मेगा 325 - 9 Harish Kumar Amit द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • You Are My Choice - 35

    "सर..."  राखी ने रॉनित को रोका। "ही इस माई ब्रदर।""ओह।" रॉनि...

  • सनातन - 3

    ...मैं दिखने में प्रौढ़ और वेशभूषा से पंडित किस्म का आदमी हूँ...

  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

श्रेणी
शेयर करे

मेगा 325 - 9

मेगा 325

हरीश कुमार 'अमित'

(9)

दिल्ली से आगरा तक घूमने जाने के एक सप्ताह बाद की बात है. रविवार का दिन था. कुछ दिन पहले से ही शशांक ने अपने दोस्तों के साथ इस पूरे दिन क्रिकेट खेलने का कार्यक्रम बनाया हुआ था.

जगह की बेहद कमी हो जाने के कारण इन दिनों क्रिकेट ज़मीन पर नहीं खेला जाता था. गगनचुम्बी इमारतों की छत का प्रयोग इसके लिए किया जाता था, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि हर गगनचुम्बी इमारत की छत पर क्रिकेट खेलने की जगह बनी हो. किसी-किसी इमारत की छत पर ही क्रिकेट खेलने का प्रबन्ध होता था. दूसरी इमारतों में किसी छत पर बाज़ार बना होता था. किसी इमारत की छत पर फसलें उगाई जाती थी, तो किसी छत पर सब्ज़ियाँ और फल. इसी तरह किसी इमारत की छत पर टैक्सी स्टैण्ड होता था. अब कारें हवा में उड़ा करती थीं इसलिए जहाँ ज़रूरत हो, टेक्सी उड़कर उस इमारत की छत पर पहुँच जाती थी.

कुछ गगनचुम्बी इमारतों की छत पर छोटे विमानों के उतरने के लिए रनवे भी बना होता था. बहुत से लोगों के पास अपने निजी छोटे विमान होते थे जिनमें वे एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर काफ़ी कम समय में पहुँच जाया करते थे. पृथ्वी से मंगल, बुध, बृहस्पति, प्लूटो, युरेनस, नेप्च्यून आदि ग्रहों पर आना-जाना बड़ी आम-सी बात थी. इंसान इन सभी ग्रहों पर जाकर बस गया था. पृथ्वी पर तो जगह बची ही नहीं थी.

इस बीच बहुत से नए-नए ग्रहों की खोज भी हो चुकी थी और इन्सान ने उन ग्रहों तक पहुँचना भी शुरू कर दिया था.

इस बात का भी पता लगा लिया गया था और बहुत से ब्रह्माण्ड इस विश्व में मौजूद हैं. इनमें से एक नए ब्रह्माण्ड पर पहुँचने की कोशिशें इंसान ने शुरू कर भी दी थीं.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि दुनिया बहुत बदल गई थी. इसके साथ ही क्रिकेट का स्वरुप भी अब बदल गया था. अब सिर्फ़ पाँच-पाँच खिलाड़ी ही एक टीम में होते थे. हर मैच में छह टीमें होती थीं. मैच की एक इनिंग में चार ओवर होते थे और हर ओवर में चार बॉल. हर टीम को दूसरी पाँच टीमों के साथ खेलना पड़ता था.

आखिर में जिन दो टीमों ने सबसे ज़्यादा रन बनाए होते थे, उनके बीच मुकाबला होता था और उनमें से एक टीम को विजयी घोषित किया जाता था.

इस तरह हर मैच बेशक पैंतीस मिनट का ही होता था, लेकिन पूरा खेल क़रीब आठ घंटे तक चलता था.

शशांक के क्रिकेट खेलने के लिए जाने का मतलब था उसके पूरे दिन का इसी काम में लग जाना. वैसे तो वह अक्सर क्रिकेट खेलने जाता था, पर इस बार बात कुछ अलग थी. दरअसल अगले दिन यानी कि सोमवार को उसकी स्कूल परीक्षा थी.

बड़े दादा जी ने शशांक को बहुत समझाया कि वह आज क्रिकेट खेलने न जाए और अगले दिन होनेवाली परीक्षा की तैयारी करे, लेकिन शशांक इस बात के लिए राजी नहीं हुआ कि वह क्रिकेट खेलने नहीं जाएगा. बड़े दादा जी के बार-बार समझाने पर भी जब वह नहीं माना, तो उन्होंने शशांक के पापा को फोन लगाकर सारी बात बताई.

शशांक के पापा ने बड़े दादा जी से कहा कि वे उनकी बात शशांक से करवाएँ. पापा ने भी शशांक को काफी समझाया कि वह आज परीक्षा की तैयारी करे और क्रिकेट तो फिर कभी खेला जा सकता है, मगर शशांक तो जैसे अपनी ज़िद पर अड़ा हुआ था. आखिर में पापा ने शशांक से कहा कि वह सिर्फ़ दो मैच खेलकर दो घंटे में घर वापिस आ जाए और परीक्षा की तैयारी करे, पर शशांक को यह बात भी मंज़ूर नहीं थी. वह तो पूरे दिन क्रिकेट खेलना चाहता था.

पापा ने शशांक को बहुतेरा कहा कि इस तरह सारा दिन क्रिकेट खेलने के बाद उसके पास परीक्षा की तैयारी के लिए वक्त ही बहुत कम बचेगा और जो समय मिलेगा भी, उसमें वह बहुत थका हुआ होगा. यह भी हो सकता है कि परीक्षा की तैयारी शुरू करने के कुछ देर बाद ही उसे नींद आ जाए.

मगर इन सारी बातों का शशांक पर कोई असर नहीं हुआ और वह क्रिकेट खेलने जाने की बात पर अड़ा ही रहा. आख़िर में थक-हारकर शशांक के पापा ने फोन काट दिया.

इसके बाद शशांक क्रिकेट खेलने जाने के लिए तैयार होने लगा.

बड़े दादा जी को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर शशांक को जाने से कैसे रोका जाए. उसे रोकने की हर संभव कोशिश तो वे कर ही चुके थे.

शशांक से बेहद नाराज़-से बड़े दादा जी कम्प्यूटर पर अख़बारें पढ़ने लग गए.

शशांक तैयार होकर नाश्ता करने डाइनिंग टेबल पर आया तो वहाँ बड़े दादा जी मौजूद नहीं थे. आमतौर पर वही पहले आया करते थे डाइनिंग टेबल पर. शशांक ने अनुमान लगाया कि बड़े दादा जी आ रहे होंगे थोड़ी देर में. इसके बाद उसने नाश्ता करना शुरू कर दिया.

शशांक का नाश्ता हो चुका था, लेकिन बड़े दादा जी अभी तक डाइनिंग टेबल पर नहीं आए थे.

शशांक को क्रिकेट खेलने के लिए जाने की जल्दी थी, इसलिए नाश्ता करके वह एकदम से घर से निकल जाना चाहता था. उसने सोचा था कि जाने से पहले वह एक बार बड़े दादा जी से मिल लेगा - शायद इससे उनकी नाराज़गी दूर हो जाए.

अपना क्रिकेट का बैट साथ ले जाने के लिए वह अपने कमरे में गया, मगर वहाँ बैट नहीं था. उसने इधर-उधर बहुत ढूँढा, मगर बैट कहीं नहीं मिला.

शशांक ने आवाज़ देकर मेगा 325 को बुलाया और बैट ढूँढने के लिए कहा. मेगा 325 ने भी यहाँ-वहाँ बैट ढूँढा, पर वह नहीं मिला.

शशांक को घर से निकलने की जल्दी थी. वह हड़बड़ी में बड़े दादा जी के पास पहुँचा और अपने बैट के बारे में पूछने लगा.

बड़े दादा जी तो वैसे ही उससे नाराज़ थे. उन्होंने उसे कोई जवाब नहीं दिया और कम्प्यूटर स्क्रीन पर नज़रें गढ़ाए-गढ़ाए ही हाथ के इशारे से उसे बता दिया कि उन्हें नहीं पता.

शशांक ने बड़े दादा जी के कमरे में भी अच्छी तरह देखा कि कहीं उसका बैट वहाँ न पड़ा हो, मगर वह उसे नज़र नहीं आया.

मैच शुरू होने का समय पास आता जा रहा था. शशांक ने एक बार ख़ुद घर के बाकी कमरों में भी बैट को ढूँढा, पर वह कहीं नहीं मिला.

'अब इतना समय भी नहीं बचा कि बाज़ार से नया बैट ख़रीदा जा सके. चलो, किसी और के बैट से काम चला लूँगा.' सोचते हुए शशांक ने घर से बाहर निकलने की सोची.

वह घर के मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ा, मगर वह दरवाज़ा अपनेआप खुला ही नहीं. वैसे तो उस दरवाज़े को शशांक के शरीर की गंध महसूस करके ही खुल जाना चाहिए था, पर आज न जाने क्या बात थी.

रात को सोने से पहले बड़े दादा जी ख़ुद घर के मुख्य दरवाज़े को पासवर्ड बोलकर बन्द कर दिया करते थे. 'शायद बड़े दादा जी ने आज सुबह यह मुख्य दरवाज़ा खोला ही नहीं', सोचते हुए उसने दरवाज़ा खोलने के पासवर्ड का उच्चारण किया. दरवाज़ा बन्द करने और खोलने का पासवर्ड उसे मालूम था, लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला.

उसने दो-एक बार फिर कोशिश की, मगर दरवाज़ा नहीं ही खुला. उसे हैरानी हो रही थी कि आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है.

उसने मेगा 325 को आवाज़ देकर अपने पास बुलाया और पूछा कि घर का मुख्य दरवाज़ा खुल क्यों नहीं रहा.

शशांक का प्रश्न सुनकर मेगा 325 चुप रहा. शशांक के एक बार और पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया.

तभी बड़े दादा जी वहाँ आ गए और गुस्सेभरी आवाज़ में कहने लगे, ''तुमसे ज़्यादा सयाना तो यह मेगा 325 है जो कहो मान लेता है, मगर तुम तो अपनी ज़िद पर अड़े हो. लेकिन एक बात तुम्हें बता दूँ कि आज तुम मैच खेलने नहीं जाओगे, बिल्कुल नहीं जाओगे और घर में रहकर कल की परीक्षा की तैयारी करोगे. इसी वास्ते मेगा 325 ने तुम्हारा बैट छुपा दिया था. अब उसी की सलाह पर मैंने घर के मुख्य दरवाज़े को पासवर्ड से बन्द करके रखा था. मेगा 325 की सलाह पर ही मैंने आज सुबह ही दरवाज़ा खोलने और बन्द करने का पासवर्ड बदल दिया था. इसलिए तुम घर से बाहर नहीं जा सकते. अब पढ़ाई करो अपने कमरे में जाकर!''

बड़े दादा जी के मुँह से ये सब बातें सुनकर शशांक मन मसोसकर रह गया. आज दिनभर क्रिकेट खेलने का उसका सपना चूर-चूर हो गया था.

उसे मेगा 325 पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि आखिर उसने उसका बैट छुपाया ही क्यों. और फिर बड़े दादा जी को घर का मुख्य दरवाज़ा बन्द कर देने और उसे खोलने और बन्द करने के पासवर्ड भी बदलने की सलाह क्यों दी.

अपने कमरे की ओर जाते हुए शशांक ने जलती आँखों से मेगा 325 की ओर देखा और फिर अपनी कुर्सी-मेज़ पर बैठकर पढ़ने लगा.

शशांक अपने कमरे में बैठकर पढ़ाई कर तो रहा था, मगर उसका दिल अन्दर-ही-अन्दर सुलग रहा था. उसे मेगा 325 पर बहुत गुस्सा आ रहा था. बार-बार यही बात उसके मन में आ रही थी कि अपनी बुद्धिमानी का परिचय देते हुए अगर उसने उसका बैट न छुपाया होता और साथ ही दादा जी को घर का मुख्य दरवाज़ा बन्द कर देने की सलाह न दी होती, तो वह क्रिकेट खेलने चला ही जाता. परीक्षा की तैयारी तो वह शाम को वापिस आकर किसी-न-किसी तरह कर ही लेता.

उसका मन चाह रहा था कि मेगा 325 को दो-चार झापड़ मार दे. हालाँकि यह बात भी उसे पता थी कि इस तरह झापड़ मारने से मेगा 325 का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है.

कभी उसके दिल में आता कि मेगा 325 को अपने कमरे में बुलाकर उसकी बाँह ज़ोर से मरोड़ दी जाए, पर फिर साथ ही उसे यह डर भी लगने लगता कि उसके ऐसा करने की बात जब बड़े दादू को पता चलेगी तो वे बहुत गुस्सा होंगे.

'एक तो मम्मी-पापा वैसे ही उससे दूर रहते हैं और फिर अगर उनसे यूँ बार-बार डाँट खाता रहेगा, तो ज़िन्दगी में मज़ा ही क्या रहेगा.' - यही सब बातें उसके मन में घूम रही थीं.

'अभी पिछले दिनों ही तो गोली खाकर उसके अदृश्य होनेवाली घटना हुई थी. उस घटना के बाद तो पापा ने उसे कुछ नहीं कहा था, हालाँकि उससे इतनी बड़ी गलती हो गई थी. पर आज तो उसे बड़े दादू की डाँट पड़ी है और पापा की भी. अब अगर उसने मेगा 325 को परेशान किया, तो बड़े दादू उसे छोड़ेंगे नहीं - इन्हीं विचारों में उलझे-उलझे ही वह अपनी पढ़ाई किए जा रहा था.

पढ़ाई करते-करते उसे पता चलता रहा कि मेगा 325 लगातार कोई-न-कोई काम किए जा रहा था. घर की सफाई, कपड़ों की सफाई, घर का रखरखाव तथा और भी न जाने कितने ही काम थे जो उसके जिम्मे थे, मगर वह ये सभी काम बड़ी चुस्ती और फुर्ती से निपटा दिया करता था.

'कभी थकता भी नहीं यह मेगा 325 का बच्चा!' शशांक मन-ही-मन बड़बड़ाया.

तभी उसके दिमाग़ में यह बात आई कि मेगा 325 की चुस्ती-फुर्ती का राज़ उसकी बैटरी ही तो है. अगर इसकी बैटरी डाउन हो तो यह कोई भी काम नहीं कर पाएगा. तब तो यह बस अपने दोनों हाथ ऊपर खड़े करके एक तरफ़ खड़ा हो सकता है.

यह सब सोचते हुए उसके मन में यह बात आई कि अगर मेगा 325 की बैटरी चार्ज न की जाए तब तो यह बिल्कुल पत्थर जैसा हो जाएगा. 'अगर इसकी बैटरी चार्ज करनेवाला चार्जर कहीं छुपा दिया जाए, तब तो चार्ज ही नहीं हो पाएगी इसकी बैटरी' - उसके दिमाग़ ने यह योजना बनने लगी.

उसके बाद वह बहाने से उस कमरे में गया जहाँ पर मेगा 325 को चार्ज करनेवाला चार्जर रखा होता था. उसने मौका देखकर चार्जर को चुपचाप अपनी पैंट की जेब में छिपा लिया और वापिस अपने कमरे में आ गया.

फिर उसने चार्जर को अपनी अलमारी में छिपा दिया और अपनी कुर्सी-मेज पर बैठकर पढ़ाई करने लगा. पढ़ते वक्त उसके मन में लड्डू फूट रहे थे कि कुछ घंटों बाद जब मेगा 325 की बैटरी ख़त्म हो जाएगी और उसकी बैटरी चार्ज नहीं हो पाएगी तो कितना मजा आएगा.

मेगा 325 की बैटरी को और जल्दी ख़त्म करने के लिए शशांक ने उसे कई सारे काम करने के लिए कह दिए और फिर मन-ही-मन मुस्कुराते हुए पढ़ाई करने लगा.

*****