मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन
कहानी 19
ध्यानेन्द्र मणि त्रिपाठी
मुट्ठी भर आसमां
ये कैसे छलिया दिन हैं? वो छलावरण में माहिर है। गजब का बाज़ीगर, पल भर में माशा पल भर में तोला? नंदीप कैलकेरिया की हरी गझिन झाड़ियों में इस गिरगिट के जोड़े को बड़़ी देर से ताक रहा था। लॉकडाउन में बालकनी ही वो जगह है जहां थोड़ी देर के लिए या पूरे दिन भर भी मटरगश्ती की जा सकती है। गजब है कुदरत का करिश्मा, ये गिरगिट कितनी खूबसूरती से अपने को आसपास के रंगों में ढाल लेते हैं और इस जोड़े में ये हैन्डू नर अपने गलफड़ पर लाल फुग्गे को फुलाकर कैसे मादा को रिझाने की कोशिश कर रहा है?
नंदीप का ध्यान बंटा। मास्क लगाये कोई हसीना इस सोसायटी की चौड़ी सड़कों पर अपनी खूबसूरत चहलकदमी से एक अनसुना सा शोर पैदा कर रही है। कभी एक दूसरे को गले लगाती ये सड़कें, अंतहीन गाड़ियों के शोरगुल और अनथक भीड़ से पटी रहती थीं। नंदीप ने खुद को चिकोटी काटी, क्या वाकई ये सब कुछ हो रहा है या फिर कोई दिवास्वप्न? नजरें धोखा खा सकती हैं पर हमारी चेतना का क्या कहें? अपरिमित क्षमताओं और संवेदनाओं से लबरेज सतत प्रवाहित ऊर्जा पुंजों का निकाय।
ये कोई दिवास्वप्न नहीं, चालीस दिनों से चला आ रहा ऐसा प्रैथक्य और एकाकीपन है जो हमारी जिजीविषा और कुदरत से हमारे तादात्म्य की कड़ी परीक्षा ले रहा है। एक अदृश्य विषाणु जो जीवित और निर्जीव के बीच की कड़ी है - लगातार अपने रंग रूप बदलता, म्यूटेट करता नोवेल कोराना वायरस या एन-कोविड-19।
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गली के आवारा कुत्तों की भौंकने की आवाजें अचानक उनके मुंह उठाकर रोने से सायरन जैसी आवाजों में बदल गयी। नंदीप ने बालकनी से पार्किंग की ओर देखा। अहातों के बाहर सड़क पर कुत्तों का ये झुंड दो मादाओं और चार नरों से गुलजार रहता है। नंदीप अक्सर इस पॉश सोसायटी के आरडब्ल्यूए (निवासियों के कल्याण संघ) सचिव की मुखालफत के बावजूद इन निरीह पशुओं को गाहे-बगाहे खाना खिलाने पहुंच जाता है। पिछले साल भर से इन आवारा कुत्तों से एक अनोखा रिश्ता बना लिया है नंदीप ने।
काले-सफेद चकत्ते वाले सबसे युवा नर को उसने बेन नाम दिया है। बेन ही शायद इस झुण्ड का नायक या अल्फामेल है। नंदीप को ये अनुमान लगाने पर तब-तब आसानी हुई जब-जब बेन की अगुवाई में ये झुण्ड दूसरे इलाके से आये कुत्तों को खदेड़ने में पूरी ताकत से पिल पड़ा। सहूलियत के लिए नंदीप दोनों मादाओं को रोनी और सोनी के नाम से जानता है। रोनी का रंग भी चटख भूरा है और सोनी का भी। रोनी थोड़ी चीमड़ है तो सोनी झब्बरदार। ये दोनों झुण्ड में बेहद शर्मीली हैं पर गुटों की आपसी लड़ाई में बेहद आक्रामक। ब्लैकी सबसे बूढ़ा और कद में भी अव्वल है। पूरी तरह काले फरों से ढंके इस नर कुत्ते को रात में आसानी से बिना रोशनी के ढूढ़ना नामुमकिन है। स्नोबॉल और ब्रूनो सहायकों की भूमिका में रहते हैं और बेन और ब्लैकी का अनुसरण करते हैं।
कुत्तों के रोने की आवाज, खामोश फिज़ा में अजीब-सी मनहूसियत पैदा कर रही थी। नंदीप रसोई की ओर लपका और सुबह की बची दो रोटियों, एक उबले अंडे और एक कटोरी दूध के साथ सड़क पर आ गया। नंदीप को देखते ही पूरा झुण्ड उसके गिर्द पूंछ हिलाते हुये दावत की आशा में उचक उचक कर कृतज्ञता ज्ञापित करने लगा।
नंदीप ने जैसे ही सारी सामग्री झुण्ड के हवाले की, वैसे ही एक कड़क आवाज ने उसका ध्यान खींचा। ये सलिल शर्मा थे जिन्हें आवारा कुत्तों के इस झुण्ड से जैसे कोई ज्यादती दुश्मनी थी। आरडब्ल्यू के सचिव पद की शोभा बढ़ाते शर्मा जी का रूआब तो लाट साहब को भी टक्कर देता था। सोसायटी के नियम-कानूनों का सख्ती से पालन करवाना उन्हें बखूबी आता था। ऐसा लगता था जैसे सोसायटी की चारदीवारी ना हुई किसी देश की सरहद हो गई हो। आपको मालूम नहीं कि लॉकडाउन है ?और इस पूर्णबंदी के दरम्यान आवारा कुत्तों के झुण्ड से हिलना-मिलना कोरोना होने की वजह बन सकता है। शर्मा की रोबीली आवाज में धौंस भी थी। ‘ये मासूम जानवर है।’ नंदीप ने बड़ी सहजता से जवाब दिया, भला इनसे कोरोना के संक्रमण का खतरा कैसे हो सकता है?
नंदीप की विनम्रता का शर्मा जी पर कोई असर नहीं हुआ। लगे हाथ उन्होंने पुलिस बुलाने की धमकी दे डाली। नंदीप उन्हें शांत रहने की दरख्वास्त करते हुए सोसायटी के मुख्यद्वार से दाखिल हुआ। नंदीप को इस बात पर हैरानी थी कि कोई इतना कठोर और रुखा कैसे हो सकता है? प्रैथक्य और सूनेपन के इस थोपे गये समय में इन बेजुबानों को कौन दाना-पानी देगा? नंदीप इन घुमड़ते सवालों के साथ दूसरी बालकनी में आ खड़ा हुआ। उसकी बिल्डिंग की बालकनी से साफ नजर आता है, साथ के प्लॉट पर बनी अधबनी बिल्डिंग। खाली घर में चहलकदमी करते कबूतर और उछलकूद करती गिलहरियों को निहारना सुकून भरा शगल है। इस अधबने बिल्डिंग के घरों में कुछ रिक्शे वाले रहा करते थे जिन्हें शायद कॉन्ट्रेक्टर ने शरण दी होगी। जब से लॉकडाउन लागू हुआ इसके लोहे के गेट पर भी ताला लगा है। रिक्शे वाले शायद अपने गांव घरों की ओर कूच कर गये होंगे। इस खाली पड़े घर की छत पर कुछ नये मेहमान आने वाले है। टिटहिरियों का एक जोड़ा छत पर अपने बनाये घोंसले की निगरानी कर रहा है और इस गर्मी में पतझड़, इनके नन्हें चूजों की अगवानी करेगा।
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टिटिहरी के चूजों की याद कर नंदीप मन ही मन मुस्कुरा पड़ा। पिछले बरस टिटिहरी के इसी जोड़े ने सिर्फ एक चूजे को अपने घोंसले में बड़ा किया था। अपने लम्बे पैरों पर चहलकदमी करता वो चूजा जब एक पैर उठाकर खड़ा हो जाता था तो उसके कौतूहल भरे चेहरे पर नई दुनिया को अपने पंखों में भर लेने का जज्बा साफ दिखाई पड़ता था। पर एक दिन वो अचानक कहां गायब हो गया पता ही नहीं चला। हां टिटिहरी के जोड़े का शोरगुल और उनकी बेचैनी से जाहिर था कि उनका इकलौता चूजा उनसे कहीं बिछड़ गया था।
नंदीप ने पिछले बरस के वाकये को याद करते हुए इस जलचर पक्षी के जोड़े को फिर से देखा। इस बार देखता हूं, कितने चूजों से बगलवाली छत गुलजार होती है। घर में घुसते ही बुलू और मोमों नंदीप को घेरकर खड़े हो गये। पापा मैगी बनाइये। नंदीप को इन फरमाइशों का जैसे इंतजार रहता है। बच्चों की ये छोटी ख्वाहिशें उसके उस हर लम्हें को मुकम्मल करती हैं जिनका पूरा होना उसे बच्चों से गलबइंयां कराती हैं। बुलू अब सोलह बरस का हो जाएगा और मोमो ग्यारह साल की। वक्त कैसे कुलांचे भरता निकल जाता है पता ही नहीं चलता।
लॉकडाउन में नंदीप ने काम बांट लिये हैं। खुद तो सुबह-शाम बर्तन धोने की जिम्मेदारी ले रखी है। बुलू ने झाडू-पोंछे का काम सम्हाल लिया है और मोमो ने डस्टिंग का। सबसे कठिन यानी खाना बनाने का काम राम्या के हिस्से पूर्ववत है। राम्या को दो-दो मेड्स के साथ रसोई में काम करने की आदत थी और अब निहायत अकेले। घरेलू सहायिकों का ना आ पाना क्या कम समस्या थी कि ये कपड़े धोने वाली मशीन भी धोखा दे गयी। इसी बंदी और प्रैथक्य में इस वाशिंग मशीन को भी खराब होना था। हाथ से कपड़े धोने का काम बेहद उबाऊ और वक्त की बर्बादी का सबसे आसान तरीका। राम्या माथे पर चुभचुभाये पसीने को हाथों से साफ करती बैठक में आ खड़ी हुई। इससे पहले कि राम्या नंदीप को जूठे बर्तनों की याद दिलाती, नंदीप खुद ही सिंक की ओर लपका।
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शाम साढ़े छह बजे बर्तन धोने का जो सिलसिला शुरू हुआ उसे खत्म होते होते साढ़े सात बज गये। रसोई चमचमाते बर्तनों और चमचमाती फर्श से सज गई थी। नंदीप ने गीली हो चुकी एप्रन बाहर बालकनी में बने हैंगर पर टांग दी। राम्या रसोई में मशगूल हो गई। मोमो उछलते कूदते पापा से लाड़ जताने आ गई। वो अक्सर नंदीप के गले में अपनी नन्हीं बांहों का घेरा बनाकर झूलने लगती है। गली के कुत्तों के झुण्ड की बुलू और मोमो को कुछ ज्यादा ही फिक्र रहती है। दरअसल इस झुण्ड के सारे कुत्तों के नाम इन्हीं दोनों ने रखे हैं। मोमो जिद करने लगी कि क्यों ना हम डागीज को पानी और दूध दे आयें? वैसे भी सोनी के आगे वाले दाहिने पैर में चोट लगी है। वो पानी पीने ड्रेन में नहीं उतर पाती है। नंदीप अनमने मन से तैयार हो गया। बच्चों को ताकीद की कि मास्क लगा लें और नीचे सड़क पर जाने पर कुत्तों से एक दूरी बनाये रखें। नीचे उतरते ही बेन, ब्रूनो, ब्लैकी, स्नोबॉल, रोनी और सोनी पानी और दूध के कटोरों पर झपट पड़े। बेन इस झुण्ड में खुद को शायद खास समझता है इसलिए खाने को लेकर दूसरे साथियों को गुर्राते हुए घुड़की देता रहा है।
ये छोटी-मोटी गुर्राहट अचानक बेन और ब्रूनो की लड़ाई में तब्दील हो गई जिसने इस खामोशी भरे माहौल में खासी अशांति भर दी। ये आवाजें शर्माजी तक भी पहुंच गयी होंगी तभी तो उन्होंने पुलिस को फोन भी किया होगा। नंदीप बस बच्चों के साथ निकलने की तैयारी कर रहा था कि सायरन की आवाज के साथ एक पेट्रोलिंग कार पलक झपकते थोड़ी दूर पर आ खड़ी हुई। एक दरोगा और दो हट्टे कट्टे सिपाहियों ने नंदीप को ललकारा- अबे ओ झुमरू - पता नहीं है कि कर्फ्यू लगा है। अभी हाथ-पैर सब तोड़ देंगे यही सड़क पर। नंदीप को ऐसे अपशब्दों और अभद्रता की आशा नहीं थी। बच्चे सहम गये। सोसायटी में घुसने के लिए जैसे ही बच्चों के साथ नंदीप लपका, गार्ड ने बैरियर गिरा दिये, पीछे शर्मा जी अपनी मंद कुटिल मुस्कान के साथ जलवाफरोश थे।
दरोगा ने नंदीप की कॉलर को गिना किसी उकसावे के पकड़ रखा था और नंदीप उस पुलिस अधिकारी को समझाने की कोशिश कर रहा था कि बेन ने पीछे से दरोगा की पैंट अपने दांतों में दबा ली। सिपाहियों और दरोगा जी का ध्यान उनके पीछे पड़े कुत्तों पर पड़ा तो नंदीप को मौका मिला। बिना मतलब की पशेमानी और जलालत से पीछा छुड़ाकर नंदीप दोनों बच्चों के साथ बिल्डिंग में दाखिल हुआ और यही सोचने लगा कि ये कैसा वक्त है? कैसे लोग हैं जो इंसानियत, करुणा और दया जैसे शब्दों के मायने ही नहीं जानते। शर्मा के लिए नंदीप के मन में क्रोध तो उमड़ा पर उसकी बेहयाई पर उसे तरस भी आया।
बुलू और मोमो अब भी गुमसुम थे। उन दोनों के चेहरे पर ग्लानि के ऐसे भाव थे की मानों उन्होंने कुत्तों के झुण्ड का खयाल रखकर कोई अपराध किया हो। नंदीप ने बच्चों की हौसला फजाई की और सोने के वक्त विक्रम-वेताल की कहानी सुनाने का वादा भी किया। बुलू और मोमो टीवी पर मिसेज डाउटफायर मूवी देखने में मशगूल हो गये और नंदीप कोरोना वायरस अपडेट को गूगल करने लगा।
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कोरोना विषाणु भी जबरदस्त छलिया है। कितने ही रूपों में खुद को म्यूटेट कर रहा है। एल स्ट्रेन, जी स्ट्रेन और ना जाने कितने रूपों में। इतना संक्रामक कि पल भर में एक इंसान से दूसरे में छलांग। कुल जमा छः महीने भी नहीं हुए कि दुनिया के हर देश में तबाही मचाते ये अनदेखा आरएनए खतरे का सबसे बड़ा सामान बन गया है। वायरस की उछल-कूद जारी है और पूरी दुनिया दुबकी बैठी है। नंदीप इन खयालों में उलझा सोच रहा था कि जैसे ये चालीस दिन चालीस साल की तरह लगते हैं। हर सदी एक बार ऐसी किसी वैश्विक महामारी का सामना करती है और लाखों करोड़ों इंसानों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। सन् 1918 में फैले स्पैनिश फ्लू ने दुनिया भर के करीबन पचास करोड़ लोगों को अपना निशाना बनाया था और करीबन दस करोड़ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। आखिर इंसान जानवरों की दुनिया में दखल क्यूं देता है? क्यूं उन्हे उनकी कुदरती दुनिया से बेदखल करने की फिराक में रहता है? कोविड, मर्स, सार्स, स्वाइन फ्लू, एच आई वी ये सारे वायरस इंसानों पर हमला ना करते अगर इंसानो ने चमगादड़, चिंपांजी, ऊंटों, पैंगोलिन और पक्षियों को अपना शिकार ना बनाया होता.
नंदीप ने आज के आंकड़ों पर नजर डाली। पूरी दुनिया में कोविड-19 की वजह से अब तक दो लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई। कहीं अगला नंबर उसका तो नहीं? नंदीप ने इसे वाहियात खयाल कहकर झटक दिया। अब वक्त बच्चों को कहानी सुनाने का है।
राम्या हार्मोनियम पर राग भैरवी का अभ्यास कर रही है।नंदीप मास्टर बेडरूम में बुलू और मोमो का कहानी सुनाने लगा। नींद हौले से दस्तक दे रही थी। बाहर मौसम का मिजाज बदल रहा था। तेज ऑंधियों के अंदेशे इस बेहद चुनौती भरे समय में ना जाने और कितनी चुनौतियां खड़ी करना चाहते हैं? दीवार पर टंगी घड़ी ने ग्यारह बजाये और बादलों के मोहल्लों से गुजरते हुये तारों की बारात चंदा को दूल्हा बना आसमान के शामियाने में नमूदार होने लगी।
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शनिवार की ये सुबह चिड़ियों की चहचहाहटों से खिलखिला रही है। न जाने कहां से चिड़ियों की अनजानी खूबसूरत नस्लें पाम के पेड़ों और शमी की टहनियों पर उछलकूद कर रही हैं। इस अजीब से उदास समय में पक्षियों का ये कलरव हमें याद दिलाता है कि कभी कारों, ट्रकों, फैक्ट्रियों, मेले-ठेलों और हवाई जहाजों के शोर गुल में कुदरत के इन मीठे गीतों को सुनने से हम कैसे महरूम रहे होंगे। बॉलकनी में बिखरी ढेर सारी टहनियां और धूल में सने पत्ते कल की बारिश और ऑंधी का हाल खुद ब खुद बयां कर रहे थे. नंदीप ने आधे गीले हो चुके अखबार की सुर्खियों पर जब नज़र डाली तो पता चला कि कल रात ओले भी पड़े थे।
नंदीप अभी गुसलखाने से नहाकर निकला ही था कि मोमो उससे लिपट गई। पापा आपको मालूम है कि टिटिहरी के चार चूजे अंडों से निकल आये हैं। नंदीप मोमो के साथ दौड़ता हुआ दूसरी बालकनी से झांकने लगा। वाकई टिटिहरी के चार चूजे बगलवाली छत पर चहलकदमी कर रहे थे। नंदीप मुस्कुराया। इस चुनौती भरे समय में जीवन को नये पंख लगना वाकई खुशनुमा अहसास है। रसोई से बाजरे के दाने मुठ्ठियों में भर उसने बगलवाली छत पर बिखेर दिये। कीड़े और घोंघे खाने वाले ये जलचर पक्षी कभी-कभी दाने भी खाते हैं, पानी का इंतजाम इस छत पर टपकती पानी की ये टंकी कर देती है।
नन्हें चूजों के करतब नंदीप का मन मोह रहे थे कि उसे नीचे कुछ शोर सुनाई पड़ा। कल बैरियर गिराने वाला गार्ड, शर्मा से बातें कर रहा था और फायर ब्रिगेड के साथ एक रेस्क्यू ( बचाव) वाहन भी खड़ा था जिस पर इन्द्रप्रस्थ गैस का प्रतीक चिन्ह साफ दिखाई पड़ रहा था।
नंदीप ने देखा कि पुलिस की वो पैट्रोलिंग कार भी आ पहुंची थी और कल उससे बदतमीजी से पेश आने वाला दारोगा भी चहलकदमी कर रहा था. आखिर माजरा क्या है? नंदीप को लगा कि हो ना हो कल वाली बात को बतंगड़ बनाने शायद ये पुलिस वाले और शर्मा जी कोई नया गुल खिला रहे हों!
राम्या ने सूती कपड़ों के बने हुये दो थैले नंदीप के हवाले करते हुये चार लीटर फुल क्रीम दूध, एक वनीला आइसक्रीम और दो ब्रेड के पैकेट, मदर डेयरी खोखे से लाने की तुरंत ताकीद की. श्रीमती जी का हुक्म हो फिर तो उसकी तामील में देरी का सवाल ही नहीं उठता. बॉस और पत्नी की हर बात जायज होती है, नंदीप के पिछले बीस बरसों के तमाम तजुर्बों का यही सार है.
मन ही मन यप्प कहते हुये नंदीप ने मास्क और दस्तानों से खुद को लैस किया और फुर्ती से जूते पहनने के बाद सीढ़ियों की ओर चल पड़ा. दो तीन मंजिलों के लिये क्यूं लिफ्ट की ओर रूख करना. फिर लिफ्ट की बटन दबाने में खतरों का फलसफा. हंलाकि होशियार लोगों ने यहां भी टूथपिक का डिब्बा चस्पा कर रखा है. एक टूथपिक से लिफ्ट की बटन को पुश करना और फिर उसे दूसरी वाली डिस्पोजल डिब्बी में डाल देना.
नंदीप मदर डेयरी कियास्क की ओर जाने के लिये अभी मेन गेट के सामने वाले ब्लॉक से गुजर रहा था कि गॉर्ड पांडेय की आवाज ने उसका ध्यान खींचा. अरेऽऽऽ नंदीप सरऽऽऽ सुनिये ना.. ई सब आपका कुत्ता लोग तो गजब का कारनामा कर दिया. पूरा सोसाइटी को एक बड़ा अनहोनी से बचा लिया साहब..
नंदीप कुछ समझ पाता उससे पहले उसने देखा कि सलिल दूर से ही हाथ जोड़े उसे बुला रहा था. ये तो चमत्कार है- नंदीप ने मन ही मन सोचा. शर्मा वो भी हाथ जोड़े इतनी अदब से पेश आ रहा है?
नंदीप गेट के बैरियर पर पहुंचा तो पांडेय गार्ड ने बेन एण्ड कंपनी कुत्तों के झुण्ड की बहादुरी का वो करनामा सुनाया जिसने वहां खड़े हर शख्स के दिल में इन जानवरों के लिये श्रद्धा का भाव उमड़ पड़ा.
पाण्डेय अपनी रौ में बोले जा रहा था - नंदीप साहब - कल ऑंधी ओला औउर बरिश के बाद इ करियवा कुकुर बार बार हमरे केबिन के पास आ के भौंउके कि जइसे कुछ कहना चाहता हो. एक बार तो हम डण्डा से खदेड़ भी दिये पर पूरा गैंग आ के हमारा नींद हराम कर दिया. सोचा कि का बात है निकल के देखूं. साहब! हम का बतायें जब हम करियवा क पीछे चला त देखा कि आईजीएल का पाइप्ड गैस लाइन का जंक्शन पे एक पेड़ भहरा के गिर गया है औउर बिजली का खम्भा का टूटल तार भी गिरा है. गैस का पाइपवा मुड़ गया था और गैस रिसने का गंध आसपास फैला था। गैस लाइन बचाव दल का साहब अभी बोल रहा था कि अगर अलसुबह ई पता नहीं चलता तो भयंकर हादसा हो सकता था।
नंदीप दौड़कर गेट के बाहर आया और उसके पुकारते ही पूरा कूं कूं करते हुये हाजिर हो गया. नंदीप ने बारी बारी से आज के इन हीरोज को थपकी दी. आज तुम सबको जोरदार दावत मिलेगी, नंदीप अपने इन कैनाइन दोस्तों से बातें कर रहा था.
शर्मा नंदीप के पास आ गया था. शर्मा शायद नंदीप के सामने पश्चाताप के ऊभचूभ में खड़ा था पर नजरें नहीं मिला पा रहा था। नंदीप ने जैसे इशारों-इशारों में ही कहा - कोई बात नहीं शर्मा साब. मुझे खुशी है कि आप इतने मुस्तैद रहते हैं।
कल नंदीप की कॉलर पकड़ने वाला दरोगा भी ये सब देख रहा था। उसने मास्क लगा हुआ अपना चेहरा नीचे झुका रखा था. शायद कल की बदतमीजी की आत्मग्लानि उसको भी कचोट रही थी। मुकम्मल दूरी बनाये और मास्क लगाये लोगों का चेहरा आंखों से पढ़ा जा सकता था।
नंदीप ने सबसे पहले मदर डेयरी से दूध के चार पैकेट लिये और खाली पड़े क्रेट में दूध को झुण्ड की दावत के लिये पेश कर दिया। कुत्तों का झुण्ड खुशी के अतिरेक में सपड़ सपड़ दूध पीते अपनी पूंछ हिला रहा था। टिटिहरी के बच्चे अपनी मां के पंखों में ऐसे छुप गये थे जैसे कोई कार्गो जहाज अपने भीतर नन्हें जहाजों को छिपा ले।
बाज आसमान में मंडरा रहे थे। मजदूरों के जत्थे पैदल ही हजारों किलोमीटर की अनथक यात्रा पर निकल चुके थे और जिंदगी को लाखों चुनौतियां देता कोरोना इंसानी हौंसलों को ललकार रहा था। नंदीप ने खूबसूरत आसमान की ओर देखा। बादल नीले फलक पर रूई के गुम्फों में गुंथे थे। मुठ्ठियों में आसमां बेफिक्र तिर रहा था। दुनिया अपने मजबूत इरादों और अदम्य जिजीविषा के साथ कोरोना वायरस के साथ जीने का हौसला जुटा रही थी। लॉकडाउन जारी था।
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लेखक परिचय
आत्मपरिचय / जीवनवृत्त
ध्यानेन्द्र मणि त्रिपाठी
उत्तर प्रदेश सूबे के जौनपुर जिले के एक छोटे से गॉंव बरपुर में जन्म. परवरिश पढ़ाई बनारस में. बीएचयू से विज्ञान स्नातक और आईआईटी ( आईएसएम) धनबाद से प्रौद्योगिकी में स्नातक और सिटी एन्ड गिल्ड्स लंदन से प्रौद्योगिकी मे परास्नातक.
प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में पिछले २० सालों से नौकरी. संप्रति ऑस्ट्रेलियाई बहुराष्ट्रीय कंपनी मिनोवा की भारतीय इकाई के राष्ट्रीय प्रबंधक.
लिखने की शुरूआत बनारस के आज अखबार और रेडियो वाराणसी से. शुरूआती बाल कहानियां पराग, नंदन और बाल भारती पत्रिकाओं मे अस्सी के दशक में प्रकाशित. कहानियां, कवितायें, यात्रा वृतान्त, नाटक और व्यंग, हंस, कथादेश, कादम्बिनी, जनसत्ता, नया ज्ञानोदय और तमाम समाचार पत्रों में प्रकाशित.
भारतीय महाकाव्यों पर लिखी नृत्य नाटिकाओं का मंचन महत्वपूर्ण शास्त्रीय नृत्य महोत्सवों में शामिल. हाल ही में
नाट्यशास्त्र के जनक भरत मुनि की अष्ट नाटिकाओं पर आधारित नृत्य नाटिका का पद्म पुरस्कारों से सम्मानित आठ भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगनाओं द्वारा नयी दिल्ली में मंचन. बाल कहानी संग्रह शीघ्र प्रकाश्य. पहले भोजपुरी अवधी लोक संगीत अल्बम का २०१७ में लोकार्पण. यात्रायें और ग्रामीण इलाकों में संगीत प्रस्तुतियां पसंदीदा शगल. अभिनय और संगीत में सक्रिय भागीदारी. आध्यात्म, अंतरिक्ष विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में गहरी रूचि.