यारी - 1 Prem Rathod द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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यारी - 1

शाम के 5:00 बजे थे मैंने बैंक से बाइक स्टार्ट करके अपने घर की तरफ जाने के लिए निकल पड़ा। घर पहुंच कर सीधा अपने रूम में पहुंचा और फ्रेश होकर अपने बेड पर लेटा,पर पता नहीं क्यों आज सुबह से किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था। शायद कुछ टाइमपास हो जाए यह सोचकर मैंने मोबाइल हाथ में लिया कुछ देर तक देखने के बाद उसे भी बेड़ की साइड पर रख लिया और बेडरूम की बाल्कनी की तरफ बढ़ा।

बाहर देखा तो सूरज धीरे धीरे ढल रहा था,पंछी अपने घौंसले की तरह बढ़ रहे थे फाल्गुन महीने के कारण वातावरण मे ज्यादा ठंडी या गर्मी नहीं थी और मौसम एकदम खुशनुमा था, ठंडी हवाएं धीरे-धीरे चल रही थी। सर्दी की सुबह, वसंत की हवाएं और बारिश यह तीनों चीजें मुझे पहले से ही बहुत पसंद थी, इसलिए मैं घर से निकल कर बाहर टहलने के लिए निकल पड़ा। चलते चलते मैं गांव के बाजार तक पहुंच गया।वहांं देखा तो आज होली के त्यौहार की वजह से सब लोग उसी की खरीदारी में व्यस्त थे मैंं वहां से निकल कर चलते हुए गांव के बीचो-बीच आए हुए एक गार्डन पर पहुंच गया।

यह गार्डन रविंद्रनाथ टैगोर की याद में 1970 में बनाया गया था इसीलिए इस गार्डन का नाम "टैगोरबाग" रखा हुआ था।शुरू शुरू में यह बाग इतना खास नहीं था ,पर 2008 के Re-construction बाद यह गार्डन बहुत सुंदर बन गया था। इस गार्डन के पुनःबांधकाम के बाद इसे 3 हिस्सों में बांट दिया था। एक हिस्से में बच्चों के खेलने के लिए इंतजाम किया हुआ था, दूसरे भाग में लोगोंं के बैठने की व्यवस्था की गई थी और तीसरा भाग Flower Garden था। जहां अलग-अलग तरह के फूल और पेड़ उगाएं गए थे।यह तीनों भाग एक तालाब के किनारे बनाए गए थे ,जो गार्डन के बीचों-बीच था और वह गार्डन के मुख्य आकर्षण का केेंद्र था। वह तालाब बहुत सुंदर था और उसमें तरह-तरह के कमल भी खिले हुए थे। उसका पानी एकदम साफ़ था और इस गार्डन का बहुत अच्छी तरह से खयाल रखा जाता था।

मैं उस गार्डन में enter हुआ और Flower Garden की तरफ बढ़ने लगा आज मैं घर से निकला तब मुझे खुुद को ही यह पताा नहीं था कि मैं कहांं जा रहा हूं और आज क्यों यह मेरे पैर खुद-ब-खुद इस गार्डन की तरफ बढ़ गए।गार्डन में उगाएं गए फूलोंं की महक चारोंं तरफ बिखरी हुई थी। गार्डन केेे बीचो बीच एक Fountain था,जो उसकी सुंदरता और भी बढ़ा रहा था।

मैं जाकर एक बेंच पर बैठ गया और आसपास के नजारे देखने लगा तभी मेरी नजर मेरी थोड़ी दूरी पर एक बेंच पर पड़ी। उस पर 4 लड़के बैठे हुए थे अजय मोहित विनय और पार्थ यह चार लड़के मेरी आसपास की सोसाइटी में ही रहते थे और चारों एक ही कॉलेज में same ईयर में थे उन चारों में दोस्ती भी उतनी ही पक्की थी,कोई जगह ऐसी नहीं थी जहां यह चारों साथ ना हो। वह चारों दूर बैठकर हंसी मजाक कर रहे थे, उन्हें देखकर मेरे चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान आ गई मुझे उन दिनों की याद आ गई जब मैं यहां अपने दोस्तों के साथ आता था और सब हंसी मजाक किया करते थे।

इसके साथ मुझे केतन की कही हुई बात याद आ गई वह हमेशा कहता था कि,'मेरे भाई इंसान के पास जो चीज होती है, उसकी उसे कदर नहीं होती और हम उस चीज को नजरअंदाज करके दूसरी चीजों को पाने के लिए दौड़ते हैं, पर जब वह हमारे पास नहीं होती तब हमें उसकी कदर होती है, इसलिए कहता हूं मेरे भाई यह टाइम एक दिन हम सबको बहुत याद आने वाला है।'

उसका कहना भी एकदम सही था क्योंकि जब हम कॉलेज में थे तब हमें नौकरी की चिंता लगी रहती थी और अब जब जॉब लग गई तब अपने फ्रेंड्स के साथ बिताया हुआ वह टाइम याद आ रहा है। कॉलेज को गोल्डन पीरियड कहां गया है पहले तो मुझे यह बात एकदम झूठी लगती थी क्योंकि हमारा कॉलेज ही कुछ इस तरह का था। वह कहते हैं ना कि जो आप सोचते हो उसका ठीक उल्टा ही होता है वैसा ही कुछ मेरे साथ हुआ था फिर भी वह कॉलेज का टाइम मेरे लाइफ का सबसे Important Part है, इसीलिए क्योंकि तब मुझे मेरे Friends मिले जिन्हें में कभी भूल नहीं सकता।

कॉलेज खत्म होने के बाद सब अपने काम और फैमिली में ऐसे उलझे की वापस मुड़कर देखने का मौका ही नहीं मिला ऐसे करते-करते कब 10 साल बीत गए पता ही नहीं चला।बस अक्सर फोन और व्हाट्सएप पर बातें होती रहती थी पर फिर भी सब बातें करके भी कुछ अनकहा और अनसुना लगता था क्योंकि अपने दोस्त से गले नहीं मिल सकता था उसके आमने सामने बात नहीं कर सकता था। यह बातें सोचते-सोचते आंखे थोड़ी नम हो गई और कुछ लाइनें याद आ गई :-

दोस्तों की दास्तान जब वक्त सुनाता है,
तो हमें भी कोई दोस्त याद आता है,
भूल जाते हैं हम जिंदगी के गम को,
जब उनके साथ बिताया हुआ वक्त याद आता है।

मैंने अपनी जेब में हाथ डालकर फोन निकाला और Abhi को फोन लगा दिया उसका फोन बिजी आ रहा था मैंने 5-6 बार उसका नंबर ट्राई किया पर उसने कॉल नहीं रिसीव किया इसलिए मैंने मैसेज टाइप किया,"मुझे भूल जाने की बात करता था और खुद ही मुझे भूल गया, कोई बात नहीं सर आप जैसे बड़े लोग हम जैसे छोटे लोगों को क्यों याद रखेंगे।"यह मैसेज भेजते हैं मेरे चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान आ गई क्योंकि अभी की आदत थी कि जब कोई उसका काम नहीं करता था तो वह हमेशा उसे Imotional Blackmail करता था पर आज मैंने उल्टा उसी पर आजमाया था मुझे पता था की यह मैसेज पढ़ने के बाद वह जरूर गुस्सा होगा और यह सोच कर ही मुझे बहुत हंसी आ रही थी।

आप लोग सोच रहे होगे कि उसका गुस्सा होने से मुझे हंसी क्यों आ रही है तो एक बात मैं आप सबको बता दूं कि यही उसकी खासियत थी मेरी कॉलेज लाइफ का पहला फ्रेंड Abhijeetsinh Rathod। ज्ञाती से राजपूत, मजाकिया स्वभाव का और अपने उसूलों का पक्का। हमारे ग्रुप का एक ऐसा लड़का जिसके मुंह से मैंने आज तक एक भी गाली सुनी ना हो,शायद उसकी यही बात उसको सबसे अलग करती थी। मैं पता नहीं उसको किस अलग-अलग नाम से बुलाता था पर फिर भी पर गुस्सा नहीं होता था।कॉलेज के बाद उसको Income Tax Officer की Job मिल गई थी और क्यों ना मिले वह हमारे क्लास का Topper जो था।

उसके फोन में उठाने का शायद दूसरा भी कारण था क्योंकि मेरे Hospital Issues की वजह से मैं उसकी शादी में नहीं जा सका। इसी बात को लेकर वह मुझ पर बहुत गुस्सा हुआ था, पर उसके गुस्सा होने की वजह से मुझे खुशी भी हो रही थी क्योंकि आप उन्हीं पर गुस्सा करते हैं जिन्हें आप अपना मानते हैं और मुझे यह जान कर अच्छा लग रहा था कि मैं भी उसके लाइफ में Important हूं।

अब दूसरी तरफ इसका बिल्कुल उल्टा था अभी को गुस्सा दिलाने में प्रकाश को बहुत ही मज़ आता था। वह उसको गुस्सा दिलाने की हर एक कोशिश करता था। प्रकाश और केतन 12th Standard से मेरे साथ थे पर पता नहीं क्यों उस टाइम में दोनों में से किसी से मेरी बातचीत ही नहीं होती थी शायद उस समय हमारी बातचीत शुरू हो गई होती तो जो टाइम उनके बिना मैंने बिताया उस पर आज मैं पछता नहीं रहा होता।

प्रकाश उर्फ पक्को। हम तीनों उसको "पक्को" करके ही बुलाते थे कोई भी बात हो मैंने कभी उसे सीरियस होते हुए नहीं देखा था,किसी भी सीरियस बात को वह नॉर्मल बना देता था और कोई भी चीज से कैसे भागना है वहां उसको बहुत अच्छी तरह से आता था,कहीं भी जाना हो और वह देर से ना आए ऐसा कभी नहीं होता था। उसकी यही आदत पर अभी उस पर बहुत गुस्सा होता था और प्रकाश उसका हमेशा फायदा उठाया था उसने B.com और Hotel Management का कोर्स करके दूसरे शहर में अपनी Hotel और Caffe का Business जमा लिया था।

केतन और प्रकाश की भाषा में कहूं तो "कानो"। थोडा सा सीरियस,मस्तीखोर डबल मीनिंग बातों का एक्सपर्ट। थोड़ी शब्दों में बहुत कुछ कह जाने वाला और उसकी सबसे अच्छी बात जो मुझे पसंद थी वह था उसका Sence of Humour। उसकी यही बात सबको Attract करती थी, Especially Girls। उसकी यही बात से प्रकाश उसको हमेशा कहता था,"तेरा नाम मैंने बिल्कुल सही रखा है 'कानो'।"इन सब के बावजूद भी उसे Account बहुत अच्छे से आता था इसीलिए वह साथ में C.A कर रहा था कॉलेज खत्म होने के बाद उसे C.A की जॉब मिल गई।

मजाक मस्ती करते करते कॉलेज कब खत्म हो गई पता ही नहीं चला, काश वह सब फिर यहां होते और एक बार हम फिर वही मस्ती मजाक कर पाते। इन सब मस्ती के बीच Abhi का मुझे "Azim Premji" और प्रॉब्लम में केतन का "तेरा भाई है ना"कहना बहुत याद आ रहा था।

यह सब सोचते-सोचते मैंने सिर उठाकर डरते सूरज की तरफ देखा जिसका केसरी प्रकाश पेड़ों के बीच में से होता हुआ मेरे चेहरे पर पढ़ रहा था अब सूरज धीरे धीरे ढल रहा था और अंधेरा भी हो रहा था। गार्डन में अब बहुत कम लोग नजर आ रहे थे और ऊपर से आज होली होने की वजह से लोग जल्दी कर चले गए थे।

मैं अपने ख्यालों में खोया हुआ था कि तभी मेरे कानों में एक आवाज पड़ी
"तू चिंता मत कर वो लोग जैसे ही यहां आएंगे,इस गार्डन की सारी लाइटें बंद कर दूंगा, उसके बाद जो कुछ भी होगा उसे तू संभाल लेना।"

To be Continued.........

तो दोस्तों आपको यह स्टोरी कैसी लगी,यह मुझको जरूर से बताना क्योंकि यह मेरी Reality और Imagination को एक करके बनाई गई स्टोरी है।मैं बहुत लंबा नहीं खींच लूंगा बस एक-दो पार्ट में यह स्टोरी खत्म हो जाएगी।

और अगर आपको होरर स्टोरीस पढ़ना पसंद है तो मेरी दूसरी स्टोरी "हॉंटेल होन्टेड "जरूर पढ़िए उम्मीद करता हूं आपको पसंद आएगी।