कुलधरा गांव की खौफनाक रात Renu Jindal द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कुलधरा गांव की खौफनाक रात

बात उस समय की है जब हमने गांव छोड़ा , मानो तकरीबन 15-20 साल पहले की। तब मैं और मेरा भाई इतने छोटे थे कि सही से चल भी नहीं पाते थे। धीरे धीरे हम बढ़ने लगे। मैं, मेरा भाई, माता-पिता और हम सब दादा जी और दादी जी के साथ बड़ी खुशी से अपने गांव कुलधरा में रहते थे। हर तरफ मानो प्यार, खुशी, हरियाली और सहयोग की भावना थी। दुख का आना जाना था, पर कभी किसी को अनुभव ही नहीं होता था। पूरा गांव जैसे एक परिवार की तरह लगता था। मेरे दादा बंसीलाल गांव के साथ हवा जैसे घुले मिले हुए थे, बड़े होने के नाते सब उनका सम्मान करते थे।
अचानक एक दिन सरकारी पत्र आया, जिसमें लिखा था कि पिताजी की नौकरी शहर में लग गई है और हम भी बड़े हो रहे थे। गांव में पढ़ाई का प्रबंध इतना अच्छा नहीं था। पढ़े लिखे होने के नाते पिताजी ने दादाजी को शहर में बसने की सलाह दी। दादा जी थोड़ा घबरा से गए परंतु बाद में वह भी मान गए।
कुछ दिनों बाद ही हम जैसलमेर में आ गए। यह सब इतना आसान नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे सिर्फ शरीर ही शहर आए हो मानो रूह वहीं पर रह गई हो... समय बीतता गया और हम स्कूल जाने लगे। पिताजी का काम भी शुरू हो गया।
कुछ साल बीत गए माता जी बीमार रहने लगी। गांव कुलधरा की यादें भूलने वाली नियति नहीं थी। शहर की चमक- दमक, हर वस्तु 3 गुना महंगी। उफ! रोज के खर्चे, ऊपर से माताजी की बीमारी इतनी लंबी चली कि वह खुद ही चल बसी.... हम निराश से होकर बिखरने लगे थे। पढ़ाई चलती रही.... जैसे तैसे मैंने वकालत की पढ़ाई शुरू कर ली और मेरे भाई ने कंप्यूटर का कोर्स कर लिया। दादा जी गांव की यादों में ही खोए रहते और महंगाई ने भी कमर तोड़ दी थी।
शहर में हमारी स्थिति बिगड़ने लगी थी। हम खुश होकर भी खुश नहीं रहे थे। हमारी पढ़ाई पूरी हुई तो कुछ समय के लिए मानो 20 से 25 दिन हमें कोई इतना काम नहीं था। गांव जाने का मन सबका हो रहा था, सोचा रहे थे... कि थोड़ी जमीन पड़ी है बेचकर कुछ गुजारा हो जाएगा, साथ ही सबको मिल भी लेंगे।
हम गांव के लिए निकल गए थे। रास्ते में अजीब सी बातें लोगों द्वारा सुनी― मत जाओ, वहां अब कोई नहीं रहता.... वहां तो सिर्फ अंधेरा रह गया है। हम हैरान थे, यह सब क्या हो रहा था, सुनने में अजीब था तो जाने का मन तो था ही। हम गांव के पास पहुंच गए। दूर से देखा... इतना भयानक अंधेरा.... खामोशी... सहमी सी आवाजें... चारों तरफ टूटे-फूटे घर और सिर्फ सन्नाटा ही था।
हम बुरी तरह डर गए थे। दादा जी ढाँढस बधाँते आगे चल दिए, हम अपने घर तक पहुंचे। वहां अब कोई घर नहीं रह गया था। गांव से बहुत दूर 2 - 4 घर होंगे, वहां पर बत्ती की हल्की सी चमक दिख रही थी। हम अंदर से कांप रहे थे पर कहीं जा भी नहीं सकते थे। रात हो चुकी थी हमने दरवाजा अंदर से बंद किया, सोचा किसी तरह रात बीत जाए। मेरा भाई, पिताजी मैं घबराए हुए थे और बहुत थक भी चुके थे। दादा जी हमें हिम्मत देते रहे... बोले- एक रात की बात है सुबह होते ही वापस चले जाएंगे। सोचा था 15 से 20 दिन गांव में रहेंगे परंतु एक रात इतनी भारी पड़ गई थी। हमने रात को अजीब-सी आवाजें सुनी। वह गांव जो अब खंडर बन चुका था वहाँ लोगों के हंसने की... तेज हवा की, पत्तों की आवाजें मानो धड़कन को छीन रही थी।
हमें हर पल ऐसा लग रहा था जैसे कोई और भी हमारे साथ घर में है, जो हमें वहां से निकालना चाहता हो। हर पल शोर और बदलती आवाजों ने हमें अंदर तक झूँझोर दिया। कभी बाहर से हंसने खेलने की आवाजें आती तो कभी चीखने चिल्लाने की..... बहुत तेज हवाएं चल रही थी..... बिजली भी कड़क रही थी..... खिड़कियां अपने आप ही हिल रही थी.... मौसम एकदम ही बदल गया। जैसे तैसे हमने इन खौफनाक आवाजों में रात काटी और सुबह होते ही वहां से निकल गए। हमारे मन में कई सवाल थे, हम जानना चाहते थे कि यह क्या था कोई जादू-टोना या कोई शैतानी ताकत पर समझ नहीं आ रहा था। गांव से बाहर निकलते ही हमें किसी बुजुर्ग ने बताया कि यह कोई जादू-टोना नहीं यह तो गांव पर कुदरत का प्रकोप है जो हंसता खेलता गांव तबाह हो गया। उसने बताया कि- कुछ साल पहले कुछ साधु इस गांव में रहने के लिए आए थे, उन्होंने गांव के मुखिया से गांव में रहने की आज्ञा मांगी परंतु मुखिया ने यह सही नहीं समझा। मुखिया ने उनको वहां पर रहने की आज्ञा नहीं दी जिससे साधू क्रोधित हो गए और इस गांव को श्राप देकर निकल गए कि जिस धरती पर दया ,धर्म नहीं रह सकते वहां पर और कोई भी नहीं रह सकता। उस दिन के बाद यह गांव वीरान होना शुरू हो गया और यहां पर कोई नहीं रह सका। बस तभी से यहां पर कुछ साधुओं का साया ही घूमता नजर आता है और कुछ नहीं। एक डर और भय ने अपनी जगह बना ली है.... बस यही है इस गांव की दास्तां। यह सुनकर हम अंदर से टूट चुके थे।
हमने हमारे गांव में इतने दर्द और खौफ कि कभी कल्पना भी नहीं की थी। हम बेजान से... शहर पहुंचे। कई दिनों तक वही आवाजें हम महसूस करते रहे। उस खौफनाक रात को हम कभी नहीं भूल पाएंगे।।