जी-मेल एक्सप्रेस - 10 Alka Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जी-मेल एक्सप्रेस - 10

जी-मेल एक्सप्रेस

अलका सिन्हा

10. विदाई गीत

डायरी का यह पन्ना उदासियों से घिरा है। स्कूल छोड़ने की उदासी... वक्त बीत जाने की उदासी... बहुत कुछ छूट जाने की उदासी...

कितनी खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है क्वीना ने अपनी पीड़ा को--

समय की शाख से पीले पत्तों की तरह, झरते जा रहे हैं जो सुनहरे पल, काश! उन्हें यादों की किताबों में फूलों की तरह दबा कर सहेज लेती...

मैं महसूस करता हूं, डायरी की शैली मेरी अपनी लेखन शैली के बहुत करीब है। फर्क है तो बस इतना कि ऐसा ही मैं हिंदी में लिखता, जबकि यहां अंगरेजी में लिखा गया है।

इन्हीं भावों को मैं लिखता तो कैसे लिखता...

यादों की किताबों में रख ले, लम्हात सुनहले

वक्त की शाख से झर जाएंगे, इससे पहले...

डांस फ्लोर पर थिरकन के पल, क्लास रूम का शोरोगुल

जाने फिर कब बैठ सकेंगे, ऐसे ही हम सब मिलजुल

इजहारे मुहब्बत की बातें, गीतों में गाकर के कह ले

आंखों से ढुलक बह जाएंगे, इससे पहले...

मन भीग-भीग जा रहा है। देख रहा हूं, स्टडी टेबल पर कोहनी टिकाए इन पंक्तियों को लिखते हुए क्वीना की आंखों की नमी पन्नों पर उतर आई है, वह खिड़की से पार देख रही है... बीती बातों का सुहाना मंजर उसे कहीं दूर लिये जा रहा है...

इधर यह दृश्य मुझे भावुक किए जा रहा था उधर मैं अपने आसपास एक अजीब-सी हलचल महसूस कर रहा था। जैसे हवा कानों में कुछ फुसफुसाकर गई हो। मैं सचेत हो गया। अजब-सी कानाफूसी सुन रहा हूं अपने आसपास। ख्यालों की जद से जबरन अपने वर्तमान में लौट आया।

लंच टाइम हो गया है। हॉल लगभग खाली है। फुसफुसाहट पूर्णिमा के कैबिन से सुनाई दे रही है। सुनने की कोशिश करता हूं तो लगता है, वह चरित को जीएम मैडम से मिलकर कुछ दिखाने की सलाह दे रही है, शायद उसके प्रॉजेक्ट के बारे में कह रही है। चरित की आवाज सुनाई नहीं दे रही, मगर पूर्णिमा के पुरजोर आग्रह से लगता है, शायद वह वहां जाने को इच्छुक नहीं है। बातें तो सामान्य ही मालूम पड़ रही हैं, मगर एक अजीब-सी सनसनाहट का अहसास हो रहा है, जैसे कुछ है जिसे आंखें देख नहीं पा रहीं, जैसे आंखों में भाप-सी उतर आई हो और दृष्टि धुंधला गई हो, जैसे जो दिख रहा है वह वास्तविकता न हो और जो वास्तविकता है, उसकी कोई आहट न हो...

चरित काफी देर तक पूर्णिमा के कमरे में बैठा रहा। रह-रहकर पूर्णिमा के कुछ समझाने की आवाजें आती रहीं, मगर चरित की कोई प्रतिक्रिया आवाज की शक्ल अख्तियार नहीं कर पाई। कुछ समय बाद चरित बाहर निकल आया। बाहर आने पर वह बिलकुल संयत लग रहा है।

वह कुछ देर मिसेज विश्वास के नजदीक खड़ा रहा, फिर मेरी ओर चला आया। उसने मुझसे मिले सहयोग और मार्गदर्शन के लिए मेरे प्रति आभार ज्ञापित किया तो मैं चौंक गया।

‘‘आपकी इन्टर्नशिप पूरी हो गई क्या? और आपका वह अलार्म सिस्टम जो समय रहते प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सचेत कर सकेगा?’’

उसने बताया कि अपनी रीडिंग्स वगैरह के आधार पर तैयार रिपोर्ट की एक कॉपी वह पूर्णिमा के पास छोड़कर जा रहा है। अगर इस पर सचमुच कोई सिस्टम तैयार करना पड़ा तो वह जरूर ही इसमें शामिल होना चाहेगा। उसने बताया कि फिलहाल वह इस पर अलग से समय नहीं दे पाएगा क्योंकि इससे उसके फाइनल ईयर की क्लासेस मिस हो जाएंगी।

उसकी निष्ठा और लगन से मैं प्रभावित हुआ। उसके प्रति आत्मीयता ने जन्म लिया और जाने की बात से कहीं अवसाद-सा महसूस करने लगा।

अब समझा, पूर्णिमा जरूर इन्हीं कारणों से उसे जीएम से मिल आने की सलाह दे रही होगी।

जाने से पहले वह हर किसी से व्यक्तिगत रूप से मिला और उसके मार्गदर्शन के लिए अपना आभार ज्ञापित किया। वह धमेजा के पास भी गया।

धमेजा का उत्साह देखने लायक है। वह चरित को ईजी कर रहा है या उसका उपहास कर रहा है, बहुत ठीक से समझ नहीं पा रहा हूं। दरअसल, ऊपरी तौर पर भले ही धमेजा और पूर्णिमा के बीच सहज संबंध हो गए हों, मगर भीतर से भी ऐसा ही होगा, ऐसा बहुत भरोसे से नहीं कहा जा सकता है।

‘‘फिकर ना कर पापे, हम बैठे हैं तेरे लिए।’’ धमेजा ने बुलंद आवाज में ऐलान किया।

चरित मुस्कराता हुआ बाहर निकल आया। उसके हाथ में धमेजा का विजिटिंग कार्ड है, जिसे उसने कमीज की जेब में संभाल लिया और झटके से हॉल से बाहर निकल गया।

अपने आसपास विदा के वक्त की उसी उदासी को महसूस कर रहा हूं... जैसी क्वीना ने अपनी डायरी में चित्रित की है...

‘‘स्कूल फेयरवेल... वी आर लीविंग टुडे... लीविंग फॉर एवर...।’’

नीचे खास अंदाज में ‘क्यू’ लिखा है।

कितनी खामोशी है पूरे पन्ने पर...

अगले पन्ने पर स्कूल की विदाई पार्टी के बारे में थोड़े विस्तार से लिखा है उसने। जैसे खुद को संयत करने में एक दिन का वक्त लगा था उसे। विदाई समारोह की तस्वीरों के बारे में लिखते हुए हवा में उछाल लेती टोपियों का जिक्र किया है उसने। मेरी निगाहें देख रही हैं, क्वीना फेसबुक पर अपनी तस्वीरें अपलोड कर रही है...

काला गाउन पहने, भरपूर ऊंचाई तक टोपियां उछालते छात्र। सुंदर परिधानों में सजे छात्रों के जोड़े, प्रधानाचार्य की मोमबत्ती से प्रज्वलित छात्रों की मोमबत्तियां, जगमगाते परिवेश में अध्यापकों के सम्मिलित स्वर में गूंजता आशीर्गान...

क्वीना ने लिखा है कि प्रिंसिपल की मोमबत्ती से मोमबत्तियां जलाकर छात्रों को थमाई गईं और टीचर्स ने गीत गाकर अपनी शुभकामना दी--

ज्ञान का दीपक तुम्हारे हाथ में,

अनंत आशीषें तुम्हारे साथ में,

जाओ, दुनिया रोशन कर दो...

हर एक साथी ने क्वीना की यूनिफॉर्म शर्ट पर विदाई संदेश अंकित किया है। वह एक-एक की प्रतिक्रिया को ध्यान से पढ़ रही है। लगभग हर किसी ने उसकी जिंदादिली की तारीफ की है और इसी तरह हंसमुख बने रहने की कामना व्यक्त की है।

स्कूल शर्ट का इससे अच्छा इस्तेमाल और क्या हो सकता है? हमारे स्कूल छूटने के बाद हमने अपनी यूनिफॉर्म संभालकर कहां रखी और रखते भी क्यों? अब स्कूल तो जाना नहीं था, लिहाजा उसकी कोई जरूरत भी रह नहीं गई थी। मगर कभी-कभी जब स्कूल की यादें मन पर धावा बोलती हैं तब बड़ी आकुलता से मन करता है कि स्कूल की कुछ निशानियां संभाल रखी होतीं तो कितना अच्छा होता। आजकल स्कूलों में विदाई के रोज यूनिफॉर्म की शर्ट पर साथियों की शुभकामनाएं लिखी जाती हैं और वह शर्ट हमेशा संभालकर रखने के काबिल हो जाती है।

क्वीना की शर्ट साथियों के संदेशों से अटी पड़ी है। अलग-अलग रंगों की स्याही से लिखे गए कमेंट्स। किसी ने स्केच पेन से खूब बोल्ड अक्षरों में लिखा है तो किसी ने बारीक बॉल पेन से बहुत छुपाकर कुछ लिखा है। मेरी नजर कुणाल का संदेश टटोल रही है, कहीं कोड में कुछ लिखा होगा जिसके अर्थ खोलने में मेहनत करनी पड़ेगी, कुछ इस तरह लिखा होगा कि उसे जबरन खोज कर देखना पड़ेगा, कॉलर पर, पॉकेट की भीतरी तह में, सिलाई के भीतर दबे मार्जिन में... एक तरह की आंख-मिचौनी...

क्वीना ने लिखा है कि कुणाल ने साफ और बोल्ड अक्षरों में उसके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामना लिखी है- ‘‘जहां रहो, हमेशा सफलता पाओ।’’

यह तो बड़ा नियमित-सा संदेश हुआ। मैं तो कुछ खास की आस लगाए बैठा था।

शायद क्वीना भी कुछ ऐसा ही ढूंढ़ रही थी। उसने आगे लिखा है, सफलता के मायने क्या हैं? क्या सफल होना ही जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है?

मैं समझ सकता हूं, क्वीना के मन को सफलता की परिभाषा समझने की जरूरत क्यों पड़ रही है। वह कुणाल से दूर होकर पाई सफलता को सफलता नहीं मानती जबकि कुणाल का ‘जहां रहो’ लिखना एक तरह से उसी दूरी को रेखांकित कर रहा है।

क्वीना कुछ आहत है, उसने अपनी शर्ट समेट ली है।

चरित के जाने के बाद से सोनिया की खिलखिलाहट गायब हो गई है। वह अब पूर्णिमा के पास उस तरह नहीं बैठती जैसे पहले सारा-सारा दिन वहां बैठी रहती थी। वह थोड़ी गुमसुम रहने लगी है। अपने आप में खोई-खोई-सी। आजकल वह गीतिका से भी बहुत बात नहीं करती।

इस चुप्पी का चरित के जाने से तो कोई संबंध नहीं? कहीं वह चरित से इन्वॉल्व तो नहीं हो बैठी कि उसके जाने के बाद अपने में लौट नहीं पा रही? उसका लहराना, खिलखिलाना शांत हो गया है। वैसे ही जैसे क्वीना खामोश हो गई है, अचानक।

कहीं सोनिया ही तो क्वीना नहीं? मैं मन-ही-मन ‘एस’ और ‘क्यू’ के बीच सामंजस्य खोजने लगा हूं।

चरित था, तो सोनिया भी तो देर-देर तक पूर्णिमा के कमरे में बैठी रहती थी। ऐसा भी तो हो सकता है कि पूर्णिमा इनके मेल-मिलाप का एक जरिया बनती रही हो। हां, ऐसा बिलकुल हो सकता है। जरूर वे दोनों पूर्णिमा की ओट लेकर देर तक साथ बैठते होंगे, दुनिया के तानों से सुरक्षित। इसीलिए चरित के जाने के बाद सोनिया इतनी गुमसुम हो गई है।

...क्वीना की मायूसियों पर जल्दी ही कॉलेज की मस्तियां हावी हो गईं। स्कूल छूटने का अवसाद आगे के पन्नों पर कॉलेज लाइफ की उन्मुक्तता में बदल गया। अब वहां कॉलेज की आजादी का मजा है, अपने फैसले खुद कर पाने का संतोष है, हर पल का आनंद है, मस्ती है।

(अगले अंक में जारी....)