तीसरी रात - 4 - अंतिम भाग mahesh sharma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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तीसरी रात - 4 - अंतिम भाग

तीसरी रात

महेश शर्मा

तीसरा दिन, सुबह : 7 बजे

उसने दरवाजा खोला। सामने मेड खड़ी थी।

वह किचन में जाकर अपने लिए चाय बनाने लगा। उसने फैसला कर लिया था कि वह मेड की तरफ देखेगा भी नहीं। पता नहीं क्यों उसे ऐसा करने में डर लग रहा था। मेड कमरे में सफाई कर रही थी। उसे अचानक ख्याल आया कि क्यों न वह छिप कर मेड को सफाई करते हुये देखे। यह देखे कि क्या वह उस भारी अलमारी को हिला पाती है या नहीं? और क्या उस अलमारी के यूँ हिलाए जाने पर वैसी ही आवाज़ पैदा होती है – जैसे उसे अक्सर सुनाई देती है?

लेकिन फिर उसने अपना इरादा बदल लिया। अपनी चाय लेकर डाईनिंग टेबल पर आया – और बैठ कर अखबार पढ़ने लगा। हालाँकि उसका ध्यान बराबर मेड की तरफ ही लगा हुआ था। उसने बहुत ही सावधानी से अखबार के पन्ने पलटे ताकि कोई आवाज़ न हो। खबरों पर भी वह बहुत सरसरी नज़र डाल रहा था। वह एक आहट सुनने के लिए बेचैन था। लेकिन पूरे घर में इतनी शांति थी मानो वहाँ उसकी अलावा कोई दूसरा मौजूद ही न हो।

सहसा उसकी नज़र एक खबर पर अटक गई। यह एक बूढ़ी औरत के बारे में थी जिसे उसके बेटे-बहू उससे रोज़ मारपीट करते थे। उसे मानसिक रोगी बता कर एक अंधेरी कोठरी में बंद रखते थे। आज उस औरत की मौत हो गई थी। पड़ौसियों की शिकायत पर पुलिस ने बेटे-बहू को गुरफ़्तार कर लिया था।

तभी किचन से बर्तनों के खड़कने की आवाज़ आई। वह बुरी तरह चौंक उठा। यह मेड कमरे से किचन तक कब पहुँच गई? उसे अहसास तक नहीं हुआ।

उसे अचानक किसी खतरे का आभास होने लगा। वह उठा और चुपके से एक नज़र किचन की ओर डाली। मेड की पीठ उसे दिखाई दी। वह सिंक में बर्तन धो रही थी।

उसे पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि मेड की पीठ पर लंबी-लंबी और ख़ूब गहरी लकीरें खींची हुई हैं। जैसे किसी छड़ी या चाबुक से मारने पर होती हैं।

तीसरा दिन, शाम : 6 बजे

पड़ोसी ने फिर एक सनसनीखेज खुलासा किया।

-“आप उस बिल्डर को जानते हैं?” पड़ोसी ने पूछा।

-“कौन?”

-“वही जिसने यह बिल्डिंग बनाई है। जिसमे आप और मैं रहते हैं -” पड़ोसी हँसा – “और साथ में कुछ प्रेत आत्माएँ भी।”

-“नहीं!” उसने कहा – “हमने तो यह घर एक एजेंट के मार्फत खरीदा था।”

-“बिल्डर साब अच्छे खासे तंदुरुस्त आदमी थे – ” पड़ोसी थोड़ा गंभीर हो गया – “अचानक अभी पिछले हफ्ते, एक दिन बीमार पड़े – और तीन दिन के अंदर-अंदर तो दुनिया से रवाना भी हो गए।”

वह कुछ नहीं बोला।

-“यह ज़मीन बहुत मनहूस है –” पड़ोसी बड़बड़ाया।

-“कौनसी ज़मीन?” वह चौंक उठा।

-“अरे यही जिस पर हमारी यह रिहायशी बिल्डिंग बनी है।” पड़ौसी थोड़ा चिंतित दिखाई दिया – “मुझे कुछ अजीब-अजीब से ख्याल आते रहते हैं इन दिनों।”

“क्या कह रहे हैं आप?” वह परेशान हो उठा।

“मैं तो अपना घर बेच कर यहाँ से जाने की सोच रहा हूँ –” पड़ोसी बोला – “ऐसा लगता है कुछ अनहोनी घटने वाली है यहाँ। सावधानी रहिए!”

-“लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है?” वह अब थोड़ा डर गया था।

पड़ौसी थोड़ी देर तक तो चुप रहा फिर उसने बहुत ही धीमे स्वर में कहना शुरू किया – “बरसों पहले जब यह शहर इतना ज्यादा फैला हुआ नहीं था तो इस जगह पर बहुत वीराना था। यह ज़मीन भी बेकार और बंजर थी। फिर कुछ सालों बाद, आस-पास के छोटे गाँव-कस्बों से मजदूरी की तलाश में आए लोगों ने यहाँ डेरा डालना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यहाँ एक कच्ची बस्ती बन गई। मगर शहर भी धीरे-धीरे फैलने लगा। और बड़ा होने लगा। एकदम किसी अजगर की तरह इसका मुँह खुलता ही चला गया और यह बहुत सारी चीजों को निगलता चला गया। इस कच्ची बस्ती को भी।”

पड़ौसी की बात उसके दिमाग में किसी हथौड़े की तरह बज रही थी। शहर के बिल्डर्स ने इस बस्ती को उजाड़ दिया था। यहाँ रहने वाले लोग कहाँ चले गए होंगे? हो सकता है कुछ अब ज़िंदा नहीं बचे हों? उन्हें मरने के बाद भी यह जगह याद आती हो जहां उन्होनें अपना घर बनाया था – बसाया था।

हो सकता है इस बिल्डिंग में जिस जगह आज मेरा घर है – वहाँ कल तक किसी ओर का आशियाना रहा होगा – जिसे उजाड़ दिया गया था।

तीसरा दिन, रात : 8 बजे

आज की रात फिर वह अकेला है।

बहुत सावधानी बरतनी पड़ेगी। हालाँकि आज उसे ऐसा कुछ भी अजीब महसूस नहीं हुआ था। खाना वह बाहर से ही खा कर आया था। उसने बिस्तर में घुसने से पहले घर के सारे खिड़की दरवाजे अच्छी तरह बंद किए थे। उसने यह भी जांच की थी कि कहीं कोई ऐसी दरार तो नहीं है जहाँ से कोई छिपकली आ जा सके। वैसे आज उसने यह भी निश्चय कर लिया था कि अगर उसे छिपकली दिखाई दी तो वह ज़िंदा नहीं छोड़ेगा।

वह फिर से किताब पढ़ने लगा। उसने महसूस किया कि किताब पढ़ने का असर तुरंत होता है। उसे वाकई गहरी नींद आने लगी। वह सो गया।

आज उसने अजीब सपना देखा। एक बड़ा सा बुलडोजर एक कच्चे मकान को तोड़ रहा है। अचानक एक बूढ़ी औरत उस बुलडोजर के सामने आ जाती है। बुलडोजर उसे कुचलता हुआ आगे बढ़ जाता है। एक दूसरी बूढ़ी औरत की पीठ पर एक आदमी बुरी तरह चाबुक बरसा रहा है – वह बेतहाशा चीख रही है –

उसने एक झटके से अपनी आँखें खोल दी। कमरे की लाईट ऑन थी। सामने दीवार पर एक दुमकटी छिपकली चिपकी हुई थी।

उसके मुंह से चीख निकल गई।

ठीक उसी समय उसका फोन बजा। उसने देखा - पत्नी थी।

-“हाँ बोलो!” उसने छिपकली पर नज़रें जमाये हुए कहा।

-“अरे सुनो –” पत्नी की आवाज़ थोड़ी घबराई हुई थी – “वह हमारी वाली मेड का फोन आया था – वह कल से वापस काम पर आ जाएगी – लेकिन”

-“लेकिन क्या?”

-“व...वह तो यह कह रही थी कि वह हमारे यहाँ दूसरी मेड नहीं भेज पाई थी – इसके लिए माफी भी मांग रही थी - त...तो फिर ये बूढ़ी मेड कौन है?”

उसके हाथ से फोन छूट कर गिर गया।

उसी क्षण छिपकली हौले से रेंगी। उसने फुर्ती से अपनी चप्पल उठाई और पूरी ताकत से छिपकली की तरफ उछाल दी। छिपकली अलमारी के पीछे जाकर गुम हो गई।

वह उठा। उसने अलमारी को पकड़ को दीवार से दूर खिसकाया। हाथ में चप्पल को मजबूती से थामे उसने अलमारी और दीवार के बीच की झिरी में झाँका – और गश खाकर गिर पड़ा।

उसने वहाँ एक बूढ़ी औरत को हाथ में चाकू लिए खड़े देखा।

(समाप्त)