प्रेम दो दिलो का - 9 VANDANA VANI SINGH द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम दो दिलो का - 9


निर्मल का इन्तजार कर लो नीरू रमा से कहती है।रमा नीरू से कहती है नीरू मेरे लिये निर्मल से बात करके देख ना एकबार वो तुम्हे पढाता है तुम उससे बात कर तो सकती हो ।नीरू कहती है हा कर सकती हूँ ।निर्मल का इन्तजार किया जाता है जैसे वह दूर से दिखने लगता है ।
आज नीरू बात कर ले मेरी बहन ,निर्मल जब बाग में पहुचता है रमा की तरफ देख कर कहता है क्या बात हो रही थी दोनो सहेलियो की, रमा कहती है कुछ तो नही।
नीरू निर्मल की तरफ देखते हुए कहती है आपकी ही बाते हो रही है ।क्या मेरी बाते,मुझे भी बताओ क्या बाते हो रही है।
इतने में रमा वहा से जाने लगती है नीरू कहती है रुको मै तुम्हारे सामने ही निर्मल से बात करूंगी ।उसका जवाब तुम नही सुनना चाहोगी ।
रमा एकदम से जा रही होती है तो रुक जाती है।निर्मल ये सब बडे अचम्भे से देख रहा है उसको ये बात समझ मे नही आ रही की नीरु किसके बारे मे बात कर रही है। रमा गुस्से से कहती है हमारी रमा को आपसे प्रेम हो गया है, निर्मल के पैरो के नीचे से जमीन खिसक गयी हो जैसे ,वो सून्य सा होकर कहता है क्या रमा ये सच है (रमा जो जा रही थी)।निर्मल रमा की ओर देखते हुए कहता है रमा तुझे भ्रम हुआ है तुने ये सब कब सोच लीया ।मैने कभी तुझे उस नजर से नही देखा ।
अब निर्मल किस तरह से रमा को समझाए की वह किसी और से प्रेम करता है ।रमा की आँखो से आँसू बह रहे उसका दिल बहुत तेज धडक रहा जैसे मानो बाहर निकल आया हो।
निर्मल नीरू की तरफ देखता है उसकी भी हालत रमा की तरह ही है निर्मल रमा से कहता है पहले मेरे पास आकर मेरी बात ध्यान से सुनो । मै सच मे तुमसे प्रेम नही करता पर तुम बहुत अच्छी हो मै तुम्हे दुखी नही कर सकता एक बार आकर मेरी बात सुन लो फिर मै चला जाऊंगा अगर तुम्हे दुख होगा मेरे आने से तो मै कभी वापस नही आऊँगा ।
रमा जाकर एक पेड़ के पास बैठ जाती है। फिर निर्मल उसको अपनी और नीरू के प्रेम के बारे मे बताता है, नीरू भी उसको समझाती है, रमा को समझ आ जाता है और अब वह निर्मल और नीरू के साथ है और वह हँसते हुए कहती है मै तो बस जनाना चाह रही थी तुम दोनो के बारे मे मुझे सक था तुम दोनो पर,सबको लगता है रमा अब ठीक हो गयी है, तो आपस में बाते करते है और अपने-अपने घर जाते है।ये सिलसिला सालो तक चलता रहा नीरू और निर्मल अब चर्चा के पात्र हो गये थे।
जब घर बात पहुची तब विजय ने नीरू के लिये लड़का देखना सुरु किया उसी बिच निर्मल की नौकरी सरकारी दफ्तर मे लग जाती है और वह सहर चला गया ट्रेनिंग के लिये ।
नीरू के पापा इस बात को अच्छे से जानते थे की निर्मल नीरू एक दुसरे को चाहते है । वो इस बात का फायदा उठाना चाहते थे, क्यो उस बिच विजय को सराब की लत लग गयी थी और सराब पिए हुए कोठे पे पड़े रहते थे।उनको लगता था निर्मल की नौकरी लग गयी है उसकी जरूरते आराम से पूरी हो जायेगी ।
निर्मल सहर से वापस आया तो पता चला की नीरू के ब्याह होने की तारिख भी पक्की हो गयी है ।वह जाकर नीरू से मिलता है और कहता है चल भाग चलते है सहर, तुम किसी और से ब्याह ना करो तुम मेरी हो ।वो दोनो घर के पीछे सुनसान जगह में खडे होकर बात कर रहे है दोनो के आँखो से आँसू बहते जा रहे है।
कहनी आगे क्रमशः।।