घेराव - 2 PANKAJ SUBEER द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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घेराव - 2

घेराव

(कहानी पंकज सुबीर)

(2)

होने को तो पुलिस को यही लग रहा था कि सब कुछ उसके सोचे अनुसार ही हो रहा है लेकिन कहते हैं ना कि भीड़ और भेड़ का जिसने भरोसा किया उससे बड़ा बेवकूफ़ कोई नहीं। युवा डीएसपी भी यहीं पर मात खा गया। जनाज़े की नमाज़ के बाद जनाज़ा मस्ज़िद से आगे बढ़ा तो भीड़ के सुर बिल्कुल बदल चुके थे। जिस समय डीएसपी एस पी को वायरलेस पर सूचित कर रहा था कि सर यहां सब ठीक है, ठीक उसी समय जनाज़ा शहर के मुख्य चौराहे पर रखा भी जा चुका था, और बाक़ायदा भीड़ ने चक्काजाम भी शुरू कर दिया था।

चौराहा ठीक उस स्थान पर था जहां से दोनों मोहल्ले अलग होते हैं, अर्थात मरने वालों का मोहल्ला और मारने वालों का मोहल्ला। नारेबाज़ी, शोरशराबे के बीच आनन फ़ानन में दुकानों के शटर गिरे और अफ़रा तफ़री का माहौल मच गया। घरों मे दुबके लोग सांस थामे अब कुछ हुआ, तब कुछ हुआ की प्रतीक्षा करने लगे। चैनलों के संवाददाता सेलफोनों पर चीखने लगे, ‘हां प्रियदर्शन यहां पर जैसी कि आशंका की जा रही थी वैसा ही हुआ है, जनाज़े को चौराहे पर रखकर चक्काजाम कर दिया गया है, सारी दुकानें बंद हो गईं हैं’। ‘जी अख़लाक भारी तनाव है,पूरे बाज़ार की दुकानें बंद हो चुकीं हैं ’ और इन्हीं सब के बीच समीर भी था, पन्द्रह दिन पहले ही दिल्ली से स्ट्रिंगर नियुक्त हुआ था, उसके लिए ये बड़ी घटना थी।

एस पी ने स्वयं पहुंच कर चक्का जाम कर रहे लोगों को समझाने का प्रयास किया मगर भीड़ डी एम से बात करना मांग रही थी। उन्हें सनी की गिरफ़्तारी के साथ साथ पांच, पांच लाख का मुआवज़ा भी चाहिए था। एस पी ने डी एम वंदना सक्सेना से बात की, थोड़े नानुकुर के बाद वे घटनास्थल पर आ गईं। डी एम को देख भीड़ पूरे जोश मे आ गर्ई। मांगों के नारे लगने लगे। डी एम ने मुआवज़े को लेकर मजबूरी बताई कि डी एम के पावर में जितना होता है मैं उससे ज़्यादा नहीं दे सकती। भीड़ पुनः सनी पर प्रकरण दर्ज करने की मांग पर अड़ गई कि जब तक सनी पर तीन सौ दो का प्रकरण दर्ज नहीं होगा, तब तक जनाज़ों को नही उठाया जाएगा।

‘नहीं सर ऐसी कोई विशेष गंभीर बात नहीं है’ एस पी अरविंद कुमार ने सेलफ़ोन पर आइ जी को उत्तर दिया।

‘क्या गंभीर नहीं है, अभी आपके यहां के पत्रकार का फ़ोनो चैनल पर हो रहा था, वो बता रहा था कि जबरदस्त तनाव है कुछ भी हो सकता है’ उधर से आई जी की फटकार आई।

‘जल्दी स्थिति ठीक करिए और मुझे बताइये’ कहते हुए आइ जी ने फ़ोन काट दिया।

एस पी ने पास से गुज़रते समीर को रोक कर माथे का पसीना पोंछते हुए कहा ‘समीर जी प्लीज़ थोड़ा लो प्रोफाइल रखिए मामले को, आखिर को आप भी तो शहर का ही भला चाहते हैं’।

‘भला तो आप कर सकते हैं, इस चक्काजाम को जल्दी टाल कर, नहीं तो अभी कुछ का कुछ हो जाएगा’ समीर ने उत्तर दिया।

‘वो तो हम कर ही रहे हैं, पर आप देख तो रहे हैं कि वो लोग डी एम की भी नही सुन रहे हैं।’ एस पी ने समझाइश के स्वर में कहा।

‘अरविंद जी आप पत्रकारों को मैनेज करने के बजाय जाकर भीड़ को मैनेज कीजिए, वह ज़्यादा अच्छा होगा’ समीर ने उत्तर दिया। अरविंद कुमार ने गहरी नज़रों से समीर की ओर देखा, समीर आगे बढ़ गया।

‘एस पी साहब आप इन लोगों के सामने सनी पर प्रकरण दर्ज करने की कार्यवाही कर दें, ये लोग जनाज़ा उठा लेगें’ डी एम वंदना सक्सेना ने अरविंद कुमार से कहा, जो कुछ बुज़ुर्ग नज़र आने वाले व्यक्तियों के साथ घटना स्थल से आई थीं।

‘जी मैडम’ अरविंद कुमार ने उत्तर दिया।

‘चलिए आप लोग भी सिटी कोतवाली तक चलें आप लोगों के सामने ही सारी कार्यवाही हो जाएगी’ वंदना सक्सेना ने साथ आए लोगों की तरफ़ देखते हुए कुछ नरम स्वर में कहा।

‘बहुत अच्छा मैडम’ उनमें से एक ने उत्तर दिया। सिटी कोतवाली में अरविंद कुमार ने स्वयं अपने हाथ से सनी पर प्रकरण दर्ज किया। वंदना सक्सेना ने उन लोगों को रोज़नामचा दिखाया, मुतमईन होकर वे लोग वापस हो गए। कुछ ही देर में चक्काजाम समाप्त हो गया। और जनाज़े बढ़ गए।

‘जी यहां स्थिति अब ठीक है, एस पी अरविंद कुमार ने स्वयं उस तेरह वर्षीय बालक सनी के खिलाफ हत्या का प्रकरण दर्ज कर लिया है’ समीर अपने सेलफ़ोन पर फ़ोनो कर रहा था। फ़ोनो समाप्त करके पलटा तो अरविंद कुमार ने व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ कहा ‘पत्रकार महोदय अगर आप तेरह वर्षीय बालक नहीं कहते तो शायद घटना सनसनीख़ेज़ नहीं हो पाती है ना?’।

‘इसमे सनसनीख़ेज़ की क्या बात है, ये तो सच है’ समीर ने भी मुस्कुराकर उत्तर दिया।

‘वही तो मैं कह रहा हूँ कि सच भी आपको वही अच्छा लगता है जो सनसनीख़ेज़ हो।’ अरविंद कुमार ने व्यंग्य के साथ कहा।

‘क्या करें साहब ये तो आपकी और हमारी मजबूरी ही है कि हम दोनों चाह कर भी अच्छाइयों की दुनिया में नहीं रह सकते, हमारा सामना उसी सच से होता है जो बुरा है’ समीर ने उत्तर दिया।

‘चलिए अब फ़िज़ूल बहस करने से कुछ फ़ायदा नहीं है मामला ख़त्म हो गया, कोई अप्रिय घटना नहीं घटी यही बड़ी बात है’ वंदना सक्सेना ने दोनों के बीच में दख़ल देते हुए कहा।

‘क्या आप ऐसा सोचती हैं कि मामला खत्म हो गया है?’ समीर ने कुछ गंभीर स्वर में वंदना श्रीवास्तव की ओर देखते हुए कहा।

‘क्या आप ऐसा नहीं समझते?’ वंदना सक्सेना ने भृकुटियों को कुछ तिरछा करते हुए कहा।

‘कोई भी समझदार व्यक्ति ऐसा नहीं सोच सकता, और विशेषकर वो जो इस शहर की फ़ितरत से वाक़िफ़ हो।’ समीर ने संतुलित स्वर में उत्तर दिया।

‘क्यों ?’ इस बार प्रश्न अरविंद कुमार ने किया।

‘वो इसलिए क्योंकि अभी आपने एक धर्म को संतुष्ट करके घटना को टाल दिया है, अभी दूसरा धर्म तो बाक़ी है, जिसका वो तेरह साल का लड़का है जिसके ख़िलाफ़ आप ने मुकदमा दर्ज कर लिया है’ समीर ने उत्तर दिया।

‘उससे क्या होता है’ वंदना सक्सेना ने प्रश्न किया।

‘उससे धर्म ख़तरे में पड़ जाता है’ समीर ने व्यंग्य के लहज़े में उत्तर दिया।

‘मतलब’ वंदना सक्सेना ने पुनः प्रश्न किया।

‘मतलब ये कि लड़के के पिता को केवल यही तो कहना है कि ये प्रकरण मेरे बेटे के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि हिंदू धर्म के ख़िलाफ़ दर्ज किया गया है। धर्म ख़तरे में है। और हमारे देश में भीड़ को इकट्ठा करने के लिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि धर्म को ख़तरे में डाल दो।’ समीर ने कुछ लापरवाही के स्वर में कहा।

‘ नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा, एस पी साहब आप स्थिति पर पूरी निगरानी रखिएगा कहीं कोई अफवाहें फ़ैलाने की कोशिश ना कर पाए। और समीर जी आप भी थोड़ा देखते रहिएगा, आप लोगों के हाथों में तो शहर की नब्ज़ होती है।’ कहते हुए वंदना सक्सेना ने ड्राइवर को इशारा कर दिया। ड्रायवर ने कार लाकर लगाई और वंदना सक्सेना उसमें बैठकर रवाना हो गईं।

‘अच्छा सर मैं भी चलता हूँ’ समीर ने अरविंद कुमार की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा, अरविंद कुमार ने गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए अपना दूसरा हाथ भी हाथ के ऊपर रखते हुए कहा ‘अच्छा समीर जी, बस थोड़ा हम लोगों का ध्यान रख लीजिएगा।’

अगले दिन जब सुबह लोग सोकर उठे तो शहर भर में धर्म के ख़तरे मे होने संबंधी परचे वितरित हो चुके थे। कम्प्यूटर पर कम्पोज़ करके उसकी फ़ोटोकापी करवा के बांटे गए इन परचों मे कुल मिलाकर एक ही बात थी कि धर्म ख़तरे में है, और एकजुटता की आवश्यकता है। अब इन परचों के बारे में भी कई मत हैं कुछ लोग कहते हैं कि ये परचे लड़के के पिता ने ही अपने शोरूम के कम्प्यूटर पर निकलवा कर वितरित करवाए थे। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि शहर से निकलने वाले हिंदूवादी दैनिक समाचार पत्र के मालिक के साथ लड़के के पिता की रात को एक गुप्त बैठक हुई थी और अल सुबह समाचार पत्र बांटने वाले हाकरों ने ही इन पर्चों का वितरण किया था।

वज़्ह चाहे जो भी रही हो लेकिन आसमान से सुबह का भगवा सिंदूरी रंग हटा और उधर शहर भगवा हो गया। सारे शहर में गले में केसरिया चिंदी डाले हुए लोग नज़र आने लगे। जैसे जैसे दिन चढ़ने लगा केसरिया चिंदियों की संख्या भी बढ़ने और चढ़ने लगी। रात को वितरित किये गए परचों में अपनी एकजुटता दिखाने की बात कही गई थी। और एकजुटता के लिए बजरंग दल के वीर पुरुष हरकत में आ चुके थे।

‘नहीं समीर सांप्रदायिक संगठनों का कोई समाचार हमारे चैनल से प्रसारित नहीं होता’ समाचार संपादक ने फ़ोन पर उत्तर दिया।

‘लेकिन अवधेश जी यहां पर भारी तनाव है, और ये हिंदुवादी संगठन उस लड़के के पिता के इशारे पर सारे शहर को आग मे झोंकने को तत्पर हैं।’ समीर ने आपत्ती दर्ज करते हुए कहा।

‘चाहे जो हो, हमारा नियम है कि हम सांप्रदायिक संगठनों का कोई समाचार प्रसारित नहीं करते, ना अच्छा ना बुरा ’ समाचार संपादक अवधेश चतुर्वेदी ने दो टूक उत्तर दिया।

‘तो फ़िर मैं क्या करूँ’ समीर ने प्रश्न किया।

‘आप स्थिति पर नज़र रखिए, कुछ भी होता है तो हमे तुरंत बताइयेगा’ अवधेश चतुर्वेदी ने उत्तर दिया।

‘ठीक है अवधेश जी मैं कुछ होने की प्रतीक्षा करता हूँ’ समीर ने व्यंग्यात्मक लहज़े में कहा और फ़ोन काट दिया।

घर की खिड़की से समीर बाहर की ओर देखने लगा जहां भगवा रंग गाढ़ा होता जा रहा था। कहीं कहीं से नारों के स्वर भी सुनाई दे रहे थे। ‘चाचा आप जा नहीं रहे वहां’ बारह साल के भतीजे ने आकर पूछा। ‘नहीं बेटा अभी नहीं, जब दंगा होगा तब जाऊँ गा’ समीर ने उसी प्रकार खिड़की से बाहर देखते हुए कहा। भतीजा चुपचाप वापस लौट गया।

खिड़की के पास से निकलते एक परिचित बजरंगी को देख कर समीर ने पूछा ‘क्यों भाई क्या चल रहा है ?’।

‘बस अभी तो बड़ा बाज़ार में दोपहर बारह बजे सबको एकत्र किया है फ़िर वहीं निर्णय होगा कि क्या करना है।’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया।

‘फ़िर भी क्या योजना है’ समीर ने टटोला।

‘अभी कुछ तय तो नहीं है फ़िर भी बड़े बाज़ार से कलेक्टोरेट तक रैली तो निकलेगी। प्रदर्शन घेराव का तय होना अभी बाक़ी है।’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया

‘कितने लोग हो जाऐंगे रैली में’ समीर ने पुनः उसे टटोला।

क्रमश...