कहा और अपने घर की तलफ चल दी।

हम साथ चलने लगे, उसने मुझे बताया कि कल “मेरी अम्मी ने मुझे बहुत डाटा कि तुमने अपनी कमीज पर कोल्ड ड्रिंक कहां गिरा ली”

“मैं सॉरी बोलने ही वाली थी”, कि हम ऑफिस पहुँच गए और कुछ ही मिनटों में मेरा एडमिशन का हो गया।

“शुक्रिया आसिफ़ अगर तुम न होते तो ये काम एक दिन में न हो पाता” मैंने आभार प्रकट करते हुए उससे बोला।

“तम्शी शुक्रिया मत बोलो, तुम्हारे लिए इतना तो मैं कर ही सकता हूँ। आखिर पिछले दो साल से यहाँ का स्टूडेंट हूँ” आसिफ़ ने इतने भोलेपन से कहा कि मैं उसे एकटक देखती रही गयी।

हम रोज़ किसी ना किसी बहाने से मिलने लगे। कभी लाइब्रेरी में तो कभी किसी कैंटीन में चाय के बहाने। धीरे-धीरे हम दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया। एक दिन बाहर बैठे मैं अपने M.A के नोट्स देख रही थी। तभी पीछे से आवाज आई।

“इतना मत पढ़ो वरना बाकियों का क्या होगा!”

मैंने पलट के देखा तो पीछे से आसिफ़ आ रहा था उसने काले रंग की कमीज और सफ़ेद रंग की पैन्ट पहन रखी थी।

“क्या तुमको पता था कि मैं भी आज काले रंग की सलवार कमीज़ पहनने वाली हूं?।“

“यही तो हमारा प्यार है। जो आज हम दोनों के लिबास का रंग एक जैसा है। मैं तुमसे इतनी मोहब्बत करता हूँ। तुम्हारे मन की बात भी पढ़ लेता हूँ और वो शौहर ही क्या जो अपनी बेगन के बारे में न जनता हो।”

आसिफ़ ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा। बेगम सुनते ही मैंने शरमाते हुए अपना हाथ आसिफ़ के हाथों से निकाला और शर्माते हुए अपनी क्लास की तरफ भाग गयी। कुछ दिनों बाद हमारी फाइनल परीक्षा शुरू होने वाली थी। जिसने हमारा मिलना बन्द करवा दिया क्योंकि अब हम पढ़ने में लग गए। परीक्षा ख़त्म होने के बाद मैं जैसे ही क्लास के बहार आई मुझे आसिफ़ दिखाई दिया और मैं खुद को रोक न पाई मैं उसकी तरफ़ दौड़ी और पास जाकर उसे गले लगा लिया।

आसिफ़ के साथ समय कब गुजर गया यह पता ही नहीं चला। कुछ दिनों बाद परीक्षा का परिणाम भी आ गया हम दोनों पास हो गए थे। मुझे मेरे पास होने से ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी कि अब मैं आसिफ़ को बड़े गर्व से “डॉक्टर साहब” बुला सकती थी। आसिफ़ दूर खड़ा अपने दोस्तों के साथ बात कर रहा था। मैंने पीछे से आवाज़ लगायी।

“अरे डॉक्टर साहब” उसपल मुझे बहुत ख़ुशी हो रही थी। शायद इसको ही मोहब्बत कहते है।

आसिफ़ ने प्राची से बोला की वो मुझे ‘4 बजे’ कॉफ़ी शॉप में मिलेगा। उसदिन में पहेली बार बड़ी बेसब्री से ‘4 बजने’ का इंतज़ार रक् रही थी। मैं कॉफ़ी शॉप में बैठी उसका इंतजार करने लगी। घड़ी में ‘5 बज’ गए। मैं बार-बार सड़क के बहार देखती। मेरी एक फ़ोन पर थी तो दूसरी सड़क पर......इसी बीच आसिफ़ की कार कैफ़े के पास आकर रुकी। वो समय का पाबंद था इसलिए मुझे आज उसके देरी से आने पर हैरानी थी । वो कैफ़े के अंदर आया और मेरे पास आकर बैठ गया । वेटर के आने पर मैंने उसे दो कॉफ़ी का आर्डर दे दिया। आसिफ़ कुछ खामोश सा था।

“मुबारक हो बच्चा”, मैंने बातचीत का सिलसिला शुरू किया।

“थैंक यू” उसने धीरे से बोला “क्या बात है। आसिफ़ तुम आज खामोश हो।”, मैंने उसको देखते हुए पुछा।

उसने कोई जवाब नही दिया फिर मैं भी खामोश हो गयी। उसने धेरे से बोला “तम्शी क्या तुम भी वही सोच रही हो जो मैं सोच रहा हूँ?”

“क्या मतलब मैंने चौकते हुए पूछा?।”

“ज़िन्दगी एक चौराहे का नाम है जिसपर चलने वाले चंद लम्हों के लिए मिल जाते है, हम दोनों भी उसी भीड़ के राहगीर है।” आसिफ़ ने कुछ सोचते हुए इस अंदाज़ में कहा।

“मैं हक्की-बक्की रह गयी और उसके चेहरे पर मेरी नजरे कुछ ढूढ़ने लगी।”

“नहीं समझी” उसने मुझसे से सवाल किया। उसने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहा की हमारी कहानी का भी वही अंजाम हुआ जो हर कहानी का होता है। मेरा मुँह हैरत से खुला का खुला रह गया।

“हां तम्शी मेरे माँ बाप ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी मोहब्हत भी ख़त्म हो गयी। दरअसल हमारी मोहब्बत तो कायम रहेगी। अगर मोहब्बत का अंजाम जुदाई न हो तो कौन किसको याद रखेगा। अभी आसिफ़ अपनी पूरी बात भी न कर पाया था कि मेरी आँखों से आंसू बहने लगे। आसिफ़ ने मेरी आँखों से आ रहे आँसू को अपनी उंगलियों के पोरों से साफ़ करना चाहा पर मैंने अपनी गर्दन दूसरी तरफ कर ली। मुझे उसकी की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आ रहा था। मेरे अंदर एक दुःख का सैलाब उमड़ चुका था। मगर दिल से आवाज़ आयी कि अगर आसिफ़ अपने रिश्ते के लिए हां कर सकता है। तो मैं क्यों नहीं। हाँ कर सकती हूँ। मैं तुरन्त कॉफ़ी शॉप से बहार आयी और ऑटो में बैठकर वहा से घर चली आयी। कुछ दिनों तक आसिफ़ का ना ही कोई फ़ोन आया और ना ही कोई मैसेज।

समय दिन में बदले और दिन महीनों में, ऐसा लगने लगा कि मेरी एक भी दुआ मंजूर नहीं हो रही है। मेरे घर में भी, मेरी शादी की बात चलने लगी। एक रोज़ खाना खाते वक़्त मेरे अब्बा ने मुझे बताया कि उन्होंने मेरे लिए एक डॉक्टर लड़का पसंद किया है। मैं ख़ामोश थी क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मेरे अंदर जो आसिफ़ का शोर था। वह किसी को सुनाई दे।

“ये लड़का है। जिसको हमने तुम्हरे लिए पसंद किया है” अम्मी ने एक तस्वीर मेरी तरफ बढ़ाते हुए मेरा मन पढने की कोशिश की।

“हां मुझे पसंद है”

मैंने बिना देखे ही हां करदी। आखिर वो भी दिन आ ही गया। जो किसी लड़की के लिए ख़ुशी का दिन हो सकता है। लेकिन वो दिन मेरे लिए किसी तूफ़ान में नाव चलाने से कम न था। अब मैं लाल जोड़े में किसी की बेगम बनने वाली थी। मगर मेरे दिल में सोया आसिफ़ बार-बार जाग रहा था।

पूरा घर रोशिनी से जगमग था। सभी मेहमानो घर के हर खोने में जा बसे थे।

मुझे तैयार करके नीचे लाया गया। वही कमरा था, वैसी ही सजावट थी, वही फूलो से लगी कमरे के बीच मै एक दीवार थी। में थी, निकाह पढने वाला मौलवी था। बस ये वो आसिफ़ नही था जिससे मुझे प्यार था। निकाह के वक़्त इक तरफ में थी बीच में एक रेशम का पर्दा किस के दूसरी तरफ वो शख्स था जिसके साथ में अब पूरी ज़िन्दगी बीतने वाली थी मगर उसको यह नही पता था की जिस शख्स से वो निकाह कर रहा है वो तो पहेले से ही किसी और की हो चुकी है। मौलवी ने तीन बार मुझसे पूछा की क्या मुझे यह निकाह काबुल है और मैंने तीनो बार अपनी परिवार की और आसिफ की ख़ुशी के लिए अपने आसू को रोकते हुए कहा “काबुल है”।

निकाह होने के बाद मैं गाड़ी में बैठ के अपने घर को रुकसत करके एक नयी ज़िन्दगी में कदम रखने जा रही थी। दिल को सम्हाले मैं अपने ससुराल पहुँच गयी। सुहागरात की रात, सेज पर बैठी मैं यह सोच रही थी कि ज़िन्दगी क्यों ऐसे सपने सजाती है जो कभी पूरे ही नहीं हो पाते। मैं और कुछ सोच पाती इतने में मेरे शौहर कमरे में आ गये। मैं नजरे जुकाए बैठी रही।

“मेरी शर्ट पर कोल्ड ड्रिंक का निशान है क्या आप वो साफ़ कर देंगी?।”

मैंने चौकते हुए ऊपर देखा तो पाया कि एक मुस्कुराते हुए चेहरे से मुझे देख रहा था।

“आसिफ़ तुम यहाँ”।

इतना बोल कर में उस से लिपट गयी और उस पल लगा की मेरी सारी दुआ कुबूल हो गयी। मेरे सामने वो था जिससे में प्यार करती थी और निकाह भी उससे ही करना चाहती थी।