The Author आयुषी सिंह फॉलो Current Read मुझे याद रखना - 6 By आयुषी सिंह हिंदी डरावनी कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books You Are My Choice - 42 काव्या जय के केबिन में बैठी हुई थी। वह कबसे जय के आने का इंत... सच्ची मोहब्बत सच्ची मोहब्बत (प्यार की जीत ) सच्ची मोहब्बत एक ऐसा... अमृत की खोज अमृत की खोज बहुत समय पहले, जब दुनिया देवताओं और राक्षसों के... डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 83 अब आगे,उस आदमी के मुंह से अपनी बेटी के बारे मे सुनकर अब पूनम... ॥ एक युगप्रवर्तक नेता की शताब्दी वर्ष जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि ॥ भारत के महानतम नेताओं में से एक, अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास आयुषी सिंह द्वारा हिंदी डरावनी कहानी कुल प्रकरण : 6 शेयर करे मुझे याद रखना - 6 (11) 2.3k 8.3k मैं - पर बाबा इस सब में मैं कैसे फंस गया मैं अभी तक नहीं समझ पा रहा हूँ। धारा, आख्या और विश्वास राव इन सब से मेरा क्या नाता?महात्मा जी - बेटा तुम इतने अधीर क्यों हो रहे हो? सब्र रखो सब सच जान जाओगे। मैं - बाबा आगे क्या हुआ? बाबा ने कहा मैं अधीर न बनू पर उस चुड़ैल के दर्शन अब तक इतनी बार हो गए थे कि मैं अधीर बन ही गया। महात्मा जी - धारा और आख्या की मौत के बाद विश्वास राव ने बमुश्किल खुद को संभाला और डायनों से गाँव वालों को आजाद कराने वाले महात्मा अचिंत्य जी को हारांगुल से विदा किया। बहुत महीनों बाद एक दिन महात्मा अचिन्त्य वापस हारांगुल आए यह सोचकर कि महाराज विश्वास राव का हाल पूछ लिया जाए। उन्होने जैसे ही गाँव की सीमा में पैर रखा, उन्हें एक अजीब सी मनहूसियत का आभास हुआ पर फिर भी वे आगे बढ़ने लगे, उन्होने देखा पूरा गाँव खाली पड़ा हुआ है, कहीं कोई नजर नहीं आ रहा। चलते चलते वे राजमहल तक पहुंच गए वहाँ उन्होने जो दृश्य देखा, वे बुरी तरह से चौंक गए। उन्होने देखा महाराज विश्वास राव अपने राजमहल की छत पर खड़े हुए हैं और कह रहे हैं " हमें क्षमा कर दो महारानी, हम आपको समझ न सके, हम आपके गुनाहगार हैं और इस सच के साथ हम जी नहीं सकते, यह हमारे गुनाह का प्रायश्चित है "। विश्वास राव इतना कहते ही राजमहल की छत से कूद गए और महात्मा अचिंत्य के समक्ष महज पैंतीस वर्ष की आयु में महाराज विश्वास राव ने अंतिम सांसे ली।जब महात्मा अचिंत्य विश्वास राव का अंतिम संस्कार करके लौटे तब उन्होने उनके साथ रह रहे गाँव के एक परिवार से बात की कि ऐसा क्या हुआ जो महाराज विश्वास राव को आत्महत्या करनी पड़ी और सारा गाँव खाली क्यों है? तब उस परिवार के मुखिया ने कहा अचिंत्य जी महाराज, आपके जाने के कुछ समय बाद ही इस गाँव के हालात पहले से भी बदतर हो गए, सारे गाँव वालों की फसलें नष्ट हो गई, कूओं से पानी की जगह खून निकलने लगा, लोग नये कूएँ भी खोदते तब भी उनसे पानी की जगह खून ही नकलता। इस सब से परेशान होकर हारांगुल वासियों ने गाँव छोड़ने का फैसला किया पर जो कोई भी गाँव छोड़ने की कोशिश करता, उसकी रहस्यमयी तरीके से मौत हो जाती और सिर्फ उनके कंकाल ही मिलते। अब कोई भी गाँव से बाहर नहीं जा सकता था और आस पास के गाँव वाले डर से गाँव में नहीं आते। इतना भी क्या कम था कि गाँव में ऐसा रोग फैल गया जिसपर राजवैद्य तक काबू नहीं कर पा रहे थे। और देखते ही देखते पूरा गाँव मौत के मुँह में चला गया, कोई नहीं बचा। महाराज की माता जी और उनकी बहनें भी रहस्यमय तरीके से मृत्यु को प्राप्त हो गई। गाँव में सिर्फ हमारा परिवार मतलब हम, हमारे चार पुत्र और एक पुत्री, इनकी माता और महाराज विश्वास राव ही जीवित बचे थे। महामारी से बचने के लिए महाराज विश्वास राव ने हमें अपने राजमहल में ही शरण दे रखी थी, हम सभी पत्तों को, जंगली फलों को खाकर अपना जीवन बमुश्किल गुजार रहे थे। राजमहल में रहकर हम महामारी से तो बच गए परन्तु हम हर पल डर के साए में जीने लगे। रात होते ही पूरे राजमहल में चिता जलने की बू आने लगती और हर कक्ष से भयानक चीखें सुनाई देतीं, कभी कभी एक काला साया अचानक से हमारे सामने खड़ा हो जाता। कल रात को हम हमारी पत्नी और हमारे पाँचों पुत्र पुत्री सो रहे थे तभी महाराज के कक्ष से एक भयानक आवाज आई। जैसे ही हम सब वहाँ पहुंचे तो देखा वहाँ एक औरत महाराज का गला पकड कर खड़ी है जिसकी लाल आँखें है, बिखरे बाल हैं और वह पूरी तरह से जली हुई है, पहचानना मुश्किल था कि वह कौन है। वह हमें देख कर गायब हो गई और फिर रात को महाराज विश्वास राव के कक्ष से उनके रोने की आवाजें आती रही और आज सुबह तो आपके सामने ही उन्होने छत से कूद कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी। यह सब महात्मा अचिंत्य को बहुत अजीब लगा और सत्य जानने के लिए उन्होने महल के हर कोने में लाल रंग की रोली और हवन की भभूति डाल दी और अगले दिन रोली और भभूति को समेट लिया। उन्होने राजमहल में ही एक हवन किया जिसमें उन्होने उस रोली और भभूति को डाला, वह हवन लगातार इक्कीस दिन तक चला उसके बाद महात्मा अचिंत्य को वह सत्य पता चला जो कि हर किसी की सोच के बाहर था। मैं - बाबा क्या था वो सच? महात्मा जी - इक्कीसवें दिन महात्मा अचिंत्य जी को हवन कुण्ड की अग्नि में सब कुछ नजर आने लगा। एक बार विश्वास राव किसी कार्य से दूसरे साम्राज्य में गये।जहाँ उन्हें घड़े बनाती हुई एक अत्यन्त सुंदर लड़की दिखी, यह धारा थी। विश्वास राव ने तुरन्त धारा के पिता से उसका हाथ माँग लिया और धारा से विवाह करके अपने साम्राज्य में लौट आए। विश्वास राव की पहली पत्नी आख्या को बहुत बुरा लगा कि अब विश्वास राव सिर्फ उसके नहीं रहे पर फिर भी उसने हालात से समझौता कर लिया। धारा एक कुम्हार की पुत्री जरूर थी परन्तु बुद्धिमान भी थी। वह घर के हर कार्य में निपुण होने के साथ साथ राजकाज से संबंधित फैसलों में भी विश्वास राव को सलाह देने लगी और वास्तव में उसकी सलाह पर अमल करने से विश्वास राव को राजकाज संभालने में काफी सहूलियत हो गई और इस तरह कुछ ही समय में पूरे राजमहल में आख्या से ज्यादा पूछ धारा की होने लगी। आख्या एक राजकुमारी थी, उसे अपनी सुंदरता, पाक कला में निपुणता और रानी होने का बहुत गर्व था और उसे एक कुम्हार की पुत्री की इतनी पूछ होना खटकने लगा। वह हर वक्त कुछ न कुछ करती जिससे सभी उसपर ध्यान दें पर वह हर प्रयास में असफल रही। एक दिन उसकी नौकरानी ने उससे कहा कि "ईरावती नाम की कोई औरत है जो डायन है और गाँव में ही और डायनें बनाना चाहती है और डायनें काले जादू में दक्ष होती हैं। काले जादू से कुछ भी किया जा सकता है, किसी को मारा जा सकता है तो किसी को सम्मोहित भी किया जा सकता है।" तब आख्या ने सोचा क्यों न महाराज विश्वास राव को सम्मोहित कर धारा को इस राजमहल से ही निकलवा दिया जाए और यदि यह न हो सका तो डायन बनकर हम खुद ही धारा की जान ले सकते हैं। यह सोचकर आख्या ईरावती के पास गयी और उससे खुद पर डायन बनाने की प्रक्रिया शुरु करने को कहा। पर इससे पहले कि आख्या पूरी तरह से डायन बन पाती, विश्वास राव को ईरावती के बारे में पता चल गया और वे महात्मा अचिंत्य को गाँव ले आए। महात्मा अचिंत्य ने ईरावती और बाकी डायनों को जिंदा जलवा कर उनकी राख और अस्थियों को तीन अलग अलग जगह जमीन में गड़वा दिया पर यह महात्मा अचिंत्य और विश्वास राव का दुर्भाग्य था कि आख्या डायन बनने वाली है यह किसी को पता न चला और वह बच गई। अब आख्या ईरावती के कहे अनुसार काला जादू करती रही और लोगों का माँस खाकर, खून पीकर प्रतिदिन शक्तियां बढ़ाने लगी, पर गाँव वालों ने दोबारा विश्वास राव को गाँव में हो रही मौतों के बारे मे बता दिया। अब विश्वास राव ने दोबारा महात्मा अचिंत्य जी को हारांगुल बुलाया और उनके कहे अनुसार दो लाल मिर्चें लेकर पहले पूरे गाँव को और फिर राजमहल को खोजा और काला जादू करती हुई एक स्त्री को देख लिया और विश्वास राव महात्मा अचिंत्य जी को बुलाने गए पर तब तक वह स्त्री यानि कि आख्या वहाँ से भाग गयी पर हड़बड़ाहट में उसके गहने वहीं गिर गए और जब विश्वास राव, अचिंत्य जी के साथ लौट कर आए तो वहाँ सिर्फ़ आख्या के गहने थे। यह सब देखकर विश्वास राव समझ गए कि यह आख्या के गहने है और अचिंत्य जी के कहने पर विश्वास राव ने न चाहते हुए भी आख्या को सभी गाँव वालों के सामने जला दिया। सबको लगा डायनों की कहानी यहीं खत्म हो गई पर इंसान की जिंदगी में कोई भी कहानी खत्म नहीं होती है, बस एक नया मोड़ ले लेती है और डायनों के अंत से हुई चुड़ैल के खौफ की शुरुआत।आख्या डायन बनना चाहती थी, विश्वास राव को धारा से दूर करना चाहती थी, काला जादू करती थी, उसे तो चुड़ैल बनना ही था। आख्या ने चुड़ैल बनते ही सबसे पहले अपनी सबसे बड़ी दुश्मन धारा से बदला लेने की ठानी और गाँव वालों को इस तरह से मारने लगी जैसे डायनें मारती थीं और फिर उसने धारा पर वशीकरण किया और उसे उस कक्ष में बैठा दिया जहाँ वह खुद काला जादू करती थी वहाँ धारा वशीकरण के कारण मुर्गे का खून पी रही थी और दूसरी तरफ अचिंत्य ने विश्वास राव को डायन का पता लगाने के लिए महल में भेजा हुआ था और उस वक्त विश्वास राव ने धारा को काला जादू करते देख लिया और सोचा कि यही डायन है और अचिंत्य जी को बुला लिया। महात्मा अचिंत्य ने विश्वास राव से धारा को जलाने के लिए कहा ताकि गाँव वाले बच सकें और विश्वास राव ने न चाहते हुए भी सारे गाँव वालों को बुलाकर उनके सामने धारा को जलाने के लिए एक पेड़ से बाँध दिया। तब भी धारा वशीकरण में थी और आख्या ने उससे कहलवाया " अरे मूर्ख राजा तू क्या प्रजा को चलाएगा जब तू अपनी पत्नियों को ही नहीं पहचान पाया, आख्या तो कभी इस प्रकिया में शामिल थी ही नहीं। उसके गहने हमने वहाँ रखे थे ताकि हम तुम सब का ध्यान भटका सकें और डायन बन सकें पर अफसोस तुम्हें सब पहले ही पता चल गया। " और इस तरह विश्वास राव की नजर में आख्या निर्दोष और धारा दोषी साबित हो गई। आख्या ने अपना पहला बदला ले लिया। आख्या ने अपना दूसरा बदला लेने के लिए गाँव वालों के ऊपर कहर की बरसात कर दी। गाँव के हर कुएँ में पानी की जगह खून निकलता, फसलें नष्ट हो गई और उसने लोगों का गाँव से निकलना बंद करवा दिया, उसने गाँव की सीमा पर काले जादू के बल से एक अदृश्य रेखा बना दी जिसे गाँव वाले जैसे ही लाँघते, कही से मटके में जलती हुई आग जिसको मूठ भी कहते हैं आकर उनपर गिर जाती और उनकी उसी वक्त मृत्यु हो जाती। अब गाँव में सिर्फ विश्वास राव और एक परिवार ही बचे थे। अब आख्या का तीसरा बदला था विश्वास राव की जान लेना। सारे गाँव वालों की और अपनी माता और बहनों की मौत के बाद विश्वास राव टूट गए थे और एक दिन वे अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे तभी उन्हें एक अजीब सी आवाज सुनाई दी तो वो अपने कक्ष से बाहर निकलकर देखने लगे कि आवाज किस तरफ से आई है और चलते चलते वे राजमहल के उसी कमरे तक पहुँच गए जहाँ आख्या काला जादू करती थी और जैसे ही उन्होने कमरें में कदम बढ़ाया तो देखा कि उनका पैर एक काले घेरे में था। उस वक्त विश्वास राव यह समझ नहीं पाए कि यह क्या है, पर वह आवाज चुड़ैल बन चुकी आख्या ने उत्पन्न की थी ताकि विश्वास राव उस घेरे में कदम रखें और फिर वे वही देखें जो आख्या उन्हें दिखाना चाहे। वहाँ कुछ न देखकर विश्वास राव वापस अपने कक्ष में लौट आए और वापस आराम करने लगे पर वे यह नहीं जानते थे कि अब आराम उनके जीवन से छिनने वाला है। अभी विश्वास राव अपने कक्ष में लौट कर आए ही तभी उन्हें एक भयानक चीख सुनाई दी और चिता जलने की बू आने लगी, उन्होने पूरे राजमहल में देखा पर कहीं कोई नहीं मिला बस एक भयानक काला साया दिखाई दिया जो पल भर में ही गायब हो गया। अब तो यह हर रोज का सिलसिला हो गया था विश्वास राव को किसी औरत की चीखें सुनाई देतीं, चिता जलने की बू आती और पल भर के लिए एक भयानक साया नजर आता। इन सभी घटनाओं के कारण विश्वास राव को उस बीमारी ने घेर लिया जिसे आज की भाषा में डिप्रेशन या तनाव कहते हैं। एक रात विश्वास राव अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे तभी उन्हें फिर से एक औरत की चीखें सुनाई दीं और चिता जलने की बू आने लगी पर इस बार काले साए की जगह वह चुड़ैल मतलब आख्या उनके सामने आकर खड़ी हो गई। उस चुड़ैल का चेहरा जला होने के कारण विश्वास राव उसे पहचान न सके तब उन्होने उस चुड़ैल से पूछा कि वह कौन है और क्या चाहती है तब उस चुड़ैल ने विश्वास राव को बताया " हम आख्या हैं जिसे तूने डायन समझकर जिंदा जला दिया। " तब विश्वास राव ने उससे क्षमा माँगी तो वह हँसने लगी और बोली " अरे मूर्ख राजा तू अपनी पत्नियों को नहीं समझ पाया तो अपनी प्रजा कैसे संभालता। हम ही थे जो डायन बनने वाले थे ताकि धारा की जान ले सकें पर हमारे डायन बनने से पहले ही तूने हमें जला दिया पर देख हम चुड़ैल बन गए और धारा पर वशीकरण करके उसे तेरी और सबकी नजरों में दोषी साबित करा दिया। हमने उसे डायन साबित करके अपना प्रथम प्रतिशोध ले लिया और जिन गाँव वालों ने हमारी गुरू ईरावती को जिंदा जला दिया था, उनकी जान लेकर हमने अपना द्वितीय प्रतिशोध ले लिया और जिसने हमें जिंदा जला दिया उसे मारकर हम अपना तृतीय प्रतिशोध लेंगे.......पर तुझे हम नहीं मारेंगे हम तुझे जिंदा रखेंगे ताकि तू हर रोज थोडा़ थोड़ा मरे। " इतना कहकर उसने विश्वास राव का गला पकड़कर उन्हें दूर फेंक दिया और गायब हो गई। इस आघात को विश्वास राव झेल नहीं पाए, रात भर रोते रहे और अगली सुबह विश्वास राव ने धारा से क्षमा माँगते हुए कहा " हमें क्षमा कर दो महारानी, हम आपको समझ न सके, हम आपके गुनाहगार हैं और इस सच के साथ हम जी नहीं सकते, यह हमारे गुनाह का प्रायश्चित है "।इतना कहकर वे छत से कूद गए और अचिंत्य जी के सामने दम तोड़ दिया। अभी महात्मा अचिंत्य का हवन खत्म ही हुआ था कि चारों तरफ अंधेरा छा गया और कुछ बच्चों के चीखने की आवाजें आई, महात्मा अचिंत्य ने कक्ष से बाहर निकलकर देखा तो एक पल के लिए वे सकते में आ गए, उस चुड़ैल ने विश्वास राव के साथ रह रहे परिवार के बच्चों को आग के घेरे में कैद कर रखा था और उनके माता पिता के शव उनके सामने पड़े हुए थे। अब वह चुड़ैल अचिंत्य जी के सामने खड़ी थी और चिल्लाते हुए बोली " तुझे सब पता चल गया न, जानता है क्यों..... क्योंकि हमने तुझे सब पता लगने दिया अब देख हम क्या क्या करते हैं। जानता है न सब....... धारा मरी..... हमारा प्रथम प्रतिशोध पूर्ण हुआ, उन गाँव वालों को हमने तड़पा तड़पा कर मार दिया और..... और हमारा द्वितीय प्रतिशोध पूर्ण हो गया, जिस राजा विश्वास राव ने हमें डायन बनने से पहले ही जिंदा जला दिया उसे मारकर हमने अपना तीसरा प्रतिशोध ले लिया और अब....... अब हमारा चौथा और आखिरी प्रतिशोध पूरा होगा जब डायनों को खत्म करने वाला मरेगा, हमारी मौत का कारण मरेगा, मतलब तू मरेगा, हमारे सर्वनाश का कारण है तू, तूने हमें एक बार मारा है, हम तुझे तेरे हर जन्म में मारेंगे, तेरी आत्मा को हमने पहचान लिया है और अब हम तेरे हर जन्म में तेरा इंतजार करेंगे.......तुझे मारने के लिए तब तक..... मुझे याद रखना " इतना कहकर उस चुड़ैल ने महात्मा अचिंत्य की तरफ तंत्र विद्या से इशारा किया और दो काली कीलें उनकी आँखों में धंस गई उसके बाद कोई भारी चीज महात्मा अचिंत्य के दोनों पैरों पर गिर गयी और वे जमीन पर गिर पड़े। अब चुड़ैल ने आखिरी वार किया और महात्मा अचिंत्य को उठाकर उनके सिर और धड़ को दो भागों में कर दिया। तो हर्षद क्या अब तुम समझे वह चुड़ैल क्यों तुम्हारे पीछे पड़ी हुई है?मैं - ऐसा सच में हो सकता है बाबा कि कोई किसी से सदियों से बदला लेने के लिए इस पृथ्वी पर रहता रहे? मैंने आश्चर्य से पूछा। महात्मा जी - क्यों नहीं हो सकता बेटे.... इस पृथ्वी पर सबकुछ संभव है। मैं - बाबा मैं समझ गया वो चुड़ैल मुझसे बदला लेना चाहती है पर बाबा आपको यह सब कैसे पता चला और मुझे अपने पिछले जन्म का कुछ भी याद क्यों नहीं है? मेंने एकसाथ बाबा से सबकुछ पूछ लिया। महात्मा जी - अभी एक घंटे पहले हमने एक नारियल लेकर पहले तुम्हारे सिर पर लगाया और फिर अपने सिर पर लगाया था, उस नारियल को हमने पहले ही सिद्ध कर लिया था, जो कुछ तुमने अपने पिछले जन्म में देखा, वह सब हमने देखा और तभी हमने आप सभी को सब बताया। देखो हर्षद पिछले जन्म का मतलब सब कुछ याद रहना नहीं होता है। पिछले जन्म का या पुनर्जन्म का मतलब आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश करना होता है। जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति को अपना पिछला जन्म याद रहे....... यह बस तभी होता है जब या तो उसपर भगवान की कृपा हो या फिर उस आत्मा ने किसी विशेष कारण से पृथ्वी पर जन्म लिया हो। मैं - बाबा हम सब उस चुड़ैल से कैसे बच पाएंगे? उससे बचने का क्या तरीका है?महात्मा जी - उस चुड़ैल से आप सभी को सिर्फ तभी छुटकारा मिल सकता है जब आप में से कोई उस चुड़ैल की अस्थियों का विसर्जन कर दे।बाबा की बात सुनकर भैया ने कहा " तो ठीक है बाबा हम आज ही उस चुड़ैल की अस्थियों को विसर्जित कर देंगे "" हाँ भैया सही कह रहे हैं हमें आज ही उस चुड़ैल की अस्थियों को विसर्जित कर देना चाहिए तब तो सब ठीक हो जाएगा " अनन्या ने भी भैया की बात पर सहमति देते हुए कहा। महात्मा जी - करन ( मेरे भैया ) पहली बात तो यह कि यह काम इतना भी आसान नहीं है जितना आप सभी इसे समझ रहे हैं, दूसरी बात.....क्या आपमें से कोई जानता है कि उसकी अस्थियां कहाँ पर हैं? " पर बाबा आपने तो उस नारियल से सब पता कर लिया था तो आपको यह भी पता होगा कि अस्थियां कहाँ हैं " मैंने बहुत निश्चिंतता से कहा।महात्मा जी - हमने बस वही देखा जो तुमने उस जन्म में देखा था..... जो तुमने नही देखा उसे हम भी नहीं देख सके। " पर बाबा जब विश्वास राव ने ही आख्या की अस्थियां कहीं छिपाई हैं, तो आपको सब दिख जाना चाहिए था। " मैंने आश्चर्य से कहा। महात्मा जी - तुम अब तक गलत समझ रहे हो, आख्या की अस्थियां विश्वास राव ने छिपाई थीं, महात्मा अचिंत्य ने नहीं। " मतलब मैं पिछले जन्म में विश्वास राव नहीं महात्मा अचिंत्य था...... पर आपने तो बताया था कि चुड़ैल ने विश्वास राव से कहा था कि वह उसे थोड़ा थोड़ा मारेगी और अगर मैं विश्वास राव नहीं, धारा चुड़ैल नहीं तो उस कागज पर आपने विश्वास राव और धारा के नाम क्यों लिखे थे? " मैं आश्चर्य में था। " हाँ अब तुम ठीक समझे, तुम महात्मा अचिंत्य ही थे.......हमने बताया था कि चुड़ैल ने विश्वास राव से कहा था कि वह उन्हें थोड़ा थोड़ा मारेगी पर उसने महात्मा अचिंत्य से कहा था कि उसने उनकी आत्मा को पहचान लिया है और अब वह उनके हर जन्म में उन्हें मारेगी। उस कागज पर हमने धारा और विश्वास राव के नाम इसलिए लिखे क्योंकि तुम्हें उस चुड़ैल से सिर्फ वे ही बचा सकते हैं। " महात्मा जी ने अब भी शांति से कहा। " तो अब हमें कैसे पता चलेगा कि आख्या की अस्थियां कहाँ हैं क्योंकि विश्वास राव और धारा दोनों ही मर चुके हैं ? " मैंने पूछा। " तुम्हें पता है तुम्हारे साथ बारह सड़क दुर्घटनाएं क्यों हुई?"बाबा ने पूछा। " क्या इसका भी कोई कारण है बाबा? " मैं और परेशान हो गया एक गुत्थी सुलझ नहीं पाई है इतने में दूसरी.....हद है। " हाँ इसका भी एक कारण है। अब समय आ गया है जब न्याय होगा। महात्मा अचिंत्य ने गलती से धारा को डायन समझकर जिंदा जलवा दिया था जबकि वह डायन नहीं थी, वह वशीकरण में ऐसा कर रही थी और आख्या को उन्होने डायन समझकर जिंदा जलवा दिया था जबकि वह डायन बनने वाली थी बनी नहीं थी, उसका अंतिम संस्कार होना चाहिए था न कि डायनों की तरह उसकी अस्थियां तीन जगह गाढ़ी जानी थी। यदि आख्या का विधिवत् अंतिम संस्कार हुआ होता तो वह चुड़ैल नहीं बनती और न ही विश्वास राव की जान जाती। महात्मा अचिंत्य की इन दो गलतियों की सजा अब हर्षद भुगत रहा है और विश्वास राव और धारा की आत्मा आज तक भटक रही हैं, मुक्ति पाने के लिए। उन्हें मुक्ति तभी मिल सकती है जब महात्मा अचिंत्य उनसे अपनी गलतियों की क्षमा माँगे यानि कि तुम्हें उनसे क्षमा माँगनी होगी, यदि उन्होने तुम्हें क्षमा कर दिया तो विश्वास राव तुम्हें आख्या की अस्थियों की जगह बता देंगें। "मैं यह सुनकर निराश हो गया था कि पिछले जन्म में ही सही पर मैंने किसी की जान ले ली। " बाबा क्या वे दोनों मुझे माफ कर पाएंगे? "महात्मा जी - चिंता मत करो बेटे अब न्याय होगा, ईश्वर न्याय करेंगे तुम्हारे साथ भी और उनके साथ भी...... प्रतीक्षा करो। मैं - कैसी प्रतीक्षा बाबा? महात्मा जी - बेटे हमें अमावस्या की प्रतीक्षा करनी होगी। मैं - बाबा अमावस्या की प्रतीक्षा क्यों? महात्मा जी - बेटे वे आत्माएं हैं हम किसी भी हाल में उन्हें अमावस्या से पहले नहीं बुला पाएंगे। मैं - जी महात्मा जी, मैं समझ गया। " बाबा अगर विश्वास राव और धारा ने इसे माफ नहीं किया तो हम हर्षद को चुड़ैल से कैसे बचा पाएंगे " पापा ने चिंता में पूछा। महात्मा जी - आप सभी चिंतित न हों हम हर्षद को चुड़ैल से हर परिस्थिति में बचाएंगे, यह अब हमारी जिम्मेदारी है और यदि हम उस चुड़ैल को हरा न सके तो उसे इससे दूर रखेंगे। आप सभी ईश्वर के न्याय पर भरोसा रखिए इसे कुछ नहीं होगा। मैं - बाबा हम धारा और विश्वास राव की आत्माओं को कब, कहाँ और कैसे बुलाएंगे? महात्मा जी - बेटे अब तक शायद तुम इतना तो समझ ही गये होगे कि हर कोई आत्मा मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती। हमें... मैं -बाबा अगर विश्वास राव और धारा की आत्माएं मंदिर में आएंगी ही नहीं तो मैं उनसे माफी कैसे माँग पाउंगा और विश्वास राव मुझे आख्या की अस्थियों के बारे मे कैसे बता पाएंगे? मैं बाबा की पूरी बात सुने बिना ही बीच में बोल पड़ा। महात्मा जी - देखो बेटे यह तुम्हारा पुलिस स्टेशन नहीं है यहाँ तुम्हें अपने कानूनों से नहीं ईश्वर के बनाए नियमों से चीजों को समझना होगा।कोई भी आत्मा मंदिर में प्रवेश तभी कर सकती है जब उसने कभी किसी का बुरा नहीं किया हो पर विश्वास राव ने निर्दोष धारा को डायन समझकर जिंदा जला दिया था इसलिए वे मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते। हमें अमावस्या को मंदिर के बाहर एक हवन करना होगा जिससे वे यहाँ आ सकें और तुम उनसे क्षमा माँग सको, यदि उन्होने तुम्हें क्षमा कर दिया तो वे मुक्त हो जाएंगे और विश्वास राव तुम्हें आख्या की अस्थियों के बारे में बता देंगे। हम सभी महात्मा जी से बात करके अच्छा महसूस कर रहे थे पर हमें क्या पता था कि यह तूफान से पहले की शांति है। हम सभी मंदिर के खाली कमरे में जाकर बैठ गए और महात्मा जी मंदिर के दूसरे कमरे में आराम करने चले गए। मुझे प्यास लगने लगी तो मैं मंदिर के प्रांगण में पानी पीने चला गया। मैंने पानी पीने के लिए गिलास निकाला ही था कि इतने में मेरे हाथ में बहुत तेज दर्द हुआ जैसे किसी ने कीलें चुभा दी हों और पानी का गिलास मेरे हाथ से छूट गया। गिलास गिरने की आवाज सुनकर माँ मेरे पास आई और पूछने लगी " क्या हुआ हर्ष, तू ठीक है न? "मैंने सोचा मैं मंदिर में हूँ तो वह चुड़ैल मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती, मेरा वहम होगा। यह सोचकर मैंने माँ से कहा " कुछ नहीं माँ बस ऐसे ही हाथ से छूट गया, सब ठीक है। "माँ वापस कमरे में चली गई और मैं महात्मा जी के पास उनसे कुछ पूछने गया, पर हाथ में दर्द की वजह से भूल गया कि क्या पूछना है और फिर महात्मा जी मेरे साथ मंदिर के प्रांगण में टहलने लगे।तभी मेरे फोन पर अमन का काॅल आ गया।" हैलो सर, कैसे हैं ?" " मैं ठीक हूँ, बोलो... "" सर यहाँ हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं दो और मौतें हो गई है जिनमें कातिल का कोई सुराग नहीं मिल रहा। "" ठीक है अमन, मैं कल देहरादून आ गया था, कल अॉफिस में आता हूँ तब देखते हैं। "" ओके सर, हैव अ गुड डे। " कहकर अमन ने फोन रख दिया। इस बार फोन मेरे हाथ से छूट गया और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरे दांए हाथ और दांए पैर में खंजर घोंप रहा है और सच में मेरे हाथ और पैर से खून निकलने लगा।महात्मा जी शायद सब समझ गए और देर न करते हुए भागकर हनुमान जी की रोली ले आए और मेरे माथे पर रोली का तिलक लगा दिया। सच में रोली का तिलक लगते ही मेरे हाथ और पैर का दर्द काफी कम हो गया। महात्मा जी - बेटे क्या वह चुड़ैल तुम्हारे बाल ले गई है? मैं - जी बाबा, मैं पहले बताना भूल गया था। महात्मा जी - तुम्हें पता भी है तुम कितनी बड़ी बात बताना भूल गए? मैं - बाबा क्या इसका भी कोई उपाय है? महात्मा जी - हाँ बिल्कुल है, चलो मेरे साथ। महात्मा जी अपने कमरे में गए और एक सफेद कपड़े का टुकड़ा निकाला फिर उस सफेद कपड़े से एक पुतला बनाया और मुझसे मेरे कुछ बाल मांगे, मुझे थोडा़ अजीब लगा पर मैंने बाबा को अपने बाल दे दिए। उन्होने उस सफेद कपड़े के पुतले पर मेरे बाल लगा दिए और मंदिर में जाकर वह सफ़ेद कपडे़ का पुतला हनुमान जी की मूर्ति के चरणों में रख दिया। उनके ऐसा करने से मेरे हाथ और पैर के घाव बिल्कुल गायब हो गए।महात्मा जी मेरी तरफ देखकर बोले " जिस तरह काला जादू होता है उसी तरह सफेद जादू भी होता है और उस चुड़ैल ने अपने काले जादू से तुम्हारे नाम का पुतला जागृत कर लिया और इसलिए जो कुछ वह पुतले के साथ कर रही थी वही तुम्हारे साथ भी हो रहा था। अब हमने सफेद जादू से तुम्हारे नाम का पुतला जागृत कर लिया और यही उस चुड़ैल के जागृत किए गए पुतले का तोड़ है। "मैं - धन्यवाद बाबा, आप मेरी इतनी मदद कर रहे हैं। मैं बाबा से बात कर रहा था कि तभी भैया आ गए और बोले " हर्षद अनन्या के किसी रिश्तेदार की मौत हो गई है इसलिए हम सबका आज ही वापस हरिद्वार जाना जरूरी है। "" ठीक है भैया आप चलिए मैं आता हूँ " मैं चिंता में आ गया कि मंदिर से बाहर निकलते ही तो चुड़ैल किसी को नहीं छोड़ेगी। " तुम चिंता मत करो बेटे हमारे पास हर परिस्थिति का उपाय है।" कहकर बाबा अपने कमरे में चले गए और कुछ सामान हाथ में लेकर लौटे। मैं - यह सब क्या है बाबा? महात्मा जी - यह कुछ अभिमंत्रित कीलें हैं, इन्हें अपने घर के प्रत्येक खिड़की दरवाजे पर लगा देना इससे वह चुड़ैल अंदर नहीं आ सकेगी। कोशिश करना कि ज्दातर सभी लोग घर में ही रहें परन्तु यदि किसी कारणवश घर से निकलना पड़े तो यह धागे बाँधकर ही घर से निकलना। तुम यह धागा बाँध लेना, वह चुड़ैल तुम्हें डराएगी पर तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकेगी। बस अमावस्या तक धैर्य रखो बेटे। मैंने बाबा को धन्यवाद कहा और बाबा ने वे कीलें और धागा मुझे पकड़ा दिया और फिर हम सभी बाबा से आज्ञा लेकर क्वार्टर पहुंच गए। रामू काका को किसी काम से गाँव जाना पड़ गया था और हम सब बहुत भूखे थे इसलिए अनन्या और भाभी कुछ देर बैठने के बाद खाना बना लाए और हम सब खाना खाने लगे और फिर मुझे छोड़कर सभी वापस जाने की तैयारी करने लगे। जब सब वापस इकठ्ठा हुए तो मैंने आधी कीलें पापा को दे दी और आधी अनन्या के पापा को, और सबके हाथों पर महात्मा जी का दिया हुआ धागा बाँध दिया। अब तक शाम के छः बज चुके थे। कुछ ही देर में कैब आ गई और मैंने अपने और अनन्या के माँ पापा का आशीर्वाद लिया और उनका सामान कैब में रखने लगा यह सोचकर कि क्या पता फिर मौका मिले न मिले। माँ - देख बेटा अब जब तुम दोनों की शादी होने वाली है तो अब हम दोनों परिवारों को सुख दुःख भी मिलकर बाँटने होंगे। अभी जाना पड़ रहा है पर तू चिंता मत करना और अपना ध्यान रखना, फोन करता रहना। पापा - तू जब फोन करेगा तब हम सभी आ जाएंगे ठीक है, अपना ध्यान रखना। सब चले गए..... मैं फिर से इस क्वार्टर में अकेला रह गया थोड़ी देर तक हॉल में बैठा रहा फिर अपने कमरे में जाकर लेट गया, बहुत थकान हो रही थी इसलिए पता भी नहीं चला, कब नींद आ गई। अभी मुझे सोए हुए ज्यादा देर नहीं हुई थी कि तभी अचानक मेरी नींद खुल गई और पूरे कमरे में चिता जलने की बदबू भर गई, वह चुड़ैल मेरे बांई तरफ आकर बैठ गई और बोली " तुझे लगा तेरा हमसे पीछा छूट गया.......तुझे हम मारकर ही रहेंगे.....तू हमसे बच नहीं सकता "इतना कहकर वह बहुत तेज गुर्राने लगी और फिर गायब हो गई, पर आज मेरे हाथ में धागा बंधा हुआ था इसलिए वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाई और गायब हो गई। जब मैं आॅफिस पहुंचा तो हमेशा की तरह अमन ने मुझे गुड मॅर्निंग विश किया। " अमन सारे केसेज़ की फाइल्स मेरे कैबिन में लेकर आओ " मैं जाते ही काम पर जुट गया और शायद मेरी इसी आदत की वजह से मेरे साथ काम करने वाले लोग मुझसे परेशान हो जाते हैं। " जी सर " कहकर अमन कुछ फाइल्स निकालने लगा और मैं अपने कैबिन में जाकर बैठ गया। " मे आय कम इन सर? "" यस कम इन "" सर ये उन सारे केसेज़ की फाइल्स हैं जब आप यहाँ नहीं थे "तभी रागिनी और अर्जुन आ गए और मैं एक फाइल उठाकर पढ़ने लगा। अचानक मेरे कैबिन में चिता जलने की बदबू भर गई और जो फाइल मैं पढ़ रहा था उसमें आग लग गई और फिर टेबल पर रखी हुई सारी फाइल्स एक एक कर जलने लगी। वह चुड़ैल आकर मेरे सामने खड़ी हो गई, इस बार वह और भी ज्यादा डरावनी लग रही थी। उसके बाल हवा में उड़ रहे थे और उसका पूरा चेहरा बहुत बुरी तरह से जला हुआ था, उसकी पलकें नहीं थी और उसके होठ भी पूरी तरह से जल गए थे बस दाँत नजर आ रहे थे और दाँत भी ऐसे नुकीले जैसे शेर के होते हैं और वो अपनी जली हुई नाक से हम सबको सूँघने लगी जैसे शेर अपने शिकार को सूँघता है और वह अपनी अंगारों जैसी लाल आँखों से हमे ऐसे घूर रही थी जैसे अभी हमें कच्चा ही खा जाएगी। अचानक वो ठीक मेरे सामने आकर खड़ी हो गई और बोली " तू मला जीवंत बर्न केलेस आता मी तुला कसे मारतो ते मला आठवण करून दे ( तूने मुझे जिंदा जलवाया था अब देख मैं तुझे कैसे मारती हूँ तब तक मुझे याद रखना ) " उसने इतना कहा और मेरा गला पकड़ने वाली थी कि उसे एक करंट का झटका सा लगा और वह चीखती चिल्लाती गायब हो गई। मुझे कुछ समझ नहीं आया वह क्या बोल रही थी। " सस्स... स...र य....ह क्कक.... क्या था? " अमन डर के मारे लगभग फुसफुसा के बोल रहा था और अर्जुन और रागिनी तो बिना कुछ बोले ही बेहोश हो गए। " दिख नहीं रहा था तुम्हें वो कौन थी.... यह भी मैं बताऊं क्या.....समझ नहीं आया वो वही चुड़ैल थी जो इतने दिन से मेरे पीछे पड़ी हुई है। " मैं गुस्से और डर से अमन पर चिल्लाते हुए बोला।" सॅारी सर वो मैं बहुत डर गया था इसलिए गलती से मुंह से निकल गया। "मुझे बुरा लगा मैं बिना वजह उसपर चिल्ला दिया। पर अब मै इतना तो समझ गया था कि जब तक यह अभिमंत्रित धागा हमारे हाथों में है, तब तक वह चुड़ैल मेरा और मेरे परिवार का कुछ नहीं बिगाड़ सकती और इसीलिए गुस्से से पागल हो रही है, मुझे कुछ खुशी सी हो रही थी पर मेरी यह खुशी तब खत्म हो गई जब मेरे कैबिन में वापस चिता जलने की बदबू भर गई और फिर उस चुड़ैल ने अमन को पकड़ कर अपने नाखून तीन इंच लंबे कर लिए और अमन के दोनों हाथों में चुभा दिए, वह दर्द से चिल्लाने लगा और उसकी चीख सुनकर आॅफिस के बाकी लोग भी मेरे कैबिन में आ गए अब हम तेरह लोग हो गए थे। तभी अर्जुन को होश आ गया और उसने चुड़ैल पर पिस्तौल तान दी पर इससे पहले कि वह फायर कर पाता, चुड़ैल एक पल में उसके सामने खड़ी हो गई और बोली " पिछली बार तो तेरा पैर तोड़ा था इस बार गर्दन तोड़ रहे हैं " कहकर उसने अर्जुन के सिर और धड़ को एक झटके में ककड़ी की तरह तोड़कर अलग कर दिया। अर्जुन की जान लेकर वो मेरी तरफ पलट कर बोली " बोल यह धागा उतारेगा या औरों को भी मार दें "इतना कहकर उस चुड़ैल ने दो कॉन्स्टेबल्स को पकड़ा और उनके खून की एक एक बूँद पी गई और फिर मेरे सामने आकर बोली " बोल अब धागा उतारेगा या नहीं बोल " मैं जीना चाहता था पर इतने लोगों की जान लेकर नहीं इसलिए मैंने अमन से कहा कि " तुम यह धागा रख लो और जब यह चुड़ैल किसी को भी मारने बढ़े उसे यह धागा बाँध देना " और मैंने धागा अमन को पकड़ा दिया। मेरे धागा उतारते ही उस चुड़ैल ने मुझे उठाकर फेंक दिया और मैं कैबिन का दरवाजा तोड़ते हुए बाहर जा गिरा फिर वह चुड़ैल हवा में उड़ती हुई मेरे सामने आई और अपना एक पैर मेरी गर्दन पर रख कर बोली " तू मुझसे बच नहीं सकता है, तुझे सारा सच जानने का बहुत शौक है न...... अब तेरे सच जानने के बाद भी तू कुछ नहीं कर पाएगा " इतना कहकर उसने एक काला पत्थर मेरे सिर पर दे मारा और मैं बेहोश हो गया। जब मुझे होश आया तो देखा मैं हॉस्पीटल में हूँ और अमन मेरे बांई तरफ बैठा हुआ है, उसके दोनों हाथों पर पट्टियां बंधी हुई है।" सर आप ठीक तो हैं न? " अमन ने मुझसे पूछा। " अमन मैं तो ठीक हूँ पर इससे ज्यादा मेरे लिए यह जानना जरूरी है कि कहीं उस चुड़ैल ने किसी और को तो कोई नुकसान नहीं पहुँचाया? "" नहीं सर, सब ठीक हैं, वह चुड़ैल आपको मारने के बाद गायब हो गई और तब मैं उन्हें हनुमान जी की एक तस्वीर देकर आपको यहाँ ले आया। "" फिर ठीक है अमन, यह बताओ वह धागा किसके पास है? "" सर यह रहा " कहकर उसने अपनी जेब से वह धागा निकालकर मुझे दिया तो मैंने वह धागा लेकर उसके हाथ पर बाँध दिया। " सर यह आप क्या कर रहे हैं इसकी जरूरत तो आपको है, मैं ठीक हूँ सर " अमन कुछ हड़बड़ा सा गया, शायद उसे इसकी उम्मीद नहीं थी। " अमन मैं यह धागा न बाँधू तो वह चुड़ैल सिर्फ मुझे नुकसान पहुंचाएगी पर अगर मैंने यह धागा बाँध लिया तो वह मुझे नुकसान पहुंचाने के लिए मुझसे जुड़े हर इंसान को नुकसान पहुंचाएगी। मैं यह धागा बाँधे रहूँ या चाहे न बाँधे रहूँ, मुझे तो वह चैन से जीने नहीं देगी तो फिर मैं अपनी वजह से सबकी जान क्यों खतरे में डालूँ। "अमन ने चुपचाप धागा बंधवा लिया। " अमन एक काम करो सबको जाके एक एक हनुमान जी की तस्वीर दे दो और तुम यह धागा मत उतारना।"" ठीक है सर मैं चलता हूँ अपना ध्यान रखिएगा। " कहकर अमन चला गया। अभी तो मैं होश में आया ही था पर पता नहीं कैसे दोबारा नींद आने लगी और मैं सो गया। जब दोबारा नींद खुली तो लग रहा था जैसे मैं " मैं " नहीं " कोई और " हूँ, सिर में अजीब सा भारीपन लग रहा था, कुछ देर बाद डॉक्टर ने मुझे डिस्चार्ज कर दिया। मैं हॉस्पीटल से निकलकर सड़क के एक किनारे चल रहा था पर यह मेरे क्वार्टर का रास्ता नहीं था, पता नहीं मैं कहाँ और क्यों जा रहा था बस चल मैं रहा था और मुझ पर कंट्रोल किसी और का था। मैं सबकुछ समझ रहा था पर कर कुछ नहीं सकता था....मैं बस चल रहा था और अचानक मुझे एक गिलहरी दिखी जिसपर मै ऐसे झपट पड़ा जैसे मैं सालों से भूखा हूँ, मैंने उसे कच्चा ही खा लिया। वैसे तो मैं एक राजपूत हूँ पर फिर भी कभी नॉन वेज नहीं खाया पर आज यह क्या हुआ, क्यों हुआ मै समझ नहीं पा रहा था। यूँही चलते चलते मैं रात के करीब दस बजे क्वार्टर पहुंचा और जाकर अपने कमरे में सो गया।आज सुबह सुबह यह कैसी आवाजें आ रही हैं मैं मन में सोचने लगा, सिर दर्द से फटा जा रहा था, जैसे ही नीचे गया देखा वह चुड़ैल सोफे पर बैठी हुई है और किसी बंदर को खा रही है, सोफे के आस पास उस बंदर का खून ही खून पड़ा हुआ है। वह एकदम से मेरे सामने आकर खड़ी हो गई और बोली " तू यही सोच रहा है न कल तूने गिलहरी कैसे खा ली.....यह देख " कहकर वो एक काले धुंए में बदल गई और वो धुंआ मेरे अंदर घुस गया। तब मुझे समझ आया कि वह चुड़ैल कल भी मेरे शरीर में प्रवेश कर चुकी थी शायद इसीलिए मैं सब कुछ समझते हुए भी कुछ नहीं कर पाया.......मैंने वह गिलहरी खा ली वो भी इसीलिए, अब मैं उस बंदर को कच्चा खा रहा हूँ जिसे वह चुड़ैल खा रही थी इसलिए क्योंकि अब वह चुड़ैल मेरे शरीर में प्रवेश कर चुकी थी। चार दिन तक मैं यूँही जानवरों को खाता रहा न नहाया, न खाना खाया, न आॅफिस गया। वह चुड़ैल छः दिनों से मेरे शरीर में थी। शाम हो गई, डोरबेल बजी..... बहुत मुश्किल से मैं दरवाजा खोल पाया, देखा तो सामने भैया थे और उन्हें देखते ही मैं बेहोश हो गया। जब मुझे होश आया तो माँ पापा भाभी और भैया सब मेरे आस पास खड़े हुए थे। " तुझे क्या हुआ था हर्षु? " बचपन से हमेशा भैया डाँटते ही रहे पर आज मुझे ऐसे बेहोश देखकर डर गए थे और इसीलिए इतने प्यार से बात कर रहे थे वरना भैया और मुझसे सीधे सीधे बात करें तब तो अजूबा ही हो जाए। " हाँ....ठीक हूँ भैया, आप सब यहाँ कैसे आपके काॅलेज में तो छुट्टियाँ नहीं हुई न फिर? " मैंने बात बदलने की कोशिश की। " पगले मैं प्रोफेसर बाद में हूँ पहले तेरा भाई हूँ, भूल गया कल अमावस्या है "आज तो भैया बड़ा प्यार दिखा रहे थे और जब सही था तब तो डांटते रहते थे। " भैया इस बारे में कोई बात मत करो वह यहीं है। "मैं जानता था कि वह यहीं कहीं है क्योंकि वो मुझे किसी भी हाल में अमावस्या को हवन में नहीं जाने देगी। " यह रामू भैया भी न पता नहीं कब गाँव से आएंगे सफर से आकर भी काम करना पड़ता है " माँ ने बहुत परेशान होकर कहा और भाभी को लेकर खाना बनाने किचन में चली गईं। वे दोनों अभी किचन में गई ही थीं कि उनके चिल्लाने की आवाज सुनकर मैं, भैया और पापा भागकर किचन में गए और हमें एक बड़ा झटका लगा, माँ और भाभी के सामने एक बुरी तरह चबाया हुआ, कटा हुआ हाथ पड़ा हुआ था। भैया और पापा उसे समेटने लगे और कर भी क्या सकते थे। पर मैं वहीं फ्रीज़ सा हो गया, पैरों में एकदम ठंड का एहसास हुआ और पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई, उस हाथ को देखकर नहीं, बल्कि यह सोचकर कि कहीं चुड़ैल मेरे परिवार को कुछ कर न दे। अब कुछ नहीं हो सकता था, मैं और मेरा परिवार, हम बहुत मजबूर थे। इस सब के बाद किसी ने खाना नहीं खाया और सब अपने अपने कमरों में जाकर सो गए। रात के करीब तीन बजे भैया के चिल्लाने की आवाज आई और जब मैंने कमरे से बाहर निकलकर देखा तो आँखें फटी की फटी रह गई, डाइनिंग टेबल पर एक प्लेट में रामू काका का कटा हुआ सिर रखा हुआ था और आस पास खून ही खून फैला पड़ा था। मैं फिर यह सोचने लगा कि वह चुड़ैल मुझसे बदला लेने के लिए मेरे परिवार के पीछे पड़ गई है और अब न जाने क्या करे, मेरे शरीर में फिर से सिहरन दौड़ गई। अचानक माँ चिल्लाईं और जब हमने उनकी तरफ देखा तो उनके कंधे पर एक कटी हुई उंगली गिरी हुई थी। एक बार फिर पापा और भैया सब साफ करने लगे बिना कोई सबूत छोड़े वरना हम अपने सबसे अच्छे हैल्पर की मौत के इल्जाम में खुद ही फंस जाते। मैं अब भी बुत बना हुआ खड़ा था। अचानक पूरे हाॅल में चिता जलने की बदबू भर गई और मेरे सामने उस चुड़ैल की अंगारों जैसी लाल आँखें चमकने लगीं, अपने परिवार को लेकर मैं इतना डर रहा था कि मैं वहीं का वहीं बुत बनकर खड़ा रह गया, फिर वे लाल आँखें मेरी बांई तरफ मुड़ गई तब मुझे याद आया मेरी बांई तरफ तो पापा खड़े है और मैं पापा के सामने खड़ा हो गया और बहुत हिम्मत करके उससे कहा " तुझे जो करना है मेरे साथ कर, तेरा बदला मुझसे है तो मेरी जान ले ले पर अब मेरे परिवार की तरफ आँख उठाकर भी देखा न तो मैं तुझे छोडूँगा नहीं। " " तू मुझे मारेगा, मैं तो पहले ही मर चुकी हूँ.......तेरी वजह से........ पर......पर अब तू और तेरा परिवार मुझसे कैसे बच पाओगे? "वह गुर्राने लगी और फिर मेरी तरफ कुछ इशारा करके कुछ बुदबुदाने लगी पर इससे पहले वो कुछ कर पाती, भैया ने उसे पकड़ लिया और वो चीखने चिल्लाते हुए गायब हो गई तब मुझे याद आया कि भैया ने अभिमंत्रित धागा पहन रखा है और वह चुड़ैल मेरे अलावा किसी को कुछ नहीं कर सकती। सोचकर थोड़ी शांति मिली पर यह शांति भी ज्यादा देर तक टिक नहीं पाई उस चुड़ैल ने मेरे सामने आकर सीधे मेरा गला पकड़ लिया और मुझे उठाकर दीवार की तरफ फेंक दिया, सब लाचार सी नजरों से मुझे देख रहे थे वह चुड़ैल फिर से मेरे सामने आ गई, इस बार उसके हाथ में तलवार थी वह बस मुझे मारने ही वाली थी कि तभी माँ ने उसके ऊपर महात्मा जी की दी हुई भभूति फेंक दी और वह चुड़ैल चीखती चिल्लाती गायब हो गई। उसके गायब होते ही भैया के पास महात्मा जी का दिया हुआ धागा बचा हुआ था तो उन्होने मेरे हाथ पर वह बचा हुआ धागा बाँध दिया। अब हम सब सुरक्षित थे वह चुड़ैल हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पा रही थी इसलिए गुस्से में पागल होकर कभी किसी जानवर को मारकर हमारे ऊपर फेंक रही थी तो कभी बुरी तरह से गुर्राने लग जाती, पर अब हम लोग डर को इतनी गहराई से देख चुके हैं कि इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, रात भर हममें से कोई नहीं सो सका, जैसे ही किसी को नींद आती, वह चुड़ैल बहुत जोर से डरावनी आवाजें निकालने लगती।सुबह होते ही हम सभी महात्मा जी से मिलने चल दिए यह जानते हुए भी कि आज वह हमें किसी भी हाल में मंदिर तक नहीं पहुंचने देगी क्योंकि आज अमावस्या जो है और अमावस्या को न सिर्फ आत्माओं को बुलाना आसान रहता है बल्कि उनकी शक्तियां भी बढ़ जाती हैं और इसका मतलब उस चुड़ैल की शक्तियां भी बढ़ गई होंगी, क्या बाबा का दिया हुआ यह भभूति और धागा हमें बचा पाएगा। सोचते सोचते पता भी नहीं चला कि हम मंदिर वाली गली में आ गए और मंदिर गली के अंतिम छोर पर नजर आने लगा। भैया, भाभी, माँ, पापा सब एक दूसरे को बहुत खुशी और आश्चर्य से देख रहे थे कि वह चुड़ैल नहीं आई पर मुझे पता था वो जरूर आएगी और हर तरफ अंधेरा छा गया, चिता जलने की बदबू आने लगी, सामने से वह चुड़ैल हवा में उड़ती हुई हमारी कार पर बैठ गई और एक झटके में हमारी कार पलट दी, हम मंदिर के इतने पास होकर भी असहाय हो गए थे फिर एक और बुरी चीज हुई, भाभी के हाथ का धागा कार में ही कहीं उलझ कर टूट गया और इसका पता हमें तब चला जब उस चुड़ैल ने भाभी को पकड़ लिया और उनके हाथ को ऐसे चबाने लगी जैसे कोई बहुत समय से भूखा जानवर अपना शिकार खाता है। हम सब भाभी को बचाने दौड़ पर वह चुड़ैल भाभी को लेकर गाडी के दूसरी तरफ चली गई और गाड़ी में आग लगा दी हम सकड़ी गली होने के कारण दूसरी तरफ जा भी नहीं पाए और एक बार फिर उस चुड़ैल की डरावनी हँसी गूँजी पर इस गूँज के साथ एक चीख भी थी, मेरी भाभी की चीख जिसे सुनकर भैया जमीन पर गिर पड़े और एक पल के लिए हम सब बुत बन गए कि कहीं उसने भाभी को भी तो.....पर नहीं उसकी डरावनी आवाज गूँजी और वह बोली " धागा उतार दे अचिंत्य वरना हम इसे और सबको मार देंगे और फिर किसके लिए जीवित रहेगा तू? "मुझे थोड़ी शांति मिली कि भाभी ठीक हैं और मैंने धागा उतार कर दूर फेंक दिया और वह चुड़ैल भाभी को छोड़कर हवा में उड़ती हुई मेरे सामने आ गई, उसने काला जादू करना शुरू किया और एक काली लकड़ी मेरे पैर में घोंप दी जो मेरे पैर को चीरकर जमीन में धंस गई थी, अब मैं हिल भी नहीं पा रहा था, सब मेरी हालत देखकर रो रहे थे पर पापा मंदिर की तरफ भागने लगे शायद महात्मा जी को बुलाने पर उस चुड़ैल ने पापा के पैरों पर एक पूरा पेड़ गिरा दिया, फिर वे जोर से "महात्मा जी" चिल्लाए और बेहोश हो गए, भाभी पहले ही बेहोश हो गई थी, फिर पापा और अब मैं अपने पैर के दर्द की वजह से बेहोश होने लगा। जब मुझे होश आया तब महात्मा जी मेरे सामने खड़े हुए थे और माँ और भैया मेरी दांई तरफ खड़े रो रहे थे। मैं बहुत डर गया कहीं भाभी और पापा को कुछ.... इसके आगे मैं कुछ सोच नहीं पा रहा था। " आप दोनों रो क्यों रहे हैं, सब ठीक हैं न? "मैंने डरते डरते पूछा। " हाँ हर्ष संध्या और तेरे पापा ठीक हैं पर हॉस्पीटल में ऐडमिट है, उन दोनों को बहुत चोट आई हैं। "माँ ने रोते हुए कहा। " पर अगर उस चुड़ैल ने फिर से भाभी या पापा को कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश की तो? "मैं अब भी बहुत डर रहा था। " नहीं बेटे वे दोनों हॉस्पीटल में बिल्कुल सुरक्षित हैं क्योंकि राघव उनके साथ है। "महात्मा जी ने मुझे समझाते हुए कहा। यह सुनकर मेरा डर कुछ कम हुआ। महात्मा जी - बेटे आज अमावस्या है और रात भी हो गई है, हमें अब हवन करना चाहिए। पापा और भाभी की ऐसी हालत थी तो मेरा मन तो नहीं था कुछ करने का पर यही एक तरीका था इस सब से बचने का तो मैं उठा और हवन करने के लिए हाँ कह दिया। महात्मा जी मंदिर के बाहर पहले से बने हवन कुण्ड में हवन सामग्री रखने लगे और बाकी तैयारियां करने लगे यहाँ मैं, माँ और भैया हम मुँह हाथ धोकर तैयार हो गए। महात्मा जी ने कहा था कि हमें हवन साफ कपड़ों में ही करना होगा क्योंकि अच्छी आत्माओं को साफ सफाई पसंद होती है और वे गंदी जगहों पर नहीं जाती हैं। रात के करीब ग्यारह बजे हम चारों मतलब मैं, भैया, माँ और महात्मा जी हवन कुण्ड के चारों तरफ बैठ गए, मैं और महात्मा जी आमने सामने बैठे हुए थे क्योंकि मुझे हवन में आहूति देनी थी और माँ और भैया मेरी दांई और बांई तरफ बैठे हुए थे। महात्मा जी ने हमारे चारो तरफ कुछ मंत्र पढ़ते हुए एक घेरा बनाया और फिर वे भी उस घेरे में बैठ गए। महात्मा जी ने बताया कि " इस घेरे की वजह से वह चुड़ैल न तो हम सबको देख पाएगी और न ही हवन में कोई बाधा डाल पाएगी, इस घेरे की वजह से उस चुड़ैल को बाहर से देखने पर एक गोल, बैंगनी टीला नजर आएगा। " महात्मा जी ने जैसे ही हवन करना शुरू किया, हमने देखा चारों तरफ आँधी चलने लगी, पेड़ टूटकर गिरने लगे, पर आश्चर्य, हमारे ऊपर न ही आँधी की हवाएं आ रही थी और न ही पेड़ गिर रहे थे, शायद महात्मा जी के बनाए घेरे के कारण। लगभग तीन घंटे बाद हवन रुका और हवन की आग में से दो आग के गोले ऊपर उठ कर हवा में तैरने लगे और धीरे धीरे उन्होने मानवाकृति धारण कर ली। एक मानवाकृति वेश भूषा से किसी राजा की तरह लग रही थी, चेहरे पर तेज, बड़ी बड़ी मूँछें, सिर पर ताज, हाथ में तलवार और मराठाओं के जैसे कपड़े। दूसरी मानवाकृति एक रानी की तरह लग रही थी,गहनों से लदी हुई, बहुत खूबसूरत, आज के समय में शायद ही कोई लड़की इतनी सुंदर हो। मैं महात्मा जी की तरफ प्रश्नवाचक निगाहो से देखने लगा कि क्या यह धारा और विश्वास राव हैं, तब महात्मा जी ने हाँ में गर्दन हिला कर इस बात की पुष्टि की कि यह दोनों ही धारा और विश्वास राव हैं। मैंने अपने दोनों हाथ जोड़कर उन दोनों से कहा " मुझे माफ कर दीजिए, मुझे तो कुछ भी याद नहीं पर मैं जानता हूँ मैंने अपने पिछले जन्म में कितना बड़ा गुनाह किया है और मैं आप दोनों का गुनाहगार हूँ, अगर उस समय अचिंत्य ने जल्दबाजी न की होती तो निर्दोष धारा जी की मौत न होती और आख्या का अंतिम संस्कार किया होता तो वह चुड़ैल न बनती और न ही आपकी जान जाती, मुझे माफ कर दीजिए। मैं आज भी अपने किए की सजा भुगत रहा हूँ, आख्या मेरे साथ साथ मेरे पूरे परिवार के पीछे पड़ी हुई है, मुझे माफ कर दीजिए। "तभी एक आवाज गूँजी ऐसा लग रहा था जैसे कहीं दूर धरातल से आवाज आ रही हो यह विश्वास राव की आवाज थी " हमने आपको अपनी मृत्यु के लिए क्षमा किया, हम दोनों को आपसे कोई शिकायत नहीं। "" जी धन्यवाद " मैं और क्या कह सकता था। विश्वास राव ने आगे कहा " आप हारांगुल जाएं, वहाँ गाँव के बीचोंबीच एक खँडहर नजर आएगा, कभी वह हमारा कक्ष हुआ करता था, आपको वहाँ बीचोंबीच एक त्रिशूल नजर आएगा आप उसके नीचे खुदाई करिए, आपको आख्या की अस्थियों का पहला घड़ा मिल जाएगा। इसके बाद आप गंगा के किनारे, उत्तरी दिशा में जमीन में गड़े हुए एक त्रिशूल के नीचे खुदाई करिए, आख्या की अस्थियों का दूसरा घड़ा आपको वहाँ मिलेगा तत्पश्चात आप इसी इलाके के दक्षिणपूर्वी दिशा में सीधे जाइए वहाँ भी आपको एक त्रिशूल दिखेगा उसके नीचे कुछ गहरा खोदिएगा, वहीं आपको आख्या की अस्थियों का अंतिम घड़ा मिल जाएगा। "" महाराज क्या वे घड़े इतने सालों बाद भी वहीं मिल पाएंगे? " मैंने निराश होकर पूछा। " क्यों नहीं, उन घड़ों पर आपके मंत्रों का कवच है, उन्हें न जमीन गला सकती है, न नदी बहा सकती है, उन घड़ो को, उन त्रिशूलों को आपके और हमारे अलावा और कोई नहीं देख सकता, वे सदियों से आपकी प्रतीक्षा में हैं। और एक बात महात्मा जी केवल आख्या की अस्थियां विसर्जित करने से कोई समाधान नहीं निकलेगा, हमें एकबार महात्मा अचिंत्य जी ने बताया था कि यदि कोई डायन बनने से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाये तो उसकी अस्थियों को विसर्जित करने से कुछ नहीं होगा अपितु अस्थियों के तीन भाग करके एक भाग को गंगा में प्रवाहित करना होगा, दूसरे भाग को महादेव का हवन करने के बाद उस हवनाग्नि में से कुछ अग्नि लेकर अस्थियों के दूसरे भाग को दोबारा जलाना होगा और अस्थियों के तीसरे भाग को वायु में उछालकर मिट्टी में मिलाना होगा क्योंकि धरती पर प्रत्येक जीव जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश से ही उत्पन्न होता है और उसी से उसका अंत होता है। हम जानते हैं अचिंत्य जी आप यह कर पाएंगे, हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं, विजयी भवः। " कहकर विश्वास राव और धारा की आत्माऐं सफेद रंग के धुंए में बदल कर आसमान में मिल गई। मैं - महात्मा जी क्या विश्वास राव और धारा को मुक्ति मिल गई है? महात्मा जी - हाँ बेटे और अब हमें लगता है तुम दोनों को आख्या की अस्थियों की खोज पर निकल जाना चाहिए ताकि तुम जल्द से जल्द उन्हें विसर्जित कर सको और आग और पृथ्वी से उन अस्थियों को हम मिला देंगे। मैं - बाबा हम दोनों मतलब मैं और कौन, क्या मेरे साथ किसी और का जाना भी जरूरी है? महात्मा जी - हाँ बेटे तुम्हारे साथ करन जाएगा ताकि यदि वह चुड़ैल तुम्हें रोकने की कोशिश करे तो करन उसकी अस्थियां विसर्जित कर सके। पर इससे पहले हमे और तुम्हारी माता जी को एक कार्य करना होगा। करन भैया - कैसा काम बाबा? महात्मा जी - हम इस घेरे से बाहर निकलकर कुछ दूर तक उस चुड़ैल के लिए एक जाल बिछाकर आएंगे ताकि वह तुम दोनों का पीछा न कर सके। बोलिए क्या आप यह कर पाएंगी? महात्मा जी ने पहले भैया और फिर माँ की तरफ देखकर कहा और माँ ने हाँ कहकर खड़ी हो गई। महात्मा जी ने कहा अब कोई कुछ नहीं बोलेगा, जरा सी भनक भी जानलेवा साबित हो सकती है और वे और माँ घेरे से बाहर निकलकर दूर चले गए, हम दोनों उसी घेरे में बैठे रह गए। करीब एक घंटे, पचास मिनट बाद महात्मा जी और माँ वापस आए ओर घेरे में बैठ गए। माँ के हाथ पर एक कपड़ा बंधा हुआ था। महात्मा जी -हमने तुम्हारी माँ के हाथ से खून की कुछ बूंदें चारों तरफ फैला दी हैं जिससे जब तुम लोग उसकी अस्थियां ढूँढ़ने जाओ तब वह तुम्हारी माँ के खून की गंध से यहाँ तक आ सके और फिर हम उसे यहाँ कैद कर सकें। पर ध्यान रहे तुम्हें यह कार्य जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी पूर्ण करना होगा।। मैं - बाबा हमें कम से कम पूरा एक दिन लग जाएगा, हारांगुल बहुत दूर है और फिर हमें वो जगह भी खोजनी पड़ेगी, फिर खुदाई.....महात्मा जी - देखो हर्षद, करन हम तुम दोनों के हाथों पर यह नया तथा ज्यादा शक्तिशाली धागा बाँध रहे हैं पर इस बार चाहे वह चुड़ैल किसी को भी क्यों न मार दे, तुम दोनों यह धागा नहीं खोलोगे। " जी महात्मा जी " कहकर हम दोनों सबसे पहले एक बाइक लेकर दक्षिणपूर्वी दिशा की तरफ चल दिए, वहाँ कुछ जंगल सा शुरू हो गया था और अंधेरा भी था, तभी मुझे एक सुनहरी रौशनी दिखी और मैंने भैया से कहा शायद वहाँ कुछ हो और फिर हम बाइक से उतरकर उस तरफ चलने लगे, पाँच मिनट चलने के बाद मुझे वहां एक त्रिशूल दिखा जिससे वही सुनहरी रौशनी निकल रही थी जो मुझे यहाँ तक लाई थी और मैंने कहा " भैया हमें यहाँ खुदाई करनी चाहिए " मैंने उस त्रिशूल को निकाल कर अलग रख दिया और हम वहाँ खुदाई करने लगे, कुछ मिनट खोदने के बाद हमें वहाँ एक मिट्टी का छोटा सा घड़ा मिल गया, उस घड़े को बैग में रखकर भैया ने एअरपोर्ट की तरफ बाइक दौड़ा दी। एअरपोर्ट लगभग आधे घंटे दूर था, पर शायद भगवान भी यही चाहते थे कि वह चुड़ैल खत्म हो जाए इसलिए वह अभी तक यहाँ मतलब हमारे पीछे नहीं आई। हम एअरपोर्ट पहुंचे पर बदकिस्मती से फ्लाइट एक घंटे बाद की थी। हम दोनों वहीं बैठे रहे, एकदूसरे से कुछ भी कहते नहीं बन रहा था। फाइनली टाइम कट गया हमने फ्लाइट पकड़ी और कुछ ही घंटों में हम महाराष्ट्र में थे, हम हारांगुल की सीमा पर पहुंचे तो देखा विश्वास राव के बताए अनुसार वहाँ कुछ भी नहीं बचा था, कोई खंडहर नहीं था, पर एक कच्चे मकान में मुझे वही सुनहरी रौशनी दिखी जैसी देहरादून में दिखी थी, " भैया उस कच्चे मकान में वैसी ही सुनहरी रौशनी दिख रही है, जैसी देहरादून में दिखी थी " मैंने भैया से कहा और हम उस मकान में गये तो देखा वहाँ एक बुजुर्ग दंपति थे। मैंने और भैया ने उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया। अब वह सुनहरी रौशनी मुझे एक कोने में लगे त्रिशूल से निकलती दिख रही थी। " अब क्या इनके घर में खुदाई करनी होगी " भैया ने कुछ चिढ़कर कहा फिर खुद ही उस दंपति से बात करने लगे " अंकल आंटी, हम हरिद्वार से हैं, मेरे भाई की जान खतरे में है, उसकी जान बचाने के लिए हमें अ.. आपके घर में, ज.. जमीन में खुदाई करनी पड़ेगी, वहाँ एक चुड़ैल की अस्थियां गढ़ी हुई हैं " भैया ने उनसे हाथ जोड़कर कहा। तब वो आंटी बहुत तेज गुस्सा होते हुए बोली " तुम दोनों ने हमें पागल समझ रखा है क्या, गरीब हैं तो क्या तुम हमारी यह झोंपड़ी भी हमसे छीन लोगे? " " नहीं आंटी भैया सच कह रहे हैं, अगर उस चुड़ैल की अस्थियां नहीं मिलीं, तो मैं तो क्या मेरा पूरा परिवार खत्म हो जाएगा। हमारी मदद कर दीजिए, आपका जो भी नुकसान होगा, हम उससे दोगुना भरपाई करने को तैयार हैं, प्लीज आंटी मान जाइए हमारे पास इतना वक्त नहीं है " मैंने हाथा जोड़कर कहा। " राजेश्वरी बच्चों को खुदाई कर लेने दो, शायद यह सच कह रहे हैं, याद करो हमारा त्रिपुरारि भी हमसे हमेशा कहता था यहाँ कुछ अशुभ है, और अगर सच में किसी चुड़ैल की अस्थियां यहाँ गढ़ी हुई हैं तो अच्छा ही तो है, हमारे घर से मनहूसियत चली जाएगी। " अंकल आंटी को समझाते हुए कहने लगे। इस सब में बहुत देर हो गई और फिर खुदाई करते हुए और ज्यादा देर लग गई। करीब दो फीट खोदने के बाद हमें वहाँ एक मिट्टी का छोटा सा घड़ा मिल गया और जब उसे खोलकर हमने अंकल आंटी को दिखाया तब उन्हें यकीन हो गया कि हम दोनों सच बोल रहे थे। भैया ने वह दूसरा घड़ा भी बैग में डाला और फिर हम हारांगुल से निकलकर एअरपोर्ट पहुंचे, इस सब में हमें दो घंटे पैंतालीस मिनट लगे, अब तक शाम के छः बज चुके थे जब हम गंगा के उत्तरी किनारे पर पहुंचे अब रात के दस बजकर सैंतालीस मिनट हो गए थे पर मुझे कहीं भी वह सुनहरी रौशनी नजर नहीं आ रही थी पर अचानक से एक लोहे का रॉड आकर भैया के सिर पर लगा और वे दर्द से चीख पड़े, उस वक्त उनकी वह हालत मुझसे देखी नहीं जा रही थी पर अगर मुझे भैया को बचाना है तो मुझे सुनहरी रौशनी को ढूँढना ही पड़ेगा यह सोचकर मैं और आगे भागने लगा, भैया जमीन पर गिरे हुए मुझे देख रहे थे। इतने में जाने कहाँ से एक चाकू उड़ता हुआ आया और मेरे पैर में लग गया, अब हालत यह थी कि कल मेरे पैर में जो जख्म हुआ था उसके साथ साथ आज एक नया जख्म भी खून से तरबतर हो गया पर मैं हिम्मत करके भागता रहा और आखिरकार मुझे वो सुनहरी रौशनी दिख गई, मैंने और तेज भागना चालू किया, भैया अब भी लाचार सी निगाहो से मुझे देख रहे थे पर कुछ नहीं कर पा रहे थे, आखिरकार मुझे त्रिशूल भी दिख गया और मैंने जैसे ही उस त्रिशूल को निकालने के लिए हाथ बढ़ाया, एक और चाकू हवा में उड़ता हुआ आया और मेरे हाथ में बंधा धागा कट गया। अब एक नयी चुनौती मेरे सामने खड़ी थी, वह चुड़ैल मेरे सामने खड़ी थी। इस बार उस चुड़ैल ने मुझे उठाकर त्रिशूल से इतनी दूर फेंक दिया कि मैं उसके होते हुए किसी भी हाल में नहीं उस त्रिशूल तक नहीं पहुंच सकता था। वह चुड़ैल बहुत जोर से डरावनी आवाजें निकालने लगी फिर उस चुड़ैल ने अपने नाखून तीन इंच लंबे कर लिए और मेरे दांए हाथ को धीरे धीरे चीरने लगी, मैं दर्द से चिल्लाने लगा, फिर उसने मेरे बांए हाथ को चीरना शुरू कर दिया, मेरे हाथों को चीरने के बाद उसने मेरे बांए पैर को चीर दिया और फिर मेरे दांए पैर को चीरकर हवा में ऊपर उठ गई, मैं अभी तक दर्द की वजह से चिल्लाए जा रहा था, और वह हवा में से उतरकर मुझे लातें मारने लगी और बोलने लगी " हमसे पीछा नहीं छुड़ा पाएगा तू, हम तेरी जान लेकर ही रहेंगे " मैं सोच रहा था कि हमेशा तो मैं बेहोश हो जाता था और आज क्या यह सब देखने के लिए ही होश में था। तभी मैंने देखा भैया त्रिशूल के ठीक नीचे हाथों से मिट्टी हटा रहे हैं, शायद उन्हें मुझे देखकर अंदाज़ लग गया था कि अस्थियों का तीसरा घड़ा वहीं है और उन्होने चुप चाप वह मिट्टी का छोटा सा घड़ा उठाया, उसके मुँह पर लगा कपड़ा हटा कर आख्या की अस्थियों को गांगा के पावन पानी में विसर्जित कर दिया और फिर दबे पाँव आकर उस चुड़ैल के ऊपर महात्मा जी की दी हुई रोली डाल दी, अस्थियां विसर्जित होने और रोली के कारण उस चुड़ैल की शक्तियां कमजोर पड़ गई और वह चीखती चिल्लाती गायब हो गई, भैया मुझे मुश्किल से बाइक पर बैठा पाए और बाइक दौड़ा दी, यूँ तो यह रास्ता एक घंटे, कुछ मिनट का है पर वह चुड़ैल हमारी बाइक के साथ साथ उड़ रही थी पर शुक्र है कि भैया के हाथ में धागा बंधा हुआ था, वह चुड़ैल बुरी तरह से चिल्ला रही थी और उसके चिल्लाने से हमारे कान के पर्दे फटे जा रहे थे, उसने अपने काले जादू से हर तरफ आँधी फैला दी, अब भैया के लिए बाइक चलाना और मुश्किल हो रहा था और आँधी की हवाएं, धूल मिट्टी मेरे घावों पर नमक की तरह चुभ रही थी। हम लोग दो घंटे से यह सब सहते सहते, गिरते पड़ते मंदिर पहुंच ही गए। वहाँ महात्मा जी मंदिर के बाहर उसी हवन कुण्ड में पहले से ही हवन कर रहे थे और हम वही हवन कुण्ड के पास बैठ गए, बाबा ने मेरे माथे पर हवन कुण्ड के पास रखे एक विशेष तरह के पानी के छींटे मारे और मेरे घावों से खून बहना बंद सा हो गया पर दर्द अब भी बहुत तेज हो रहा था, यहाँ भी आँधी नहीं रुकी थी और लगभग एक घंटे बाद महात्मा जी का हवन पूरा हुआ और उन्होने हवन कुण्ड की अग्नि लेकर आख्या की अस्थियों के दूसरे घड़े में डाल दी, इस सब से वह चुड़ैल और ज्यादा बौखला गई और इस बार उसने सीधे महात्मा जी पर वार किया, अपने लंबे नाखूनों से उसने महात्मा जी के पेट को चीर दिया और उन्हें कच्चा खाने लगी, माँ तो डर से बेहोश हो गई, मैं और भैया कुछ कर पाते इससे पहले ही उसने अपने लंबे नाखून मेरे पेट में घोंप दिए और मेरे पेट को धीरे धीरे चीरने लगी, मैं दर्द से चिल्लाने लगा पर वह भैया को कुछ नहीं कर पा रही थी क्योंकि उनके हाथ में वह पवित्र धागा अभी तक बंधा हुआ था और भैया ने उठकर उसकी अस्थियों को हवा में उछालकर मिट्टी में मिला दिया। अगले ही पल वह चुड़ैल चीखती, चिल्लाती, गुर्राती हुई हवा में उठकर गायब हो गई और मैंने देखा आसमान के साथ साथ हमारी जिंदगी में भी उजाला हो गया था.... वह चुड़ैल खत्म हो गई पर फिर भी कितनों को मार दिया, न जाने कितने मासूम मारे गये खैर आखिरकार विश्वास राव और धारा को इतनी सदिंयों के बाद मुक्ति मिल गई और मुझे इतनी मेहनत के बाद उस चुड़ैल से मुक्ति मिल गई।उसने मुझे जो घाव दिए, उन्हें पूरी तरह से ठीक होने में छः महीने लग गये और इस सब में मेरी नौकरी.....नहीं नहीं, मेरी नौकर छूटी नहीं बल्कि मेरा देहरादून से वापस हरिद्वार ट्रांसफ़र कर दिया गया आखिरकार मैडल्स की जगह छः अनसक्सैसफुल केसेज़ का ठप्पा जो लग गया था मुझ पर। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मैं, माँ, पापा, भैया, भाभी हम सब ठीक हैं पर सच में हम अगर आज हम सब जिंदा हैं तो इसका क्रेडिट सिर्फ और सिर्फ करन भैया को जाता है।" पर हर्षद.... भाई तूने इतना सब झेला और आज दो साल बाद बता रहा है , क्यों बे मैं तेरा दोस्त नहीं था जो तू मुझे यह सब नहीं बता पाया? "" भाई सच बताऊं, मैं आज भी किसी को यह सच नहीं बताता, तुझे तो बता दिया क्योंकि अब तू ही तो है जो मेरा सच्चा दोस्त है, अब यह इंन्विटेशन कार्ड पकड़ और मेरी और अनन्या की शादी में आ जाना चुपचाप। " ‹ पिछला प्रकरणमुझे याद रखना - 5 Download Our App