आँसू तेरे प्रेम के (लघु कथा) हेतराम भार्गव हिन्दी जुड़वाँ द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आँसू तेरे प्रेम के (लघु कथा)

आंसू तेरे प्रेम के
एक स्मृति जिसे मन कभी भूला ना सका। तीस बर्षों बाद साहित्य की पत्रिका पढते हुए अनायास एक अभिनन्दन पत्र पर नजरें पड़ी। पढ़ते पढ़ते रोम रोम रोने लग गया। बेटे ने पूछा क्या हुआ माँ!, क्या कहती उसे, जो कभी खुद को नहीं कह पाई। दूबारा पूछने पर इतना कहा, ये बहुत अच्छे कवि थे, मेरी इच्छा थी मैं ऐसे विद्वान से मिलूँ, पर अब वो नहीं रहे। कहते हुए आंसू टपक पड़े। ममता के अपार स्नेह में पले मेरे पुत्र ने विश्वास से कहा, मांँ! आप इनसे मिल नहीं पाई दुख की बात है परन्तु इनके बच्चों से मिल कर संवेदना व्यक्त कर सकती हो। मुझे बहुत अच्छा लगा। अगली सुबह हम रवाना हो चुके थे। मेरे मन में वो सभी स्मृतियाँ अवतरित हो रही थी... वो कहता था...

“ कवि हूँ, तुम्हे लिखता हूँ... , तुम्हारा लिखता हूँ... , तुम्हारे लिए लिखता हूँ!” बहुत प्यार करता था मुझे, कहता था...

" आज तूं कविता ,कल की तूं किताब है।
हर पन्ने पर लिखे हुए, प्रिय तेरे ख्वाब हैं।।"

शाम को उनके घर पहुंचे। मुझे जब पता चला कि उनकी पत्नी वर्षों पहले नहीं रही, बहुत दुख हुआ। वो मेरी सखी थी। मेरा मन हताश था, । मैं निवेदित पूछ रही थी, उनके बच्चे बताते जा रहे थे। मैंने कविताओं की बात की तो उनके बेटे ने कहा कि पिताश्री "कल्पना" को सम्बोधित कविताएँ लिखा करते थे उनके लिखे 'मेरी कल्पना' पुस्तक के दस भाग है। पता नहीं वो कौन महान नारी थी जिसे ईश्वर के समान सदैव साक्षी मानकर लिखते रहे। मैं मौन थी।क्योंकि वो कल्पना मैं थी। मैंने उन पुस्तकों को उनसे ले लिया। वापस घर लौटते समय पढती जा रही थी और रोते जा रही। उनकी एक कविता पर नजरें पड़ी जिसमें लिखा था....

"जितनी तेरी मर्यादाएं है उतनी मेरी सीमाएं है।
ये संयोग नियति का प्रिय, मिलती हाथों की रेखाएं हैं।।
एक जैसी विडम्बना में, दिल भी धड़कता जाता है।
ये कैसा संयोग है प्रिय, जन्म दिन भी एक दिन आता है।।"

ये सच था हमारा जन्म दिन एक ही आता था। हम साथ साथ जन्मोत्सव मनाते थे। आज मेरे आंसू उसके प्रेम की वेदना में बहते हुए कह रहे थे कि उसने मेरे बारे में किसी को नहीं कहा और एक मैं थी जो उसे कोसती रही। मैं अपने आप को उसकी दोषी मान रही थी क्योंकि वो मुझे कभी रब, कभी भगवान, कभी खुदा कहता था। पन्नों को पलटे पलते वो पंक्तियाँ सामने आ ही गई। मैं फिर पढ कर रो उठी।

"कुछ भी मांग सकता है भक्त अपने भगवान से।
उसकी आस्था होती है बस उसके नाम से।।"

उसका अटूट प्रेम में, मैं टूट रही थी तभी कल्पना के नाम क्षमा शीर्षक को पढने लगी उसके लिखा था कि...
"हे शक्ति तुम धन्य हो, गलत मैं ही हूँ क्योंकि तुम और मैं जहाँ खड़े हैं वहां से पीछे लौट पाना असम्भव है। अपना अपना घर परिवार है बच्चे है। तुम सीता के समान पवित्र हो। कभी गलत मत समझना। तेरा और मेरा प्रेम शाश्वत है जरुरी नहीं कि पति पत्नी के रिश्ते ही प्रेम की पहचान हो। अच्छे मित्र भी बहुत अच्छे प्रेम के उदहारण हो सकते हैं। मुझे याद है तुमने मुझे कहा था...

" चंद फासला जरुर रखिए रिश्तों के दरमियान, नहीं भूलती दो चीजें एक घाव और दूसरा लगाव। "

मैं फासला रखना सीख गया हूँ। हे मेरी कल्पने, तुम्हे आखरी सांस भी बुलाएगी... मुझे क्षमा कर देना।
मैनें जब ये पढा तो मेरा मन गर्व से भर उठा उसने मुझे कभी गलत नहीं कहा और ना कभी छुआ। मैं भी इस अनन्य प्रेम को प्रणाम करती हूँ। सच में, मैं भी उसे कभी भूला नहीं पाई।