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रिक्शेवाली चाची

“डॉक्टर ने तेरी चाची के लिए क्या बताया है?”

मनोरमा ने अपनी देवरानी सुभद्रा के बारे में अपनी 17 वर्षीय बेटी दिव्या से पूछा।

“मेजर डिप्रेशन बताया है।”

मनोरमा ने तंज कसा, “हाँ, उस झल्ली सी को ही हो सकता है ऐसा कुछ!”

दिव्या अपनी चाची के लिए ऐसे तानों, बातों से उलझन में पड़ जाती थी।

हर शाम छत पर टहलना दिव्या को पसंद था। पास में पार्क था पर शायद उसकी उम्र अब जा चुकी थी। छत पर उसकी फेवरेट निम्मी दीदी मिल जाती थी। वो दिव्या के संयुक्त परिवार से सटे पी.जी. में रहकर स्थानीय कॉलेज में इतिहास की प्राध्यापक थी। अक्सर दिनचर्या से बोर होती निम्मी भी दिव्या के परिवार की बातों में रूचि लेती थी। घर के लगभग 2 दर्जन सदस्यों से ढंग से मिले बिना भी निम्मी को उनकीं कई आदतें, किस्से याद हो गये थे। सुभद्रा चाची के गंभीर अवसाद में आने की ख़बर से आज वो चर्चा का केंद्र बन गयीं।

दिव्या – “बड़ा बुरा लगता है चाची जी के लिए। बच्चा-बड़ा हर कोई उनसे ऐसे बर्ताव करता है…”

निम्मी ने गहरी सांस ली, “औरत की यही कहानी है।”

दिव्या – “अरे नहीं दीदी, यहाँ वो वाली बात नहीं है। सुभद्रा चाची से छोटी 2 चाचियाँ और हैं। मजाल है जो कोई उनको ऐसे बुला दे या उनके पति, दादा-दादी ज़रा ऊँची आवाज़ में हड़क दें। तुरंत कड़क आवाज़ में ऐसा जवाब आता है कि सुनाने वाले की बोलती बंद हो जाती है। किसी ताने या बहस में उनके सख्त हाव भाव….यूँ कूद के पड़ती हैं जैसे शहर की रामलीला में वीर हनुमान असुर वध वाली मुद्रा बनाते हैं। इस कारण उनकी बड़ी ग़लती पर ही उन्हें सुनाया जाता है बाकी बातों में पास मिल जाता है। वहीं सुभद्रा चाची को छोटी बातों तक में कोई भी सुनाकर चला जाता है। चाचा और

दादी-दादा हाथ भी उठा लेते हैं। अब ऐसे में बड़ा डिप्रेशन कैसे ना हो?”

निम्मी ने हामी में सिर हिलाते कहा – “हम्म…यानी तुम्हारी सुभद्रा चाची घर की रिक्शावाली हैं।”

दिव्या चौंकी – “हैं? रिक्शेवाली चाची? नहीं समझ आया, दीदी।”

निम्मी – “अरे, समझाती हूँ बाबा! देखो, छोटी बात पर कार या बाइक से उतर कर रिक्शेवालों को थप्पड़ मारते, उन्हें पीटते लोग आम दृश्य है। ऐसे ही मज़दूर, अन्य छोटे कामगारों को पीटना आसान है और लोग अक्सर पीटते भी हैं। वहीं अगर कोई बड़ी बात ना हो तो बाकी लोगो को पीटना जैसे कोई कार में बैठा व्यापारी या बाइक चला रहा मध्यमवर्गीय इंजीनियर मुश्किल होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ‘बड़े लोगों’ की एक सीमा बन जाती है उनके हाव भाव, पहनावे, बातों से…यह सुरक्षा कवच ‘छोटे लोगों’ के पास नहीं होता। वो तो बेचारे सबके पंचिंग बैग होते हैं। अन्य लोगो के अहंकार को शांत करने वाला एक स्थाई पॉइंट। ऐसा ही कुछ सीधे लोगों के साथ उनके घर और बाहर होता है। कई बार तो सही होने के बाद भी ऐसे लोग बहस हार जाते हैं।”

दिव्या – “ओह! यानी अपनी बॉडी लैंग्वेज, भोली बातों से चाची ने बाकी सदस्यों को अपनी बेइज़्ज़ती करने और हाथ उठाने की छूट दे दी जो बाकी महिलाओं या किसी छोटे-बड़े सदस्य ने नहीं दी। अगर चाची भी औरों की तरह कुछ गुस्सा दिखातीं, अपने से छोटों को लताड़ दिया करती और खुद पर आने पे पूरी शिद्दत से बहस करती तो उन्हें इज़्ज़त मिलती। फ़िर वो डिप्रेस भी ना होती। दीदी, क्या चाची जैसी नेचर होना अभिशाप है?”

निम्मी ने थोड़ा रूककर सिर ना में हिलाया पर उसका मन हाँ कह रहा था।

समाप्त!

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– मोहित शर्मा ज़हन

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