मिश्राइन की बाल्टी में बाल मिलते ही गांव में जैसे भूचाल आ गया, ऐसा लग रहा था कि बाल्टी में बाल नहीं कोई बम मिल गया हो | आज दोपहर के 12:00 बज रहे थे लेकिन नल पर कोई नहीं दिख रहा था, कुछ घरों में तो चूल्हा भी नहीं जला था और हर तरफ बस नल से निकले बालों की चर्चा हो रही थी |
मिश्राइन तो सुबह से बुखार में ऐसे बिस्तर पर पड़ी थी मानो उन्होंने कोई चुड़ैल देख ली हो, नंदू मां के सिरहाने बैठकर मां के माथे पर पानी की पट्टी रख रहा था और चारपाई के चारों और औरतें बैठी थी जो एक नई कहानियां गढ़ रही थी, इतने में एक ग्रामीण औरत दूसरी औरत से बोली, "तुम्हें का लागत है जीजी… मिश्राइन बच तो जाइ" | इतने में दूसरी औरत ने आवाज को बिल्कुल दबाकर कहा, "अरे हां बच तो जाई लेकिन चुड़ैल का, का भरोसा मिश्राइन को धर ले तो फिर छोड़ने वाली कहां..?
पहली औरत फिर बोली, "अरे हमारी अम्मा को तो एक बार चुड़ैल ने ऐसा धर लिया था कि का बताएं, बड़ी झाड़-फूंक कराई बड़ी पूजा रचा करवाई लेकिन जब तक अम्मा का राम नाम सत्य ना हुआ तब तक चुड़ैल उतरी नाही, अरे ये तो राम जी की किरपा है कि हमारा ब्याह हो गया था, वर्ना पड़े रहते हम भी कहीं" |
दूसरी औरत यह सुनकर एक लंबी सांस लेते हुए बोली," अरे अब तो गांव का मालिक राम ही है, और तुम पड़ी काहे रहतीं, फंसा लेती किसी को गुप्ताइन की तरह, और राज करती " |
ये कहकर दोनों औरतें मुंह में पल्लू लगाकर धीरे-धीरे हंसने लगी तो उनको नंदू ने घूर कर देखा जिससे दोनों औरतें चुप हो गई |
उधर वर्मा इन सुबह से रोए जा रही थी वैसे तो वर्माइन को ज्यादा भाव नहीं मिलता पर इस चुड़ैल की वजह से उसे भी गांव की चार पांच औरतें घेरे बैठी थी और वर्माइन से सुबह की हर बात का जायजा ले रही थी तभी औरतों के झुंड से एक औरत बोली, "वर्माइन सुना है मिश्राइन की बाल्टी उठाकर बड़ी जोर चुड़ैल ने पटक दी थी" |
वर्माइन अपनी शेखी बघारते हुए बोली, "अरे वह तो आज साफ-साफ बच गई, अरे का बताएं हम, हम ना होते तो आज जी तो आज…… अरे बाल्टी जैसे ही नल पर लगाई, बाल्टी हवा में उड़ने लगी, मिश्राइन जीजी तो डर के मारे कांपने लगी फिर हम ही ने बाल्टी को जोर से खींचा और नल पर रखा, चुड़ैल तो जैसे डर के कांप गई होगी तभी तो उसने दोबारा बाल्टी नहीं उठाई, पर उसमे ना जाने कितने बाल गिरा दिए उस डायन ने"|
औरतें वर्माइन की वाह वाही करने लगी और वो पतंग जैसे उड़ने लगी |
उड़ते उड़ते खबर सरला तक भी पहुंच गई बल्कि यह कहो कि सरला खबर तक पहुंच गई |
" लल्ला… ओ लल्ला…" आंधी की तरह चिल्लाती सरला ने जल्दी से किवाड़ मे सिटकनी लगाई और फिर बोली," लल्ला.. ओ लल्ला.. कहां है तू" ?
सरला बिन माइक के ही कान के पर्दे हिला रही थी पर सुनील महाराज जिन पर तो इश्क का भूत सवार था, अपनी पिंकी को वह चिट्ठी माने प्रेम पत्र लिखने में वह मां की आवाज सुन ही नहीं पाया, क्या करता तब मोबाइल जैसी सुविधा कहां थी | चिट्ठी लिखकर अपने दिल में कुलबुलाते जज़्बातों को एक दूसरे से जाहिर करते |
चिट्ठी लिख कर उसने अपनी कलाई पर ब्लेड रखा और बोला, "जय बजरंगबली" और फिर ब्लेड को हल्का सा अपनी कलाई में चुभो लिया, जिससे खून की बूंदें गिरने लगी और उसने अपने प्रेम पत्र में उसी खून से दिल बनाया, जिसमें एक नहीं दो तीर घुसा दिए और नीचे लिखा सुनील लव पिंकी, पिंकी का अभी सिर्फ पी ही बन पाया था कि सरला फड़फड़ाते हुए अंदर घुस आई, मारे हड़बड़ाहट में सुनील वह प्रेम पत्र जिसे उसने खून से लिखा था, मुंह में रख गया और बिना चबाए ही गटकने लगाा |
आगे की कहानी अगले भाग में...