रात का सूरजमुखी - 11 S Bhagyam Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

रात का सूरजमुखी - 11

रात का सूरजमुखी

अध्याय 11

"क्यों जी...?"

"टेबल लैंप के प्रकाश में एक सप्ताहिक पत्रिका को पढ़ते हुए राघवन बैठा था, पत्नी की आवाज सुनकर पलटा।

"क्या बात है कल्पना ?"

"आप कैसे पुस्तक पढ़ सकते हैं ?"

"क्यों ऐसा पूछ रही हो ?"

"इंस्पेक्टर ने जो दो दिन का समय दिया वह कल सुबह 6:00 बजे खत्म हो जाएगा..... शांता का हत्यारा कौन है पता नहीं चला!"

"मुझे पता है हत्यारा कौन है ?"

"कौन है ?"

"मेरा भाई बापू ही है !"

"आप ही ऐसे बोलोगे तो कैसे चलेगा ?"

"कल्पना ! बाबू के बारे में तुम्हें कुछ नहीं पता। छोटी उम्र से ही बहुत घुन्ना किस्म का था। मन की बात किसी से कहता नहीं था। शांता को बिना आवाज के खत्म करने की सोच कर.... थोड़ा धोखा खा गया। पहली हत्या वह भी जल्दी-जल्दी घबराहट में कर दिया। हत्या करके जान गई कि नहीं देखा नहीं, शव को वहीं डालकर आ गया। अब पकड़ में आ गया।"

"आप इस हत्या को देखा हो जैसे बोल रहे हो ?"

उसे सामने और देखना है ? उसने क्या किया है मुझे नहीं पता?"

"आप ऐसी बातें कैसे कह रहे हो ?"

"क्या कह रहा हूं ?"

"बापू तुम्हारा भाई नहीं है क्या ?"

"भाई है इसलिए उसने हत्या की वह ठीक है ऐसा बोल रही हो क्या ?"

"बापू ने हत्या नहीं की होगी ?"

"मोह, ममता तुम्हारी आंखों पर पर्दा डाल रही है !"

कल्पना की आंखों में आंसू छलकने लगे। "क्यों जी मामा से कहकर-बापू को किसी तरह तो इस हत्या के आरोप से बचा ले.... बापू की जीने की उम्र है.... फांसी पर जाने की उम्र नहीं!"

"मेरे अप्पा, नीति, न्याय, सम्मान से चलने वाले आदमी हैं... कानून को धोखा देने के बारे में उनसे बात कर सकते हैं क्या ?"

"मैं बात करके देखूं ?"

"नहीं। तुम्हारे ऊपर उनको जो विश्वास है उसे खराब मत करो।"

कल्पना पति को ही देख रही थी-उसने पूछा-"ऐसा क्यों देख रही है?"

"आपकी योजना मेरे समझ में आ गई !"

"कौन सी योजना समझ में आ गई ?"

"छोटा भाई.... फांसी पर लटक जाए.... तो सारी संपत्ति आपको ही तो मिलेगी ? संपत्ति को देखोगे या..... छोटे भाई को बचाने का सोचोगे ?"

"क...क... कल्पना ! "राघवन स्तंभित हो कर देख रहा था उसी समय कल्पना की आंखों में से आंसू बहने लगे वह बाहर चली गई।

दूसरे दिन सुबह के 6:00 बजे।

पुलिस की जीप बंगले के पोर्टिको में आकर खड़ी हुई इंस्पेक्टर उतर कर अंदर आए।

सामने के कमरे में सोफे पर सुबानायकम्, राघवन, बापू तीनों फिक्र में डूबे हुए चेहरों के साथ बैठे हुए थे। सीढ़ियों के पास कल्पना कुछ ज्यादा ही दुखी खड़ी थी।

इंस्पेक्टर के जूतों की आवाज सुनकर बापू उत्सुकता से उठकर खड़ा हुआ।

"इंस्पेक्टर हत्यारा कौन है पता चला ?"

"नहीं बापू ! पिछले दो दिनों हर तरह से अच्छी तरह जांचकर देख लिया। शांता का कोई दुश्मन नहीं है। उसको मारने का कारण सिर्फ तुम्हारे पास ही है!"

"इंस्पेक्टर..."

"माफ करना.... आपको कैद कर कोर्ट ले जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है आप जाकर जीप में बैठोगे ?"

"इंस्पेक्टर ! मैं निरापराधी हूं! मैंने शांता की हत्या नहीं की..."

"ये साबित करने की जगह कोर्ट ही है।"

बापू अपने घबराए हुए चेहरे से सुबानायकम् के पास जाकर उनके हाथों को पकड़ा।

"अप्पा.... मेरा इस हत्या से कोई संबंध नहीं है..... शांता ने जानबूझकर मरते समय बयान देकर मुझे फंसा दिया!"

"तुम्हें फसाने में उसे क्या फायदा रे ? तुमने तो उसे आगे पीछे कभी देखा ही नहीं!"

"अप्पा.... अब आप से सच्चाई छुपाने की इच्छा नहीं है... शांता को मैं बहुत दिनों से जानता हूं। मैंने उससे प्यार किया यह सच है। स्वर्गम कॉटेज में गया वह भी सत्य है। उसके पेट में गर्भ ठहरा वह भी सच है। उसे खत्म किया वह भी सच है। आपको सब बातें पता चलने के बाद शांता के घर जाकर मैंने ही उसे धमकी दी यह भी सच है।"

"परंतु उसकी हत्या में, मैं शामिल नहीं। किसी और ने उसकी हत्या की है। शांता को मेरे ऊपर गुस्सा था इसीलिए मरते समय पुलिस वालों को बयान देकर मुझे फंसा दिया।"

सुबानायकम् ने एक दीर्घ विश्वास छोड़ा।

"अब यह सच बता कर मान लेने से क्या फायदा ? एक लड़की को धोखा दिया । आज उसका दंड पाने वाले हो जाकर जीप में बैठो!"

"अप्पा...! नहीं अप्पा...! मैंने कोई हत्या नहीं की। आपके दोस्त कमिश्नर को बोलकर इस केस को.....

"पर्दा डालकर खत्म कर देंगे बोल रहा है क्या ?"

"अप्पा..."

"ये सुबानायकम् यह काम नहीं करेगा। कानून को धोखा देना बहुत बुरा काम है.... तुमने उस लड़की को धोखा देना चाहा... अब हाथ में हथकड़ी आ गई देखा ? शांता और तुम दोनों की शादी करने का मैंने फैसला कर दिया था तुमने उसके लिए मना कर दिया..... उसका दंड अब तुम्हें मिलना ही चाहिए?"

"अप्पा.... मैंने जो किया वह गलत ...था। मुझे माफ कर दीजिए। इस मुसीबत से मुझे बचा लीजिए ?" घुटनों के बल बैठकर सुबानायकम् के पैरों को पकड़ लिया बापू ने।

इंस्पेक्टर हंसते हुए सुबानायकम् के पास आए।

"साहब.... बस रहने दो ! बापू ने अपने मुंह सेअपना और शांता का संबंध था मान लिया। अब क्या है.... शादी तो करना है ना?"

बापू के हड़बड़ा कर उठते ही सुबानायकम्

मुस्कुराए।

"क्यों ऐसा क्या देख रहा है रे ? शांता से शादी करेगा क्या?"

शा... शांता की शादी... शादी करना? आप क्या कह रहे हो अप्पा... वह तो जिंदा नहीं है ...."

"वह जिंदा नहीं बोल रहा है ! शांता मरी नहीं उसकी किसी ने हत्या नहीं की भाई वो जिंदा है....!"

"अप्पा...!"

"उसे देखोगे..?"बोलकर, इंस्पेक्टर को मुस्कुराते हुए देखा तो उसने पोर्टिको में खड़े जीप के पास जाकर खाकी पर्दे को हटाया।

शांता होठों पर एक बड़ी मुस्कान लिए हुए उतर कर अंदर आई।

........................