"ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा" और निश्चित रूप से ये समय भी जीवन में दुबारा नहीं आएगा।
अधिकांश लोगों का मानना है कि ये मानव निर्मित अभिशाप है, कुछ का कहना है प्रकृति का कोप है, कोई ईश्वरीय कोप कहता है, हरेक का अपना मत है, मतभिन्नता मानवीय स्वभाव है। मेरा दृष्टिकोण है कि प्रकृति शायद हमेशा से ही कुछ कहना चाहती थी, जुड़ना चाहती थी पर हमारे पास ही समय नहीं था उस से बात करने का उसकी सुनने का।
आज रात देखिएगा खुले आसमान को, बात कीजियेगा चँदा मामा से, बरसो हो गए आपको उनसे बात किये वो बचपन आपने भूला दिया, आप अपने प्यारे मामा को भूल गए वो आज भी वहीं हैं, आपके इंतज़ार में आपसे बात करने को बेकरार। भूल गए आप.....
"चंदा मामा दूर के, पुए पकाए बूर के
आप खाए थाली मे, मुन्ने को दे प्याली में
प्याली गयी टूट, मुन्ना गया रूठ....."
शायद प्रकृति ने आपको एक और मौका दिया है अपने पुराने दिन याद करने का। कुछ दिन बाद फिर पहले सा हो जाएगा आप फिर रम जायेंगें अपनी पुरानी दुनियाँ में।
ईश्वर जो करता है किसी कारण से करता है यह समय भी अकारथ नहीं आया, आपको आपका बीता हुआ कल वापस देने आया है। जीना चाहें तो जी लीजिये खाली समय का इंतज़ार करते थे आप, अब आया है वो आपको प्रकृति से मिलवाने।
प्रकृति आपसे मिलना चाहती है, कुछ कहना है उसे बात करनी है आपसे! देखिएगा अपने पड़ोस के पेड़ को, आपकी मुंडेर पर बैठी चिड़िया को, उन पत्तों को जो आपके घर में लगे गमले में हैं, जिन्हें आप रोज पानी पिलाते हैं पर आपके पास कभी फुर्सत ही नहीं थी उनसे बात करने की।
मैं झूठ नहीं बोल रहा आपने भी पढ़ा था बायोलॉजी में सर जगदीश चंद्र बोस ने सिद्ध किया था कि पेड़ पौधों में जीवन होता है, उनमें संवेदना होती है, वो भी साँस लेते हैं, हमारे आपकी तरह पर भूल गए थे हम, जीवन की आपाधापी में अब समय मिला है जाइये मिल आइये दो पल को ही, मेरे कहने पर ही सही।
उनसे सुनिए उनकी, उन्हें कहिए अपने मन की वो भी आपके साथ ही बड़े हो रहे हैं, साँस ले रहे हैं। आप ही कि तरह, आप ही के घर में पर कभी आपने उन्हें घर के सदस्यों में गिना ही नहीं और उन्होंने आपके सिवाय किसी और को अपना माना ही नहीं।
वो रोज़ इंतज़ार करते थे आपका की कब आप स्कूल से, कॉलेज से, ऑफिस से घर वापस आओगे, उनसे बात करोगे, दो पल ही सही पर मिलोगे उनसे पर आपके पास कभी फुरसत ही नहीं थी। अब है ! मिल आइये उनसे दो पल ही सही अच्छा लगेगा उन्हें।
हमेशा आपने वो किया जो आपको अच्छा लगा, आज कुछ अलग करिए शायद किसी और को अच्छा लगे, जो रहते है हमारे घर में बरसों से हमारे साथ, उनमें भी प्राण है पर हमें कभी सुझा ही नहीं ....
आज से हर शाम या सुबह जब मौका मिले कुछ समय दीजिये स्वयं को प्रकृति की गोद में । फिर कुछ दिन बाद आपके पास समय नहीं होगा अपने लिए, अपने अपनों के लिए, प्रकृति के लिए, जी लीजिये इन रिश्तों को कुछ दिन बाद रम जाएंगे दुनियावी रिश्तों में .....
✒️ ऋषि सचदेवा
📨 हरिद्वार, उत्तराखंड ।
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