घेराव - 3 - अंतिम भाग PANKAJ SUBEER द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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घेराव - 3 - अंतिम भाग

घेराव

(कहानी पंकज सुबीर)

(3)

‘तीन चार हज़ार तो होने ही चाहिए। हमने इसको राजनैतिक रूप नहीं दिया है, हर सच्चे हिंदू को बुलाया है जिसे भी लगता है कि मुसलमानों के इशारे पर एक तेरह साल के मासूम हिंदू बच्चे के खिलाफ प्रकरण दर्ज करना हमारी अस्मिता पर प्रहार है वह हमारे साथ साथ आए हमने एसा निवेदन किया है।’ उस व्यक्ति का चेहरा कुछ तन गया।

‘लड़के की गिरफ़्तारी हो गई ?’ समीर ने प्रश्न किया।

‘एसे कैसे हो जएगी, आग नहीं लगा देंगे थाने को’ उस व्यक्ति का चेहरा पूर्णतः भगवा हो चुका था।

‘आप नहीं आ रहे कवरेज करने?’ उस व्यक्ति ने समीर से पूछा।

‘बस आता हूँ आप चलिए?’ समीर ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया।

उस व्यक्ति के जाते ही समीर भी उठकर जूते के तस्मे बांधने लगा ‘जाना तो होगा ही, पता नहीं कब क्या हो जाए’। बड़ा बाज़ार का माहौल बड़ा उत्तेजना पूर्ण था हज़ारों लोग थे जिनमें से अधिकांश के गले में केसरिया चिंदियाँ वीरता के प्रतीक के रूप मे डली हुई थीं। सबके चेहरे तने हुए थे। कुछ नौजवान चिंदियाँ नारेबाज़ी भी कर रहीं थीं।

‘समीर भय्या सुना है वो लोग भी जमा हो रहे हैं उधर सराय में। ’ एक नौजवान चिंदी ने उसके पास आकर पूछा।

‘कौन लोग ?’ समीर ने जानते हुए भी कुछ अनजान बनते हुए कहा।

‘वही साले क..... अभी भी छाती ठंडी नहीं हुई उनकी, तेरह साल के लड़के को फंसवाने के बाद भी।’ लड़के की सांसों के साथ समीर को एक जानी पहचानी सी गंध आई, उसने मुस्कुराकर लड़के का कंधा थपथपाया और बढ़ गया।

‘देखिए निर्णय ले लिया गया है, हम लोग अपनी पूरी ताकत के साथ प्रदर्शन करेंगे, तब तक कलेक्टोरेट के दरवाज़े से नही हटेगें जब तक जिला प्रशासन स्वयं हमें ये लिखित आश्वासन नहीं देता है कि सनी के ख़िलाफ दर्ज प्रकरण वापस ले लिया जाएगा। आप लोग याद रखें हमें कल की घटना का उसी शैली में उत्तर देना है। यदि वो लोग दबाव डालकर सनी के ख़िलाफ प्रकरण दर्ज करवा सकते हैं तो हमें भी दबाव डालना आता है। ये किसी एक बच्चे की बात नहीं है ये धर्म की बात है, आज उन लोगों ने दबाव डालकर एक बात मनवाई है कल कुछ और भी कर सकते हैं, अच्छा होगा अभी इसी समय उन्हें उन्हीं की शैली में जवाब दे दिया जाए’। दैनिक समाचार पत्र के संपादक एक मकान के बाहर बने ऊँचे चबूतरे पर खड़े होकर भगवी भीड़ को संबोधित कर रहे थे। समीर वहीं पास खड़े स्कूटर पर बैठकर अपनी नोटबुक मे नोट करने लगा।

‘नमस्ते भाई साहब’ स्वर सुनकर समीर ने सर उठाया तो देखा सनी का चाचा सुनील खड़ा है। सुनील भी पत्रकार है राजधानी से प्रकाशित एक नामालूम से समाचार पत्र की पच्चीस प्रतियां शहर में मुफ़्त बंटवाता है, और जेब से उन प्रतियों का पैसा भर देता है। एवज़ में उसको पत्रकार होने का कार्ड मिला हुआ है।

‘और सुनील क्या हाल है’ समीर ने पूछा।

‘बस भाई साहब मैं तो यहां आना ही नहीं चाहता था पर पत्रकार होने के कारण आ गया।’ सुनील ने उत्तर दिया।

‘यानि तुम यहां सनी के चाचा की हैसियत से नहीं आए हो’ समीर ने मुस्कुराते हुए कहा।

सुनील कुछ उत्तर देता इससे पहले ही एक भगवा लड़के ने आकर कहा ‘सुनील भय्या बैनर वाला बिना पैसे के बैनर नहीं दे रहा है’ सुनील ने जेब से उसे सौ रुपये का नोट निकाल कर दिया और वो चला गया।

‘क्या पूछ रहे थे आप भाई साहब’ सुनील ने कहा।

‘नहीं कुछ नहीं’ समीर ने हंसते हुए कहा।

‘थोड़ा देख लीजिएगा भाईसाहब ठीक ठाक कवरेज मिल जाए, चैनल वगैरह पर आता है तो प्रशसन पर दबाव पड़ता है।’ सुनील ने चापलूसी भरे स्वर में कहा।

‘तुम चिंता मत करो’ समीर ने उत्तर दिया।

जुलूस रवाना हो चुका था समीर ने सुनील को चलने का इशारा किया और खुद भी साथ चल दिया। समीर ने देखा रास्ते भर यही होता रहा कि कोई न कोई केसरिया चिंदी सुनील के पास आकर कुछ कहती और सुनील उसको जेब से निकाल कर कुछ रुपये दे देता। बड़े वीरता पूर्ण नारे लगाती हुई भगवी भीड़ कलेक्टोरेट की ओर बढ़ रही थी। सेलफ़ोन वायब्रेट हुआ तो समीर ने जेब से निकाला देखा, दिल्ली से चैनल के कार्यालय से फोन था। उसने अपनी रफ़्तार थोड़ी धीमी कर दी। ‘हाँ समीर क्या स्थिति है वहाँ’ लाइन पर अवधेश चतुर्वेदी थे।

‘अभी तक तो कुछ हुआ नहीं है अवधेश जी, लेकिन जिस तरह के नारे लग रहे हैं, उससे मैं आशान्वित हूं कि कुछ न कुछ तो होगा ही।’ समीर ने अपने स्वर के व्यंग्य को दबाते हुए कहा।

‘आशान्वित मतलब?’ उधर से अवधेश चतुर्वेदी का स्वर आया।

‘मतलब आशान्वित इस बात को लेकर हूं कि आपको कुछ न कुछ समाचार तो आज मिल ही जाएगा ’ समीर ने कहा।

‘ठीक है, मैं अभी चार बजे तक तो हूँ अगर कार्यालय का फ़ोन बिज़ी मिले तो तुरंत मेरे सेलफ़ोन पर काल करना, ऐसा न हो कि कुछ हो जाए और पहले दूसरे चैनल पर फ़्लेश हो जाए’ अवधेश चतुर्वेदी ने कहा।

‘ठीक है अवधेश जी’ समीर ने अपने अंदर उठ रहे भावों को दबाते हुए संक्षिप्त सा उत्तर दिया और फ़ोन काट दिया।

जुलूस कलेक्टोरेट पहुंच चुका था बड़ी उत्तेजक नारेबाज़ी चल रही थी। समीर ने देखा वंदना सक्सेना और अरविंद कुमार भारी पुलिस बल के साथ मेन गेट के अंदर हैं। गेट बाहर से बंद है और बाहर भी बड़ी संख्या में पुलिस है।

‘आपमें से चार पांच लोग चलकर मैडम से बात कर लीजिए’ डीएसपी ने भीड़ को हाथ से शांत रहने का इशारा करते हुए कहा।

‘क्यों? उन लोगों से बात करने तो मैडम जनाज़े तक चली गईं थीं, हममें क्या कांटे लगे हैं।’ एक भगवे नेता ने तल्ख़ स्वर में उत्तर दिया।

‘देखिए मैडम आप लोगों के लिए ही यहां आईं हैं, प्लीज़ चलकर अपनी बात रख दीजीए’ डीएसपी ने समझाइश के स्वर में लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।

‘ठीक है, चलिए कर लेते हैं बात’ कहते हुए कुछ लोग मेन गेट की ओर बढ़ गए। भीड़ ने गेट के चारों तरफ़ घेराबंदी कर रखी थी समीर ने भी गेट की ओर बढ़ने का प्रयास किया मगर फंस के रह गया। कुछ ही देर में बात के लिए गए लोग बड़बड़ाते हुए और हाथों को हिलाते हुए वापस आ गए।

‘भाइयों जिला प्रशासन ने सनी पर दर्ज प्रकरण वापस लेने से इनकार कर दिया है इसलिए मजबूरी में हमें अब घेराव और प्रदर्शन का रास्ता अपनाना पड़ेगा’ समीर को इतना तो सुनाई दिया। उसके बाद का स्वर नारेबाज़ी में गुम हो गया कुछ लोग दौड़कर कलेक्टोरेट के मेन गेट से झूम पड़े और उसे हिलाने लगे। जब पुलिस का लाठीचार्ज हुआ तब समीर हट कर कुछ दूर खड़ा हो गया। सेलफ़ोन से अवधेश चतुर्वेदी को घटना की जानकारी देने लगा। जानकारी देने के बाद उसने देखा कि भीड़ तितर बितर हो चुकी थी। सेलफ़ोन वायब्रेट हुआ तो समीर ने उसे अॅान किया फ़ोन समाचार प्रभाग से था। ‘समीर जी हम कॉल को न्यूज़ रूम में ट्रांस्फ़र कर रहे हैं, न्यूज रीडर अख़लाक़ हैं जो आपसे प्रश्न पूछेंगे’ और इसके बाद लाइन न्यूज़ रूम मे ट्रांस्फ़र हो गई। ‘हाँ समीर बताइये क्या स्थिति है वहँा’ अख़लाक़ का स्वर सुनाई दिया। ‘जी अख़लाक़ करीब दो हज़ार लोगों ने आज जुलूस निकाल कर प्रदर्शन किया था, यहां कलेक्टोरेट पर आकर उन्होंने नारेबाज़ी की। बाद में जब कलेक्टर से उनकी बातचीत में कलेक्टर ने सनी के ख़िलाफ़ प्रकरण वापस लेने से इंकार कर दिया, तो भीड़ ने कलेक्टोरेट का घेराव कर दिया, जिस पर पुलिस ने लाठी चार्ज कर भीड़ को तितर बितर कर दिया’ समीर ने उत्तर दिया।

‘अभी क्या स्थिति है वहाँ’ अख़लाक़ का स्वर आया।

‘जी अख़लाक़ अभी स्थिति शहर में तो तनावपूर्ण है, पर यहां कलेक्टोरेट पर लाठी चार्ज के बाद स्थिति नियंत्रण में है’ समीर ने उत्तर दिया।

‘समीर ये घेराव की स्थिति अचानक ही बन गई या पूर्व नियोजित थी।’ अख़लाक़ का स्वर आया।

‘अख़लाक़ यह सब पूर्व निर्धारित था कि यदि मांगें नहीं मानी जाती हैं तो फ़िर घेराव किया जाएगा’ समीर ने उत्तर दिया।

‘ठीक है समीर जी आप घटनाक्रम पर नज़र रखिए हम आपसे जानकारी लेते रहेंगे’ अख़लाक़ का स्वर आया और फ़ोन विच्छेद हो गया।

फ़ोन विच्छेद होने के कुछ ही देर में पुनः वायब्रेट हुआ अबकी बार डी एम वंदना सक्सेना लाइन पर थीं। ‘समीर जी आप ये झूठा समाचार क्यों दे रहे हैं ’ कुछ तल्ख़ी भरे स्वर में वंदना सक्सेना ने कहा।

‘कौन सा मैडम’ समीर ने उत्तर में प्रश्न किया।

‘यही कि कलेक्टोरेट का घेराव हुआ’ वंदना सक्सेना ने कहा।

‘इसमें झूठ क्या है?’ समीर ने पूछा।

‘तो क्या आप सच बोलेगें ’ वंदना सक्सेना ने व्यंग्य के स्वर में कहा।

‘जी मैं समझता हूँ कि मैं ऐसे ही पेशे में हूँ ’ समीर ने उत्तर दिया।

‘और ये दो हज़ार लोग कहां थे ?’ वंदना सक्सेना ने झुंझलाते हुए कहा।

‘भीड़ में थे मैडम और कहाँ थे’ समीर ने उत्तर दिया। समीर के उत्तर के साथ ही फ़ोन डिस्कनेक्ट हो गया।

घर पहुंच कर समीर ने टीवी चालू ही किया ही था कि सेलफ़ोन फिर थरथरा उठा ‘हलो समीर ये क्या कर रहे हो भई ?’ उधर से अवधेश चतुर्वेदी का झुंझलाया हुआ स्वर आया।

‘क्या हो गया अवधेश जी ’ समीर ने पूछा।

‘भई ये तुमने क्या बोल दिया फ़ोनो पर कि कलेक्टोरेट का घेराव हुआ है, तुम्हारी डी एम बोल रही हैं कि कुछ नहीं हुआ है ऐसा ’ अवधेश चतुर्वेदी ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।

‘वो तो ऐसा बोलेंगी ही’ समीर ने कुछ लापरवाही भरे स्वर में कहा।

‘घेराव का मतलब समझते हैं आप’ अवधेश चतुर्वेदी ने व्यंग्य के स्वर में कहा।

‘अवधेश जी घेराव तो हुआ था ......’ समीर ने बोलने का प्रयास किया मगर अवधेश चतुर्वेदी ने बीच में ही बात काटते हुए कहा ‘अब रहने दीजिए आप, हम आपके यहां की डी एम का फ़ोनो कर रहे हैं ताकि स्थिति स्पष्ट हो जाए।’ समीर ने मोबाइल ऑफ़ कर दिया।

सामने टीवी पर वंदना सक्सेना का फ़ोनो चल रहा था जो कह रहीं थीं की शहर में स्थिति बिल्कुल शांत है, कहीं कोई तनाव नहीं है। कलेक्टोरेट के घेराव जैसी कोई बात ही नहीं हुई है कुछ संगठनों ने आकर ज्ञापन दिया है, जिस पर हमें निर्णय लेना है। टीवी का स्विच ऑफ़ करके समीर खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया। सारी दुकानें बंद हैं, चारों तरफ सन्नाटा छाया है मानो डी एम वंदना सक्सेना द्वारा कु छ देर पूर्व फ़ोनो पर कही गई बात की पुष्टी कर रहा हो कि शहर पूरी तरह से शांत है। सच का सबसे विचित्र पहलू यही है कि जब वह बिल्कुल नग्न हो जाता है तो बहुत कुरूप लगता है। जब तक उस पर झूठ की छोटी मोटी चिंदियां यहां वहां लगीं हों तब तक सब उसे पसंद करते हैं, मगर यदि वे चिंदियां हट जाऐं तो फ़िर पसंद करने वाले लोग ही बवाल मचा देते हैं। काफी देर तक समीर वहीं खड़ा रहा और शांति की दहशत को महसूस करता रहा। चारों तरफ़ दिन दहाड़े ही शांति फ़ैल जाए तो वह शांति भी अजीब सी दहशत भर देती है मन में। वापस लौट कर टीवी चालू किया तो देखा कि इस बार एस पी अरविंद कुमार का फ़ोनो चल रहा है जोकि बार बार एक ही बात दोहरा रहे हैं कि शहर शांत है कहीं तनाव नही है। कलेक्टोरेट पर कोई प्रदर्शन या घेराव नहीं हुआ ना ही कोई बल प्रयोग हुआ है।

समीर को लगा कि उसे चारों तरफ़ से एक भीड़ घेरती जा रही है भीड़ का कुछ हिस्सा भगवा है तो कुछ हरा है। एक तरफ से आ रही पूरी भीड़ खाकी रंग की है। ये भीड़ उसका घेराव करती जा रही है। सब लोग अपने अपने रंग के हिसाब से नारे लगा रहे हैं। सबकी मुट्ठियां तनी हुई हैं और चेहरे भिंचे हुए है। समीर ने बंद पड़े सेलफ़ोन को चालू कर के टेबल पर रख दिया और प्रतीक्षा करने लगा चैनल के हेड ऑफ़िस से आने वाले फ़ोन की ‘मिस्टर समीर यू आर फ़ायर्ड’। घेराव हो चुका था। और शहर अभी भी शांत था।

-:(समाप्त):-