रात का सूरजमुखी - 9 S Bhagyam Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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रात का सूरजमुखी - 9

रात का सूरजमुखी

अध्याय 9

बापू घबराया हुआ चेहरा लिए पीछे को हुआ "इंस्पेक्टर----शांता की हत्या मैंने नहीं की।"

इंस्पेक्टर मुस्कुराया।

"बापू तुम झूठ बोल कर बच नहीं सकते। शांता ने मरने के पहले बयान में सब कुछ बता दिया है। सुबह 9:30 बजे के करीब काम पर जाने के लिए जब वह बस स्टॉप पर इंतजार कर रही थी आप शांता को अपनी कार में बैठाकर बेसन नगर के बीच में थे----एक खाली पेपर पर हस्ताक्षर करने को कह कर आपने उसे धमकाया-----उसके मना करने पर उस पर चाकू से वार किया जब शांता बेहोश होकर गिर गई तो आप उसे मरा हुआ सोच भाग कर आ गए-----

"परंतु शांता तुरंत मरी नहीं------वहां के मछुआरों ने मिलकर उसे उठाया हमें सूचित किया। मैं तुरंत उस जगह पर गया। जीप में अस्पताल लाते हुए रास्ते में उसे होश आया। दो मिनट के लिए होश में आने पर उसने बताया उसकी हत्या आपने की और वह मर गई।"

"नहीं इंस्पेक्टर---सुबह से मैंने शांता को देखा ही नहीं।"

"आप सुबह से घर के बाहर नहीं गए ?"

"गया था।"

"कहां गए थे ?"

"मन में शांति ना होने के कारण----कार लेकर मट्टू काडू झरने तक गया था।"

"आपके साथ कार में कोई और भी था क्या ?"

"नहीं।"

आप मुट्टुकाडू झरने तक गए कह रहे हो उसका कोई सबूत है?"

"वह तो कोई नहीं !"

"यह देखो बापू---आप कुछ भी कारण कह कर बच नहीं सकते। शांता ने मरने के पहले बयान में आपका नाम दे दिया है।"

सुबानायकम् गीले आंखों से बापू की ओर मुड़े।

"एक लड़की की हत्या करने की हद तक तुम जाओगे यह मैंने बिल्कुल नहीं सोचा था रे !"

"अप्पा शांता की हत्या मैंने नहीं की---इस समस्या का लाभ उठाकर किसी ने हत्या के आरोप में मुझे फंसाने की कोशिश की है।"

"तुम्हें हत्या के आरोप में फंसाने से किसी का क्या फायदा होगा ?"

बीच में राघवन बोला "अप्पा ! "बापू जो कह रहा है वह भी सच हो सकता है मुझे भी ऐसा लग रहा है। एक लड़की की हत्या करे ऐसी हिम्मत बापू में नहीं है।"

"हत्या करने के लिए हिम्मत की जरूरत नहीं उस समय जो गुस्सा उत्पन्न होता है वही बहुत है। शांता को बापू ने क्यों मारा ? इसके लिए भी कोई कारण का पता नहीं चल रहा है। इसीलिए बापू को कैद कर लॉकअप में ले जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। बापू को वह लॉकअप में रखकर इससे सच को उगलवा लेंगे।"

कल्पना का गला भर आया।

"इंस्पेक्टर मैं इस घर की बहू। बापू की भाभी। बापू के बारे में मैं अच्छी तरह जानती हूं। खून से तो उसे एलर्जी है। अपने खून को देखकर ही बेहोश होने वाला आदमी है। एक कॉकरोच को भी यह मार नहीं सकते उससे भी डरते हैं। इतना डरपोक किस्म का आदमी शांता की हत्या कैसे कर सकता है?"

"माफ कीजिएगा----बापू के बारे में आप जो कुछ भी कहे उसको सुनने मानने की स्थिति में मैं नहीं हूं।----शांता के मृत्यु पूर्व बयान मेरे पास है। उसी कारण से ही मैं बापू को कैद करने आया हूं। आप लोग जो कुछ भी कहना चाहते हो वह सब पुलिस स्टेशन आकर लिखित में दीजिएगा।"

"एक मिनट इंस्पेक्टर" सुबानायकम् बीच में बोले।

"क्या ?"

"आप अपने कर्तव्य को पूरा करें इसके पहले मैं आपसे कुछ निवेदन कर सकता हूं ?"

"बोलिएगा ।"

"इस बंगले में प्रवेश करने के पहले आपने मेरे बारे में सुना होगा ?"

"मुझे मालूम है ! आप उस जमाने के स्वतंत्रता सैनानी हैं। आप बुजुर्ग देश सेवक हैं। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हैं आज आप सामाज के लिए कार्य कर रहे हैं। इस प्रदेश के एक सम्मानित नागरिक हैं। आप एक प्रसिद्ध आदमी हैं आपको सभी जानते हैं। बापू आपका लड़का है इसलिए मैं पुलिसिया अकड नहीं दिखा रहा हूं आपसे बातें कर रहा हूं। कोई दूसरा होता तो मैं हथकड़ी पहनाकर अभी तक लेकर चला गया होता!"

"आपने मुझे इतना आदर दिया इसके लिए आपको धन्यवाद। बापू को आप कैद करिए----परंतु आज नहीं----मुझे दो दिन का समय दीजिएगा। दो दिन में हत्यारा सचमुच में कौन हैं मालूम कर सकते हैं। यदि ऐसा नहीं हुआ तो आप बापू को कैद करके ले जा सकते हो-----"

"माफ करना साहब----समय देने का अधिकार मेरे पास नहीं है----"

"फिर किसके पास है बताइएगा मैं उनसे ले लूँगा ?"

"कमिश्नर के पास है।"

सुबानायकम् धीरे से मुस्कुराए ।

"पुलिस कमिश्नर दुरई मेरे दोस्त हैं----वे आपसे कह देंगे तो ठीक है ?"

इंस्पेक्टर के चेहरे पर धीरे से एक डर व्याप्त हो गया।

"साहब---कमिश्नर आपके दोस्त हैं क्या ?"

"मेरे बहुत क्लोज फ्रेंड हैं। शांता के केस को खत्म भी कर सकते हैं। पर मैं ऐसा नहीं करना चाहता क्योंकि महात्मा के विचार मेरे खून में दौड़ रहे हैं। जिस ने गलती की है उसे कानून के सामने झुकना ही पड़ेगा चाहे वह कितना ही बड़ा आदमी क्यों ना हो। कानून जो भी सजा दें उसे स्वीकार करना पड़ेगा। यदि मेरा बेटा बापू सचमुच का एक हत्यारा होगा-----उसे मैं मृत्युदंड के लिए खुशी के साथ भेजूंगा। उसने हत्या नहीं की है ऐसा मेरा अंतर्मन कह रहा है। अतः दो दिन का समय मांग रहा हूं।"

"कमिश्नर कहें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं।"

"सोफे पर बैठो इंस्पेक्टर" उन्होंने हाथ से इशारा कर पास में रखे टेलीफोन के पास जाकर रिसीवर को उठाकर नंबर लगाया।

सुबानायकम् ने फोन पर बात करके इंस्पेक्टर को हाथ के इशारे से बुलाया।

"कमिश्नर को आपसे बात करनी है।"

इंस्पेक्टर उठकर आया, रिसीवर को लिया।

"प्रणाम साहब।"

"सुबानायकम् जी ने सारा विवरण मुझे बता दिया। वे बहुत अच्छे आदमी हैं। वे किसी को धोखा नहीं देंगे। असली दोषी को पकड़ने तक उन्हें समय दे दो..."

"ठीक है साहब।"

"उस लड़की का शव अभी कहां है ?"

बेसेंट नगर अस्पताल में रखा है।"

"और दो दिन इस शांता के हत्या के बारे में बाहर किसी को मालूम ना हो।"

"ठीक है साहब।"

दूसरी तरफ से रिसीवर को रख दिया, इंस्पेक्टर बड़ी शालीनता से धीरे से रिसीवर को नीचे रखकर सुबानायकम् की ओर मुड़े।

"साहब! कमिश्नर साहब के कहने के अनुसार शांता की हत्या के विवरण को और दो दिन पेपर में ना आए ऐसा हम देख लेंगे! इन दोनों दिनों में असली दोषी को पकड़ना आपके जुम्मे हैं!"

बापू बीच में बोला

"इंस्पेक्टर--"

"हां..."

"शांता ने आपसे क्या कहा मैंने उसे मारा ऐसे बोला ?"

"हां!"

"उसकी हत्या कैसे..? चाकू से मार कर?"

"हां!"

"शांता का शव अभी कहां है ?"

"बेसन नगर के अस्पताल में.."

"उसे देख सकते हैं इंस्पेक्टर?"

"देख सकते हैं... चलो चलते हैं!"

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