माँ : एक गाथा - भाग - 3 Ajay Amitabh Suman द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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माँ : एक गाथा - भाग - 3

ये माँ एक गाथा का तीसरा भाग है . इस भाग में माँ और शिशु के बीच छोटी छोटी घटनाओं को दर्शाया गया है .

यदा कदा भूखी रह जाती,
पर बच्चे की क्षुधा बुझाती ,
पीड़ा हो पर है मुस्काती ,
नहीं कभी बताती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

शिशु मोर को जब भी मचले,
दो हाथों से जुगनू पकड़े,
थाली में पानी भर भर के,
चाँद सजा कर लाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

तारों की बारात सजाती,
बंदर मामा दूल्हे हाथी,
मेंढ़क कौए संगी साथी,
बातों में बात बनाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

छोले की कभी हो फरमाइस ,
कभी रसगुल्ले की हो ख्वाहिश,
दाल कचौड़ी झट पट बनता,
कभी नहीं अगुताती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

दूध पीने को ना कहे बच्चा,
दिखलाए तब गुस्सा सच्चा,
यदा कदा बालक को फिर ये,
झूठा हीं धमकाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

बेटा जब भी हाथ फैलाए ,
डर के माँ को जोर पुकारे ,
माता सब कुछ छोड़ छाड़ के ,
पलक झपकते आती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

बन्दर मामा पहन पजामा ,
ठुमक के गाये चंदा मामा ,
कैसे कैसे गीत सुनाए ,
बालक को बहलाती है
धरती पे माँ कहलाती है।

रोज सबेरे वो उठ जाती ,
ईश्वर को वो शीश नवाती,
आशीषों की झोली से,
बेटे को सदा बचाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

कभी धुल में खेले बाबू ,
धमकाए ले जाए साधू ,
जाने कैसे बात बता के ,
बाबू को समझाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

जब ठंडक पड़ती है जग में ,
तीक्ष्ण वायु दौड़े रग रग में ,
कभी रजाई तोसक लाकर ,
तन मन में प्राण जगाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

छिपकिलियों से कैसे भागे,
चूहों से रातों को जागे,
जाने सारी राज की बातें,
पर दुनिया से छिपाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

जरा देर भी हो जाने पर ,
बेटे के घर ना आने पे ,
तुलसी मैया पे नित झुककर,
आशा दीप जगाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

रसगुल्ले की बात बता के ,
कभी समोसे दिखा दिखा के ,
क , ख , ग , घ खूब सुनाके ,
बेटे को पढवाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

प्रेम प्यार से बात बताए ,
बात नहीं पर समझ वो पाए ,
डरती डरती मज़बूरी में ,
बापू को बुलवाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

बच्चा लाड़ प्यार से बिगड़े,
दादा के मुछों को पकड़े,
सबकी नालिश सुनती रहती,
कभी नहीं पतियाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

कभी डांटे, कभी गले लगा ले,
स्नेह सुधा कभी वो बरसा दे,
सपनों में बालक के अपने,
आंसू धोने आती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

पिता की नजरों से बचा के,
दादाजी से छुप के छुपा के,
चिप्स, कुरकुरे अच्छे लगते,
बच्चे को खिलाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

माँ का प्यार तो अँधा होता ,
पुत्र कदा हीं गन्दा होता ,
पर दादा के आते हीं ,
सब बात समझ तो आती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।

पिता की निष्ठुर बातों से,
गुरु के निर्दय आघातों से,
सहमे शिशु को आँचल में ,
अपने आश्रय दे जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।

जब जब चोट लगी जीवन मे,
अति कष्ट हो तन में मन में,
तब तब मीठी प्यारी थपकी ,
जिसकी याद दिलाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।