यादें Rishi Sachdeva द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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यादें

""यादें""

कुछ अधूरे ख्वाब देखे मैंने कल रात,
अजीब से थे, मैंने भुला दिया था तुम्हे, तुम्ही ने कहा था की वापिस नही आना तुम्हे मेरी खुशहाल, आबाद, मुस्कराती ज़िन्दगी में तुम्ही ने तय कर लिया सब, कब आना है कब जाना है बॉस हो न तुम फैसले लेने का अधिकार तो केवल तुम्हारा ही है खैर......

मैंने तुम्हें एक नाम दिया है "गुमनाम" क्योंकि तुम्हे सब से बात करना सबके सामने आना नपसन्द है कोई तुम्हारी ज़िन्दगी में तांका झांकी करे तो तुम्हे गुस्सा आता है एक और अजीब बात है तुम्हारी की तुम मेरे जीवन में अधूरी सी हो जितना जीना चाहती हो उतना जीती हो, जीतना बताना चाहती हो बताती हो, रहस्य की चादर ओढ़े जीतना आना चाहती हो उतना आती हो बाकी खो जाती हो किसी दीवार के पीछे !!!

पर फिर क्यों अचानक बिन दरवाज़ा खटखटाये चली आयी, और क्या कह रहीं थी तुम की तुम्हे मोहब्बत नहीं है मुझसे,, ठीक है मुझे भी परवाह नहीं तुम्हारी, पर क्यों चली आती हो बार बार यादों में बिन बुलाए मेहमान की तरह ।।

लड़कर गयीं थी तुम, कह कर गयी थी कभी न आओगी पर झूठी हो तुम बहुत झूठी, आती हो रोज़ आती हो मेरी यादों में, मत आया करो मैं नही महसूस करना चाहता तुम्हे, तुम्हारे इत्र को, तुम्हारी खुशबू, तुम्हारी छुअन, तुम्हारे आँसू, तुम्हारा मन, नहीं कुछ भी नही चाहिए मुझे जो तुम्हारी याद दिलाए, तुम्हारी महक नही महसूस करनी मुझे जब भी आती हो रुला जाती हो खुशियों से शायद कुछ एलर्जी है तुम्हे ??

तुमने मुझे भी अपनी तरह झूठा बना दिया, क्यो कह रहा हूँ मैं तुमसे ये सब जब तुम्हे सुनना ही नहीं मेरी ये कहानी बंद हो कर रह जायेगी मेरी किताब में जिसे मैं कभी लिखूंगा ही नहीं कागज़ के पन्नो पर काली स्याही से क्योंकि बहुत सुनहरे रंगीन सपनों को नही उरेकना चाहता मैं काले रंग से क्योंकि दुनियाँ की काली नज़र से डर लगता है मुझे और सच कहूँ तो डरता हूँ तुम्हारे नाराज़ हो जाने से तुम्हरे रूठने से ।। 

तुम्हे कोई कुछ कह न दे, तुम याद हो मेरी, मेरे साथ ही चलोगी दिन भर - रात को भी, आज भी कल भी और परसों भी, अगले साल दर साल मोहब्बत हो तुम कभी लम्हो में कैद नही हो सकती, न आना चाहो मेरी ज़िन्दगी में कोई बात नहीं तुम्हारी मर्ज़ी पर मेरी यादों से खुद को कहाँ ले जाओगी ???

लड़ लो झगड़ लो मत बात करो मुझसे ये हक है तुम्हारा, पर मेरी यादों से कहाँ भागकर जाओगी जाओ चली जाओ जहाँ जाना है तुम्हे पंछी बन उड़ जाओ नीले अम्बर में पर उड़ कर जब थक जाओगी तब आराम करने तो मेरी यादों में ही आना होगा, ये मालूम है मुझे भी तुम्हे भी ।।

कहानियाँ अच्छी लिख लेती हो पात्र गड़ना तुम्हे आता है, पर कुछ सच मैं भी लिख लेता हूं मैं भी लिख दूंगा की इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं उनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं, पर सच तो ये है कि इस कहानी में कोई पात्र था ही नहीं सिर्फ "मैं" था तुम थीं "गुमनाम" और थी मेरी "यादें" ......................

जो रूठी हैं मुझसे, नाराज़ हैं पर मेरे साथ हैं, हैं न ????

"अभिव्यक्ति" मेरी कहानी 
ऋषि सचदेवा,
हरिद्वार, उत्तराखंड ।।
9837241310