परियों का पेड़ - 16 Arvind Kumar Sahu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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परियों का पेड़ - 16

परियों का पेड़

(16)

अजब लोक के गजब निवासी

ये सीढ़ियाँ तो स्वयं ही ऊपर की ओर सरकने लगी थी | ....अर्थात उन्हें लिये हुए खुद ही ऊपर की ओर उठने लगी थी | पैरों से चलकर ऊपर चढ़ने की जरूरत ही नहीं थी | वह आश्चर्य से चिल्लाया - “परी माँ ! संभलकर आना | ये सीढ़ियाँ तो खुद ऊपर की ओर सरक रही हैं | आप फिसलकर गिर न पड़ें ?”

राजू की बात सुनते ही परी रानी हौले से मुस्कराई | कहने लगी – “चिंता मत करो राजू | ये सीढ़ियाँ किसी को गिरने ही नहीं देंगी | ये हमें खुद वहाँ तक ले जायेंगी, जहाँ हमें पहुँचना है | तुम अपना खयाल रखना | बौनों के पीछे लगे रहो | मैं भी आ रही हूँ |”

चलती हुई सीढ़ियों पर राजू का यह पहला अनुभव था | अचानक उसे याद आया कि स्कूल में उसने मास्टर जी से सुना तो था कि बड़े शहरों में ऐसी चलती फिरती सीढ़ियाँ बहुत सी जगहों पर होती हैं, जिन पर सिर्फ खड़े हो जाओ तो वे खुद ऊँचे उठते हुए मंजिल तक पहुँचा देती हैं | उसे कुछ – कुछ याद आया कि मास्टर जी ने ऐसी सीढ़ियों का नाम अँग्रेजी में शायद ‘स्कलेटर’बताया था | लेकिन ऐसी सीढ़ियाँ राजू को कभी देखने का मौका नहीं मिला था |

फिर तो कुछ ही क्षणों में राजू का डर खत्म हो गया और उसका स्थान कौतूहल और मनोरंजन ने ले लिया | वह उछलते - कूदते हुए उन चलती हुई सीढ़ियों पर ही ऊपर की ओर नए पायदान भी चढ़ने भी लगा | उसे बहुत मजा आ रहा था | अब वह तेजी से कई पायदान चढ़कर ऊपर चल रहे बौनों से भी आगे निकल जाना चाहता था |

जल्द ही राजू उन तक पहुँच भी गया | लेकिन जब तक वह बौनों से आगे निकलने का प्रयास करता, चलती हुई सीढ़ियाँ रुक गई | वह समझ नहीं पाया था कि अचानक ये सीढ़ियाँ रुक क्यों गई हैं ? उसने पलटकर पीछे आ रही परी रानी की ओर सवालिया नजरों से देखा |

परी रानी ने उसे मुस्कुरा कर आगे बढ़ने का इशारा किया |

अब राजू ने जैसे ही अपना एक कदम आगे बढ़ाया तो फिर चौंक गया | उसका अगला कदम एक सपाट फर्श पर था, जिस पर मोटा सा दूसरा लाल कालीन बिछा हुआ था | इस कालीन के दोनों ओर नीले रंग की चौड़ी पट्टियाँ बनी हुई थी, जिन पर पंक्तिबद्ध कुछ बौने खड़े थे | वे उन सबका स्वागत करते हुए भीतर आने का संकेत कर रहे थे |

राजू ने देखा कि वह एक बड़े हॉल के दरवाजे पर पहुँच गया है | उसके आगे चल रहे बौने पहले ही सीढ़ियों से उतरकर बाहर कूद कर और चहल कदमी कर रहे थे |

तब तक पीछे से आयी परी रानी ने राजू की ऊँगली पकड़ी और हॉल में आगे बढ़ती चली गई | भौचक राजू सोचता ही रह गया कि सैकड़ों पायदान ऊँचा यह सफर अचानक ही कैसे खत्म हो गया ? सीढ़ियों पर खड़े होने के बाद वह पलक झपकते ही परियों के पेड़ के ऊपर पहुँच गया था | जबकि इतने समय में वह बड़ी मुश्किल से दस पायदान से अधिक नहीं चढ़ सकता था |

अब राजू ने उस हॉल में चारों ओर अपनी नजरें दौड़ाई | वहाँ राजसी सुख - सुविधा का पूरा सामान दिख रहा था | अब उसकी समझ में आया कि वह परी लोक के भीतर पहुँच चुका था और इस स्थल पर परी रानी का दरबार लगता था |

परी रानी के साथ सीधे चलते हुए राजू उस स्थान तक पहुँचा, जहाँ एक बड़ा सा सिंहासन रखा हुआ था | उस सिंहासन के दोनों ओर मयूर पक्षी की आकृतियां बनी हुई थी और पीछे सतरंगे, सुन्दर और कोमल मोरपंखों से सजावट की गयी थी | बैठने के स्थान पर अत्यंत सुन्दर और कोमल फूलों का गद्दा बिछाया गया था | सिंहासन के दोनों ओर दरबारी पोशाक पहने दो बौने हाथ में राजसी दण्ड-प्रतीक लिये हुए सावधान मुद्रा में खड़े थे |

परी रानी के वहाँ पहुँचते ही सबसे पहले दो सुंदर परियाँ प्रकट हुई और आगे बढ़ आयी | उन्होंने परी रानी पर फूलों की वर्षा करते हुए उनकी अगवानी की | फिर कुछ अन्य परियाँ भी प्रकट हुई और उन्होंने सुगन्धित जल छिड़कते हुए सभी का स्वागत किया |

सभा स्थल का रास्ता पार कर परी रानी अपने सिंहासन पर बैठ गयी | एक परी उनके सिंहासन के पीछे खड़ी होकर सुन्दर सफ़ेद बालों से बना हुआ चँवर डुलाने लगी | अब तक देखते ही देखते वहाँ दर्जनों अन्य परियाँ भी प्रकट हो चुकी थी और वे रानी के सामने की ओर, अगल – बगल पंक्ति बद्ध होकर खड़ी हो गई थी |

अब परी रानी ने राजू की ओर देखते हुए किसी परी को संकेत किया | आदेश समझते ही परी रानी के सिंहासन के ठीक बगल में राजू के लिए भी एक छोटा सा सिंहासन लग गया | दो सेविकाओं ने राजू को बड़े प्यार से उस सिंहासन पर बैठा दिया | राजू अब अपने आपको किसी असली राजकुमार से कम नहीं समझ रहा था |

फिर परी रानी का अगला संकेत हुआ और देखते ही देखते राजू अर्थात परियों के इस राजकुमार के सामने तरह – तरह के फलों और मिठाइयों के थाल सज गए | तब परी रानी की बड़ी ही मधुर और मखमली आवाज गूँजी – “लो राजू ! जो पसंद हो वह खाओ | तुम्हें तो ज़ोरों की भूख भी लगी होगी न ?”

आश्चर्य में डूबे राजू ने बड़े संशय से ‘हाँ’ में सिर हिलाया | दरअसल जादुई शर्बत पीने के बाद राजू के मन को एक अजीब सी तृप्ति हुई थी | अब उसे कुछ भी खाने - पीने की इच्छा या भूख - प्यास का आभास भी नहीं हो रहा था | लेकिन राजू ने इतने तरह के फल और मिठाइयाँ अपने छोटे से जीवन में कभी नहीं देखी थी | चखना या पेट भर खाना तो बड़ी दूर की बात थी | अतः इन्हें देखकर बिना इच्छा के ही उसकी बाल सुलभ भूख जागने लगी थी |

......और वह इतने सुंदर अवसर को यूँ ही गँवाना भी नहीं चाहता था |

राजू ने फलों और मिठाइयों को बड़े चाव से देखा | सब एक से बढ़कर एक सुंदर, सुगंधित और स्वादिष्ट लग रहे थे | वह सोच में पड़ गया था कि कौन सा पहले खाये और कौन सा बाद में ? बड़ी कशमकश में उसने कुछ नये जैसे लगने वाले फलों पर हाथ आजमाया | फिर कुछ मिठाइयों को भी थोड़ा – थोड़ा चख कर देखा | उनको चखते ही उनके जादुई स्वाद का असर ही कह लें, राजू की रही - सही और अकस्मात पैदा हुई भूख भी गायब हो चुकी थी |

इन फलों और मिठाइयों को चखने या उनकी मोहक - स्वादिष्ट सुगंध से ही राजू का पेट भर गया था | जब उसने तृप्ति का आभास कराती हुई एक लम्बी सी डकार ली तो परी रानी मुस्करा उठी |

राजू का तो अभी और भी, खूब खाने का मन हो रहा था | अधिकांश फल और व्यंजन तो उसने अभी चखे भी नहीं थे | लेकिन उसका छोटा सा पेट इससे अधिक खाने की इजाजत बिलकुल भी नहीं दे रहा था | उसका पेट तो मानो “हाउसफुल” का बोर्ड लगाकर बैठ गया था | इससे राजू को बड़ी चिढ़ हो रही थी | वह इस अवसर पर अपना मन और भरा हुआ पेट दोनों मसोस कर रह गया |

आखिर किया भी क्या जा सकता था ?

परी रानी राजू की स्थिति महसूस करके हौले से मुस्कुरा पड़ी | कहने लगी – “अभी तो बहुत सी चीजें हैं तुम्हारे खाने के लिए यहाँ | थोड़ा धैर्य रखो |”

यह सुनकर राजू शरमा गया | मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो | अपनी झेंप मिटाने के लिये वह फिस्स से हँस कर रह गया | राजू की ऐसी हँसी देखकर उसके पीछे खड़ा बौना भी चुपचाप मुस्कराने से खुद को रोक न सका |

इसके बाद परी रानी के अगले आदेश पर वहाँ गीत – संगीत और नृत्य की महफिल सज गई | पहले कई बौने अजीब – अजीब सी मज़ाकिया वेश – भूषा पहनकर आए और राजू का मनोरंजन करने लगे | कोई चुटकुला सुनाता, तो कोई किसी गीत को ऐसे अंदाज में सुनाता कि राजू की हँसी छूट जाती | कोई अजीब – अजीब तरीके से उछल कूद मचाता और कोई ऐसे - ऐसे जादू दिखाता कि राजू एकदम भौंचक्का रह जाता | ऐसा तो राजू ने कभी किसी मेले – ठेले में भी नहीं देखा था |

इसके बाद सारे बौने मिलकर तरह – तरह के वाद्य यंत्र बजाने लगे | फिर खूब सजी – धजी दर्जनों परियाँ वहाँ प्रकट हुई और नाचने – गाने लगी | राजू काफी देर तक उन्हें देखता रहा | सब कुछ उसे बहुत अच्छा लग रहा था | उसे इतना सुन्दर व आकर्षक मनोरंजन कभी नहीं मिला था |

उसका मन प्रफुल्लित हो गया था |

सहसा परी रानी ने पूछा - “राजू चलचित्र देखोगे ?”

“कैसा चलचित्र ?” – उसने आश्चर्य से पूछा |

-----------क्रमशः