त्रिशंकु Pawan Singh द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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त्रिशंकु

आज फिर अम्मा और धर्म पत्नी में वादविवाद हो रहा था ।वजह कुछ खास नहीं थी,अम्मा सुवह जल्दी उठ गयीं थीं और पत्नी की आंख लग गई थी बस रेडियो विविध भारती चालू हो गया था ।
दुनिया उठ गयी है सूरज कहां से कहां पहुँच गया है ,लेकिन रानी जी की नींद अभी तक पूरी नहीं हुुई है, अम्मा ने तरकश से पहला तीर छोड़ा ।
तुम तो अम्मा चार बजे से ही उठ कर बैैठ जाती हो,हमें इतने सवेरे नहीं उठा जाता है, रात के ग्यारह बजे तक काम करने के बाद नींद तो आ ही जाती है ।'पत्नी ने जबाब दिया ।
एक तुम्हीं अनोखी हो काम करने वाली हमने थोड़ी घर ग्रहस्थी चलाई दसदस लोगों को अकेले इन्हीं हाथों से बना कर
खिलाया है ।अम्मा भी कहां पीछे हटने वाली ,अम्मा ने एक और शब्द बाण छोड़ा ।
सवेरे सवेरे न चाय न पानी, ऊपर से हाय हाय सुनकर मेरा दिमाग भन्ना गया मैं उठा और छत पर चला गया, छतपर ठंडी हवा के झोंके से मेरा गुस्सा काफूर हो गया और मैं सास बहू के मसले पर चिंतन मनन करने लगा शायद मैं लाचार था, मेरी हालत दो नावों पर पैर रखे उस सवार की तरह थी जो तय नहीं कर पा रहा था कि, किसे पकड़े और किसे छोड़े।
आज गांव से बाबू जी आने वाले हैं, हो सकता है कि इस समस्या का कोई हल निकल सके ।नीचे शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो चुका था दोनों शूरवीर अपने अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हो गये थे जैसे कुछ हुआ ही न हो, मैं भी नीचे उतर आया और दूध का डब्बा उठा कर डेरी की तरफ चल पड़ा ।
शाम को जब मैं आफिस से लौट कर घर पहुंचा तो बाबू जी आ चुके थे ,घर में एक बड़ा ही मनोरम दृश्य था, बाबू जी अपनी पोती को गांव के मजेदार किस्से कहानी सुना रहे थे ।अम्मा सब्जी काट छील रहीं थीं, पत्नी रसोई में चाय नाश्ता बना रही थी ।
मैंने लपक कर बाबू जी के चरण स्पर्श किये और बदले में आशीर्वाद ग्रहण कर सोफे पर पसर गया ।बाबू जी ने पूछा "और काम काज कैसा चल रहा है?
बस बाबू जी गुजर बसर हो रही है "मैंने कहा
ऐसा क्यों कह रहे हो?क्या कोई समस्या है?
नहीं बाबू जी "मैंने कहा, आजकल बड़ी मारामरी चल रही है बास को तो अपने काम से मतलब है, कर्मचारी जियें चाहे मरे।तुम बस अपना काम इमानदारी से करो बाकी सब ऊपर वाले पर छोड़ दो, चिन्ता न करो सब कुछ सामान्य हो जायेगा ।"बाबू जी ने दिलासा देते हुए कहा "
अगले दिन बाबू जी और अम्मा जी गांव वापस चले गए हमने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की मगर बाबू जी खेती बाड़ी का हवाला देकर फिर आने का वादा करके प्रस्थान कर गए ।
उनके जाते ही घर में एक अजीब सी खामोशी सी छा गई, हम दोनों एक दूसरे को खाली खाली नजरों से देखते रहे ।अगले दिन सुबह मैं जरा जल्दी उठ गया तो क्या देखता हूं कि पत्नी घर के सारे काम निपटा कर चाय पर मेरा इन्तज़ार कर रही है ।
इति