रात का सूरजमुखी
अध्याय 2
बापू, कल्पना और सुबानायकम् तीनो लोग ऊपर से जल्दी-जल्दी उतर कर नीचे आए। राघवन उस लड़की से पूछताछ कर रहा था।
"किस बारे में अप्पा से मिलने आई हो तुम ?"
"जो वह---है---ना--वो---"सिर झुका कर बोल रही थी उस लड़की की उम्र 20 साल के बराबर की थी। गेहूंआ रंग बड़ी-बड़ी आंखें सुंदर लग रही थी और साड़ी के पल्ले को अंगूठे से घुमा रहे थी ।
"अरे ! राघवन----"सुबानायकम् आवाज देते हुए उस लड़की के समीप आए तो वह लड़की उठकर सम्मान के साथ खड़ी हुई। सुबानायकम् ने उस पत्र को दिखाते हुए शांता से पूछा "इस पत्र को लिखने वाली शांता तुम ही हो?"
"जी हां---जी हां--- ! इस पत्र को पढ़कर आप लापरवाही से यहां वहां ना फेंक दें इस डर से मैं स्वयं आ गई।"
राघवन ने असमंजस की स्थिति में पूछा "अप्पा यह सब क्या है? यह लड़की कौन है? इसने कैसा पत्र लिखा?"
"इस पत्र को पढ़ो तो सब समझ जाओगे !" कहकर सुबानायकम् पत्र को राघवन को देकर शांता की ओर मुड़े।
"मेरा बेटा बापू तुम्हें नहीं जानता बोल रहा है।"
"झूठ--सफेद झूठ मैं और आपका बेटा पिछले 1 साल से मिलते जुलते रहे हैं।"
बापू आवेश के साथ बोला "अरे तू कौन है? क्यों मेरे परिवार में आकर असमंजस की स्थिति पैदा कर रही है?"
शांता के होंठ में हल्की सी मुस्कुराहट दिखी।
"क्या----मैं असमंजस पैदा कर रही हूं ? बापू---कुछ पुरानी बातों को सोच कर देखो ! एक साल पहले आप मुझे जब प्रेम करते थे उस समय मैंने क्या कहा था ? 'नहीं बापू---तुम्हारा परिवार इस शहर का सम्माननीय परिवार है-----आपके स्टेटस बहुत ऊंचे हैं ! आपका गौरवशाली परिवार है। आपके अप्पा उस जमाने के स्वतंत्रता सैनानी और त्यागी हैं। मैं आपके परिवार की बहू बनने लायक नहीं हूं। मैंने पहले बोला था।' पर आप नहीं माने-----स्टेटस---वेटेटस क्या होता है? कहकर आप मुझसे प्रेम करते रहे। मेरे लिए घंटों बस स्टॉप पर खड़े रहते-----आपने मेरे लिए जो प्रेम प्रदर्शन किया मैं भी उस कारण आप से प्रेम करने लगी।"
बापू बीच में बोला "यह क्या कहानी बोल रही हो? तुम्हारे इस चेहरे को आज तक मैंने देखा ही नहीं! चुपचाप घर से जा रही हो या पुलिस को बुलाऊं?"
शांता के चेहरे पर एक बड़ी मुस्कुराहट आई।
"पुलिस को---हां हां बुलवाईयेगा ! आप लोगों से न्याय ना मिले तो मैं आखिर में पुलिस के पास ही जाने की बात सोच रखी है। यदि अभी बुलाओ अच्छी बात है।"
बापू गुस्से में फोन के पास जाने लगा तो सुबानायकम् ने उसके हाथ को पकड़ा। और बोले "ठहर रे---!"
"अप्पा इसे पुलिस में पकड़वाना ही अच्छा रहेगा। यह कौन है ? क्या है---क्या सच है कि नहीं यह सब वे पूछताछ से मालूम कर लेंगे।"
इस बीच पत्र को पढ़कर खत्म कर राघवन ने गुस्से से चिल्लाया।
"क्या है अप्पा आप भी ? बापू पर संदेह कर रहे हैं? एक लड़की से प्रेम करके उसे धोखा दे ऐसी इसमें हिम्मत नहीं। इस लड़की को किसी ने भेजा है। पुलिस स्टेशन ले जाकर पूछताछ करें तो सब सच बाहर आ जाएगा।"
सुबानायकम् अपनी आवाज को तेज कर बोले "यह एक लड़की से संबंधित विषय है। किसका कहना सच है जब तक मालूम ना हो पुलिस तक ले जाना ठीक नहीं!"
अभी तक बिना कुछ बोले शांत रही कल्पना धीरे से शांता के पास गई और उसके कंधे को छू कर बोली "बापू और तुम्हारी जान पहचान कब से है?"
"एक साल से।"
"बापू और तुम्हारा एक साथ लिया हुआ कोई फोटो तो होगा तुम्हारे पास हैं ?"
"नहीं।"
"बापू ने तुम्हें कोई पत्र लिखा हो वह हो तुम्हारे पास है ?"
"नहीं ।"
"तुम तो कह रही हो बापू तुमसे प्रेम करता है ? तो क्या उसने कभी कोई पत्र नहीं लिखा?"
"कोई भी बात हो तो वह सिर्फ फोन पर ही बात करते थे।"
"तुम्हारे पास फोन है।,"
"मेरे पास नहीं है। पड़ोस के घर में हैं। उसका नंबर बापू को पता है। उसी नंबर पर लड़की की आवाज में मुझे बुलाते फिर मेरे आने पर स्वयं की आवाज में बोलने लगते।"
"अरे पापी !" हाथ उठाकर उसे मारने आया बापू। उसे कल्पना ने रोका "बापू तुम थोड़ा चुप रहो।"
"भाभी यह झूठ बोल रही है !"
"वह जो बोल रही है उसे बोलने दो। ठीक से पूछताछ के बाद ही हम फैसले पर आएंगे।"
"भाभी उससे बातें करते रहना गलत है---- !
"बापू---तुम जाकर वहां बैठो !" कल्पना ने सोफे की तरफ इशारा करके बोला तो उसे आग्नेय नेत्रों से देखते हुए वह सोफे पर जा बैठा। गुस्से से उसके हाथ पैर फड़फड़ा रहे थे।
कल्पना, शांता की ओर मुड़ी "ठीक है--बापू की लिखा कोई पत्र तुम्हारे पास नहीं है तुमने बोल दिया---तुम्हारे इस प्रेम प्रकरण के बारे में किसी को पता है?"
"नहीं मालूम।"
"तुम्हारे घर में और कौन-कौन हैं ?"
"सिर्फ मैं ही हूं। मेरे मां- बाप, भाई-बहन, रिश्तेदार कोई नहीं है। दूर के मामा की कृपा से पढ़ लिख कर एक नौकरी ढूंढ कर शांति से रह रही थी। बापू ने आकर मेरी जिंदगी में एक खलबली पैदा कर दिया।"
"तुम कहां काम करती हो ?"
"रेडीमेड कपड़े सीने वाली एक कंपनी में अकाउंट का कामकरती हूं कोडंबकम् पार्थीस्वर कॉलोनी में मेरा घर है।"
"बापू तुम्हारे घर आए हैं क्या ?"
"नहीं।"
"तुम जहां काम करती हो वहां आया है क्या ?"
"नहीं।"
"पत्र में तुमने अपने अबॉर्शन के बारे में लिखा था ना वह सच है ?"
"मुझे झूठ बोलना नहीं आता।"
"अच्छा--अबॉर्शन किस डॉक्टर से करवाया ?"
"डॉक्टर कामिनी ।"
"वह डॉक्टर कहां रहती है ?"
"अडैयार में।"
"अबॉर्शन कब करवाया ?"
"तीन महीने हुए होंगे।"
"अबॉर्शन करवाते समय बापू तुम्हारे साथ था क्या ?"
"नहीं !"
"बापू और तुम्हारा प्रेम है कहती हो पर उसका कोई भी सबूत तुम्हारे पास नहीं है ! एक फोटो, एक पत्र कुछ भी तो नहीं है बोल रही हो!"
"बाबू बहुत होशियारी से मुझ से प्रेम करता था और इसे बाहर की दुनिया से छुपा कर रखा-----हम बीच पर जाते तो भी खूब अंधेरा होने के बाद ही जाते।"
राघवन अब शांता की ओर आया ।
"यह देखो------यह बहुत ही सम्मानित परिवार है। हमारे परिवार के सम्मान को खराब करने के लिए किसी ने साजिश कर उसकी पूर्ति करने के लिए तुम आई हो मुझे ऐसा लगता है। ऐसा कुछ है तो पहले ही बता दो। नहीं तो बाद में तुम्हें बहुत तकलीफ होगी।"
शांता एक कड़वी हंसी हंसी।
"यह कोई साजिश या नाटक नहीं है। आपसे झूठ बोलने की जरूरत भी नहीं है। यह मेरे पूरे जीवन की समस्या है। बापू ने मुझसे प्यार किया साहब। शादी करने के लिए शपथ भी खाई-----उनकी बात पर विश्वास कर मैंने अपने शरीर को भी उन्हें सौंप दिया। इस शरीर में जो दाग लगा है उसके साथ मैं कैसे दूसरे आदमी के सामने अपनी गर्दन झुका सकती हूं। ऐसा मेरा मन कैसे करेगा?"
राघवन बीच में बोला "तुम बापू को अपना शरीर दिया बोल रही हो! कहां पर दिया? तुम्हारे घर पर या होटल में?"
"दोनों जगह नहीं। महाबलीपुरम जाने के रास्ते में स्वर्ग कॉटेज है----वहां बापू मुझे लेकर गए थे।"
"क्या बोल रही है रे---- ?" बापू ने तिपाई पर रखे हुए सिगरेट ट्रे को उठाकर शांता के ऊपर गुस्से से फेंकने लगा तो उसका निशाना चूककर दीवार से टकराकर टन-टन आवाज के साथ नीचे लूटने लगा। बापू का सांस फूल रहा था वह चिल्लाया "मुझे महाबलीपुरम गए दो-तीन साल हो गए होंगे 3 महीने के पहले जाने की बात कहना एकदम सफेद झूठ है।"
शांता की आंखों में पानी छलकने लगा। सब कुछ देखते हुए धीमी आवाज में बोली "मुझे झूठ बोलने की क्या जरूरत है? आपके सामने खड़े होकर अभी जो बोल रही हूं वह एक-एक बात सच है!"
अभी तक मौन बैठे सुबानायकम् ने अब मुंह खोला।
"कॉटेज का नाम क्या बताया तुमने बेटी ?"
"स्वर्गम कॉटेज !"
"वहां मेरा लड़का ही तुम्हें लेकर गया था क्या ?"
"हां !"
"किस दिन लेकर गया ? तारीख पता है क्या?"
"मालूम है।"
"बोलो देखें!"
"सितंबर के 16 तारीख को।"
"कितनी बजे कमरा लिया ?"
"रात को 8:00 बजे।"
"कितने दिन रुके ?"
"एक ही दिन। दूसरे दिन सुबह 10:00 बजे कमरे को खाली कर दिया।"
"नहीं----" बापू चिल्लाया। गुस्से से उसकी सांसे उठ रही थी। सुबानायकम् बेटे को हाथ से इशारा करके बैठने के लिए कहा और शांता की तरफ मुड़े।
"तुम दोनों ने जाकर कमरा लिया बोला ! ठीक है-कमरा लेते समय वहां के रजिस्टर में नाम, पता लिखना होता है।"
"हां।"
"कॉटेज के रजिस्टर में तुम्हारा और बापू का नाम होगा ?"
"आपका बेटा बापू वह गलती करेगा क्या ? नाम और पता बदल कर ही बताया था। हस्ताक्षर भी मुझे ही करने को बोला।"
"ठीक है बदले नाम और पता कौन सा है बता सकती हो ?"
"दिवाकर-रेवती के नाम से कमरा लिया। पता क्या लिखा याद नहीं।"
"तुम्हारे साथ गया वह मेरा बेटा बापू ही था ना ?"
"हां !"
"चलो चलते हैं !"
"कहां ?"
"उस स्वर्गम कॉटेज जाकर पूछताछ करते हैं। बापू तुम्हारे साथ सचमुच में आया था तो वहां पर किसी ने तो उसे देखा होगा !"
शांता थोड़ी हिचकी । है-----याद "वह ऐसा----"है-----
"क्यों बेटी ?"
"हम जब गए रात का समय था और वह भी 3 महीने पहले ? किसी को याद हो जरूरी नहीं?"
"तुम जो सोच रही हो वह गलत है। कुछ लोगों को, एक बार देखें तो बहुत सालों तक याद रखते हैं-----उस कॉटेज में जाकर पूछें-----तुम्हारे साथ जो आया वह बापू था या कोई और मालूम हो जाएगा !" कहकर बापू की तरफ मुड़े।
"तुम क्या कह रहे हो ?"
"बड़े आराम से उस कॉटेज पर चलें। यह लड़की बकवास कर रही है तुरंत पता चल जाएगा !"
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