बच्चों की ज़िद सोच कुमार द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बच्चों की ज़िद

"रोते रोते सो तो गया था मोहन! पर घर वापस जाते हीं फिर से हल्ला करेगा। छोटा सा बच्चा! कैसे समझाऊं उसे? पैसे भी तो नहीं है पास में!''
यही सब सोचते हुए श्यामा काम पर जा रही थी। तभी उसे याद आया कि नई मेम साहब का भी तो एक छोटा बेटा है।

''कितना खुशनसीब लड़का है! इतने बड़े घर में पैदा हुआ है। बहुत खुश रहता होगा! भगवान ऐसा भाग्य सबको दे।''

और फिर तभी मोहन उसके दिमाग में घूमने लगा। आंखें आंसुओं से भर गईं।''हाय बेचारा! उसकी एक भी फरमाइश पूरी नहीं कर सकी। कैसी मां हूं मैं!''
इन्हीं सब बातों के चक्कर में उसे यह ख्याल ही नहीं रहा कि वह कब हवेली तक पहुंच गई। बहुत बड़ी हवेली थी। सुना था कि साहब बहुत बड़े अफसर हैं। बड़े-बड़े लोगों से संपर्क हैं उनका। शायद किसी और घर में भी कामवाली की जरूरत होगी तो बता देंगे। थोड़ा और पैसा हो जाएगा।
उसने दरवाजे की घंटी बजाई। दरवाजा खुला तो उसने देखा कि मेम साहब सोफे पर बैठी हैं और उनका बेटा खिलौने वाली ट्रेन से खेल रहा है। दरवाजा खोलने वाला शायद माली था।
श्यामा अंदर आई और उसने मेम साहब को नमस्ते कहा। मेम साहब ने उसकी ओर देखा और पूछा," तुम श्यामा हो ना! जो पहले मि० राज के यहां काम करती थी?"

श्यामा ने हां में सिर हिलाया। मेम साहेब बोलीं," देखो मुझे नहीं पता पहले तुम कैसे काम करती थी, पर यहां काम करना है तो रोज टाइम पर आना होगा। सुबह की नौकरानी 1:00 बजे चली जाती है तो तुम्हें ठीक 12:30 बजे आ जाना होगा। कभी-कभी देर शाम तक रुकना पड़ सकता है। अगर मंजूर हो तो बोलो।"

श्यामा ने सोचा कि अगर कहीं देर हो गई घर जाते-जाते तो! फिर उसे मोहन का ख्याल आया। अकेला कैसे रहेगा? उसे पड़ोसी के यहां छोड़ दूंगी और फिर इस काम की जरूरत भी तो है। घर की माली हालत खराब है। अगर प्रमोद होते तो इतनी दिक्कत नहीं होती। 4 साल पहले वह हमें अकेलाछोड़ कर चले गए। हाय राम! यह तेरी कैसी नियति है?बेचारा मोहन? सर पर बाप की छाया भी नहीं है। और कहीं ना कहीं इस नौकरी के पीछे मोहन भी एक कारण था। कल मलाई बर्फ वाले को देखकर जो जिद मचाई थी, रोकना मुश्किल हो गया था। मन तो मेरा भी था कि खरीद के खिला दूं, पर घर में एक पैसा भी नहीं था। आज फिर उसी की जिद पकड़ कर रो रहा था। बड़ी मुश्किल से सोया है।

"क्या हुआ? क्या सोच रही हो? मंजूर हो तो बोलो।"

श्यामा ने हां कर दी। रोज काम करते-करते उसने कुछ पैसे जोड़ लिए थे। सर्दियां आने वाली थी तो एक कंबल खरीद लेगी। यही सोचा था उसने।

उस दिन जब वह काम करने गई, तो देखा कि पूरे घर में हंगामा मचा हुआ है। साहब का बेटा चिल्ला रहा है," नहीं मुजे वही चाइए। मुजे असली वाला चांद चाइए।" बाल सुलभ जिद, जो किसी की नहीं सुनती। वह जिद अब राज ने भी पकड़ ली थी। मेम साहब का बेटा राज!

मेम साहब परेशान थी। श्यामा के आते ही राज को उसे थमाते हुए बोली," देखो, कितना परेशान कर रहा है! चांद मांग रहा है! अब मैं कहां से लाऊं चांद? अपनी खिलौना ट्रेन भी फेंक दी है! किसी तरह से शांत करा दो। मेरे बस से बाहर जा रहा है।

यह सब सुनकर श्यामा चौंक गई। मतलब बच्चे की हर फरमाइश कोई नहीं पूरी कर सकता। चाहे वो कितना भी अमीर क्यों ना हो! बच्चे तो बच्चे हैं! उन्हें इससे क्या मतलब कि आप क्या करोगे! बस उनकी फरमाइश पूरी होनी चाहिए!

आखिरकार राज जैसे तैसे शांत हुआ।श्यामा को पूरा आधा घंटा लग गया उसे शांत कराने में। पर चांद के बदले कई चीजों की फरमाइश कर दी उसने।

"चांद नईं तो फिल मुजे दाली चाहिए औल वह वाला दोला चाईए! तीक ऐ?"
"अच्छा ठीक है तुम्हें वह वाली गाड़ी और घोड़ा मिल जाएगा। चलो अब सो जाओ।"
"तीक ऐ।" और राज मुस्कुराते हुए सो गया।

उसी दिन श्यामा को उसकी तनख्वाह मिलने वाली थी।और अब उसने सोच लिया था कि ज्यादा नहीं तो कम से कम वह जितना कर सकती है, उसे भी अपने बेटे की फरमाइश पूरी करनी चाहिए। कब तक बच्चा रहेगा! आखिरकार एक न एक दिन तो बड़ा होना ही !है इसलिए जब तक बच्चा है, तब तक उसे अपनी जिंदगी अच्छे से जी लेने दो। बड़े होने पर मुश्किलें तो अपने आप ही आ जाती हैं।

इधर राज शांत हो कर सो गया था, और उधर मोहन को पता भी नहीं था, कि उसकी भी फरमाइश बहुत ही जल्द पूरी होने वाली है। अगले दिन उसे मलाई बर्फ खाने को मिलेगी। श्यामा तो यह सोच कर ही बहुत खुश हो रही थी कि कितना खुश होगा मोहन! जब उसे जब उसे पता चलेगा कि उसकी मां उसे मलाई बर्फ खरीद कर देने वाली है।।

बच्चों की जिद ऐसी चीज होती है जिसे इस दुनिया में कोई भी पूरा नहीं कर सकता। बच्चे की जिद पूरी करने में तो भगवान के भी पसीने छूट जाएंगे। इसलिए आपके पास जितना है, अपने बच्चे को वह जरूर दें।

उसका बचपन उसे जीने दें।।

अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद।।