CORONA DUR BHAGAEN HAM books and stories free download online pdf in Hindi

कोरोना दूर भगाएँ हम

अपनी इस प्रस्तुति में मैंने अपनी उन कविताओं को शामिल किया है जो कोरोना महामारी के कारण देश मे जो परिस्थितियाँ बनी हैं, उन कारण पैदा हुई हैं। उम्मीद करता हूँ हम इन विषम परिस्थितियों से बहुत कुछ सीखकर बाहर निकल पाएँगें।

(1) कोरोना दूर भगाएँ हम

घर में रहकर आराम करें हम ,नवजीवन प्रदान करें हम
कभी राष्ट्र पे आक्रान्ताओं का हीं भीषण शासन था,
ना खेत हमारे होते थे ना फसल हमारा राशन था,
गाँधी , नेहरू की कितनी रातें जेलों में खो जाती थीं,
कितनी हीं लक्ष्मीबाई जाने आगों में सो जाती थीं,
सालों साल बिताने पर यूँ आजादी का साल मिला,
पर इसका अबतक कैसा यूँ तुमने इस्तेमाल किया?
जो भी चाहे खा जाते हो, जो भी चाहे गा जाते हो,
फिर रातों को चलने फिरने की ऐसी माँग सुनते हो।
बस कंक्रीटों के शहर बने औ यहाँ धुआँ है मचा शोर,
कि गंगा यमुना काली है यहाँ भीड़ है वहाँ की दौड़।
ना खुद पे कोई शासन है ना मन पे कोई जोर चले,
जंगल जंगल कट जाते हैं जाने कैसी ये दौड़ चले।
जब तुमने धरती माता के आँचल को बर्बाद किया,
तभी कोरोना आया है धरती माँ ने ईजाद किया।
देख कोरोना आजादी का तुमको मोल बताता है,
गली गली हर शहर शहर ,ये अपना ढ़ोल बजाता है।
जो खुली हवा की साँसे है, उनकी कीमत पहचान करो।
ये आजादी जो मिली हुई है, थोड़ा सा सम्मान करो,
ये बात सही है कोरोना, तुमपे थोड़ा शासन चाहे,
मन इधर उधर जो होता है थोड़ा सा प्रसाशन चाहे।
कुछ दिवस निरंतर घर में हीं होकर खुद को आबाद करो,
निज बंधन हीं अभी श्रेयकर है ना खुद को तुम बर्बाद करो।
सारे निज घर में रहकर अपना स्व धर्म निभाएँ हम,
मोल आजादी का चुका चुकाकर कोरोना भगाएँ हम।

(2) कोरोना बम

क्या जाति है क्या धर्म है ,क्या रूप है क्या है रंग,
कृष्ण यीशु में ना कोई अंतर ,कोरोना से सबकी जंग।
डरे सारे कोरोना से कि ,चेहरे पे भी लगा नकाब,
रोड साफ है हवा पाक पर , घूमना हुआ नापाक।
चलना फिरना नापाक कि, ईश्वर की है ऐसी तैसी,
ख़ुदा गॉड भी गायब शायब, कोरोना की महिमा ऐसी।
ज्योतिष, प्योतिष, मुल्ला टूल्ला कुछ भी नहीं कुबूल,
दवा, दारू, जादू , टोना ,मंतर , दुआ हुई फिजूल ।
कोरोना की महिमा चंद , पानी माँगे एटम बम ,
गुरुद्वारा व मस्जिद बन्द ,चर्च बन्द है टेम्पल बन्द।

(3) तुममें कितना देश बचा है

तुझे ईश्क है कौम से कितना, जग जाहिर हो जाने दो,
तुझे रश्क है मुल्क से कितना, जग जाहिर हो जाने दो।
खंजर ले दिलमें ढूंढ रहे, किसमें कितना भगवान बचा,
कि खुद मर के तुम मारोगे, ये जग जाहिर हो जाने दो।
अगर भरोसा खुद पे होता, फ़िर क्यूँ डर छिप जाते हो,
सौदागर नफरत के तुम हो ,जग जाहिर हो जाने दो।
ना तुममे ईमान बचा है, ना कोई इंसान बचा,
जो तुम्हे बचाते मरोगे, ये जग जाहिर हो जाने दो।
पैगम्बर की फिक्र नही है ,अल्लाह का भी जिक्र नहीं,
कि जेहन में शैतान बसा है ,जग जाहिर हो जाने दो।
माना सारे बुरे नहीं हैं , हैं कुछ अच्छे हैं सच्चे भी,
तुम सबपे दाग लगाओगे , ये जग जाहिर हो जाने दो।
अगर रूह जन्नत को जाती , क्या कह मुँह दिखाओगे,
कि थोड़ा सा ईमान बचा है, जग जाहिर हो जाने दो।
यही वक्त जब मंथन का है, राष्ट्र बड़ा कि धर्म बड़ा,
थोड़ा सा तुममें देश बचा है, जग जाहिर हो जाने दो।

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