जी-मेल एक्सप्रेस - 31 Alka Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

जी-मेल एक्सप्रेस - 31

जी-मेल एक्सप्रेस

अलका सिन्हा

31. नीली डायरी और सरप्राइज़ पार्टी

मैं अचानक ही महसूस करने लगा हूं कि मैं जो चाहता हूं, जिस तरह चाहता हूं, हू-ब-हू वैसा ही हो जाता है। घर के छोटे-छोटे मामलों में भी विनीता का ही निर्णय सर्वमान्य होता था। आज इतने महत्वपूर्ण मौके पर उसका इस तरह समर्पण करना और अभिषेक को एअर फोर्स में भेजने के लिए राजी हो जाना लगभग असंभव-सा काम था, मगर संभव हो गया।

हालांकि मैं जानता हूं कि विनीता मूल रूप से फौजी जिंदगी के प्रति अत्यंत संवेदनशील है और यह संवेदनशीलता उसके जुड़ाव के कारण है, न कि विरोध के कारण।

खैर, जो भी हो, कुछ बातें साफ हुईं। सबसे अहम, मेरा यह भय निर्मूल सिद्ध हुआ कि विनीता की स्पूनफीडिंग की आदत से अभिषेक बच्चा ही बना रहेगा, अपनी पसंद-नापसंद के प्रति जागरूक नहीं हो सकेगा।

दूसरा यह कि अभिषेक के स्वभाव और चरित्र को लेकर विनीता ने कितना गलत आकलन किया था। अभिषेक की गर्ल-फ्रेंड्स का न होना, लड़कियों में उसकी दिलचस्पी न होना, ये चिंताएं बेमानी निकलीं।

वक्त ने प्रमाणित कर दिया कि अभिषेक सचमुच दृढ़ है और इधर-उधर भटकने के बदले, वह निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता रहा, आज परिणाम सामने है।

सचमुच कोई अदृश्य शक्ति है जो हम सभी को संचालित करती है और हर किसी के हितों की, मान-सम्मान की रक्षा भी करती है।

एक रक्षा-कवच मैं अपने पूरे परिवार के इर्द-गिर्द महसूस करता हूं जिसके भीतर रहकर हम सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंच रहे हैं।

यों, बदलती स्थितियों से मैं काफी संतुष्ट हूं, फिर भी, कहीं ये बात सालती है कि विनीता ने सहर्ष स्वीकृति नहीं दी, बस विरोध का हाथ हटा लिया है। ऐसे आधे मन से अभिषेक को फौज में भेजना ठीक नहीं लग रहा। सोचता हूं, जब सब अच्छा हो रहा है तो ये फांस भी क्यों बची रह जाए?

हमारे अंगरेजी के प्रोफेसर विपुल सहाय कहा करते थे कि हम जो कामना सच्चे मन से करते हैं, वह जरूर पूरी हो जाती है। वे कहते थे कि आप कामना करते हुए इतनी गहराई में उतर जाइए कि आपको वह सब दिखाई देने लगे, जैसा घटित होता आप देखना चाहते हैं।

प्रोफेसर सहाय का चेहरा आंखों में ताजा हो आया- सांवले चेहरे पर गरदन तक झूलते घुंघराले बाल, बीच-बीच में चांदी के तार-सी सफेदी... वे हरदम मुस्कराते रहते थे। पढ़ाते हुए वे विश्व साहित्य के अनेक संदर्भ बताते थे। इसीलिए विद्यार्थी उन्हें विपुल सहाय के बदले विपुल साहित्य पुकारते थे।

प्रोफेसर साहब की याद के साथ-साथ कॉलेज के दिनों की ताजगी और उत्साह भी रगों में उतरता चला आया।

मैंने आंखें बंद कर लीं और पूरी तन्मयता से देखने लगा कि विनीता ने सुनहरी किनारी वाली साड़ी पहन रखी है... अपने बालों का ढीला-सा जूड़ा बनाते हुए वह कुछ गुनगुना रही है। घर में सुंदर सजावट हो रखी है, अंतरा और अभिषेक उसे घेरकर खड़े हैं, उसके इर्द-गिर्द चक्कर काटते हुए वे ऊंची आवाज में कोरस गा रहे हैं।

मैं इस दृश्य में और गहरे उतरता कि विनीता ने यह बताकर चौंका दिया कि अंतरा आ रही है और वह अभिषेक के जाने से पहले एक सरप्राइज पार्टी ऑर्गनाइज करना चाहती है।

‘‘प्रोफेसर साहब ठीक कहते थे,’’ मैं धीरे से बुदबुदाया।

‘‘क्या कहते थे?’’

‘‘कि ऐसे अवसरों को यादगार तरीके से मनाना चाहिए, वी मस्ट सेलीब्रेट!’’

मैंने उल्लास के साथ भीतर चल रहे दृश्य में थोड़ी-सी तब्दीली कर दी, अब एक बड़ा-सा पार्टी हॉल है जहां अभिषेक केंद्र में खड़ा है और लोग आ-आकर उसे बधाई दे रहे हैं।

डॉक्टर मधुकर का फोन आया था।

अब मैं उनके फोन से विचलित नहीं होता। अपने केस के सिलसिले में वे एकाध बार पहले भी मुझसे फोन पर ही बात कर चुके हैं और मैं यह महसूस कर रहा हूं कि वे मेरी जांच के लिए नहीं बल्कि इस जांच को बेहतर अंजाम देने के लिए मुझसे बात करते हैं। बात करते हुए वे बराबर इस बात का ध्यान रखते हैं कि मेरा सम्मान आहत न हो। अब तो मैं भी खुद को इस केस को सुलझाने में एक अहम हिस्सा महसूस करने लगा हूं।

‘‘त्रिपाठी जी, कुछ देर के लिए आ सकेंगे क्या?’’ उन्होंने पूछा था।

बताओ भला, मेरी क्या औकात कि मैं उनके आदेश की अवहेलना कर दूं, मगर यह उनका बड़प्पन ही तो है न, जो वे मुझसे इस तरह बात करते हैं। मेरे हामी भरने पर उन्होंने अपना आदमी भेजकर मुझे बुला लिया।

हम भीतर वाले कैबिन में बैठे थे। उन्होंने चाय मंगवा दी। ब्लाइंड्स के पार से हम देख रहे थे कि हमारे सामने वाले हिस्से में किसी की पूछताछ की तैयारी थी। जब वह लड़का सामने आया जिसकी पूछताछ होनी थी तो मैंने हैरानी के साथ देखा कि वह चरित था।

मैं समझ गया कि डॉक्टर मधुकर ने मुझे क्यों बुलाया होगा और मन-ही-मन चरित के बारे में अपनी धारणा को शब्द देने लगा। मेरे अनुमान के मुताबिक डॉक्टर मधुकर ने आंखों के इशारे से उससे मेरी पहचान सुनिश्चित की। अपनी सहमति जताते हुए मैंने ताकीद की कि यह पूर्णिमा के ‘गुड बुक्स’ में था और ट्रेनिंग पूरी हो चुकने के बाद भी उसका पूर्णिमा के पास आना-जाना बना रहता था।

‘‘तुम किसके अंडर ट्रेनिंग कर रहे थे?’’

‘‘पूर्णिमा सूद का तुम्हारे साथ कैसा रवैया था?’’

‘‘जीएम के अलावा और किस-किस से तुम्हारी मुलाकात होती थी?’’

तीनों जांच अधिकारी उससे सवाल किए जा रहे थे और चरित विचलित हुए बिना उनके सवालों का जवाब दिए जा रहा था।

मैं हिसाब लगा रहा था कि इसका मतलब यह नहीं कि ये लोग सिर्फ मुझे ही यहां पकड़कर लाए थे बल्कि एक-एक कर हर किसी का नंबर लग रहा था। बहुत संभव है कि ऑफिस के बाकी साथियों को भी यहां बुलाया गया होगा और मेरी ही तरह किसी ने भी इसकी चर्चा एक-दूसरे से नहीं की होगी।

‘‘ठीक से देखो और बताओ, इसे पहचानते हो?’’ मैंने देखा, जांच अधिकारी के हाथ में मेरी नीली डायरी थी जो उसने चरित की ओर बढ़ा दी।

मुझे कुछ बेचैनी हुई, मगर जब तक मैं डॉक्टर से अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करता, तब तक चरित ने हामी भर दी थी। मैं हैरान था और उसके झूठ बोलने की वजह तलाशने लगा।

‘‘अंदर देखकर बता, ये सब तूने लिखा है?’’ दूसरे जांच अधिकारी ने पूर्ण सहमति की मांग की कि वह बाद में अपनी बात से मुकर तो नहीं जाएगा।

मैंने पाया, तीनों अधिकारियों ने अपनी-अपनी तरह से सिद्ध कर दिया था कि यह डायरी चरित की ही थी। चरित ने भी बार-बार कबूल किया कि यह डायरी उसी ने लिखी थी।

‘‘झूठ बोल रहा है यह...’’ मैंने धीरे से डॉक्टर को आगाह करना चाहा तो डॉक्टर ने मुझे उठने का इशारा किया और पिछले दरवाजे से बालकनी की तरफ निकल आया।

‘‘कहो, क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘यह डायरी चरित की नहीं है। वह आप सभी को बरगलाने की कोशिश कर रहा है।’’ मैंने दोबारा समझाने की कोशिश की।

‘‘वजह?’’

‘‘कुछ भी हो सकती है,’’ मैं सोचने लगा, ‘‘वह पूर्णिमा के बहुत करीब था, क्या पता उसे बचाने की कोशिश कर रहा हो...?’’

‘‘मगर इस डायरी को अपना बताकर वह पूर्णिमा का बचाव कैसे कर सकता है? बल्कि इसके कोड वगैरह तो शक को और बढ़ाते हैं।’’

‘‘तो क्या पता, वह पूर्णिमा को फंसाने के लिए ऐसा कह रहा हो?’’

मैंने उसे बताया कि पूर्णिमा चरित की मर्जी के खिलाफ भी उसे मैडम से मिल आने की जिद किया करती थी। मैंने उस घटना का भी जिक्र किया जब उसने पूर्णिमा के कहने पर एक ऐसा सिस्टम बनाने की कोशिश की थी जिससे किसी प्राकृतिक आपदा के घटने से पहले ही उसके बारे में पता चल जाए। पूर्णिमा ने बार-बार उस पर दबाव बनाया कि वह खुद जाकर मैडम से इस बारे में डिस्कस करे।

‘‘तो? इसमें गलत क्या है? काम जिसने किया है, वही तो उस बारे में डिस्कस कर पाएगा...’’ डॉक्टर ने मेरी आपत्ति बीच में ही खारिज कर दी। उसके मुताबिक इसमें कुछ भी गलत नहीं था बल्कि गलत तो तब होता जब पूर्णिमा उसे जीएम मैडम के सामने प्रस्तुत करने के बदले खुद उसका श्रेय हासिल करती।

तर्क तो डॉक्टर का ठीक लग रहा था, मगर मैं मानने को तैयार नहीं था।

“वह तो खुद कबूल कर रहा है कि यह डायरी उसी की है।” डॉक्टर ने मेरे वहम को नजरअंदाज करते हुए कहा।

‘‘अपने जांच अधिकारी देखे हैं, कितने खड़ूस हैं। वे किसी से कुछ भी कबूल करवा सकते हैं।’’

अपने अधिकारियों की तारीफ सुनकर वह अपनी हंसी नहीं दबा पाया मगर उसने मेरी बात पर गौर करने का वायदा किया।

सरप्राइज पार्टी के आयोजन ने हम दोनों के मन में उत्साह भर दिया था। अंतरा का आदेश था कि हम जल्दी से तैयार होकर ‘सेलिब्रेशन्स बैंक्वेट’ पहुंचें। अंतरा सीधे वहीं पहुंचने वाली थी। आजकल की पीढ़ी कितनी सक्षम है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अंतरा ने सारी तैयारी फोन और इंटरनेट के जरिये ही कर ली थी और बिना किसी भाग-दौड़, हम भी और मेहमानों की तरह वहां पहुंचने वाले थे।

मैंने पाया, हकीकत का रंग मेरे ख्याली रंग से बहुत मिलता-जुलता था। काले रंग की साड़ी का सुनहरा पाड़ विनीता पर खूब फब रहा था, साड़ी की प्लीट्स बनाते हुए वह धीमे स्वर में कुछ गुनगुना रही थी। साड़ी बांधकर वह बालों में कंघी करने लगी।

‘‘सुनो, बालों का ढीला-सा जूड़ा बना लो न, जैसा कभी-कभी तुम बनाती हो।’’ मैं एकाएक ही बोल पड़ा।

उसने चौंककर मेरी ओर देखा।

मैं थोड़ा झेंप गया।

कई बार पत्नी की तारीफ करने में कितना संकोच होता है, खासकर जब उसकी खूबसूरती की तारीफ करनी हो।

उसने बालों को लपेटकर ढीला-सा जूड़ा बना लिया। अब वह मेरे ख्यालों वाली तस्वीर से बिलकुल मेल खा रही थी।

वह बाल स्ट्रेट करने वाली मशीन उठाकर दराज में रखने लगी तो मुझे लगा, कहीं यह मेरी अनधिकार चेष्टा न हो।

‘‘तुम चाहो तो बाल स्ट्रेट भी कर सकती हो, वह भी सूट करता है तुम पर...’’

आज मैं किसी भी बात में उसकी मरजी से परे नहीं जाना चाहता था, एक लंबी चुप्पी के बाद उसे सहज देख रहा था।

उसने मुस्कराते हुए मेरी ओर देखा और दराज बंद कर दी।

‘‘बीवी की तारीफ करने में इतनी दिक्कत क्यों होती है?’’

लो भला, यही तो मैं अभी सोच रहा था।

‘‘बहुत अच्छी लग रही हो, प्रिया!’’ मैंने उसे बांहों में भर लिया।

(अगले अंक में जारी....)