भाग-भाग कर बस स्टैंड पहुँच गया हूँ।रात को बारिश हुई थी।जल-थल हो रहा है।सत्तर से उपर की उम्र है।गलियों में अंधेरा था।पूरा दिखाई नहीं देता।किसी खड्डे में पांव पड़ गया।दुःख रहा है टखना!ग़नीमत है ज़्यादा चोट नहीं लगी।लग जाती तो किसने पूछने आना था!बूढ़ों से सारा संसार खफ़ा रहता है।खौफ़जदा भी।अपने किये का सिला न मांग लें।ज़िंदगी भर का मेहनताना!बेटे राह चलते देखकर भी मुंह फेर लेते हैं।जाने कौनसा कुसूर कर दिया है मैंने उनका।पढ़ाया,लिखाया!इस काबिल बनाया कि इज्ज़त से सिर उठाकर जी सकें।कभी पैसा-धेला नहीं मांगा!किसी इमदाद की उम्मीद नहीं रखी।सोचा, महंगाई है।ये क्या कम है,बेटे अपना और परिवार का पेट पाल रहे हैं।परिवार मतलब बीवी-बच्चे!बूढ़े माता-पिता परिवार का हिस्सा नहीं होते।
चलो,ईश्वर जिस रजा में राजी रखे!
सोमवार हर हालत में दिल्ली जाना होता है।मेंह-झड़ी हो या बुख़ार!जाना है तो जाना है!पत्नी चिंता करती है।पूरी उम्र हो गई चिंता करते उसे!उसकी चिंता से किसी का भला तो न हुआ।
जी टी रोड के आखिरी सिरे पर बस स्टैंड है।जवानी में यह रास्ता चार कदम लगता था।अब सांस फूलने लगती है।किया क्या जाए?माल नहीं आएगा तो बिकेगा क्या!मोदीराज में पहले ही मंदी है भारी!इक्का-दुक्का लगा बंधा जो ग्राहक है वह भी माल न होने पर दूसरे दुकानदार के पास चला जाएगा।गया हुआ फिर वापिस न आता।न बेटे न ग्राहक!
बस स्टैंड आ गया है।लेकिन यह क्या सुनसान पड़ा है!घड़ी की तरफ़ निगाह अपने आप गई है।4:45 हो गए।दिल्ली वाली बस तो चली गई।अब तो बस हिसार से ही मिलेगी।
हिसार जाने के लिए कार मिलती है।देखूं,शायद होटल के पास कोई खड़ी हो।होटल के ऊपर बड़ा लट्टू जल रहा है।उसकी चौंध आखों में पड़ रही है।नीचे भी देखना पड़ रहा है।पैर उल्टा-सीधा न पड़ जाए।एक कार के पास ड्राइवर जैसा दिखता आदमी खड़ा है।देखते ही बोला,"बाऊ जी,हिसार जाओगे!"
आंखों में प्रश्न है।ड्राइवर समझ गया।
"ज़्यादा किराया नहीं लेंगे बाऊजी!वही पचास रुपये ही है।"
"ज़्यादा ही है।बस में तो सीनियर सिटीजन का आधा ही लगता है।"
ड्राइवर कुछ नहीं बोलता।पिछली सीट पर बैठते हुए भाँवर पड़ी है।कार के पास पीठ फेरे एक लड़का खड़ा है।मैं भूलता नहीं तो राजू है शायद!राजू मेरा बड़ा बेटा राजेश!आजकल हिसार रहता है!!
इतनी सुबह किधर से आ रहा है?
शायद कोई और है?
लड़का दूर चला गया है।फिर वापिस आ गया है।उसके साथ एक औरत भी है।लेकिन दोनों की पीठ है।
"अंकल जी!आप आगे बैठ जाईये!पीछे ये लोग बैठ जायेंगे।"ड्राइवर कहता है तो आगे बैठ जाता हूँ।उनकी शक़्ल देखने को मन कर रहा है लेकिन वे लोग न जाने क्या सोचें।आजकल जमाना खराब है।राजू न हुआ तो!!सोचेंगे अंकल मुड़ मुड़कर जवान औरत की तरफ़ देख रहा है।जरा शर्म नहीं है।ख़बर नहीं कि गले पड़ जाएं।
कार चल पड़ी है।जगह जगह गोवंश सड़कों पर बैठा है।ड्राइवर सावधानी से चला रहा है फिर भी अचानक ब्रेक लगाना पड़ रहा है।
ड्राइवर गाली देते देते रुक जाता है।उसे भी पीछे बैठी औरत का ख़्याल है।
"भैं$$$$!एक सांड सी एम की गद्दी पर बैठा है।उसके भाई बंध सड़क पर बैठे हैं।"
मैं सिर्फ मुस्करा भर देता हूँ।
अग्रोहा मोड़ आ गया है।ड्राइवर सवारी की बाट में थोड़ी देर खड़ा रहता है।पीछे वाली दंपति बिल्कुल भी बात नहीं कर रहे।शायद सो रहे!
कोई सवारी नहीं मिली।कार फिर से चल पड़ी है।मुझे भी नींद का झटका आ गया है।आँख खुली तो कार हिसार का सरकारी हस्पताल पार कर रही है।
बस स्टैंड आ गया है।ड्राइवर को पचास रुपए देकर बाहर निकला हूँ।
दंपति भी बाहर निकला है।मैंने उनको देखा है पहली बार!उन्होंने शायद मुझे पहले ही देख लिया है।राजू हल्के से नमस्ते करता है।राजू की घरवाली मेरे पैर छूने को हल्का सा झुकती है।मेरे मूंह से आशीर्वाद निकलता है।इतनी कड़वाहट के बावजूद बच्चों में तमीज़ बकाया है।इतना ही बहुत है कि सामने पड़ने पर मुंह नहीं फेर रहे।
राजू ने ड्राइवर को दो हज़ार का नोट पकड़ाना चाहा है।
"बाऊजी! खुले दो!सुबह सुबह दो हज़ार का नोट दिखा रहे हो।"
राजू असहाय सा मेरी तरफ़ देखता है।
उसकी घरवाली आगे बढ़कर पूछती है,"पापा जी!आपके पास सौ रुपये खुले हों तो दे दो।हम खुले करवाकर लौटा देंगे।"
मैं चुपचाप एक सौ का नोट ड्राइवर के हवाले करता हूं।
"आओ पापा जी!,कहीं से खुला करवाते हैं।"बहुरानी कहती है।
"नहीं,बेटा!मुझे दिल्ली जाना है।मेरी बस आ रही है।"मैं कहता हूँ।
"फिर आपके पैसे कैसे लौटाएंगे?"बहूरानी कंफ्यूज है।राजू अपने पापा को जानता है।इसलिए चुप है।
"रहने दो! क्या क्या लौटाओगे बेटा!मां बाप का देना क्या बच्चे दे पाते हैं!"
कहकर मैं पीठ फ़ेरकर चल देता हूँ।
मुझे मालूम है वे मुझे देख रहे हैं।