दहेज एक विनाशकारी चिंगारी - 11 - अंतिम भाग Uday Veer द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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दहेज एक विनाशकारी चिंगारी - 11 - अंतिम भाग

स्थान रंजीत का घर, रंजीत अपने दोस्तों के साथ बैठा शराब पी रहा है, तभी

पवन:- रंजीत भाई, आज की खबर सुनी, इंस्पेक्टर ललित चम्बल के बीहड़ में मारा गया|

राजन:- लगता है अब उन लोगों का आखरी निशाना हम लोग ही हैं, अब क्या करें?

रंजीत:- तुम लोगों को जो करना है करो, मेरी समझ में फिलहाल तो कुछ नहीं आ रहा है|

तभी किसी के आने की आहट होती है

राजन:- कौन है वहां?

तभी सामने आते हुए

अर्जुन:- क्या बात है? ओ! पार्टी चल रही है|

पवन:- कौन हो तुम?

लक्ष्मण:- जिसका तुम्हें, था इंतजार, वो घड़ी आ गई.......

रंजीत:- अबे हो कौन तुम लोग?

वीर:- क्या बात है? बड़ी जल्दी भूल गया मुझे, लेकिन चिंता मत कर, हम तुझे भूलने नहीं देंगे, और वैसे भी आज के बाद तुझे कुछ भूलने या याद करने की जरूरत नहीं पड़ेगी|

राजन और पवन:- हमें जाने दो वीर, हमने तुम्हारी बहन को नहीं मारा, और तुम्हारी हमसे कोई दुश्मनी भी नहीं है|

वीर:- नहीं कमीनो, तुम दोनों एक सिक्के के ही दो पहलू हो......

और तभी राजन और पवन गन निकालते हैं, लेकिन तब तक देर हो जाती है| रुद्र और अर्जुन की गोली उनके सीने को चीर कर निकल जाती हैं, और दोनो कटे हुए पेडों की तरह गिर पढते हैं|

रंजीत:- मुझे माफ कर दो वीर, अब मैं कभी किसी भी लड़की को दहेज के लिए नहीं मारूंगा|

वीर:- और गिड गिडा कमीने, मेरी बहन भी गिड गिडाई होगी तेरे सामने, उसने भी तुझसे जान की भीख मांगी होगी, मगर क्या तूने उस मासूम की एक भी सुनी? क्या तूने उसे छोड़ा? मेरे जीने का सिर्फ एक ही सहारा था, उसे भी तूने छीन लिया|

और गोली चलाता है, रंजीत कटे हुए पेड़ की तरह गिर पड़ता है| गोली की आवाज सुनकर रंजीत की मां सुनामी आती है, और रंजीत की लाश देखकर चिल्लाती है, कमीनों मेरे बेटे को क्यों मार दिया, अब मुझे भी मार दो|

वीर:- (सुनामी की गर्दन पकड़ लेता है) आओ सुनामी तुम्हारा ही इंतजार था, चलो आज तुम्हारी आखिरी इच्छा भी पूरी किए देते हैं, और वैसे भी तुम्हें मारने के लिए, मैं अपनी होली बर्बाद नहीं करूंगा, तुम्हें तो हाला दबाकर ही मार दूंगा| और जोर से गला दबाता है, और सूनामी की सांसें रुक जाती है|

स्थान वीर का घर, वीर अपने दोस्तों के साथ बैठा हुआ है, और महिमा भी उनके साथ बैठी है, वे लोग आपस में बातें कर रहे हैं|

रूद्र:- अब क्या करोगे वीर?

वीर:- मेरा काम खत्म हुआ, अब तुम लोग अपनी जिंदगी जियो, मेरा जो साथ दिया, उसके लिए जब भी जरूरत हो, मुझे याद करना जान भी हाजिर है, और वैसे भी अब मुझे सरेंडर करना है|

महिमा:- लेकिन तुमने कौन सा गलत काम किया है, वही किया जो सही है|

वीर:- वो सब तो सही है माही, लेकिन कानून की नजरों में यह गुनाह है, और मैंने गुनाह किया है|

तभी हवलदार अमन आता है, और रंजीत को चलने के लिए कहता है|

तभी पंडित बजरंगी आता है और कहता है, कि अगर गुनाहों से लड़ना और गुनाहगारों को सजा देना और खत्म करना अगर गुनाह है, तो हमें मंजूर है ये गुनाह, आखिर गलत क्या किया वीर भाई ने, जो आज उसे ही गुनहगार बना दिया इस कानून ने|

महिमा गले लग कर रोने लग जाती है वीर के

महिमा:- और कितना इंतजार करना पडेगा मुझे वीर जी?

वीर:- बस थोड़ा इंतजार और कर लो माही|

और वीर अमन के साथ चला जाता है, अदालत वीर को 7 साल की सजा सुनाती है, वीर के अच्छे बर्ताव को देखते हुए, उसकी सजा कम करके 5 साल कर दी जाती है, जब वीर जेल से वापस आता है, तो उसके दोस्त और महिमा उसका इंतजार करते हुए जेल के बाहर गेट पर मिलते हैं| वीर सभी से गले मिलता है, और महिमा भी वीर के गले लग जाती है, और रोने लगती है|

महिमा:- बहुत इंतजार करवाया, वादा करो अब कभी नहीं जाओगे छोड़कर|

वीर:- कभी नहीं|

महिमा के पिता एक अच्छे और समझदार इंसान होते हैं, वे खुशी-खुशी महिमा की शादी वीर के साथ करा देते हैं, वीर और महिमा एक खुशहाल जिंदगी व्यतीत करते हैं|

(दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी, हमे कमेंट करके जरूर बतायें)