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साइबर क्राइम - 2

साइबर क्राइम– भाग दो

आर० के ० लाल

मैं अगले दिन ठीक समय पर पहुंच गया, जब मैं वहाँ पहुँचा तो मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि जिसके पास मैं जा रहा हूँ वो कौन है। मैं तो सोच रहा था कि कोई सर होंगे जिन्हें सिर्फ अपने काम से मतलब होगा और कुछ नहीं। मगर जब मैं मैनेजर के केबिन में गया तो वहां एक मैडम बैठी थीं। जब मैं उन मैडम से मिला तो मैं उन्हें देखता ही रह गया। लगभग तीस साल की निहायत खूबसूरत लड़की थी वह। बड़ी बड़ी काली आँखें, दूध सा सफेद रंग, बाल खुले हुए थे। उसके बाल रेशम जैसे सिल्की सिल्की थे। वो बालों को बिखराये हुए थी। उसने आँखों में काजल लगाया हुआ था। उसकी होंठो पर गुलाबी रंग की लिपस्टिक थी। लिप लाइनर तो होंठो पर चार चांद लगा रही थी। क्रीम कलर के सलवार और सूट में बैठी हुई थी। मुझे वो पसन्द आ गईं । मैंने एक नजर उनको देखा और फिर कुछ औपचारिक बातें हुईं। वे भी गाँव की रहने वाली थीं और कम्पुटर में स्नातक थीं। मैं उनसे काम समझने लगा। मुझे तीन महीने तक उन्हें ही रिपोर्ट करना था। शुरुआत के कुछ दिन तो मेरे और मैडम के बीच ज्यादा बातचीत नहीं हुई लेकिन धीरे-धीरे वे बहुत खुल गईं और फिर उन्हें किसी तरह की भी बात करने से परहेज नहीं था। लैपटॉप पर मुझे काम समझाते - समझाते वे अक्सर मेरे इतना करीब आ जाती थी कि उनके बदन की खुशबू से मेरा दिमाग का संतुलन बिगड़ने लगता था। मेरा ध्यान काम में कम रहता था और पूरे समय मैं बस उन मैडम को ही देखता रहता था। यह बात वे भी नोटिस करती रहती पर केवल मुस्करा भर देती थी। मैं मैडम के साथ रहकर खूब मन लगाकर काम सीखने लगा। थिवरी तो मुझे आती ही थी इसलिए मुझे प्रोग्राममिंग करने और सॉफ्टवेर बनाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी । मुझे विभिन्न स्रोतों से लोगों के डाटा इकट्ठा करने का काम भी दिया गया। उन्होंने बताया कि जितने लोगों के डेटा दोगे बीस पैसे प्रति डेटा के हिसाब से तुम्हें बोनस मिलेगा। मैडम मुझे बार बार समझाती रहती कि आज अधिकांश लोग अपने महत्वपूर्ण लेनदेन इंटरनेट पर करते हैं क्योंकि यह तेजी से लोगों के जीवन को आसान बनाता है। लापरवाही के कारण से लोग स्वयं अपने व्यक्तिगत डेटा को साइबर अपराधियों या हैकर्स तक पहुंचा देते हैं। जब तक लोग जान पाते हैं, हैकर्स नया तरीका अपना लेते हैं। मुझसे ज़ोर दे कर कहतीं कि तुम भी तो एक हैकर का ही काम कर रहे हो इसलिए तुम्हें चाहिए कि डेटा पाने के नए नए तरीके तैयार करते रहो, आखिर तुम्हारी एम० सी० ए० डिग्री कब काम आएगी।

मुझे फिशिंग अर्थात नकली ईमेल द्वारा गोपनीय जानकारी एकत्रित करने को कहा गया। इस प्रक्रिया में मैं किसी को अपना व्यक्तिगत विवरण देने के लिए छल करके एक तात्कालिक जरूरत बताने की कोशिश करता था । उसे एक लिंक भेज कर उस पर क्लिक करा कर उसको एक फर्जी बैंक वेबसाइट पर ले जाता था । उस वेबसाइट पर अपना खाता विवरण दर्ज करते ही उसका विवरण हमारे सर्वर पर आ जाता था । वेबसाइट में कुछ हेराफेरी करके भी कई फर्जी वेबसाइट का इस्तेमाल भी किया जाता था ताकि किसी का ज्यादा विवरण ट्रान्सफर हो सके।

कभी कभी हम उपयोगकर्ता के सिस्टेम के पॉप अप स्क्रीन पर डाउनलोड बटन उभार देते थे। उस डाउनलोड बटन पर क्लिक करते ही उस सिस्टम पर एक मैलवेयर स्थापित करा दिया जाता था जो हम तक डेटा प्रदान कर देता था । उस ऑफिस में अन्य लोग भी इसी तरह के कार्य में लगाए गए थे जो बैंक, परीक्षा, इन्शुरेंस संबंधी लाभ का लालच देते हुये एक निर्धारित फार्म भराते थे । इस प्रकार लोग स्वतः ही अपना डेटा दूसरों को दे देते हैं । इतना ही नहीं, किसी एप्प पर पर्मिशन दे कर लोग स्वयं अपनी लोकेशन, कांटैक्ट, फोटो आदि यूज करने देते हैं । वे नहीं समझते हैं कि अगर फर्जी एप्प होगा तो उसका मिसयूज तो होगा ही, लोग विश्वास करते हैं कि वह तो गूगल प्ले का एप्प है परंतु हो सकता है कि किसी ने उसमें भी गड़बड़ी कर दी हो इसलिए बिना परखे किसी एप्प का प्रयोग हानिकारक हो सकता है।

मुझे जॉब करते हुए लगभग एक महीने हो गए थे। मुझे दिन भर कंप्यूटर पर ही लगे रहना पड़ता था फिर भी अब मेरे और मैडम के बीच अच्छी खासी बातचीत हो जाती थी कुछ प्यार भरी बातें भी । एक दिन मैडम ने मुझसे पूछा कि क्या तुम मेरे घर पर आकर भी काम कर सकते हो? मेरे पास काम बहुत ज्यादा है और ऑफिस टाइम में काम पूरा नहीं हो सकता है। मैंने हां कर दी क्योंकि उनका साथ मुझे अच्छा लगने लगा था। न जाने क्यों मुझे लगने लगा कि उनका भरपूर प्यार मुझे मिलेगा। मेरी इसी तमन्ना का फायदा उठाकर वे रोज मुझे अपने घर भी बुलाने और जम कर काम कराने लगीं थी ।

एक शाम जब मैं उनके घर गया तो वे मुझे कुछ परेशान लगी। मैंने पूछा- क्या हुआ मैडम? वे बोलीं कि कुछ नहीं, मेरी भी कुछ उलझने हैं। मैंने पूछा- क्यों, क्या हुआ आपको? पहली बार वे दुखी दिखाई पड़ रही थी । मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर उन्होंने बात करना शुरू किया। वे बोलीं कि सब कुछ है मेरे पास, लेकिन सब कुछ होते हुए भी जैसे कुछ भी नहीं है। मैं उनकी बात का मतलब समझ ही नहीं पाया। मैंने पूछा- आपके कहने का क्या मतलब है? उन्होंने मेरी बात का कोई उत्तर नहीं दिया लेकिन कुछ उदास सी हो गईं और फिर किसी सोच में खो सी गईं। मैंने कहा- मैं आपकी निजी जिंदगी के बारे में क्या बोल सकता हूँ? अगर मेरे लायक कोई सेवा हो तो करने को तैयार हूं क्योंकि आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं। वो शरमाते हुए बोली- छोड़ो, मैं भी क्या बात लेकर बैठ गई। तुम्हें अभी जाना पड़ेगा। कल शाम को जब आओगे तो मैं तुमसे बात करूंगी। फिर उन्होंने मुझे एक फ़ाइल दी और कहा ज़रूरी है अपने घर पर कर देना, बॉस को देना है।

इतना बोलते हुए वो उठ कर खड़ी हो गईं और मैं भी उनके घर से बाहर निकल गया। रास्ते में मुझे अपने कंपनी का मालिक दिखाई पड़ा जो मैडम के घर की ओर ही जा रहा था। मुझे कुछ समझ में नहीं आया मगर आशंका हुई कि दाल में कुछ काला है तभी तो मैडम ने मुझे अपने घर से जाने के लिए कहा था।

अगली शाम जब मैं उनके घर गया तो वे मेरी राह ही देख रहीं थीं। मेरी आवाज सुन कर चाय लेकर आ गयी और हम दोनों साथ साथ चाय पीने लगे। फिर अचानक मुझसे पूछा “तुम्हारी कोई गर्लफ्रैंड है?” मैंने कहा, "नहीं मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है"। वो बोली “क्यों अच्छे खासे हैंडसम हो, फिर कोई गर्लफ्रैंड क्यों नही है?” उनकी बात भी सही थी, आजकल के जमाने में, मेरी उम्र में और मेरे जैसे स्मार्ट से लड़के की कोई गर्लफ्रेंड न हो तो किसी के मन में भी ये सवाल पैदा हो सकता था। मैंने कहा- गर्लफ्रैंड बनाना तो बहुत आसान है, लेकिन क्या आपको पता है कि आज कल लड़कियां कितना पैसा खर्च करवाती हैं, कभी शॉपिंग तो कभी मूवी। इतना पैसा कहां है मेरे पास जो मैं गर्ल फ्रेंड पर खर्च कर सकूं? जवाब में मैडम बोली, "मैं तुम्हारे लिए गर्लफ्रेंड और पैसे दोनों की व्यवस्था करा दूं तो कैसा रहेगा? मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि वो मेरे पर इतना मेहरबान क्यूं हैं।

क्रमशः

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