मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन
कहानी 13
लेखिका शिल्पा शर्मा
ज़िंदगी की ताल पे राग रस्साकशी
‘‘कहा था ना कि मत जाओ... अब... अब मैं इतने लंबे समय तक अकेली रहूंगी उनके साथ? और तुम... और पापा... सब अकेले-अकेले... 21 दिनों तक? तुम मेरी बात सुनते ही नहीं कभी,’’ दूसरी मंज़िल की बालकनी में खड़े होकर अपना मोबाइल कान में लगाए इतनी ज़ोर-ज़ोर से चीखते हुए बात कर रही थी मीता कि नीचे खड़े वॉचमैन की नज़र भी ऊपर की ओर उठ गई कि कहीं उसे पुकारा तो नहीं जा रहा है।
दूसरी ओर से राघव का शांत स्वर आया,‘‘थोड़ा धीरे बात करो। मम्मा घर पर होंगी।’’
‘‘नहीं वो वॉक पर गई हैं,’’ यह कहते-कहते मीता की नज़र उसकी ओर देखते वॉचमैन पर पड़ी तो खिसियानी मुस्कुराहट फेंकती हुई वो अपने कमरे की ओर मुड़ गई।
‘‘वॉक पर ऐसे समय में क्यों जाने दिया उन्हें? प्रधानमंत्री तक अनुरोध कर रहे हैं घर में रहो... और तुमने उन्हें...’’ राघव की आवाज़ में राग तुर्शी आने से पहले ही मीता ने बात काट दी।
‘‘वो सुनती हैं मेरी...? किसकी सुनती हैं वो घर में?’’
‘‘अच्छा... अच्छा... पर न्यूज़ तो देखने कहो उन्हें। वो ख़ुद ही नहीं जाएंगी।’’
‘‘बच्ची हैं क्या, जो मुझे कहना पड़ेगा? मेरा पति तक तो मेरा कहना सुनता नहीं और सास सुनेंगी? कहा नहीं था तुमसे कि मत जाओ।’’
‘‘अरे, नौकरी है मेरी मीता। यदि लैपटॉप अपग्रेड नहीं कराता तो वर्क फ्रॉम होम कर पाता?’’
‘‘जैसे अब कर पाओगे वर्क फ्रॉम होम? लटक गए न चंडीगढ़ में? रहो अब ऑफ़िस के गेस्ट हाउस में। और पापा... उनसे भी कहा था अभी मत जाइए भोपाल। पेंशन के लिए लाइफ़ सर्टिफ़िकेट बाद में दे दीजिएगा। क्या हो जाता अगर दो महीने पेंशन नहीं भी आती? पर मेरी सुनता कौन है? अब तुम्हारे और पापा के अलग-अलग शहरों में होने की चिंता के साथ-साथ तुम्हारी माताजी को भी संभालना... फंसती तो हर जगह मैं ही हूं ना! उस पर से वो मुझसे सीधे मुंह बात तक नहीं करती हैं।’’
‘‘देखो मीता, मेरी और पापा की टेंशन क्यों है तुम्हें? क्या हम बच्चे हैं? सिचुएशन कुछ ऐसी है कि न मैं आ सकता हूं और न पापा। रहना तो तुम्हें है ही उनके साथ। चाहे हंस के रहो या नाराज़ हो के। फिर 21 दिन ही तो हैं, बीत जाएंगे।’’
‘‘बच्चे नहीं हो तो क्या हो तुम और पापा? खाना बनना आता है तुम दोनों को? पापा के पास तो चलो सीमा आकर बना ही देगी खाना... तुम्हारा क्या होगा? और तुम्हारी मां के साथ रहना मज़ाक है क्या? ख़ैर... छोड़ो... नीचे दिखाई दे रही हैं। लौट रही हैं तुम्हारी मां। मैं संभाल लूंगी यहां, पर तुम अपना ख़्याल रखना। खानेपीने की चीज़े हैं वहां?’’
‘‘अटेंडेंट कह तो रहा था कि कल ही एक महीने का राशन ला कर रखा है उसने। पापा के लिए सीमा बनाएगी खाना तो मेरे लिए अटेंडेंट बना देगा। तुम्हें ज़रूर बनाना होगा खाना। अपने और मां के लिए, क्योंकि हमारी सोसाइटी के सेक्रेटरी मिस्टर शर्मा बता रहे थे मेड्स का आना बंद करवा दिया है उन्होंने।’’
‘‘हां, कम्मो आएगी नहीं और तुम्हें तो पता है तुम्हारी मां की और मेरी फ़ूड चॉइस बहुत ही अलग है। ख़ैर... अब देखेंगे जो होगा। निपट लूंगी मैं। घंटी बजाई है उन्होंने मैं दरवाज़ा खोलती हूं। बाद में बात करूंगी तुमसे। बाय’’
मीता 32 साल की कामकाजी महिला है। क़द पांच फ़ीट पांच इंच और शरीर हल्का भरा हुआ। एक कंपनी में क्लीनिकल राइटर है। छह बरस पहले राघव से उसने लव मैरिज की है। यूं उसकी शादी ख़ुशनुमा चल रही है। राघव और पापा से कोई शिकायत नहीं है उसे। मां... सासू मां... वो भी अच्छी ही हैं, पर केवल तब, जब भोपाल में रह रही हों। साथ रहने पर मीता और मिसेज़ मेहरा यानी सासू मां के बीच नोकझोंक होती ही रहती है। दोनों की सोच किसी एक बिंदु पर थोड़ी सी भी मेल नहीं खाती इसलिए अक्सर ‘अबोला’ हो जाता है उनके बीच तो कभी इतना ज़्यादा ‘बोला’ हो जाता है कि फिर कई-कई दिनों तक ‘अबोला’ ही चलता है।
मिसेज़ मेघना मेहरा... सासू मां। अपने समय की कामकाजी महिला। रिटायर्ड टीचर हैं। क़द पांच फ़ीट दो इंच, शरीर इकहरा। राघव इकलौता बेटा है उनका। शादी के क्या-क्या अरमान नहीं सजाए थे उन्होंने, लेकिन बेटे ने लव मैरिज की ठान ली। वैसे लव मैरिज के अगेन्स्ट नहीं हैं वो। बेटे की पसंद को अपनी पसंद भी बिना किसी शिकायत के बना लिया था उन्होंने, लेकिन उन्हें कहां पता था कि बेटे-बहू के बीच किस किस तरह की प्लानिंग है।
मीता को मिसेज़ मेहरा की जिस एक बात से सबसे ज़्यादा परेशानी है, वो है- लेकिन। ये ‘लेकिन’ शब्द उनके साथ हमेशा रहता है और इसकी वजह से ‘मेहराज़’ का जीवन अनोखे उतार-चढ़ावों से गुज़रता रहता है। ‘लेकिन...’ मिसेज़ मेहरा का डिस्क्रिप्शन देने की ज़हमत मैं क्यों उठाऊं? डोर बेल बजा दी है उन्होंने। मीता दरवाज़ा खोल ही रही है। आप ख़ुद ही मिल लीजिए उनसे।
‘‘सुना तुमने मीता। आज से 21 दिन का लॉक डाउन कर दिया? मैं तो अपने बाजू की बिल्डिंग की 301 वाली बुढ़िया के साथ घूम रही थी। उसकी दोस्त 501 वाली थोड़ा देर से उतरी। उसने बताया हमें। सच है क्या?’’ दरवाज़ा खुलते ही मिसेज़ मेहरा ने सवालों की बौछार कर दी और मीता को जवाब देने का कोई मौक़ा दिए बिना आगे कहा,‘‘मुंआ रात को आठ बजे आ कर न जाने कैसी-कैसी घोषणाएं करता रहता है। अब राघव और पापा आ पाएंगे क्या? मैंने तो पहले ही मना किया था उन्हें कि मत जाओ, ‘लेकिन’ मेरी सुनता कौन है इस घर में?’’
मीता दो पल को ठिठकी सी देखती रही उन्हें। सोच रही थी कि किस सवाल का पहले जवाब दे? पर उसे जो खटक गया था वो था- 301 वाली बुढ़िया। मां को रिटायर हुए आठ साल हो गए हैं और वो 301 वाली तो बेचारी पिछले साल ही रिटायर हुई है, फिर भी बुढ़िया? ख़ैर वो कुछ जवाब देती इसके पहले ही सासू मां फिर बोल पड़ीं...
‘‘अरे तुझी से पूछ रही हूं। कुछ जवाब तो दे?’’
‘‘कोरोना को देखते हुए लॉकडाउन तो ज़रूरी है ना मां। इसी की घोषणा की है प्रधानमंत्री ने। राघव और पापा तो आ नहीं पाएंगे अब। कोई साधन ही कहां है? मना तो मैंने भी किया था राघव को जाने से... पर अब 21 दिन का लॉकडाउन है तो है... क्या किया जाए?’’
‘‘नीचे सोसाइटी नोटिस बोर्ड पर लिखा है कि मॉर्निंग और ईवनिंग वॉक पर भी नहीं जा सकते। सुबह तो चलो ठीक है, मेरी नींद नहीं खुलती, लेकिन शाम को वॉक करना क्यों बंद कर रखा है? लॉकडाउन में क्या सीनियर सिटिज़न्स के खाना पचाने से भी आपत्ति है शर्मा को? नीचे मिल गया था शर्मा। बोला- आंटी, नोटिस पढ़ लीजिएगा और कल से वॉक पर मत जाइए। आंटी तो ऐसे बोलता है जैसे राघव की उम्र का हो। बच्चे उसके ग्यारहवीं, बारहवीं में हैं, ‘लेकिन‘ ख़ुद को पता नहीं कितना छोटा समझता है।’’
मन तो हुआ मीता का कि कह दे कि क्या लॉकडाउन में भी आपके हिसाब से वॉक की प्लानिंग की जानी चाहिए? और क्या हुआ जो आंटी कह दिया उसने? आप भी तो 301 वाली को बुढ़िया कह रही थीं... पर कहा नहीं उसने, क्योंकि शर्मा को वो क़तई नापसंद करती है। कई बार उसने महसूस किया है कि शर्मा उसे लंबे समय तक अपलक निहारता रहता है। मीता को बिल्कुल पसंद नहीं है उसका यूं देखना। पर वो सोसाइटी का सेक्रेटरी है तो कभी-कभी मिलना पड़ता है उससे। अच्छा ये है कि वो उनकी सोसाइटी के सी विंग में रहता है। वैसे... घूरकर अपलक देखने की बात को छोड़ दें तो सेक्रेटरी होने का काम बख़ूबी करता है। सभी तारीफ़ करते हैं उसकी।
‘‘अब मां अंदर रहना ही इस बीमारी को फैलने से बचा सकता है। और हमारा देश जहां पॉपुलेशन ज़्यादा है और हेल्थ से जुड़ी सुविधाएं बहुत कम हैं, वहां इससे कारगर और कोई उपाय नहीं हो सकता। कुछ दिन हमारे फ़्लोर के कॉरिडोर में ही घूम लीजिएगा। भोपाल में भी तो आप घर के लॉन में ही घूम लेती हैं ना कभी-कभी।’’
मिसेज़ मेहरा मन ही मन गुरगुराने लगीं। कहां भोपाल के हमारे घर का लॉन और कहां ये फ़्लैट्स के आगे पांच मीटर की जगह... ‘कॉरिडोर’ कह रही हैं ये जिसे। कोई कम्पैरिज़न है क्या दोनों का? ‘लेकिन’... और प्रत्यक्ष में गहरी सांस छोड़ते हुए बोलीं,‘‘हां, यही करना पड़ेगा अब तो। नहीं मामा से काना मामा अच्छा।’’ आख़िर वे हिंदी की टीचर रही थीं, उपमाएं देना, कहावतें कहना, दोहों में बातें कह जाने की कला में सिद्धहस्त ठहरीं।
‘‘वॉट?’’ मीता ने तपाक से पूछा। अब दिल्ली के अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ी मीता, उसे भला कहां याद हैं पांचवीं, छठीं कक्षा में पढ़ी हिंदी की ऐसी कहावतें?
‘‘कुछ नहीं। यही समझ लो कि इसके सिवा कोई चारा ही कहां है?’’
हमेशा मुझे बेवकूफ़ समझते हुए ही जवाब क्यों देती हैं... मन में झन्नाते हुए मीता ने अपने चेहरे पर प्लास्टिक की गुड़िया वाली नपी-तुली, जबरन ओढ़ी हुई मुस्कान चिपका ली।
‘‘चलिए खाना खा लें,’’ उसने बात बदली।
‘‘क्या बनाया है तुमने खाने में?’’
‘‘कम्मो ने सुबह जो सब्ज़ी बनाई थी वही है। परांठे सेंक लिए हैं बस।’’
पूछ तो ऐसे रही हैं, जैसे छप्पन पकवान बनाए हों। ये आजकल की लड़कियां, उफ़! और एक हमारा ज़माना था। नौकरी भी करते थे और सुबह-शाम ताज़ा खाना भी बनाते थे, ‘लेकिन’... यह सोचते हुए मिसेज़ मेहरा को एहसास हुआ कि भूख तो लग रही है उन्हें। तो वे सीधे टेबल पर आ बैठीं।
मीता ने खाना परोसा। दोनों खाने बैठ गए।
इक्कीस दिनों के लॉकडाउन की इस घोषणा के बारे में एक-दूसरे से बात करने के चक्कर में वो दोनों ये भूल ही गए थे कि राघव के पिता के भोपाल जाने से दो-तीन दिन पहले दोनों सास-बहू में कहासुनी हुई थी और वो दोनों एक-दूसरे से बातचीत भी नहीं कर रही थीं। बात कुछ ख़ास नहीं थी, पर ख़ास थी भी। दरअस्ल, मीता की शादी को छह साल होने आए थे और मेघना मेहरा हर सास की तरह घर में नए मेहमान की आस लिए बैठी थीं। जब भी वे भोपाल से नोएडा आतीं, किसी न किसी रूप में इस बात को लेकर मीता और राघव के पीछे पड़ी रहतीं। और इसी बात से मीता भड़क जाती। कहानी में ट्विस्ट ये था कि मीता ने राघव को शादी के लिए छह बार प्रपोज़ करने के बाद हां कहा था। और वो भी इस शर्त पर कि वो शादी के बाद मां नहीं बनना चाहेगी। और राघव और उसके घर वाले कभी उस पर इस बात का दबाव नहीं बनाएंगे। राघव ने मीता से वादा किया कि वह दबाव नहीं बनाएगा, पर अपने माता-पिता को इस बारे में उसने इशारों-इशारों में हिंट भी दे दिया था। पर यहां इतना बता देना काफ़ी होगा कि राघव का इशारा उसके माता-पिता को समझ नहीं आया था और जब समझ आया तो भी ये बात मेघना मेहरा के गले नहीं उतरी।
तो कहासुनी की वजह यही थी कि मेघना मेहरा ने राग वंश छेड़ दिया और मीता मेहरा ने राग बग़ावत। ऐसे मामलों में ये अच्छा था कि मिस्टर मेहरा सीनियर और मिस्टर मेहरा जूनियर यानी राघव केवल मूक दर्शक की भूमिका निभाया करते थे। न सीनियर मेहरा सीनियर मिसेज़ मेहरा से कुछ कहते, न जूनियर मेहरा जूनियर मिसेज़ मेहरा से। वो दोनों यूं बैठे रहते, जैसे मूक-बधिर हों। भइया, इस देश की सच्चाई यही है कि आधे से ज़्यादा परिवारों को पुरुषों का ये मूक-बधिर होना यानी राग मौन ही बांधे रखता है, वरना परिवार को टूटते देर कहां लगती है?
तो वर्तमान में लौटते हैं। खाना खाते-खाते मेघना मेहरा बोलीं,‘‘कल से कम्मो और मीना तो आएंगे नहीं। तो काम थोड़ा बांट लेते हैं हम दोनों। खाना मैं बना दिया करूंगी। बर्तन और झाड़ू-पोंछा तुम कर लेना। मशीन दो-तीन दिन में लगेगी तो कपड़े मैं ही धो लिया करूंगी।’’ यह कहते कहते उन्होंने सोचा कि यदि ये खाना बनाएगी तो हर दूसरे दिन पुलाव, पास्ता या कोई भी वन पॉट मील ही खिलाएगी, वो तो मैं खाने से रही।
मीता वही चिर-परिचित नक़ली मुस्कान लिए हुए बोली,‘‘मम्मी, एक समय खाना आप बनाइएगा और दूसरे समय मैं बना लूंगी। आइ विल प्रिफ़र ईवनिंग। और मीना नहीं है तो झाड़ू-पोछा हर दूसरे दिन ही लगा लेंगे।’’ मैं रोज़-रोज़ दाल-चावल, रोटी-सब्ज़ी जैसा खाना तो नहीं खा सकती मन ही मन मीता सोचती चली जा रही थी। ख़ैर... डिनर ख़त्म हुआ और किसी तरह 21 दिनों की पहली रात गुज़री।
दूसरे दिन अलसुबह (सच पूछिए तो अलसुबह नहीं सुबह के साढ़ आठ बजे) मीता का मोबाइल ज़ोर से घनघनाया। आंखें मलते हुए उसने देखा पापा यानी सीनियर मिस्टर मेहरा का फ़ोन था। उसने गला खंखरा और फ़ोन उठाया।
‘‘गुड मॉर्निंग पापा!’’
‘‘हां, मीता... कैसी हो बेटा? वो तुम्हारी मम्मी का फ़ोन लग नहीं रहा इसलिए सुबह-सुबह तुम्हें फ़ोन लगा दिया। रात देर तक काम कर रही थीं क्या?’’
‘‘जी पापा, तीन बजे सोई थी। काम कुछ ज़्यादा था।’’
‘‘अच्छा सुनो, मम्मी को बताना कि सीमा आज आएगी नहीं और तुम्हें तो पता है मैं खाना बना ही नहीं सकता। उनसे कहना मुझसे बात कर लें। आलू की सब्ज़ी और रोटी बनाना सिखा दें। मैं 10 बजे वॉट्सऐप वीडियो कॉल करूंगा।’’
‘‘जी पापा। ज़रूर!’’ उनींदी आवाज़ में यह कह कर उसने फ़ोन रख तो दिया, पर उसे याद आया कि रात को सासू मां ने कहा था कि कल से नवरात्रि शुरू हो रही है तो वो दुर्गा सप्तशती और रामायण का पाठ भी करेंगी। और इन दोनों में कुल मिलाकर उन्हें तीन घंटे का समय लग जाता है... मतलब... मतलब... आज से नौ दिनों तक सुबह का खाना भी उसे ही बनाना होगा और आज तो पापा को वॉट्सऐप पर खाना बनाना सिखाना भी होगा। ओह गॉड! मन ही मन कुड़कुड़ाती हुई वो जल्दी से उठ गई।
अभी फ्रेश ही हुई थी कि फिर मोबाइल बजने लगा। राघव थे।
‘‘मीता... मीता, वो अटेंडेंट अपने घर चला गया था रात को। अब कहता है कि आ नहीं पाएगा।’’
‘‘तो...?’’
‘‘तो? अरे तो क्या...? तो मतलब खाना मुझे ही बनाना पड़ेगा अपने लिए। और तुम्हें तो पता है कि मैं कहां बना पाता हूं खाना...’’
‘‘कितनी बार तो कहा है सीख लो खाना बनाना। अब 21 दिन तक नहीं आया तो क्या भूखे रहोगे? बाहर तो जा नहीं सकते।’’
‘‘हां यार, मैं सोचता था खाना बनाना नहीं आता तो क्या हुआ, कौन-से कोई होटल बंद हो जाएंगे? बट आई वॉज़ रॉन्ग... होटल बंद भी हो सकते हैं, ये तो मैंने सोचा ही नहीं था। यू नो... तुम सही कहती हो... आई मीन यू आर जीनियस... हमें हर स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए... पर अब क्या करूं? भूख लग रही है...’’
‘‘तुम तो कल कह रहे थे कि एक महीने का राशन है... और ये... ये... चढ़ाओ मत मुझे हां...’’
‘‘अरे तो क्या राशन कच्चा खाऊं?’’
‘‘मैंने कब कहा कच्चा खाओ? दस बजे...’’’
‘‘क्या दस बजे?’’ मीता की बात बीच में ही काटते हुए राघव बोला।
‘‘अरे बात तो पूरी करने दो। दस बजे पापा को भी सिखाऊंगी आलू की सब्ज़ी और रोटी बनाना। उस वॉट्सऐप क्लास में तुम भी शामिल हो जाना। बन जाएगा खाना। दस बजे तक इंतज़ार करो।’’
मेघना मेहरा योग करके, नहा-धो के देवी की पूजा में लीन थीं और इधर मीता ने सीनियर और जूनियर मेहरा को वॉट्सऐप वीडियो कॉल पे खाना बनाना सिखाया। लाइव डेमो करते हुए। एक ही घंटे में तीन घरों में साथ-साथ खाना बन गया था। जिनमें से एक घर नोएडा का, एक भोपाल का और तीसरा चंडीगढ़ का गेस्ट हाउस था। खाना पूरा बन गया तो सीनियर मेहरा छूटते ही बोले,‘‘बोलो वॉट्सऐप मैया की...’’ तो ठहाके मारते हुए मीता और राघव एक साथ बोले,‘‘जय!’’
तब तक मेघना मेहरा भी किचन में तशरीफ़ ला चुकी थीं।
‘‘ये वॉट्सऐप मैया की जय क्यों हो रहा है भई?’’
कॉन्फ़रेंस कॉल ऑन किए-किए मीता ने उन्हें पूरी बात बताई। तो वो हंसते हुए बोलीं,‘‘‘लेकिन’ उससे पहले तो इंटरनेट भैय्या की जय होनी चाहिए ना... तो बोलो इंटरनेट भैय्या की...’’
‘‘जय!!’’ अब चार आवाज़ें एकसाथ गूंजी और चारों के ठहाके भी।
दो और दिन यूं ही गुज़र गए माताजी यानी मेघना मेहरा पूजा करती रहीं और मीता मेहरा दोनों समय का खाना बनाती रहीं, घर का काम करती रहीं और सोचती रहीं कि मम्मी ने पूजा का अच्छा बहाना खोज रखा है, पूजा की पूजा हो जाए और काम का काम न करना पड़े। पर बीच-बीच में मीता ये भी सोच लेती कि आख़िर वो ऐसा सोच क्यों रही है, मम्मी का तो हर साल नवरात्रि का यही रूटीन है।
इधर मेघना मेहरा सोच रही थीं अच्छा हुआ जो लॉकडाउन के वक़्त वे नोएडा में हैं। भोपाल में होतीं तो इतने बड़े घर की साफ़-सफ़ाई और खाना-पीना देखने के बाद पूजा करना तो बहुत ही मुश्क़िल होता। यहां सब आसानी से हो रहा है। हां... मीता की वजह से ही सही। अभी वो ये सोच ही रही थीं कि मीता उनके कमरे में पहुंच गई।
‘‘आज खाना बनाने का मन नहीं हो रहा मम्मी। क्या पिज़्ज़ा ऑर्डर कर दूं? आप खा लेंगी?’’
‘‘नहीं,’’ बड़े रूखे अंदाज़ में कहां मेघना मेहरा ने। पता नहीं कैसे? पलभर पहले ही तो मीता से होने वाली सहूलियत के बारे में सोच रही थीं वो। फिर बात संभालती हुई बोलीं,‘‘पिज़्ज़ा बाहर से आएगा और ये कोरोना का क्या भरोसा? पिज़्ज़ा बॉक्स पर बैठा घर आ पहुंचा तो? हमें अवॉइड करना चाहिए न इस समय। सुबह की कोई सब्ज़ी बची हो तो रोटियां मैं बना लेती हूं।’’
मीता को बुरा लगा। अपना पक्ष रखती हुई सी बोली,‘‘आख़िर सब्ज़ियां और फल भी तो मंगा ही रहे हैं न बाहर से?’’
‘‘‘लेकिन’ ये सब तो एसेंशियल चीज़ों में आते हैं ना?’’ मेघना मेहरा ने जवाब दिया और हमेशा की तरह सास-बहू के बीच राग रस्साकशी की शुरुआत हो ही जाती, पर ऐन मौक़े पर सीनियर मेहरा जी का फ़ोन आ गया। मेघना मेहरा बात करने में व्यस्त हो गईं और मीता मेहरा अपना सा मुंह लिए वापस लौट गईं।
लौटते हुए मीता सोच रही थी चिढ़ भले ही आ रही है उसे, पर बात तो सही कह रही हैं मम्मी। लॉजिक तो है। न सही पिज़्ज़ा, पर आज फ्राइडे है और वोद्का-लिम्का के दो पैग मारना तो बनता है।
खाना खाने के बाद और सोने से पहले दो की जगह वोद्का के तीन पैग लेकर मीता अपने बिस्तर पर कब लुढ़की ये तो उसे पता नहीं, लेकिन उसकी आंख अचानक खुली स्टील का जग गिरने की ज़ोरदार आवाज़ से। सामने दीवार पर टंगी घड़ी पर नज़र पड़ी। रात के ढाई बज रहे थे। अनमनी हुई और अचानक उसके दिमाग़ की बत्ती जली। जग तो मम्मी के कमरे में रखा रहता है। झटके से उठी वो। लगभग भागती हुई मेघना मेहरा के कमरे में पहुंची। वहां पानी का जग और पानी तो नीचे गिरा हुआ था ही, पर साथ में मेघना मेहरा भी ज़मीन पर पड़ी हुई थीं। मीता के होश उड़ गए।
‘‘मम्मी... मम्मी...’’ मीता ने उन्हें हिलाडुला कर उठाने की कोशिश की। मेघना मेहरा को होश नहीं आया। उसने अपनी उंगली उनकी नाक के पास लगाई। सांस चल रही थी। किसी तरह अकेले मेघना को घसीटते हुए पलंग से टिका पाई वो। सोचती जा रही थी... क्या करूं... क्या करूं... पापा और राघव को फ़ोन करने से कुछ नहीं होगा। वो घबरा अलग जाएंगे। शर्मा... नहीं... नहीं... पर इतनी रात को सोसाइटी के सेक्रेटरी के अलावा कौन मेरी मदद करेगा?
मीता ने मोबाइल पर शर्मा का नंबर डायल किया।
‘‘हेलो मिस्टर केदार शर्मा... मैं मीता... 201 से... मम्मी को... मम्मी को... वो बेहोश हो गईं हैं। लॉकडाउन में इस वक़्त मैं किसे बुलाऊं?’’
‘‘मिसेज़ मेहरा... मिसेज़ मेहरा... घबराइए मत। मैं अभी आता हूं। मेरे भाई डॉक्टर हैं और वो तीन बिल्डिंग्स छोड़कर ही रहते हैं। मैं उन्हें फ़ोन कर देता हूं। वो घर आ जाएंगे। आप हौसला रखिए।’’ यह कह कर मिस्टर शर्मा ने फ़ोन रख दिया।
मीता ने मेघना मेहरा को फिर हिलाया, पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मीता का दिल धड़क रहा था। मम्मी को जाने क्या हो गया। और मिस्टर शर्मा अकेले ही आएंगे इतनी रात को... पर वो कर भी क्या सकती है? पापा और राघव की नींद उड़ा देने का कोई मतलब भी नहीं बनता। अभी वो इस सोच में ही थी कि घंटी बजी।
भागते हुए उसने दरवाज़ा खोला। सामने तीन लोग थे। मिस्टर शर्मा, मिसेज़ शर्मा और वॉचमैन। मीता ने राहत की सांस ली।
‘‘आइए... अंदर वाले रूम में।’’
मिस्टर शर्मा और वॉचमैन ने मेघना मेहरा को उठाकर बिस्तर पर लिटाया। मीता ने फ़र्श पर बिखरा पानी साफ़ किया।
मिसेज़ शर्मा बोलीं,‘‘तुम घबराओ मत मीता। भाई साहब आते ही होंगे...’’
अभी उनका वाक्य ख़त्म भी नहीं हुआ था कि दोबारा बेल बजी। मिस्टर शर्मा बाहर गए और अपने बड़े भाई डॉक्टर शर्मा को अंदर ले आए।
डॉक्टर शर्मा ने मेघना मेहरा को एग्ज़ामिन किया। सब चुपचाप देख रहे थे। डॉक्टर शर्मा ने बीपी चेक करने का बाद कहा,‘‘बीपी बहुत बढ़ा हुआ है। शायद इसी वजह से चक्कर आ गया होगा। क्या ये बीपी की दवाई लेती हैं?’’
‘‘जी नहीं। मम्मी को बीपी की शिकायत तो नहीं थी।’’
‘‘फ़िलहाल मैं उन्हें ये इंजेक्शन देता हूं। चिंता की बात नहीं है। पर अब उन्हें बीपी की दवाई रोज़ लेनी होगी। जब तक इन्हें होश नहीं आता। मैं यही रहूंगा।’’
‘‘पर लॉकडाउन में ये दवाइयां...’’ मीता की बात काटते हुए डॉ शर्मा बोले...
‘‘मेरे घर पर कुछ पड़ी हुई हैं। मैं कल सुबह भिजवा दूंगा।’’
मीता ने नोटिस किया की डॉ शर्मा भी उसे अपलक निहार रहे हैं। वो थोड़ा असहज हो गई।
डॉक्टर शर्मा की नज़रें वाक़ई उसके चेहरे पर गड़ी हुई थीं। कुछ पल नज़रभर मीता को देखने के बाद वो अपने भाई से मुख़ातिब होकर बोले,‘‘केदार, तुम सही कह रहे थे। ये वाक़ई बबली जैसी ही दिखती है। ऐसा इत्तेफ़ाक... कि भरोसा न हो।’’
‘‘हां भाईसाब, मैं कहता था ना। बिल्कुल बबली की तरह दिखती है... कभी मिलवाऊंगा। और मिलना हुआ भी तो कैसे समय पर...’’
मिसेज़ शर्मा ने मीता के चेहरे पर आए सवालों को पढ़ लिया जैसे। वो बोलीं,‘‘मीता, बबली मेरी ननद थी। इन दोनों भाइयों की इकलौती बहन। उसकी और तुम्हारी शक़्ल हूबहू मिलती है। जब तुम पहली बार सोसायटी ऑफ़िस में इनसे मिली थीं, तभी बताया था इन्होंने मुझे...’’
‘‘... तो उन्हें... उन्हें क्या हुआ था?’’ यह पूछते-पूछते मीता मन ही मन सोचती रही कि कितना गलत समझ रही थी वो मिस्टर शर्मा को। कभी-कभी हम सब ग़लतफ़हमी के शिकार हो जाते हैं।
डॉ शर्मा बोले,‘‘हमने बहुत धूमधाम से उसकी शादी की थी। दस बरस पहले। लाड़ली बहन थी हम दोनों की। पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। बबली और उसके पति हनीमून से लौट रहे थे कि उनकी कार एक खाई में गिर गई और दोनों... दोनों साथ-साथ... आज भी... आज भी... नहीं भूले हम हैं हम उसे। केदार ने मुझे कहा भी था कि आप बिल्कुल बबली जैसी दिखती हैं और सचमुच आप बिल्कुल... बिल्कुल वैसी ही दिखती हैं।’’
तभी मेघना मेहरा कुनमुनाईं। उन्हें होश आ रहा था। डॉ शर्मा ने मेघना मेहरा से पूछा,‘‘अब कैसी हैं आप?’’
‘‘मीता... मीता...’’ मेघना मेहरा इतने अजनबियों को सामने देखकर घबरा गई थीं शायद।
‘‘हां, मम्मी... मैं यहां हूं, यहां हूं...’’ कहते-कहते मीता उनके क़रीब आ गई।
‘‘मैं पानी पीने उठी थी... और जग भी हाथ में था... ‘लेकिन’ फिर पता नहीं क्या हुआ... याद नहीं कुछ।’’
‘‘कोई बात नहीं मम्मी। डॉक्टर ने आपको दवाई दे दी है। आप ठीक हो जाएंगी।’’
‘‘चिंता की कोई बात नहीं है मिसेज़ मेहरा। यू आर फ़ाइन। हो जाता है कभी-कभी। नथिंग टू वरी अबाउट। आप इनका ख़्याल रखिएगा मीता। मैं सुबह दवाइयां भिजवा देता हूं। अब हम निकलते हैं,’’ डॉ शर्मा ने कहा।
‘‘मैं इन्हें छोड़कर आती हूं मम्मी,’’ मीता बोली।
‘‘मीता, तुम कहो तो मैं रुक जाऊं?’’ मिसेज़ शर्मा ने आत्मीयता से पूछा।
‘‘थैंक्यू मिसेज़ शर्मा। पर आपकी भी नींद नहीं हुई होगी। ज़रूरत हुई तो मैं आपको कॉल कर लूंगी।’’
जब वे सब दरवाज़े पर पहुंचे तो मीता को जैसे कुछ याद आया,‘‘डॉ शर्मा... आपकी फ़ीस तो पूछी ही नहीं।’’
मिस्टर केदार शर्मा बोले,‘‘अरे उसकी कोई ज़रूरत नहीं मिसेज़ मेहरा...’’
पर डॉक्टर शर्मा उनकी बात बीच में काटते हुए बोले,‘‘मैं वही सोच रहा था कि आपने फ़ीस के बारे में पूछा ही नहीं...’’
वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें डॉक्टर शर्मा के चेहरे पर टिक गईं। उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और धीर-गंभीर आवाज़ में वो बोले,‘‘मीता... राखी... क्या आप राखी पर राखी बांधेंगी हम दोनों को? अपनी बबली हमें दोबारा मिली है, अब नहीं खोना चाहते हम उसे... क्या कहते हो केदार?’’
‘‘बिल्कुल भाईसाब।’’
‘‘जी... जी... क्यों नहीं डॉक्टर शर्मा?’’ मीता के चेहरे पर मुस्कान थी।
‘‘पर फिर ये नहीं चलेगा?’’ डॉक्टर शर्मा बोले।
‘‘क्या डॉक्टर शर्मा?’’
‘‘डॉक्टर शर्मा नहीं चलेगा, फिर तो तुम्हें हम दोनों को भइया कहना होगा ना!’’
सभी हंस पड़े। और मीता बोली,‘‘जी भाईसाब!’’
अगली सुबह मिस्टर मेहरा सीनियर और जूनियर को इस बात की इत्तला की गई। पर दूर बैठे वे सिवाय मीता की तारीफ़ और मेघना मेहरा की हौसलाफ़ज़ाई के कर भी क्या सकते थे? हां, मीता के दो और भाई बन जाने पर वो दोनों ही ख़ुश थे।
मीता अगले कुछ दिनों तक मेघना मेहरा का जी-जान से ख़्याल रखती रही। और सोचती रही 21 दिन ख़त्म हो जाएंगे तो राघव के आने पर उसके बहाने से वो अपना पसंदीदा खाना बनाकर खा सकेगी, मन की बात कर सकेगी।
इधर मेघना मेहरा रोज़ बीपी की दवाई लेती रहीं। मीता का पकाया हुआ, अपनी पसंद का, शुद्ध देसी खाना यानी दाल-चावल, रोटी-सब्ज़ी खाती रहीं। न जाने कैसे वो मीता के प्रति अपनत्व से भरती जा रही थीं। उसकी छोटी-छोटी वो बातें इग्नोर करती जा रही थीं, जो उनके जैसी टीचर को सख़्त ना पसंद थीं और यदि कोई छात्र इन बातों पर उनकी नाफ़रमानी करता तो शायद वे उसे क्लास से बाहर का रास्ता दिखा देतीं।
समय बीत रहा था। यूं भले ही मीता और मेघना मेहरा साथ रह रही हों, पर उनके बीच बातें खुल कर न तो पहले हुई थीं, न अब हो रही थीं। हां, राग रस्साकशी इन दिनों इस घर में कम बज रहा था। इक्कीस दिन 14 अप्रैल को बस, पूरे होने ही वाले थे। और 13 अप्रैल को वो फ़रमान आ गया।
मेघना मेहरा टीवी देखते-देखते चिल्लाकर बोलीं,‘‘मीता... मीता... अरे वो कल सुबह 10 बजे फिर कोई घोषणा करने जा रहे हैं।’’
मीता भागती हुई आई,‘‘क्या हुआ मम्मी?’’
‘‘अरे कल फिर कुछ कहने वाले हैं मोदी जी।’’
‘‘ओह... नो...!’’ मीता ने अपना सिर पकड़ लिया।
अगले दिन मोदी जी का भाषण सुनने के बाद निढाल सी हो आई मीता। फ़ौरन अपने कमरे की ओर दौड़ गई। राघव से बात करने का सोच ही रही थी कि उसे रोना आने लगा। न जाने कोरोना से उपजी अनिश्चितता की वजह से ऐसा हुआ, राघव के इतने लंबे समय तक दूर रहने की वजह से या मेघना मेहरा के साथ और लंबे समय तक अकेले रहने के तनाव से उपजा रोना था। वो बाथरूम में सुबक-सुबक कर रो रही थी। थोड़ा शांत होकर उसने राघव को फ़ोन मिलाया।
इधर मेघना मेहरा ने सीनियर मिस्टर मेहरा को फ़ोन मिलाया। उनके फ़ोन उठाते ही बरसती हुई बोलीं,‘‘कितने लंबे समय तक मैं अकेली रहूंगी उसके साथ? कहा नहीं था मैंने कि पेंशन वाला काम ज़रूरी नहीं है इतना। अभी मत जाओ। पर मेरी सुनता कौन है?’’
‘‘अरे बेग़म किसे पता था कि ऐसा होगा? अगर पता होता तो बिल्कुल न जाता। और अब किया क्या जा सकता है? जब मोदी जी इजाज़त देंगे तभी तो आ सकूंगा ना। अब तुम्हें ये समय मीता के साथ ही गुज़ारना है, चाहे रोकर गुज़ारो या हंसकर।’’ मेहरा सीनियर प्यारभरी आवाज़ में बोले।
मिस्टर मेहरा की बात में दम था। सो मेघना मेहरा बोलीं,‘‘ठीक है। मैं संभाल लूंगी, अब कुछ किया तो जा नहीं सकता। तुम संभलकर रहना।’’
हां, एक बात और हुई जूनियर मेहरा ने मीता से बात करने के बाद सीनियर मेहरा को फ़ोन किया।
‘‘पापा, आप तो जानते हैं कि मम्मा और मीता की चॉइसेस एक-दूसरे से कितनी अलग हैं... और... और...’’
जूनियर मेहरा की बात काटते हुए सीनियर मेहरा बोले,‘‘क्या कर सकते हैं पुत्तर। हम दोनों वैसे भी मौन राग में रहें तो ही अच्छा रहता है। वरना उन दोनों के राग रस्साकशी के बीच फंसती तो हमारी ही गर्दन है। जीवन के हर राग में ख़ुश रहना चाहिए। अब हमारे हाथ में कुछ है तो है नहीं। तो चलो, हम दोनों अलग-अलग राग शांति का आनंद लेते हैं और उन्हें ज़िंदगी की ताल पर राग रस्साकशी गाने दो। उस राग का भी अपना अलग मज़ा है, बरख़ुरदार!’’
यदि आप शादीशुदा हैं तो इस राग रस्साकशी को तो बख़ूबी पहचानते ही होंगे, है ना?
लेखिका परिचय: शिल्पा शर्मा: पत्रकारिता का कुल अनुभव 19 वर्ष. लगभग नौ वर्षों तक महिलाओं की पत्रिका फ़ेमिना हिंदी का संपादन, इसके पूर्व लगभग दो वर्षों तक होममेकर पत्रिका के संपादन मंडल में कार्यानुभव, इससे भी पहले सात वर्षों तक एक्स्प्रेस मीडिया सर्विस (न्यूज़ एजेंसी) में कार्यानुभव. सम्प्रति: एडिटोरियल कंसल्टेन्ट, बीब्यूटिफ़ुल.
प्रकाशित पुस्त
कें: काव्य-संग्रह- सतरंगी मन (मुंबई के प्रसिद्ध साहित्य, कला व संगीत उत्सव लिट-ओ-फ़ेस्ट में पुरस्कृत पांडुलिपि) और डिजिटल कहानी संग्रह-तुम सी (जगरनॉट बुक्स), साझा उपन्यास- 30 शेड्स ऑफ़ बेला.