जिससे राजा जी संदेह मे पड गए कि एक दलित के बेटे को कैसे मैं सम्मान दे सकता हु ,इस बात से राजा जी काफी देर तक विचार करते रहे उस दौरान राजा जी ने अपने एक चालाक मंत्री को बुलाया, और उसे इस बात से अवगत कराया।मंत्री ने भी विचार किया और एक चतुर समाधान निकाला ,जिससे “साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे”,इनाम वितरण का समय भी पास आ गया था और राजा जी रामकुमार को भी उसके दलित होने का एक क्रूर प्रदर्शनी से अवगत कराने वाले थे। कार्यक्रम अपने अंतिम चरण में था परुस्कार वितरण का समय भी आ गया मंत्री ने राजा जी को मंच पर आमंत्रित किया, राजा जी ने सभी को परुस्कार बाटे लेकिन रुद्र को पुरुस्कार नही बांटा था तभी राजा जी रुद्र का नाम पुकारते है लेकिन वह रामकुमार का पुत्र रुद्र नही था वह राजकुमार रुद्र का नाम था जिससे रुद्र काफी नाराज रहा वह अपने पिताः की वजह से कुछ बोल भी न सका और राजा ने अपनी साज़िश को अंजाम दिया।रामकुमार और रुद्र दोनो ही अपने घर को लौट आये। रामकुमार राजमहल में हुई बातो को भूल चुका था लेकिन रुद्र नही भूला था वह अपने स्कूल में सिर्फ उसी के बारे में विचार करता रहता था ,उसकी अद्द्यापक ने उससे कई बार बात करने की कोशिश की,कि क्या हो गया है रुद्र को लेकिन रुद्र काफी विचार में विलीन हो गया था ,रुद्र और रामकुमार रात को खाने के दौरान आपस मे वार्तालाप करते थे लेकिन आज कल रुद्र घुमशुम स था रामकुमार रुद्र से कहता है कि बेटा क्या हुआ आज कल घुमसुम रहते हो तो रुद्र अपने पिता से प्रश्न करता है कि पिता जी यदि कोई भी चीज बहुत बड़ी हो तो उसे बिना उसे कुछ किये हुए उसे छोटा कैसे किया जाए ,रामकुमार रुद्र के प्रश्न का उत्तर देता है कहता है कि बेटा इसके लिए तुम्हे दूसरी वस्तु को बड़ा कारण पड़ेगा ,उस रात खाना खत्म हुआ दोनो सोने के लिए चले गए।
रुद्र को अपनी बात का उत्तर मिल चुका था और उसने अगले ही दिन से अपनी सोच पर कार्य चालू कर दिया। घुमशुम स रुद्र काफी घुलमिलने लगा था वह अपनी शिक्षा में बहुत ध्यान देने लगा था क्योंकि स्कूल में जानी एक बात “विद्या धन सर्व धनं” इस बात को अपने जीवन मे प्ररूप देने में कार्यरत हो गया देखते देखते रामकुमार का छोटा रुद्र अब पड लिखकर बड़ा हो गया था और लेखपाल बन गया था सुरवाती दिनों तक तो लेखपाल साहब का कार्य दूसरे छेत्र में रहा था लेकिन कड़ी मशक्कत के बात रुद्र को उसके अपने छेत्र का लेखपाल नियुक्ति किया गया ,कई दिनों का समय बीत चुका था रामकुमार भी अपने बुडापे के नजदीक आ गया था, लेकिन अपने बेटे की तररकी को देखकर रामकुमार भी बहुत प्रसन्न हो गया था, रामकुमार अपने काम की प्रति बहुत सजक रहता था उन्ही दिनों पास के छेत्र के ठाकुर उदयभान सिंह अपनी शक्ति का प्रभाव बहुत क्रूरता से दिखा रहा था ठाकुर ने अपने काम के सिलसिले गाँव के लोगो की जमीनों को हड़पने सुरु कर दिया था,जिससे परेसान होकर गाँव वालों में से किसी की भी उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नही थी,लेकिन उन्ही गाँव वालों में से एक दलित परिवार की लड़की ने अपने पिता की खोई जमीन को वापिस लेने का प्रण लिया ,और पास के सरकारी दफ्तर जाने का निर्णय लिया जहाँ का लेखपाल अधिकारी रुद्र कुमार ही था जिसके अंतर्गत आस पास के कई गाँव आते थे ,उस लड़की ने लेखपाल को अपनी पूरी बात बताई जिसे सुन कर लेखपाल बहुत धुकी हुआ क्योंकि उसके शब्दो ने उसे प्रभावित किया और तभी लेखपाल ने गाँव जाने का फैसला लिया और अपने सहाधिकारियो के साथ गाँव पहुँच गया। गाँव वालों की समस्या को बहुत ध्यान से सुना और उन्हें उनकी जमीन वापिस दिलाने का वादा दिलाया, यह खबर ठाकुर तक पहुँच चुकी थी,तभी