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ख्यालों का बगीचा

काव्य संग्रह

"ख्यालों का बगीचा"

भूमिका

"साहित्य समाज का दर्पण होता है।''यह कहावत तभी तक सार्थक है, जब तक साहित्य समाज को आईना दिखाने का काम करे। साहित्य समाज की अनेकों कुरूतियों, विसंगतियों एवं समस्याओं को उजागर करके उसको दूर करने के काम आता है। ठीक उसी तरह प्रस्तुत कविताओं में समाज की अनेकानेक बुराइयों पर प्रहार किया गया है।

लेखिका ने सर्वप्रथम कन्हैया से सद्बुद्धि, तेज, प्रताप,हिम्मत,जूनून, साहस और धीरज आदि गुणों को प्रदान करने की याचना की है। और फ़िर एक से एक गंभीर मसलों जैसे-भ्रूण हत्या आखिर कब तक?,वैश्या स्वयं दोषी या समाज?,छुआछूत,भेदभाव आदि पर करारा प्रहार किया है।

पिता के गुणों को बखूबी उकेरने का प्रयास किया है।

अपनी कलम से अच्छा लिखने की उत्तरोत्तर प्रगति की याचना की है।

बेटी की जब शादी हो जाती है ! और उसकी विदाई हो जाती है।उसके बाद कि परिस्थितियों का मार्मिक वर्णन करने का प्रयास किया है। हर एक शख़्स को पहली बारिश ताउम्र याद रहती है। जो जिंदगी में बेहद खूबसूरत मिठास घोल देती है।

इसके अलावा लेखिका ने अनेकों सूक्ष्म बिंदुओं को अपनी कविताओं के द्वारा उकेरने एवं सहेजने का अथक एवं बेहतरीन प्रयास किया है।

अनिल कुमार "निश्छल" हमीरपुर (उ०प्र०)

अनुक्रमणिका

1. हे कृष्णा

2. विचार करें

3. मेरी क़लम

4. दर्द ए इश्क़

5. पहली बारिश

6. क्या कसूर

7. पिता

8. मजदूर पिता

9. मेरी लाडो

10. एक वेश्या

11. फरेब

1. हे कृष्णा

हे कृष्णा

आप ही सब के दुख हरते हो,

आप ही सब की सुनते हो,

मैं भी आपके द्वार आई हूँ !

मुझे पर भी अपनी कृपा करें,

मैं ना समझ अज्ञानी हूँ !

मुझे भी अर्जुन की तरह मार्ग दिखाए।

मैंने जीवन मे जो भी पाप किए हो ,

उन सबको माफ़ करके मेरा उद्धार करो !

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हे कृष्णा

आप तो जानते है ना,

मैं कभी भी किसी के साथ गलत नही करती हूँ !

हमेशा सही मार्ग पर ही चलना चाहती हूँ !

लेकिन जीवन की परेशानियों के आगे मैं झुक जाती हूँ !

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हे कृष्णा

आप ही मेरे जीवन की आखिरी उम्मीद हो !

मुझे सही रास्ता दिखाएं,

क्योंकि मै इस जीवन की मोह माया से अब मुक्त होना चाहती हूँ !

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हे मेरे लड्डू गोपाल,

हे मेरे कृष्ण मुरारी,

मुझे सही मार्ग पर जाने का का साहस प्रदान करें !

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2. विचार करें

क्यों आज भी हमे हर जगह,

भेद -भाव देखने को मिलते है !

क्यों आज भी हमे हर जगह,

बटवारा देखने को मिलता है !

क्यों आज भी हमे हर जगह,

लड़कियों का शोषण देखने

को मिलता है !

क्यों आज भी महिलाओं की,

बात को दबाया जाता है !

क्यों आज भी हमें महिलाओं के

छोटे कपड़ों पर बात

करते लोग मिलते है !

लेकिन उनकी

बड़ी सोच पर कोई बात

नहीं करता !

क्यों आज भी हम एक बिन

ब्याही माँ पर ही सवाल उठाते है !

क्यों यही सवाल हम उस पुरुष से

क्यों नहीं पूछते,

जिसने उसे बिन -ब्याही

का यह ताज दिया है !

विचार करें क्योंकि स्री

का सम्मान

जरूरी है !

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3. मेरी क़लम

जब से मैंने क़लम उठाई है !

मन करता है,

जो लिखूँ सच लिखूँ ,

लेकिन यह दुनिया मुझे ना सच लिखने देती है,

ना ही बोलने !

आखिर करूँ तो करूँ क्या ?

फिर माँ ने कहा,

बेटी दुनिया से डरो मत,

दुनिया से घबराओं मत,

तुम्हारा परिवार तुम्हारे साथ है !

तुम बिना किसी दुविधा के लिखों,

जो तुम लिखना चाहती हो!

कहो जो कहना चाहती हो !

जब तक तुम्हारा परिवार तुम्हारे साथ है!

तब तक तुम्हारी कलम रुकनी नहीं चाहिए !

तुम दुनिया को सच से रूबरू कराओ ,

दुनिया को सच का दर्पण दिखाओ !

बेटी तुम समाज के लिए खूब लिखो ,

चाहें वह कितना ही कड़वा सच क्यों न हो,

पर तुम अवश्य लिखों,

चाहें उस सच को लिखते -लिखते तुम्हारी जान ही,

क्यों न चली जाए !

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4. दर्द ए इश्क़

दिल ना लगा सके तुम से,

ना कर सके इश्क़ !

इश्क़ के अरमान तो हमने भी देखें थे !

पर कमबख्त पूरे ना हो सके !

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चाहते तो हम भी इश्क़ करना,

पर हमारे जीवन मे

उलझने ही बहुत थी !

जिसे हम समाप्त ना कर सके !

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दुआ तो हमने भी मांगी थी,

कि कोई हम से भी बेपनाह इश्क़ करें ,

पर वो भी सपने हमारे,

पूरे ना हो सके !

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ना जाने तुम कब आये मेरे जीवन में ,

और कब चले गए !

हम तुम से दो पल

इश्क़ भी ना कर सके !

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5. पहली बारिश

वो बचपन की पहली बारिश याद है मुझे ,

जब मैंने उसे अपने हाथों पर महसूस किया था !

जब माँ ने मेरे साथ बैठ कर,

आँगन में खाना खाया था !

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वो बचपन की पहली बारिश याद है मुझे ,

अचानक पापा का आ जाना और माँ का ,

रसोई घर में जाकर चाय और पकौड़े बनाना !

फिर भी उनका ध्यान सिर्फ मेरी तरफ ही था !

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वो बचपन की पहली बारिश याद है मुझे ,

जब मुझे माँ ने कहा की बाहर मत निकलना ,

क्योंकि उन्हें महसूस हो गया था,

कि अब उनके अंदर जाते,

मैं बाहर निकलने की सोच रही हूँ !

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वो बचपन की पहली बारिश याद है मुझे,

माँ मेरे साथ उस पहली बारिश की साक्षी बनने वाली ही थी !

तभी अचानक उन्हें एक पत्नी का भी फ़र्ज़ भी पूरा करना पड़ा !

वो मुझे छोड़ कर अन्दर चली गई !

तभी मुझे मेरी पहली बारिश में भी सूखे का अहसास होने लगा !

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6. क्या कसूर

आखिर क्या कसूर था ?

उस छोटी सी बच्ची का ,

जिसने अभी तक ठीक से दुनिया,

भी नहीं देखी थी ?

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आखिर क्या कसूर था ?

उस छोटी सी बच्ची का,

जिसने अभी तक अपनी पूरी,

आंखें भी नहीं खोली थी ?

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आखिर क्या कसूर था ?

उस छोटी सी बच्ची का,

जिसके माँ-बाप ने उसे,

अभी अच्छे से देखा भी नहीं था ?

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आखिर क्या कसूर था ?

उस छोटी सी बच्ची का,

जिसने अभी माँ- पापा

भी बोलना शुरू नहीं किया था ?

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आखिर क्या कसूर था ?

उस छोटी सी बच्ची का,

जिसका बलात्कार चार

जानवरों के वेश में आदमियों ने किया था ?

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आखिर क्या कसूर था ?

उस छोटी सी बच्ची का,

जिसकी हैवानियत से हत्या,

भी कर दी गयी थी ?

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आखिर क्या कसूर था ?

उस छोटी सी बच्ची का ,

काश उसकी हत्या उसके ,

माँ - पिता गर्भ में ही कर देते ,

तो आज उस छोटी सी बच्ची को,

इस दुनिया में इतनी हैवानियत,

का सामना ना करना होता !

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आखिर क्या कसूर था ?

उस छोटी सी बच्ची का ???

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7. पिता

एक कविता में कैसे बयान करू ,

मैं उनके बारे में जो मेरी पूरी जिंदगी थे !

किन शब्दों में बयान करू उनके बारे में,

जो मुझे जान से भी अधिक प्यारे थे !

दिल तो करता है !

उनके बारे में ,

अपने आंसुओं से लिख दूं !

फिर डर लगता है !

कहीं वे भी सुख कर गायब ना हो जाये,

बिलकुल वैसे ही,

जैसे आज वह मेरी जिंदगी से चले गये !

और आंसुओं के निशान की तरह ,

वह भी बस अपनी यादें ही छोड़ गए !

पिता ही थे !

जो मेरी अनकही बातें समझते थे !

मानती हूँ,

गुस्सा था उसमें !

आज मैं उस गुस्से के लिए भी तड़पती हूँ !

आज जिंदगी में सब कुछ पास हो कर भी ,

एक अधूरा अहसास है !

जिनको शब्दों ने,

नहीं मेरे आंसुओं ने बयान किया है !

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8. मजदूर पिता

वह देखो जा रहा मजदूर,

उसे सिर्फ मेहनत करना आता है !

ना करना आता किसी से धोखा !

मेहनत करें मेहनत की खाएं ,

कम खाएं पर शांति से खाएं !

वह देखो जा रहा मजदूर ,

हाथ जिसके सख्त ,

पैर जिसके कटे -फटे !

फिर भी चेहरे पर ,

मुस्कान लेकर नई उम्मीद,

के साथ जा रहा मजदूर !

वह देखो जा रहा मजदूर ,

अपने बच्चों के सपनों को आँखों में लेकर,

जिसके अपने सपनों का ,

तो पता नहीं ,

पर बच्चों के सारे अरमान

पूरे करता हुआ !

पिता का फ़र्ज़ निभाता हुआ मजदूर !

वह देखो जा रहा मजदूर !

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9. मेरी लाडो

एक बेटी जब ससुराल से आए,

तब लगती पराई सी हैं !

सही कहती है, दुनिया,

शादी के बाद बेटी पराई है।

जब घर आए तब लगती है,

कुछ अलग सी है !

पर आज भी मेरे लिये तो,

यही मेरी प्यारी लाडो है !

जिसके घर आते मेरे घर मे रौनक आए!

ना उसके ना आते,

मेरे आखों मे आँसू,

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है!

जिस का एक दिन भी फ़ोन ना आए,

तो मेरे दिल मे हो बेचैनी !

वही तो मेरा दिल और धड़कन है !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

अब तो आते ही सोफे पर बैठ कर करे मुझे बातें ,

पर मेरी लाडो तो पलंग पर बैठे बिना,

मुझसे बात ही ना करती थी !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

आते ही अपने जाने का वक़्त भी बताती है !

पर मेरी गुडिया वक़्त तो,

कभी देखती ही नही थी !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है!

ससुराल और मायके ने उसे पराई का नाम दिया हो ,

पर मेरे तो घर में वह हमेशा,

मेरी प्यारी लाडो ही रहेगी !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

खाती तो रोज है !

सिर्फ पेट भर कर ,

मन भर कर तो,

गुडिया मेरे हाथ का खाना ही खाती है !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

आने से पहले उसके खाने की,

ख्वाइशों की खुशबू मेरे आँगन मे आती हैं !

पड़ोसन भी आकर पूछती हैं !

क्या आज बेटी आती हैं।

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

जो कभी छोटी-छोटी पर रोती थी!

और मुझसे लड़ती थी !

आज वही बड़ी - बड़ी बातों का,

दर्द मन में लिए बैठी है !

क्या यही मेरी प्यारी लाडो है !

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10. एक वेश्या

एक वेश्या के बारे में सोचने बैठे तो लगा,

आखिर इसे वेश्या कहते ही क्यों है ?

आखिर क्या सच है ?

वेश्या का सच थोड़ी देर बाद समझ आया,

जो नारी गरीबी के कारण बहुत सारे,

पुरुषों के साथ संबंध बनाती है

उसे वेश्या कहते है !

फिर सोचा आखिर जब एक,

नारी को वेश्या कहा जाता है !

जो गरीबी मजबूरी में यह काम करती है !

जिनका कोई सहारा नहीं होता !

तो उन पुरुषों को क्या कहा जाएगा !

जो बहुत आमिर होकर भी पैसे देकर,

कई सारी महिलाओं के साथ संबंध बनते है !

आखिर उन में से किसी की बीवी भी होती

होगी !

फिर ऐसे पुरुषों के लिए भी,

कोई नाम होना चाहिए !

क्या हमारा समाज नारियों को ही,

नाम देना जानता है !

जैसे वेश्या, बाजारू औरत , रखेल आदि

नामों से संबोधित करता है !

आखिर पुरुषों को ऐसे नामों से क्यों संबोधित नहीं किया जाता !

क्यों आज भी हमारा समाज आज भी पीछे है !

कभी सोचा है !

कि एक नारी को एक वेश्या बनता कौन है ?

कौन देता यह नाम उसे ?

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11. फरेब

क्या कहे तुम से की दिल भी ना जाने,

मोहब्बत तो हमने भी की पर तुम ना जाने,

तेरी गलियों में आकर भी ना आ सकी,

क्योकी दिल तो हम भी बाजार मे ही बेच आये !

दिल बेचते वक़्त तेरा खयाल ना आया ,

ख्याल आया तो उस धोखे का जो तूने,

हमे इसी भरे बाज़ार में दिया था !

तेरे धोखे को उस दुकान वाले ने भी देखा

जब तू हमे छोड़ कर जा रहा था ।

किस तरह लब्जों में बयान करे तेरे धोखे को

क्योकी तेरे इस फरेब को लिखने

के लिये हमारे पास ना शब्द ना वक़्त !

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