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माँ: एक गाथा - भाग - 4

जब भी बालक निकले घर से,
काजल दही टीका कर सर पे,
अपनी सारी दुआओं को,
चौखट तक छोड़ आती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

फिर ऐसा होता एक क्षण में,
दुलारे को सज्ज कर रण में,
खुद हीं लड़ जाने को तत्तपर,
स्वयं छोड़ हीं आती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

जब बालक युवा होता है ,
और प्रेम में वो पड़ता है ,
उसके बिन बोले हीं सब कुछ,
बात समझ वो जाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

बड़ी नाजों से रखती चूड़ियां,
गुड्डे को ला देती गुड़िया,
सोने चाँदी गहने सारे ,
हाथ बहु दे जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

जब बच्चा दुल्हन संग होता ,
माता को सुख दुःख भी होता ,
हंसी ख़ुशी में हंसती रोती ,
उलझन में पड़ जाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

घर की चाबी देनी पड़ती ,
माता दिल हीं रोती रहती ,
हौले हौले कोशिश करती ,
पर दुल्हन लड़ जाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

माँ की चाय ना अच्छी लगती ,
सौंफ इलायची पे कुछ कहती ,
जब भी बालक घर पे आये ,
दुल्हन आग लगाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

माँ रोज सबेरे साबुन लाती,
पानी का दरिया बहवाती,
दुल्हन कैसी साजिश करती ,
बालक को भड़काती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

फिर प्रेम बँटवारा होता,
सास बहू में झगड़ा होता,
बेटा पिसता कुछ कह देता,
सबकुछ वो सह जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

ये बात सभी कुछ जाने वो,
बहु को भी तो पहचाने वो,
हँसते हँसते ताने सुनती सब,
बात नहीं कह पाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

समय गुजरता यूँ जाता है ,
प्रेम कभी झगड़ा होता है ,
कभी कभी ना माने दुल्हन ,
माँ कभी अड़ जाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

सास बहू में रण होता है,
बालक घुट घुट कर रोता है,
प्रेम अगन पे भारी पड़ता,
अनबन खुद सुलझाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

समय एक सा ना रहता है ,
दुल्हन को जब कष्ट होता है ,
माता हल्दी मल मल मल के ,
दुल्हन को प्यार जताती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

ना घन घोर घनेरा होता,
घर में नया सबेरा होता ,
दुल्हन भी खुशियाँ देती है ,
माँ दुल्हन मुस्काती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

अति प्रेम से सेवा करती ,
दुल्हन के घर गम को हरती ,
बेटा दुल्हन खुश हो जाते ,
खुशियाँ घर में छा जाती हैं ,
धरती पे माँ कहलाती है।

फिर दुल्हन बन जाती माता ,
घर में ढोल नगाड़ा होता ,
पापा दादा बन जाते हैं ,
और ये दादी बन जाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

बच्चों के जब होते बच्चे,
दादी के नजरों में अच्छे,
जब बच्चों से बच्चे डरते,
दादी उन्हें बचाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

परियों की फिर वही कहानी,
दुहराती एक राजा रानी,
सब कुछ भूले ये ना भूले,
इतनी याद बचाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

पोते पोती जब गीत सुनाते ,
दादी के मन को वो भाते ,
मीठे मीठे चुम्बन लेकर ,
फूली नहीं समाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

आँखों से दिखता जब कम है,
जुबाँ फिसलती दांते कम है,
चिप्स ,समोसे को मन मचले,
खुद बच्चा बन जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

चटनी और आचार बनाती ,
पोते को फिर खूब खिलाती ,
यदा कदा भी आँख बचाकर ,
थोड़ा सा चट कर जाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

अब बिस्तर पे लेटी रहती,
जब पोते को खाँसी होती,
खाँस खाँसके खाँसी के ,
कितने उपाय सुझाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

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