जी-मेल एक्सप्रेस
अलका सिन्हा
11. हॉरमोनल इंबैलेंस
क्वीना आगे की पढ़ाई करने घर से कहीं दूर गई है। उसके ग्रुप में सात सदस्य हैं। क्वीना ने लिखा है, वे अपने ग्रुप को सेवन स्टार कहते हैं। सातों सदस्य एक से बढ़कर एक बिंदास हैं। आए दिन वे क्लास के बाद वी.पी. मॉल घूमने चले जाते हैं, वहां बरिस्ता में कॉफी पीते हैं और खूब मस्ती करते हैं। किसी के बर्थडे वगैरह पर ‘ड्रिंक एंड डाइन’ रेस्तरां में जाकर ड्रिंक भी करते हैं और डाइन भी।
कॉलेज फेस्ट का जिक्र करते हुए क्वीना ने लिखा है कि यहीं उसकी मुलाकात ‘वी’ से हुई थी जिसके साथ उसने डांस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था और उनकी जोड़ी ने बेस्ट टीम का अवार्ड जीता था।
मेरे कानों में दूर से आती आवाजें सुनाई पड़ रही हैं--
‘क्वीना-क्वीना’ लड़कों का स्वर गूंज रहा है तो लड़कियां ’विशाल-विशाल’ पुकार रही हैं।
मैं देख रहा हूं दोनों ने अपने डांसिंग स्टाइल से पूरे कॉलेज को दीवाना बना दिया है।
दोनों के बीच गजब की समझदारी है। कितनी तत्परता से वे दोनों खुद को एक-दूसरे के मुताबिक ढाल लेते हैं। भारतीय और पाश्चात्य शैली का खास तरह का फ्यूजन है उनके डांस में।
पहला राउंड एकल प्रदर्शन का था जिसमें चयनित प्रतिभागियों को अपने जोड़े बनाने थे और अगले राउंड में अपने पार्टनर के साथ सालसा करना था। पहले राउंड में अपनी महारत सिद्ध कर चुकने के बाद दोनों ने एक-दूसरे के साथ अपनी टीम बनाई थी।
इस जोड़ी के मंच पर उतरते ही दर्शकों में हलचल मच गई और सीटियां बजने लगीं। शुरू से ही इस जोड़ी को भरपूर रिस्पॉन्स मिला। म्यूजिक बैंड अचानक कोई नई ताल छेड़ देता और क्वीना और विशाल उसी तत्परता के साथ अपने स्टेप्स में बदलाव ले आते। म्यूजिक की लय पर संगत करती उनकी अदायगी देखने लायक थी। उनके हर नए अंदाज पर ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठता।
उनका प्रदर्शन जाहिर तौर पर बहुत सराहा गया। दूसरी जोड़ियों का नाच भी पसंद किया गया, मगर उतना नहीं जितना क्वीना-विशाल की जोड़ी का किया गया। हालात ऐसे रहे कि परिणाम घोषित किए जाने से पूर्व ही छात्रों ने क्वीना-विशाल के नाम की रट लगानी शुरू कर दी।
यानी स्वाभाविक तौर पर यह जोड़ी बाजी मार ले गई।
विशाल जरूर किसी दूसरे विभाग का छात्र रहा होगा क्योंकि क्वीना इस मुलाकात को विशाल से हुई पहली मुलाकात का नाम देती है। इसके बाद विशाल और क्वीना अकसर ही साथ-साथ दिखने लगे। कभी कॉलेज कैंटीन में तो कभी कैंपस की हरी मखमली घास पर।
यानी दोनों को एक-दूसरे का साथ भाने लगा है।
सोनिया की मायूसी भी बस कुछ दिनों की प्रतिक्रिया थी, इसके बाद वह वही पुरानी सोनिया थी। लहराती-मटकती वह धमेजा के कमरे में बैठी, चाय के घूंट भर रही है। वह फिर से धमेजा के साथ पहले की तरह, बल्कि पहले से ज्यादा ही फ्री होकर हंसने-बोलने लगी है। धमेजा तो काफी हद तक ढीठ होने लगा है, कुछ भी कह देता है और सोनिया उसे पूरी बोल्डनेस के साथ स्वीकार करती है। पता नहीं, ये कैसा समीकरण है कि वह पूर्णिमा के काम में भी भरपूर सहयोग करती है और धमेजा को भी नजरअंदाज नहीं करती।
बल्कि ऑफिस में तो नया ही शगूफा छिड़ा है आजकल । सभी के बीच ये खबर तेजी से फैल रही है कि ‘सोनिया इज गोइंग अराउण्ड विद धमेजा।’
लोग उन्हें साथ-साथ देखकर गुनगुनाने लगते हैं-- ‘‘ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन...’’ और वे बेशर्मी से हंसते हुए निकल जाते हैं।
सभी कहते हैं कि नौकरी पक्की कराने के लालच में सोनिया धमेजा को पटा रही है। धमेजा से पूछो तो हंस पड़ता है, ‘‘मैंने तो कोई ऐसा वायदा नहीं किया।’’
‘‘मगर क्या तुम उसके लिए कोशिश नहीं करोगे?’’ लोग पूछते हैं।
‘‘मौका मिलने पर जरूर कोशिश करूंगा।’’ वह ठहाका लगाता है।
मौके की तलाश में बैठा है धमेजा। मौका तो उसे मिलेगा ही, क्योंकि सोनिया खुद तैयार है उसे मौका देने के लिए।
मैं पलंग पर अखबार फैलाए खबरें पढ़ रहा था और विनीता कमरे के दो चक्कर लगा चुकी थी। वह कुछ परेशान मालूम पड़ रही थी।
‘‘क्या बात है?’’ मैंने विनीता की ओर देखा।
‘‘होगा क्या, तुम तो अखबार पढ़ो... वहां घर से ज्यादा जरूरी खबरें हैं...’’
उसे अक्सर मेरे अखबार पढ़ने पर आपत्ति होती है।
‘‘क्या हुआ?’’ मैंने अखबार समेटकर एक तरफ रख दिया।
‘‘अभिषेक अपने दोस्तों के साथ देहरादून जाना चाहता है...’’
‘‘तो? परेशानी क्या है? क्या उसके दोस्तों में लड़कियां भी हैं?’’ मैंने चुटकी लेते हुए पूछा।
‘‘यही तो! ऐसा कुछ भी नहीं है,’’ वह थोड़ी चिंतित थी,‘‘देवेन, हमारा अभिषेक नॉर्मल ढंग से ग्रो तो कर रहा है न?’’
‘‘क्या कहना चाहती हो?’’ मैं अभी भी कुछ समझ नहीं पाया था।
‘‘देवेन, मेरे ऑफिस में रूबी मल्होत्रा है न, उसका बेटा भी इसी तरह बहुत शांत-खामोश किस्म का था। कम बोलना, कमरे में बंद रहना। वह बता रही थी कि उसके मित्र भी बहुत कम थे और लड़कियों में तो उसकी कोई दिलचस्पी ही नहीं थी। आखिर वह उसे डॉक्टर के पास ले गई।’’
‘‘यही तो मुश्किल है, आजकल लोग किसी परेशानी पर बच्चे के साथ बैठकर उससे बात करने के बदले डॉक्टर के पास ले जाने में ज्यादा जल्दी करते...’’
‘‘डॉक्टर ने उसे हॉरमोनल इंबैलेंस की परेशानी बताई है, ‘होमो-सेक्शुअल’, ही इज अ गे, यू अंडरस्टैंड?’’ विनीता ने लगभग चीखते हुए मेरी बात काट दी।
‘‘दुनिया में बहुतों को बहुत तरह की परेशानियां हैं, तुम क्यों उनसे परेशान होने लगीं।’’
‘‘तुम तो कभी कोई बात सीरियसली लेते ही नहीं,’’ वह बिफर पड़ी, ‘‘अरे, वह बारहवीं में पहुंच गया है और... उसकी कोई गर्ल फ्रेंड भी नहीं है।’’ उसने कहा तो मेरी हंसी छूट गई।
बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू कर उसे समझाने लगा, ‘‘ये तो अच्छी बात है विनीता, हमारा बेटा आवारा नहीं है, संभला हुआ है।’’
‘‘मैं जानती थी तुम यही कहोगे, इसीलिए तुमसे डिस्कस नहीं कर रही थी...’’
‘‘अच्छा, तुम्हीं समझा दो, इसमें परेशानी क्या है?’’
‘‘देवेन, एक उम्र में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण स्वाभाविक होता है। ऐसा न होना अस्वाभाविक है, अबनॉर्मल! समझे!’’
‘‘मान लो उसका कहीं झुकाव हो भी, तो क्या जरूरी है कि वह तुम्हें बताए ही?’’
‘‘बताने की जरूरत नहीं, मुझे खुद-ब-खुद पता चल जाएगा, मैं मां हूं उसकी।’’
विनीता कैसे इतने भरोसे से किसी के मन की बात जानने का दावा कर सकती है? अगर वह मां है तो मैं भी पिता हूं इन बच्चों का।
‘‘हां, तुम पिता हो,’’ उसने जवाब दिया, ‘‘इसलिए तुम चिंतित रहते हो इनके लिए, कन्सर्न्ड हो... मगर मैं मां हूं इनकी, इसलिए इनके साथ खड़ी हूं, इन्वॉल्व्ड हूं... बस इतना-सा फर्क है।’’
लगा, जैसे उसकी घुलनशीलता मेरी चिंता को ठेंगा दिखाकर आगे निकल गई हो और मैं अपना-सा मुंह लेकर रह गया हूं। बात किसी नतीजे पर नहीं पहुंची, मैं खामोशी से बाहर बालकनी में निकल आया।
‘‘अब बाहर ही खड़े रहोगे या कुछ हल भी निकालोगे?’’ वह आवाज की झल्लाहट को दबाने की भरसक कोशिश कर रही थी।
‘‘अच्छा, मैं देखता हूं उससे बात करके।’’
‘‘तुम क्या बात करोगे उससे... तुम्हें तो खुद काउंसलिंग की जरूरत है।’’
अगला हिस्सा उसने अपने में बड़बड़ाकर कहा, पर मुझे सुनाई दे गया। यानी मैं भी असामान्य हूं, मुझे भी परामर्श की जरूरत है।
‘‘तो ठीक है, किसी डॉक्टर से दोनों को दिखा लो, उसे भी और मुझे भी।’’ मैं कुछ आहत हो गया।
‘‘तुम तो सेंटी हो गए देवेन,’’ उसने हंसते हुए मेरे गले में बाहें डाल दीं, ‘‘तुम्हारी काउंसलिंग के लिए तो मैं ही काफी हूं।’’
‘‘अरे, अरे... दुनिया देख रही है... क्या कर रही हो...?’’ मैं जल्दी से बालकनी से भीतर आ गया।
कितनी पागल है विनीता, कुछ समझती ही नहीं, कहीं भी झाड़ देती है, कहीं भी प्यार कर लेती है। सामाजिकता भी कोई चीज होती है कि नहीं।
मेरे पीछे-पीछे वह भी कमरे में चली आई। कमरे में पहुंचकर वह मुझे इधर-उधर गुदगुदी करने लगी।
‘‘मत छेड़ो मुझे!’’ मैंने उसका हाथ एक ओर झटक दिया।
वह नाराज होने के बदले हंसती रही।
‘‘अब देखो, गड़बड़ तो है न! जो तुम्हें करना चाहिए, वो मैं कर रही हूं और जो मुझे बोलना चाहिए, वो डायलॉग तुम बोल रहे हो।’’
विनीता की इन्वॉल्वमेंट का दावा अगले दिन भी मन में घूमता रहा। दफ्तर के रुटीन काम निपटाते हुए भी मन का कोई कोना इसी बारे में सोचता रहा। दराज से झांकती क्वीना की डायरी विनीता की इन्वॉल्वमेंट को चुनौती देती लगी। विनीता कहती है कि मांओं को अपने बच्चों के भीतर हो रहे भावात्मक परिवर्तनों का भी पता लग जाता है, मगर क्वीना की डायरी इस तथ्य की पुष्टि नहीं करती है। जिंदगी के नाजुक मोड़ पर भी उसकी मां अनुपस्थित है। पूरी डायरी में क्वीना ने कहीं भी अपनी मां के बारे में तो छोड़ो, परिवार के किसी भी सदस्य के बारे में कुछ नहीं लिखा है। जैसे वह किसी अलग ही दुनिया में रह रही हो। जीवन के अनूठे मोड़ से गुजरते हुए जो पद्चिन्ह उसने अपनी डायरी में अंकित कर छोड़े हैं, उसके बारे में कुछ तो उसने अपनी मां से साझा किया होता। हो सकता है, उसकी मां उसे सही-गलत की पहचान करा पाती और वह बहु-संबंधों की तरफ बढ़ने से खुद को रोक लेती। मगर आजकल क्वीना की ज्यादातर शामें विशाल के साथ एकांत में बीतने लगी हैं जिससे उनके दल की गतिविधियां ही नहीं, उनकी पढ़ाई-लिखाई भी प्रभावित हो रही है।
‘एन’ को क्वीना और विशाल के इस संबंध पर शायद आपत्ति है।
निगाहें ‘एन’ पर ठिठक गईं। अभी तक जितने भी कोड लिखे गए, सभी कैपिटल लेटर्स थे। मगर ‘एन’ स्मॉल में लिखा था। इसका क्या मतलब हो सकता है? दिमाग पर थोड़ा जोर दिया तो लगा, हो न हो, कैपिटल अल्फाबेट्स क्वीना के ब्वाय फ्रेन्ड्स होंगे जबकि स्मॉल अल्फाबेट्स उसकी सहेलियों के नाम का पहला अक्षर होगा।
बात तार्किक लगी, पुरुषवादी समाज में लड़कों के लिए कैपिटल और लड़कियों के लिए स्मॉल लेटर्स। वैसे भी, जिस अधिकार भाव से ‘एन’, मेरा मतलब है, निकिता ने क्वीना के जाती मामले में हस्तक्षेप किया उससे यह बात और भी पक्की हो जाती है कि वह क्वीना की अंतरंग सहेली ही हो सकती है।
‘‘तू विशाल को लेकर क्या सच में सीरियस है?’’ निकिता ने पूछा था।
‘‘पता नहीं।’’
‘‘पता नहीं, तो पहले पता लगा।’’
क्वीना लिखती है कि विशाल का साथ उसके कलात्मक रुझान से तो मैच करता है, मगर बौद्धिक स्तर पर वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाता।
दरअसल, आजकल की बहुमुखी प्रतिभा वाली पीढ़ी की अभिरुचियों और बौद्धिकता के कंपार्टमेंट्स इतने अधिक और विविध हैं कि कोई एक शख्स उनकी चाहतों को संतुष्ट कर उनके प्यार के सांचे में पूरा फिट नहीं हो सकता।
बहरहाल, निकिता की सलाह पर उसने गौर किया है और वह विशाल के दायरे से निकलकर, अपनी पढ़ाई पर फोकस करने लगी है।
(अगले अंक में जारी....)