बार्बी डॉल्स
नीला प्रसाद
(2)
कविता– जो बिहार के मधुबनी से प्रेमी के साथ भाग कर दिल्ली चली आई और शादी कर ली। वह दुर्भाग्य से दिनों - दिन मोटी होती जा रही थी। उसका पति जोर डालता रहता था कि वह मोटापे के साथ यौवन और ताजगी खोते जा रहे चेहरे की उम्र किसी तरह थामे रखे, अपनी उम्र से ज्यादा तो नहीं ही दिखे। वह जिम जाती थी, तो वजन घट जाता था, पर जैसे ही जाना बंद करती, पहले से ज्यादा वजनी हो जाती। चेहरे पर चर्बी की परतें चढ़ी -सी लगतीं। समूह की महिलाएं उसे तरह - तरह की सलाह देतीं, वह हर सलाह ध्यान से सुनती और आजमाती।
सुंदर -सी तनु, जिसे शादी के पांच साल बाद भी कोई संतान नहीं हो पाई। समय काटने को पति के ऑफिस निकल जाने के बाद पार्लर आ जाती थी। धीरे -धीरे पार्लर का काम सीख रही थी। अपने चेहरे की मालिश करवाकर, पैसे देने के बदले दूसरी महिलाओं के बाल काट देती थी। उसकी इच्छा थी कि मां नहीं बन पा रही तो कम -से -कम खूबसूरती के बल पर पति का दिल जीते रखे।
साइज़ जीरो में आ जाने और किसी फिल्मी हिरोइननुमा धज में तबदील हो जाने को तत्पर प्रज्ञा, जिसकी शादी की बातचीत चल रही थी।
ममता दीदी - जो बस आइब्रो बनवाने आती थीं पर लंबे समय तक जमी रह, पास - पड़ोस की तमाम खबरें सुना जाती थीं। हमें पता था कि कैसे उनकी बहू ने महंगे पार्लर में जाकर चेहरा दमकाने पर हजारों - हजार फूंक डाले, पर कोई फायदा नहीं हुआ। पड़ोसी की ठिगनी -सी रागिनी ने साड़ी से छुपा कर छह इंची हील पहने खुद को लड़केवालों के सामने प्रस्तुत किया और शादी ठीक हो गई। सांवली या काली -सी रूबी, जिसने फेशल - ब्लीचिंग के इतने सेशन करवाए पर न ही रंगत में सुधार आया, न शादी ठीक हो पाई.. और वह जो चर्बी हटाने की इंस्टेंट क्रीम आई है, जिससे तीन हफ्तों में शरीर की सारी चर्बी गल जाती है, वह ही तो इस्तेमाल की थी अनन्या ने.. तो अमरीकी दूल्हा तो उसे देखता ही रह गया। जब छह महीने बाद शादी का वक्त आया तो फिर इस्तेमाल कर ली। पर कोई साल दर साल तो यह सब इस्तेमाल कर नहीं सकता, इसीलिए शादी के बाद पोल खुल गई। वह तो कहो कि उसका पति बहुत अच्छा है। कोई तलाक-वलाक की बात नहीं की। इतना भर कहा कि जिम जाओ और खुद को मेनटेन्ड रखो। मोटापा नहीं होना चाहिए–बस!!
एक नई लड़की भी थी वहां जो नीलम से कह रही थी–
‘नीलम दीदी, आपने मेरे बाल इतने अच्छे काटे कि ब्वाय फ्रेंड ने कह दिया कि कंगना राणावत-सी दिखती हूं। मैंने तो खुश होकर उसके द्वारा ‘फैशन’ फिल्म में पहनी ड्रेस जैसी एक ड्रेस भी ले ली। मैंने कहा उससे कि जैसे तुम चाहोगे, वैसे ही रहूंगी; जैसे चाहोगे, वैसे जिऊंगी, बस मुझे प्यार करना कभी बंद मत करना...’
मैंने अंदर से असहज महसूस करते उससे नाम पूछा। वह मुस्कराती -इतराती बोली - ‘अनामिका।’ यह असली नाम था या प्रेमी की छाया बनी जीने को आतुर किसी लैला का नकली नाम– सोच नहीं पाई!
सोमा को चिंता थी कि उसका फेस क्रीम कुछ काम नहीं कर रहा, चेहरा मुरझाया -सा लगता है और सब इस बाबत टोकते रहते हैं। वह चाहती थी कि वहां उपस्थित महिलाएं उसे सलाह दें कि वह कौन -सी नई क्रीम खरीदे।
...और सोनाली के बाल झर रहे थे– खासकर ललाट के ठीक ऊपर वाले। ‘क्या ओलिव ऑयल सचमुच कारगर होता है?’ उसने पूछा। ‘सामने से ही बाल झर जाएं तो कितना बुरा लगता है न! महिला होने की दिक्कत यह है कि क्या पति, क्या बच्चे, परिवार - समाज - ऑफिस, सबों की– कहा न, सबों की– चाहना यही होती है कि आप सुंदर दिखें। अब चाहती तो हर महिला यही है कि वह सुंदर दिखती रहे पर अगर उसे फर्क नहीं पड़ता हो तब भी वह इस चाहत से लाद दी जाती है।’ मैंने प्रशंसा भरी निगाहों से उसकी समझदारी की दाद दी।
..पर इस सारी बातचीत के बीच मेरी नजरें दीपाली को खोज रही थीं। पिछली बार आई, तब भी वह नहीं मिली और आज भी दिख नहीं रही। वैसे तो ऐसा संयोग हो ही सकता था कि उसके और मेरे आने के दिन अलग - अलग हों पर उसे लेकर एक आशंका इन दिनों मुझे घेरे हुई थी, इसीलिए मैं उससे मिलने को बेचैन थी। जब मैंने उसे पहली बार देखा तो कॉलेज में पढ़ रही कोई फैशनेबल कुंवारी लड़की समझा, पर बात निकलने पर उसने हंसते हुए ललाट पर झूलते बालों की लटें हटाकर सिंदूर का निशान दिखा दिया। वह भले हर वक्त हंसती रहती थी, उसकी आंखें कोई दूसरा ही नज़ारा पेश करती थीं, इसीलिए मुझे उसके लिए डर लगता रहता था। उसका पति बहुत कड़े स्वभाव का था, उससे अच्छा बर्ताव नहीं करता था और जब भी कहीं गैदरिंग या पार्टी वगैरह में जाना हो, उसे सख्त हिदायत देता था कि वह प्रेजेन्टेबल दिखे.. प्रेजेन्टेबल यानी किसी फिल्मी हिरोइननुमा! उसका कहना था कि पत्नी में और कोई गुण तो है नहीं– न वह पढ़ी - लिखी कुछ कर दिखा सकने वाली पत्नी है, न ही कमाऊ। न बखानने लायक दहेज लाई है, न ही घर पति की पसंद का सजा -संवारकर रख सकती है। बस चेहरा - मोहरा अच्छा है, तो उसे ही सजा - संवार कर रखे न! मुझे आशंका हुई कि कहीं वह झूठ तो नहीं बोल रही?
‘नहीं आंटी, झूठ क्यों बोलूंगी?’, जवाब देते उसके चेहरे पर आश्चर्य उभर आया था। ‘मुझे तो प्लस टू पास करके ग्रैजुएशन की पढ़ाई शुरू किए कुछ माह ही बीते थे कि मेरा रिश्ता पक्का हो गया। झटपट सगाई भी हो गई। वह मेरी सास और ननद आईं एक दिन और मेरे भाई - भाभी से कहा कि हमें तो दीपाली को तुरंत अपने घर ले जाना है– किसी भी कीमत पर। अंदर की बात ये थी कि मेरे पति को कोई लड़की पसंद ही नहीं आती थी, इन्हें कोई हिरोइननुमा जो चाहिए थी! तो जैसे ही फोटो देखकर उन्होंने ‘हां’ की, मेरी सास को लगा कि ये रिश्ता छोड़ना नहीं चाहिए। वे झटपट हमारे घर आकर बात पक्की कर गईं। पर जब शादी हो गई तो उन्हें लगने लगा कि हड़बड़ी में शादी कर दी, दहेज की बात तय हुई नहीं और मेरे भाई - भाभी ने बहुत कम सामान दिया। अब वे ताने देती रहती हैं कि मेरे इतने काबिल लड़के को ठग लिया।’
‘पर पति तो अच्छा बर्ताव करते हैं न? मेरे यह पूछने पर वह उदास हो गई।
‘उन्हें तो बस हर समय मेरी देह और साज - सज्जा की पड़ी रहती है। बिन सजी दिख जाऊं तो नाराज हो जाते हैं। कहते हैं कि बनी -ठनी रहा करो, रूप के अलावा तुम्हारे पास है ही क्या! कभी तो ऐसा लगता है जैसे वे मुझे प्यार ही नहीं करते। अकेले में मिले नहीं कि छूना शुरु। कभी गिफ्ट देना हो तो खूबसूरत ब्रा, पारदर्शी गाउन, घुटने तक की नाइट ड्रेस.. यही सब लाएंगे। मां -पापा पहले ही गुजर गए, भाई पर बोझ थी, उन्होंने ब्याह दिया। पढ़ाई भी पूरी करने नहीं दी। अब न तो हाथ में पैसे हैं, न ससुराल में इज्जत, पर क्या करूं, जीना तो है न! पति जब भी कहते हैं, पार्लर जाकर फेशल करा आओ, बाल कटा लो, चली आती हूं यहां! मैं तो भाई -भाभी से बात करती हूं तब भी आसपास कोई न कोई खड़ा रहता है कि कहीं ससुराल वालों की शिकायत तो नहीं कर रही! वैसे भी किस दोस्त को कॉल किया या किसे क्या मैसेज भेजा, पति चेक करते रहते हैं। इतनी बंदिशें हैं कि...’
‘तो पढ़ाई पूरी कर लो पहले, फिर ही तो आगे कुछ सोच पाओगी।’
‘पढ़ने देना नहीं चाहते। घर के काम, खाना पकाना, यहां तक कि बर्तन तक मुझे ही मांजने होते हैं। उसके ऊपर से सब चाहते हैं कि हर वक्त सजी - धजी रहूं। क्या करूं, क्या न करूं, समझ नहीं पाती। कोई आपकी तरह थोड़े हूं कि घर पर कामवालियां हैं। सुबह उठे और तैयार होकर, नाश्ता करके काम पर निकल गए। बीस की उम्र में ये हाल है– पता नहीं सारी ज़िंदगी कैसे कटेगी! मैं आपकी तरह बनना चाहती हूं आंटी! मैं चाहती हूं कि मैं भी सुबह वॉक पर जाऊं, बना - बनाया खाना खाऊं, ऑफिस में कुर्सी पर बैठकर हुक्म चलाऊं..’, वह उदास दिखती हुई भी मुस्करा दी और मांगने पर बहुत डरते - डरते अपना मोबाइल नंबर दे दिया।
फिर जब बाद में कई बार पार्लर जाने पर भी उससे भेंट नहीं हुई तो मैंने झिझकते हुए उसका मोबाइल नंबर घुमाया। उसने ठीक से बात नहीं की। शायद कोई पास खड़ा था। मुझे चिंता हुई। दो - एक दिन बाद मैसेज किया - ‘सब ठीक तो है?’ उसने एक शब्द लिखा - ‘हां’। ‘मिलो न एक दिन’ मैंने हिम्मत करके लिख दिया। उधर से कोई जवाब नहीं आया। अगली बार वहीं पार्लर में मिली तो देखकर संकोच से मुस्कराई। मैं सबों के सामने कुछ नहीं बोली पर बाहर निकलकर कहा ‘मैं चाहती हूं, तुम्हारी ससुराल आऊं, तुम्हारी सास से बात करूं। इस तरह तो तुम खत्म हो जाओगी। सिर्फ साज - सज्जा के बल पर कब तक पति को बांधे रख पाओगी? कभी तो बाल - बच्चेदार होकर बूढ़ी होगी, कभी तो तुम्हारी भी इच्छा होती होगी कि पास में पैसे हों.. कभी तो मन होता होगा कि अपनी पसंद से कुछ खरीदें, खाएं, अपने मन से किसी को कुछ दें। हाथ खर्च के पैसे तुम्हारा अधिकार हैं।’
वह डर गई। ‘किसी अधिकार की बात आप मेरी ससुराल में नहीं करेंगी आंटी! आप वहां नहीं जाएंगी। मैंने बेकार ही आपको इतनी बातें बता दीं’, और वह मुड़कर तेजी से चल दी। मुझे उसके घर का पता मालूम नहीं था, वहां जाने को उसने मना भी कर दिया था पर उसके बारे में सोचते ही, उसकी याद आते ही, चिंता सताने लगती थी - वह ठीक तो है? तब मैं एक एस.एम.एस. भेज देती थी - ‘ठीक हो?’, वह लिखती थी - ‘हां।’ बात खत्म हो जाती थी। फोन वह उठाती नहीं थी - शायद व्यस्त रहती होगी या बात करने की इजाजत नहीं होगी.. या फिर पास कोई खड़ा हो जाता होगा और वह संकोच में पड़ जाती होगी, या फिर वह बात करना ही नहीं चाहती होगी कि कहीं मैं कुछ ऐसा न पूछ लूं कि जवाब देते न बने. या फिर.. आशंकाएं मन में आती रहतीं। ऐसे ही कितने महीने बीत गए। फिर एक दिन वह पार्लर में मिल गई। हाल ही में, बल्कि कुछ हफ्ते पहले ही मां बनी थी। बेटे को दादी के पास छोड़कर पूरे शरीर की वैक्सिंग करवाने पार्लर आई थी। पार्लर की मालकिन नीलम से पूछती जा रही थी कि हाथ फिराने पर कहीं बाल या खुरदुरापन महसूस तो नहीं होता? वह बोली मुझसे कि चाहती है कि पति उससे हमेशा खुश रहे। कम दहेज लाने के कारण मिलने वाले तानों से अगर साज –सज्जा बचा ले, हर तीसरे हफ्ते पार्लर आने, सास -बहू सीरियलों में पहने जाने वाले कपड़ों की नकल खरीदने - पहनने या पति की पसंद से कम या अधिक वजनी हो जाने से ज़िंदगी ठीक -ठाक चलती रहे तो क्या बुरा है? असली बात यह है कि पति खुश रहे, सास खुश रहे। जब मायकेवालों ने ब्याह दिया, तो अब पति ही तो घर -संसार है, यहां से निकाल दी गई तो मायके में भाई - भाभी मन से रखने को तैयार थोड़े होंगे.. और जब पहले ही शादी में इतना कम दहेज देकर विदा किया, तो मायके लौटने पर इज्जत पाने या दुबारा पढ़ाई शुरू करने या किसी और से शादी करने की तो सोच ही नहीं सकती न! शायद बेटा यानी वंशज पैदा करके दे देने के बाद ससुराल में उसे इज्जत मिलने लगे। वह मेड या बिस्तर की सज्जा मात्र बनी नहीं जिए; एक बहू, पत्नी और मां की इज्जत पा जाए। उस दिन वह खुश दिख रही थी, इसीलिए उसे लेकर मेरी बेचैनी कुछ कम हो गई। मैंने सोचा कि अगली बार मिलने पर उसे छेड़ूंगी कि पति को तुम्हारी पीठ पर खुरदुरापन महसूस तो नहीं हुआ? नीलम ने बाल ठीक से हटाए थे न! पर पहले वह मिले तो, दिखे तो, ठीक तो हो। जाने क्यों कुछ दिनों बाद ही आशंकाएं फिर से सताने लगी थीं, जिनका कोई आधार नहीं था।
एकदम कोई आधार नहीं था, यह कहना भी पूरा सच नहीं। हाल ही में दो एस.एम.एस. उसकी ओर से आए, जिन्होंने मुझे परेशानी में डाल रखा था। एक तो जाने क्यों ‘गुड नाइट आंटी’ का था, जिसके जवाब में मैंने भी उसे ‘गुड नाइट। स्वीट ड्रीम’ लिख भेजा था। और दूसरा था अगली ही रात ‘गुडबाई आंटी’ का। जवाब में मैंने उसे एक प्रश्न चिन्ह (?) भेजा था, जो आज तक अनुत्तरित था।
आदत के विपरीत अपनी पहल से भेजा गया उसका ‘गुडबाई आंटी’ मेरे जेहन में अटका पड़ा था। अपने प्रश्न चिन्ह का कोई जवाब न पाकर मैंने अगले दिन फोन मिलाया तो वह स्विच्ड ऑफ था। मैं उस गुड़िया से मिलना चाहती थी। मैं तसल्ली करना चाहती थी कि वह ठीक है। मन तो होता था कि उस भोली - भाली को उठा लाऊं ससुराल से, जहां वह मेड और मात्र देह, यानी बिस्तर की सज्जा की तरह इस्तेमाल की जा रही थी। साथ ही यह बात भी छू गई थी कि वह मेरी तरह बनना चाहती है। अपने जीवन के कॉम्प्लिकेशन्स मैं उसे बताना नहीं चाहती थी पर तय है कि सब कुछ के बावजूद मेरा जीवन उससे लाख गुना बेहतर है।
क्रमश...