ठीक है पैदा कहा होना है वो तो हमारे हाथ मे माही है
रुधिचुस्तता को जितना अपनाओगे उतना आप दूसरों को ज्यादा ही दुखी करोगे।
मेरा एक रिलेटिव में भाई है, उसके पापाजी उसके पीछे पड़े थे कुछ द्दिन से बेटा 21 का हो गया है लड़की अच्छी सी मीले सादी कारलो। जब की पिताजी जानते है कि उसके बेटे की अभी इतनी इनकम नही है कि वो पूरा घर चला सके, तो भी वो जबरदस्ती उसकी सादी के पीछे पड़े थे।
ठीक है मेरे भाई में सोचा कि चलो पापा मानेगे नही में देखकर आता हूं बाद में मना करदुगा कि लड़की पसंद नही आई।
सब देखने का काम हो गया, घर पर आकर उसने बोल दिया लड़की अच्छी नही लगी।पापा ने बोला ठीक है,कोई बात नही।
ममी बोली पसंद क्यो नही आई कोई कारण तो होगा।
अभी ओर कुछ तो बोल नकहि सकते उसने बोल दिया लड़की को देखकर कैसे है बोले।जब कि उसके बीओडेटा नही है कितना पढ़ी लिखी है कुछ पता नहि है।
ठीक है चलो उसका काम हो गया।
फिर उसके पापा ने बोला पढ़ी लिखी लड़की का तुजे क्या काम है?
and I really shocked
मुजे शॉक इस बात पर नही लगा कि उसने ऐसा बोला।
पर दुख इस बात का है कि
कभी कभी मा बाप हमारी जरूरियात चीजे पूरी करते करते ये भूल जाते है कि वो हमें समजे वो भी हमारी एक जरूरियात ही है।
जब बच्चा पढता है तो कैसे पढ़े वो क्या करेगा ये डिग्री के बाद उसकी फिक्र नही होती सिर्फ लोगो को लगे कि लड़का ग्रेजुएट है इसी लिये पढहाना है।
ओर सभी पिता से ये विन्नति है कि आप भी अपनी 18 से 25 साल तक कि जिंदगी जी चुके है।
अगर आप सक्सेस हो अपने ड्रीम से तो आप वकेह अपने बच्चों को समजे ऐसे पिता होंगे क्योंकि आप को ये बात पता होती है कि सपने पूरे करने के लिए कितना सुन्ना पड़ता है,कितना भागना पड़ता है, एक्चुअल आप उस परोस्थिति से वाकेफ हो।
पर मुश्किल तो उस बच्चों को हे जिसको यही नकहि समझ आता कि मेरे पेरेंट्स मुजे समझेगे कब!!
में ये नही बोल रही कि पेरेंट्स हमे समझते नही है दोस्त।चाहे कितने भी अनपढ़ मा बाप हो उसको अपने बचो की बकहुत चिंता होती है और ख्याल भी रखते ही है।
पर कुछ स्थितय्या ऐसी अति है जब मा बाप को सही में उसके बच्चे की मदद करनी चाहिए।उसके फैसले में, वो क्या कहना चाहते है,वो क्या करना चाहते है,वो समजो पहले, बाद में खुद फैसला सुनाओ।
क्योकी आपका एक फैसला उसकी कही सारी इच्छाओ ,आशाए ओर मेहनत पर पानी फेर देता है।
मेरे भाई को जब ये बोला गया कि तुजे पढ़ी लिखी लड़की का क्या करना है, ये बोलने पर उसने एकबार भी ये नही सोचा की पिछले कही सालो से उसकी पढ़ी लिखी बेटी उसका घर चलाने में मदद कर रही है, उसकी पढ़ी लिखी बेटी भी किसीके घर की बहू बनेगी। पर जब बेटी को कमाने में कोई हर्ज नही है। पर जब 4-5 लोगो की मंडली लगेगी और उसमें भी किसीकी बेटी भाग गई होगी तो तो फिर जो चर्चे चालू होंगे। लड़की को पढ़ना ही नही चाहिए, बाहर निकलेगी तो इसा होगा ना।
मेरे भाई बाहर निकलने का पढ़ने का भागने से कोई तालुक्क्त नही होता है।
अगर आपको अपनी परवरिश पर इतना ही भरोसा था आपके बच्चों के साथ आप इतने अच्छे रिलेशन थे तो उसने अपनी जिंदगी का इतना बड़ा फैसला आपसे पूछे बगर किया क्यो!?
उसने बताना भी कयो जरूरी नही समाजा आपको।
क्योकि आपने उसके साथ अपने म बाप होने का ही रिस्ता बनाया है, सही में बच्चे क्या है क्या सोचते है वो जानने की कोशिश ही नही की है,ओर नही एसा रिस्ता बनाया अपनी बेटी या बेटे से की वो आपके साथ सारी बाते शेर करे। अगर कभी गलती से भी इधर उधर जाने में लेट हो जाये या तो अपनी सफाई में कुछ बोल जाए तो पिताजी मा को बोलते है देखो तुम्हारी छूट का नतीजा है। बाहर जाना बंद करदो इसका।
क्या तात है इन सारी बातों का कोई समजायेगा मुजे!?
साहेब माता-पिता होने का मतलब ये नही है कि आप गलत हो या सही आपके बच्चो को आपका ही सुनना है।बिल्कुल नही।क्योकि आप इतने मेच्योर होकर भी किसीका नही सुन सकते गलत।
तो वो तो अभी आपसे छोटे है वो आपका गलत कैसे सुनेंगे।
ओर जब कि वो रोज आपको ऑब्जर्व करते है।उसे पता है कि आप कहा सही कहा गलत हो।
गलत होना मतलब किसीका बुरा चाहना नही है यहा
यहाँ गलत होने का मतलब है कि आपको पता है ये चीज सही है पर लोगो के डर से या तो समाज क्या कहेगा उसीके चकर में या फिर पढ़ी लिखी लड़की घर मे आ गयी तो कमाने बाहर जाने का बोलेगी ओर बाहर जाएगी कमाएगी तो आपको उसका मान रखकर सुन्ना पड़ेगा लोग क्या कहेंगे बहु काम करेगी तो!
ऐसे बेफिसुल सवाल आपको दूसरों की नजर में कभी एक सन्मानित पिता नही बनने देगे।
क्योकि जो लोग सिर्फ हा ओर ना में जवाब देते है और कोई फैसला सुनाते है उसके घर मे सब परेशान ही रहते है ऐसे फेसलो से।
क्योकि अगर समाज को सही लगा तो है बोल दिया गलत लगा तो न बोल दिया।
पर जो लोग कोई बात पर सन्ति से सोच समझकर भले बुरे का सोचकर फैसला करते है वो ही साहेब धनवान होते है और उसके घर की बेटी बहु कभी दुखी नही होती।
क्योकि समजदार लोग कोई भी फैसला दुसरो को नही पर खुद को देखकर लेते है।
ये तो ड्रामा, मूवी सब देखना पसंद है,माधुरी ओर श्री देवी के गांव पर सादी में नाचना पसद है । उसके इमोशनल घर संसार ओर इंडिटेन्मेंट के मूवी देखना अच्छा लगता है।
पर जब भी उसकी रियल लाइफ की बात आये तो वही बोलते है आधे से ज्यादा बेसरम होते है ऐसे लोग?
ये तो बात हेरोइन की थी ।
अभी थोड़े दिन पहले में रिकशो में जक रखइ थी ड्राइवर के पास एक अंकल बैठे थे,ओर उस अंकल के वाएफ ओर बेटी पीछे मेरे साथ बैठे तय।
ड्राइवर ने चालू किया बोलना गुजराती में की
શુ પણ આર્મી મેન જેવી છોકરી હતી હો, એકલા હાથે આટલા ને બચાવા ને આવી હિંમત દેખાડવી એટલે.પાસે બેસેલા અંકલ પણ કે સાચી વાત હો.
थोड़ी ही देर में आगे से एक लड़की फोन पर बात करते हुए रॉड की साइड में जा रही थी ड्राइवर ने उसपे वापस कमेंट चालू की ,આ જેટલી છોકરીયું ને ભણાવી ને બગડે છે, ગમે ત્યાં રસ્તા પર આમ ફોન લય ને વાતું કરે કેવું લાગે ગામ આખું વાતું કરે પછી. મેં તો મારી છોકરીને 19 વર્ષ ની થઈ ને પરણાવી દીધી. ઓલા બાજુ માં બેઠેલા ભાઈ પાછા કએ છે સાવ સાચી વાત છે.
મિત્રો એની છોકરી જે મારી બાજુ માં બેઠી હતી એ mba ભણેલ અને બેંક માં નોકરી કરતી હતી,
છતાં એના પાપા ઓલ ડ્રાઈવર ની એક રૂપિયો પણ સાચી વાત ન પડે એમાં હાયેહા મિલાવતા હતા.
આમ સવાલ એ છે કે ક તો એમને ખુદ ને જ નથી ખબર સુ સાચું સુ ખોટું? ક તો એની દીકરી ને એમને સમાજ ને દેખાડવા ભણાવી છે.
ઘણા પેરેન્ટ્સ એવું વિચારે છે કે આપણે નાના માણસો છીએ એ જ આપણી જિંદગી છે, પણ તમે આગળ ના આવી શક્યા કાઈ વાંધો નહીં કેમકે તમારા પર ઘણી જવાબદારી હતી, પણ તમારા બાળકો ને એવું ના શીખવો કે તમારે પણ આવી જ રીતે સાદાઈ થઈ નાના માણસો બનીને રહેવાનું છે. જેવા છીએ ઈવા સારા છીએ મોટા માણસો બનીને ક્યાંય નથી જવું આપણે એની હર માં ના આવીએ,
please
don't do that
એવું શીખવો કે કાઈ વાંધો નહીં પૈસા ઓછા છે આપની પાસે પણ આપણા વિચારો સારા હશે તો આપણે ધનવાન બની પણ શકીએ અને એમની બાજુ માં નાના માણસ હોવા છતાં બેસી પણ શકીએ.
સમય સાથે સોચ બદલીએ તો જ સમાજ accept કરશે અને કંઈક બની શકશો બાકી તો જેમ આવ્યા તા એમ જ જવું પડે.
माँ के पेट से निकलना तो एक आदमी की निशानी है।
अगर इंसान बनना है तो बहुत मंजिल तेय करनी पड़ेगी।