परियों का पेड़
(15)
राजू बन गया राजकुमार
अब तो राजू की खुशियों का ठिकाना न रहा | वह काफी देर तक बार – बार, ऊपर से नीचे तक अपने आपको ही निहारता रहा | अपनी गर्दन को दायें – बाएँ घुमा – घुमा कर अपने मुकुट को संभालते हुए, अपने शरीर के सुंदर वस्त्रों को चारों ओर से देखने की कोशिश करता रहा | उसका दिल मानो बल्लियों उछल रहा था | खुशियाँ उसके आगे – आगे नाच रही थी | उसके सपने पूरे होने लगे थे |
ऐसा तो उसने अब तक सिर्फ कहानियों वाले परीलोक में होता हुआ सुना था | लेकिन आज तो वह सचमुच के परी लोक में आ गया था और यहाँ उसके साथ सब कुछ सचमुच का ही घटित हो रहा था |
“यह सब तुम्हें कैसा लग रहा है राजू ?” – परी रानी ने उसको पुलकते हुए देखकर पूछा |
“बहुत अच्छा लग रहा है परी माँ ! असली राजकुमार जैसा महसूस कर रहा हूँ |”- राजू ने चहकते हुए कहा |
“हाँ राजू ! परीलोक में आने वाले बच्चों की वे सारी इच्छाएँ पूरी होती हैं, जिन्हें अब तक तुम कहानियों में सुनते आये हो | अभी तो ऐसी बहुत सी खुशियाँ यहाँ तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं | अब तुम्हारे पास भी बताने – सुनाने के लिये बहुत कुछ अपना निजी अनुभव होगा | तुम हमारे साथ आगे बढ़ो तो सही |” – परी रानी ने उसे उत्साहित किया |
लेकिन आगे बढ़ने से पहले राजू परी रानी से एक सवाल पूछ बैठा – “परी माँ! जो कुछ मेरे साथ कहानियों जैसा घटित हो रहा है, क्या यह सब कभी मेरे नाम के साथ दूसरे बच्चों को भी सुनाया जायेगा ? ....जैसे कि मैं अब तक दूसरी कहानियों में सुनता रहा हूँ ?”
“हाँ - हाँ क्यों नहीं ? बल्कि मैं तो कहती हूँ कि बच्चों ने इससे अच्छी कोई अन्य परी कथा अब तक सुनी ही नहीं होगी |” – परी रानी द्वारा यह दावा करना राजू को बहुत अच्छा लगा |
“वाह परी माँ, सचमुच ऐसा ही होता |” – राजू को किंचित अब भी कोई संदेह था |
“ऐसा ही होगा राजू ! तुम निश्चिंत रहो | अभी तो इस कहानी में और भी बहुत कुछ ऐसा घटित होने वाला है, जिसे तुम्हारे जैसे बच्चे सदियों तक नहीं भूल पायेंगे |” – परी रानी ने राजू को पूरी तरह आश्वस्त करने का प्रयास किया |
“धन्यवाद परी माँ |”- राजू संतुष्ट हो गया | उसे अपनी परी माँ पर पूरा विश्वास हो चुका था | वह किसी अच्छे बच्चे की तरह परी माँ के अगले आदेश की प्रतीक्षा करने लगा |
तब परी रानी ने धीरे से उसका हाथ पकड़ कर कहा – “तो आओ चलो, अब हम परी लोक में प्रवेश करें | फिर मैं तुम्हें वहाँ की भरपूर सैर कराती हूँ |”
“जी चलिये |” – राजू ने कदम आगे बढ़ा दिये | परी रानी के साथ ही सब आगे बढ़ चले |
सबसे पहले परी रानी के आगे – आगे रास्ता दिखाते हुए हुए बौने चले | वे अब भी मस्ती में उछलते – कूदते हुये अपनी विदूषकों (जोकरों) जैसी हरकतों से राजू को हँसाने का प्रयास कर रहे थे | राजू के चेहरे पर बड़ी ही प्यारी, संतुष्टि से भरी हुई मुस्कान खिली हुई थी | ये मुस्कान बौनों की हरकतों से बार – बार हल्की हँसी या खिलखिलाहट में बदल जाती थी | आगे - आगे बौने, बीच में राजू और पीछे – पीछे परी माँ |
अब राजू ने गौर किया | उन सब के पैरों के नीचे बहुत ही मुलायम, मखमली लाल रंग का शाही कालीन बिछा हुआ था | उस कालीन पर चलते हुए पैरों को बड़ा सुकून मिल रहा था | उसके नाजुक पैर उस कालीन के मुलायम रोएं में धँसते हुए चल रहे थे | ये कब हुआ ? वह सोचने लगा | शायद परी माँ के आते ही बिछ गया होगा | राजू के पैरों के नीचे पहले जो हरी और मुलायम घास थी, वो कहीं छिप सी गई थी | अब तो सब कुछ एकदम बदला – बदला और राजसी ठाट वाला दिख रहा था |
वे सब चल रहे थे | राजू भी चल रहा था | लेकिन वो समझ नहीं पा रहा था कि वे लोग जा किधर रहे हैं ? क्योंकि ये कालीन से ढका हुआ रास्ता तो पेड़ की जड़ों के पास ही जाकर खत्म हो रहा था | अगर पेड़ के ऊपर चढ़ना था तो किसी सीढ़ी की ओर जाना चाहिए था | इस तरह आगे बढ़ने का क्या मतलब था ?
वह सोचने लगा, हो सकता है यहाँ कुछ देर आराम करना हो, फिर पेड़ के ऊपर जाना हो | ……या हो सकता है कि तब तक कोई सीढ़ी आदि का इंतजाम कर रहा हो और अभी लेकर आ जाये | ........बहरहाल, इस बार भी उसे ज्यादा सोचने का मौका नहीं मिला |
यहाँ तो हर कदम पर राजू के लिए एक आश्चर्य प्रतीक्षा कर रहा था |
पेड़ के तने के पास पहुँचते ही बौने रुक गए | दोनों ने आपस में खुसर – फुसर की | फिर मज़ाकिया तरीके से अपना सिर पेड़ के पास ले जाकर उसको धक्का देने के अंदाज में टकराने लगे | जैसे कोई छुपा हुआ दरवाजा धकेल कर खोलने का प्रयास कर रहे हों | लेकिन उसका कुछ परिणाम दिखता, इससे पहले ही दोनों “पहले मैं, पहले मैं” करते हुए आपस में लड़ने लगे |
- “पहले मैं, पहले मैं धक्का दूँगा |”
- “अरे नहीं, पहले मैं धकेलता हूँ |”
- “अरे तुम रुको, पहले मैं धकेलूंगा |”
- “ मैंने कहा न कि पहले मैं ?”
जब कोई एक मानने को तैयार नहीं हुआ तो दोनों ने एक साथ ही अपने सिर आगे बढ़ा दिया | इस चक्कर में दोनों के सिर धड़ाम से आपस में ही टकरा गये | “ऊई माँssss |” – चोट लगते ही दोनों हड़बड़ा कर पीछे हटे और अपना – अपना सिर पकड़ कर सहलाने लगे | जबकि राजू की हँसी छूट गयी |
इस पर परी रानी ने बौनों को डाँटा – “परीलोक का दरवाजा इस तरह से खुलेगा क्या ? अब तो शैतानी बंद कर दो तुम दोनों |”
परी रानी की डाँट खाते ही दोनों बौने सिटपिटा गये | दोनों ने फटाफट एक दूसरे के मुँह पर सीधी उँगली रख दी, जो पक्के तौर पर चुप्पी साधने का दिखावा था | फिर वह दोनों एक दूसरे को गोल – गोल आँखें घूमाकर इशारा करते हुए मज़ाकिया अंदाज में चुपचाप दो कदम पीछे हटे और किसी स्टेच्यू (मूर्ति ) की तरह जहाँ के तहाँ खड़े हो गए | जैसे उनके मुँह के साथ ही उनके पैरों में भी ब्रेक लग गया हो |
उनकी यह मज़ाकिया मुद्रा देखकर एक बार फिर राजू की हँसी छूट गयी |
बौनों के सामने से हटते ही परी रानी आगे आयी और उसने अपनी जादुई छड़ी पेड़ के तने की ओर सीधा करते हुए एक आयताकार हिस्से में घुमा दिया | छड़ी से प्रकाश की एक तेज किरण निकली और पेड़ के तने पर उसी आकार में खरोंचे जाने का निशान बनता चला गया |
राजू ने देखा, अब उतनी आयताकार जगह में उस पेड़ पर एक दरवाजे के जैसा चित्र बन गया था | फिर उस चित्र में रंग भरने जैसी प्रतिक्रिया हुई और देखते ही देखते वहाँ वास्तव में एक असली दरवाजा दिखायी पड़ने लगा, जैसे किसी ने जादू किया हो | राजू ने महसूस किया कि ये दरवाजा किसी नगर या किसी बड़े महल के फाटक जैसा भारी, मजबूत, नक्काशीदार और खूबसूरत भी था | यह निश्चित रूप से परीलोक की सुरक्षा में पूरी तरह समर्थ था |
इसके बाद राजू ने देखा व सुना.........|
“चर्र... मर्र....चूँssss .....|” की कुछ अजीब सी कुछ आवाजें हुई और उसी के साथ पेड़ के विशाल तने में प्रकट हुआ वह दरवाजा भी खुलता चला गया | ……जैसे कहानियों में किसी पुरानी हवेली या राजमहल का पुराना और मोटा सा भारी भरकम दरवाजा खुलता है |
इस खुले हुए दरवाजे से एक भीनी खुशबू का झोंका बाहर आया और राजू के तन – मन को फिर से एक ताजगी और स्फूर्ति का आभास कराता चला गया | जैसे वह किसी फूलों से भरे उपवन के सामने खड़ा हो | वहाँ से आगे बढ़ने के लिये भीतर भी लाल कालीन से बिछा हुआ रास्ता स्पष्ट दिख रहा था |
अब इस खुले हुए दरवाजे में सबसे पहले वे बौने उतरे | उनके बाद पीछे खड़ी परी रानी ने राजू को आगे बढ़ने का इशारा किया | फिर राजू ने भी अपने कदम आगे बढ़ा दिये | अंदर पैर रखते ही उसकी आँखें चौंधिया गयी | यहाँ चारों ओर झमाझम प्रकाश था | इतना तेज प्रकाश कि सुई भी नीचे गिर जाए तो आसानी से उठाई जा सके |
लाल कालीन के गलियारे में चार कदम आगे बढ़ते ही वह सभी एक विशेष स्थान पर रुक गये | यह स्थान करीब दस फुट लंबा और इतना ही चौड़ा छोटा कमरे जैसा था | राजू ने महसूस किया कि इसी के लगभग बाहर से उस विशाल परियों के पेड़ की मोटाई भी रही होगी |
यहाँ से आगे गलियारे खत्म हो रहा था और ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थी | यह देखकर राजू दंग रह गया | सुंदर कारीगरी से सजी हुई और वैसी ही लाल कालीन बिछी हुई | …..ऊपर काफी ऊँचाई तक जाती हुई सीढ़ियाँ |
यहाँ भी किसी चौकीदार की तरह दो अन्य बौने खड़े हुए थे, जिन्होंने राजू और परी रानी को देखते ही दोनों हाथ जोड़ लिये और झुक कर प्रणाम किया | फिर उन दोनों ने अपने हाथों को खोलकर नीचे झुकाया और सीढ़ियों की ओर घुमाते हुए ऊपर की ओर आगे बढ़ते रहने का अर्थात ऊपर चढ़ने का संकेत किया |
सबसे पहले सीढ़ियों पर कूदकर साथ चलने वाले बौने ही चढ़े और उछलते - कूदते हुये कई पायदान ऊपर चढ़ गये | उन्हें देखते हुए राजू ने भी फुर्ती से पैर आगे बढ़ाये और दो पायदान ऊपर चढ़ गया | उसने सीढी पर पैर रखा ही था कि उसे अपने पैरों के नीचे की धरती हिलती हुई महसूस हुई | लगा कि जैसे कोई जबरन उसके पैरों को ऊपर की ओर उठाये जा रहा है | उसने हड़बड़ाकर अपने दोनों हाथों से शरीर का सन्तुलन बनाते हुए नीचे की ओर देखा कि ये अचानक क्या हो गया है ?
....और फिर नीचे देखते ही मानो उसकी चीख निकल गयी |
--------क्रमशः