वारलॉक - इतिहास का सबसे निर्मम तांत्रिक और सीरियल किलर – 4 Vikkram Dewan द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वारलॉक - इतिहास का सबसे निर्मम तांत्रिक और सीरियल किलर – 4

अध्याय 3

बंधक लड़की

जिस समय अभय खाली सड़कों से गुजर रहा था, उस समय शहर के दूसरे छोर पर स्थित महरौली का राउल एस्टेट अंधेरे में डूबा हुआ था। वह एस्टेट 4 एकड़ में फैला हुआ था, जिसका अधिकांश हिस्सा बंजर था और जमीन से उभरे हुए छोटे-बड़े लाल चट्टानों से भरा हुआ था। जगह-जगह मौजूद टीलों और गड्ढों के कारण जमीन उबड़-खाबड़ थी। बेतरतीबी से उगी हुई जंगली झाड़ियों और पेड़ों वाला वह निर्जन तथा भयानक स्थान अपने मालिक की उपेक्षा का प्रत्यक्ष गवाह था। एक श्मशान घाट और मुसलमानों के कब्रिस्तान से सटे हुए उस एस्टेट के प्रमुख स्थानों में थे। एक फार्महाउस जिसकी छत पर शीशे की पिरामिड था तथा जमीन के नीचे कुछ गुप्त तहखाने थे। इसके अलावा वहां एक कृत्रिम झील, एक सरकस के अवशेष, बियावान खंडहर और जंगली झाड़ियों से भरा एक छोटा जंगल भी थे।

क्रूर रॉटवेइलर नस्ल के कुत्तों की एक टुकड़ी अपने मालिक की अनुपस्थिति में एस्टेट में नियमित रूप से गश्त लगाती थी। हिंसक नस्ल के वे वहशी कुत्ते बाघ को भी चुनौती देने में सक्षम थे और एस्टेट में दाखिल होने का दुस्साहस करने वाले किसी भी शख्स को चीर फाड़ सकते थे। लेकिन उस रात वे किसी घुसपैठिये का शिकार करने की फ़िराक में नहीं थे आपूतिअँधेरे के कारण निगाहों से ओझल थे। किसी वजह से वे डरावने अंदाज में रो रहे थे। उनका तीखा रुदन एस्टेट के खौफनाक वातावरण में गूँज रहा था।

इन सभी ड़रावनी हकीकतो से अनजान एक भिखारन अपने तीन बच्चों के साथ कब्रिस्तान के पास की टूटी दीवार से एस्टेट में दाखिल हुई। उन सभी के पास ताबीज थे, जिन्हें वे गले में डाले हुए थे या फिर अपनी बांह से बांधे हुए थे। चौकोर आकार के लोहे या शायद निकिल की उन ताबीजों के अलावा महिला के पास एक अन्य ताबीज भी था, जो चौकोर आकार का और हरे कपड़े में लिपटा हुआ था। महिला ने उसे अपने गले में काले धागे से बांधा हुआ था।

उस भिखारिन का नाम मुमताज था, जो बार-बार प्रसव के कारण समय से पहले ही बूढ़ी हो गई थी। उसके बाल गंदे, अस्त-व्यस्त और जुओं से भरे हुए थे, जिन्हें उसने बेहद लापरवाह अंदाज में हरे रंग के रिबन से बांधा हुआ था। उसके चेहरे का रंग बेहद काला था। उसका माथा, आँखें और नाक छोटी थीं। उसकी ठोड़ी आकर्षणहीन तथा होंठ पतले थे। उसके चेहरे पर स्वार्थ, लालच और धूर्तता की मुहर अंकित थी। वह अशिक्षित, असभ्य और सबसे निचले दर्जे के इंसानों के उस तबके में जन्मी थी, जिनके अर्थहीन अस्तित्व का समाज के लिए योगदान शून्य होता है।

तम्बाकू चबा रही उस भिखारिन ने अपने एक साल के कमजोर और कुपोषित बच्चे को गोद में लिया हुआ था। दो अन्य बच्चे उसके अगल-बगल चल रहे थे। जिनमें से एक 6 साल की लड़की थी, जो घुटने तक लम्बी, कई जगहों पर चकती लगी हुई और टूटे बटनों वाली पीली फ्रॉक पहने हुए थी। उसके अनधुले कपड़े से उल्टी, बासी खाने और मल-मूत्र की बदबू आ रही थी। उसने लापरवाहीपूर्वक कमर से फ्रॉक की बेल्ट बांधी हुई थी। लड़की का चेहरा सपाट और भावहीन था। उसका सिर शरीर के बाकी हिस्सों की तुलना में बड़ा था और चेहरा अपनी माँ से मिलता-जुलता था।

उसका छोटा भाई अर्थात भिखारिन का दूसरा बच्चा 3 साल का लड़का था। वह एक पुराना गन्दी छोटी कमीज़ और निकर पहने हुए था, जिसके आगे के बटन टूटे हुए थे। उसने कमर में एक काला धागा बाँधा हुआ था। वह भी अपने भाई-बहन और माँ की भांति ही गन्दा तथा बिना नहाया हुआ था। उसका शरीर कमजोर था। वह अक्सर रोते रहने का आदी था, जो अपनी बदचलन माँ के हाथों अक्सर पीटा जाता था।

“कुत्ती। जा के कुछ खाने को ढूंढवा, मेरे साथ क्या चिपकी रहती है।” मुमताज़ अपनी बेटी को दूर धकेलते हुए कहा।

लड़की अपने परिवार से अलग हो गई और दूर अनजाने फार्महाउस की ओर चली गई। उसकी माँ अपने मूड के अनुसार उसे ‘पगली’ ‘गंजी’ और ‘कुत्ती’ इत्यादी नामों से बुलाती थी। वह इस बात से अनभिज्ञ थी कि माँ के अनगिनत पुरुष साथियों, जो साधारणतया महीने, हफ्ते या यहाँ तक कि एक रात में ही बदल जाते थे, में से कौन उसका पिता है? उसके लिए अपने पूर्वजों का, यहाँ तक कि स्वयं अपना असली नाम जानना भी उतना ही मुश्किल था, जितना कि एक गरीब व्यक्ति के लिए महँगी चीज़ों को ख़रीदना। निजी तौर पर वह ‘नुज़हत’ कहलाना पसंद करती थी। इस नाम को उसने एक महिला के मुंह से सुना था, जो थुलथुल शरीर और गुलाबी गालों वाली अपनी बेटी को प्यार से आलू-गोश्त खाने के लिए बुला रही थी।

‘नुजहत’ के नाम से स्व-नामित भिखारिन की वह लड़की अपने परिवार का पेट भरने के लिए भोजन की तलाश में चल पड़ी। वह दूर अंधेरे में परछाईं की भांति खड़ी इमारत तक जल्द से जल्द से पहुँच जाना चाहती थी। वहां किसी के मौजूद न होने की दशा में वह खाने की चीजें चुरा सकती थी। उसे आशा थी कि ऐसा हो जाने पर उससे नित्य की अपेक्षा थोड़ा कम पिटना पड़ेगा और उसकी माँ उसे उस जगह की सफाई के लिए देर रात तक जागने को मजबूर नहीं करेगी, जहाँ गैर मर्दों के साथ उसका सहवास होता था। विभिन्न मर्दों के साथ अपनी मां के ‘सहवास-सत्र’ के दौरान उठने वाली चीखों और अजीब हरकतों से नुज़हत को घृणा होती थी। ये घृणा भूखे सोने की सजा का विरोध किये जाने पर होने वाली पिटाई से भी बदतर थी।

वह इमारत भयावह था। उसने स्वयं में कुछ ऐसे मनहूस और डरावने रहस्य छिपा रखे थे, जिन्हें अल्पविकसित और कम अक्ल वाली नुज़हत भी महसूस कर सकती थी, लेकिन इसके बावजूद भी अपनी मां की पिटाई के डर से वह कांटों और झाड़ियों से भरी जमीन पर चलती रही। कूड़े-करकट, मल-मूत्र और जानवरों की लाशों के सड़ने की दुर्गन्ध से वह परेशान हो उठी थी । उसे ये दुर्गन्ध पुरानी दिल्ली स्थित आजाद मार्केट इलाके के एक अवैध बूचड़खाने की दुर्गन्ध से भी बदतर लग रही थी, जहां वह अपने परिवार के साथ रातें गुजारती थी।

किसी तरह अपनी ऊबकाई रोकते हुए वह इमारत के पास पहुँची। उसने मुख्य दरवाजे को नजरअंदाज करते हुए टूटे हुए शीशे वाली एक खिड़की ढूंढ निकाली, जो बेसमेंट के किसी कमरे में खुलती थी। वह बिना किसी हिचकिचाहट के अपने शरीर को सिकोड़ते हुए खिड़की के रास्ते अंधेरे में कूद पड़ी। परिणामस्वरूप उसका जिस्म एक सर्द और गंदे फर्श से टकराया। हालांकि उसे कंधे और पीठ में तेज दर्द महसूस हुआ, लेकिन फिर भी वह एक बिल्ली की भांति सधे हुए ढंग से उठ खड़ी हुई और किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगी। जब कोई भी प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसने अंधेरे कमरे का दरवाजा तलाशने की नीयत से बाहें फैलायीं। दीवार से टकराने से बचने के लिए वह दोनों हाथ सामने फैलाए हुए किसी अंधी लड़की की तरह आगे बढ़ने लगी।

कमरे से बाहर निकलने के बाद वह एक संकरी गैलरी में पहुँच गई और सीढ़ियों से और नीचे उतरने लगी। वह सीढ़िया उसे ज़मीन के नीचे की दूसरी मंजिल तक ले गई । एक कोने से कोई आवाज सुनकर वह भयभीत बिल्ली की भांति खुद में ही सिमटकर सीढ़ियों के नीचे दुबक गई और कोने की ओर झांकने लगी। उसे गलियारे के एक कमरे के दरवाजे के नीचे से हल्की रोशनी दिखाई पड़ी।

नुजहत इस बात से अनजान थी कि फार्महाउस की इमारत के नीचे दो मंजिल की गहराई तक गुप्त तहखानों का जाल फैला हुआ था, जहाँ दिन की रोशनी कभी नहीं पहुँच पाती थी। उसने पत्थर के फर्श पर लोहे की झंकार के साथ किसी का क्षणिक रुदन सुना, जो अगले ही पल चीत्कारपूर्ण दहाड़ और गालियों में तब्दील हो गया। ‘छोड़ दे मुझे। जाने क्यों नहीं देता। कीड़े पड़ेंगे तुझे मादर****"एक अज्ञात लड़की की चीख हर एक-दो मिनट के अंतराल पर गूंज रही थी।

नुज़हत सावाधानीपूर्वक दरवाज़े तक पहुँची और उसने की-होल से अन्दर झाँका। टिमटिमाती मोमबत्तियों की अपर्याप्त रोशनी में उसे ब्लैक एंड वाइट तस्वीरों से भरी एक दीवार नजर आयी। सहसा, रोने का स्वर थम गया। तो क्या नुजहत की मौजूदगी भांप ली गयी थी? वह एड़ियों को उठाये हुए अंदर टकटकी लगाये रही। वह कुछ समझ पाती कि की-होल के दूसरे छोर पर एक आँख नजर आई। नुजहत डर के मारे पीछे हटी। उसने भागने की कोशिश की लेकिन तभी दरवाजा खुला और किसी ने उस पर झपट्टा मारा। उसने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन उससे अधिक उम्र की एक लड़की ने उसकी कलाई पकड़ ली और उसे खींचते हुए कमरे में लेकर चली गयी।

अंदर पहुंचकर नुज़हत ने देखा कि उस कैदी लड़की की उम्र 15-16 साल थी। उसके जिस्म पर मौजूद कपड़े तार-तार हो चुके थे। उसके बाल बिखरे हुए थे और कपड़ों से उल्टी, पेशाब तथा शौच की बदबू आ रही थी। कमरे के दमघोंटू दुर्गन्ध ने नुज़हत को सूखे हुए वीर्य से भरे उन कंडोम के दुर्गन्ध याद दिला दी, जो दूर-दराज के इलाकों में बैंक एटीएम में सड़ने के लिए छोड़ दिए जाते थे और जहाँ वह अक्सर अपने परिवार के साथ सोती थी।

“क्या तुम उसके साथ हो? नहीं..नहीं...वह तुम्हें अपने साथ क्यों रखेगा?”

“म...मैं..मैं भोजन की तलाश में आयी हूँ।”

“तुम गलत जगह पर आ गयी हो। उसके आने से पहले भाग जाओ। नहीं..नहीं..पहले मुझे इन जंजीरों से निकालो। मैं झज्जर जिले के बीर-दादरी गाँव से हूँ। उस दुष्ट ने मुझे यहाँ कैदी बना रखा है। उसके आने से पहले हमें बाहर निकलना होगा। इन जंजीरों की चाबी ढूंढो। दीवार पर टंगी महिलाओं, लड़कियों और बच्चों की उन ब्लैक एंड व्हाइट (पोलरॉइड) तस्वीरों को देखो। वह दरिंदा बताता है कि ये उसके शिकार किये गए लोगों की उनके मरने से पहले की आखिरी तस्वीरें हैं। मैं नहीं चाहती कि इन लोगों की तरह मेरी तस्वीर भी इस दीवार पर टंगे। जिस दिन वह कैमरा लेकर आयेगा, वह दिन मेरा आखिरी दिन होगा। वह मेरे साथ घिनौनी हरकतें करता है, मेरी पिटाई करता है और मुझे भागने नहीं देता। प्लीज चाबी को ढूंढो।”

नुजहत ने उस लड़की की कलाई के चारों ओर बंधे मोटे छल्लों वाली जंजीर को देखा, जिसका दूसरा सिरा एक लोहे के पलंग से जुड़ा हुआ था। बेड पर मौजूद बिना बेडशीट वाला गद्दा; वीर्य, मल-मूत्र और खून के कारण गन्दा और भूरा रंग अख्तियार कर चुका था। ये उस बंधक लड़की की लगातार पिटाई और उसके साथ हुए लगातार हिंसक बलात्कार की कहानी बयां कर रहा था। कमरे में चारों ओर मिनरल वाटर की खाली बोतलें और रेस्टोरेंट के बचे हुए खराब खाने के पैकेट बिखरे हुए थे, जो कमरे में भटकने वाले बदसूरत काले चूहों द्वारा कुतर डाले गए थे।

“कैसी चाबी?”

क्रमशः

फिर क्या हुआ? जानने के लिए अगली कड़ी का इंतज़ार करे.
लेख़क को कहानी के बारे में आपने विचारो से जरूर अवगत कराये. वारलॉक (हिंदी) उंपन्यास अमेज़न पर प्रकाशित किया गया है.

यूट्यूब टीज़र: https://bit.ly/2RkGwHP

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