मेगा 325
हरीश कुमार 'अमित'
(10)
और आखिर कुछ घंटों बाद वही हुआ जिसका इन्तज़ार शशांक बड़ी बेसब्री से कर रहा था.
दोपहर बाद क़रीब चार बजे बड़े दादा जी ने अपने कमरे से कई बार मेगा 325 को पुकारा, मगर जवाब में वह कुछ नहीं बोला. बड़े दादा जी अपने कमरे से यह देखने के लिए निकले कि आखिर मेगा 325 है कहाँ और कोई जवाब क्यों नहीं दे रहा.
मगर मेगा 325 उन्हें जवाब देता भी तो कैसे? उसकी तो बैटरी ही डाउन हो गई हुई थी और वह एक कमरे में अपने दोनों हाथ ऊपर की तरफ़ किए हुए खड़ा था.
बड़े दादा जी ने मेगा 325 की बैटरी चार्ज करने वाले चार्जर से उसकी बैटरी चार्ज करनी चाही, मगर चार्जर उन्हें कहीं मिला ही नहीं. इधर-उधर काफ़ी देर तक ढूँढने पर भी उन्हें चार्जर मिल नहीं पाया. बड़े दादा जी चार्जर ढूँढने शशांक के कमरे में भी आ गए.
झूठ-मूठ का दिखावा करते हुए शशांक अपने कमरे में चार्जर ढूँढता रहा. जब वह नहीं मिला तो बड़े दादा जी के साथ अपने कमरे से बाहर निकला और पूरे घर में चार्जर ढूँढने की एक्टिंग करता रहा. यह तो उसे पता ही था कि चार्जर मिलना ही नहीं है क्योंकि वह तो उसकी अलमारी में पड़ा था.
''पता नहीं कहाँ चला गया चार्जर! नया मँगाना पड़ेगा. तब तक यह मेगा 325 ऐसे ही रहे, और क्या!'' बड़े दादा जी से यह कहते हुए शशांक वापिस अपने कमरे की ओर चल पड़ा.
अपने कमरे में पहुँचते ही शशांक मुस्कुरा उठा. 'अब आएगा मज़ा! ज़्यादा अक्लमन्द बनता है न यह मेगा 325 का बच्चा! अब देखते हैं इसकी अक्ल कहाँ घास चरने गई है! अब जब तक इसकी बैटरी चार्ज नहीं होती यह इसी तरह रहेगा और कुछ भी नहीं कर पाएगा.' उसने मन-ही-मन सोचा और पलंग पर लेटकर उन स्थितियों की कल्पना करने लगा जो मेगा 325 की बैटरी चार्ज न होने पर बननेवाली थीं. इन्हीं कल्पनाओं में खोए-खोए कब उसे झपकी लग गई - उसे पता ही नहीं चला.
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कुछ देर बाद शशांक की नींद तब टूटी जब मेगा 325 ने उसे कंधे से हिलाकर उठाया. अपने सामने मेगा 325 को देखकर शशांक चौंक पड़ा.
''उठकर परीक्षा की तैयारी कर लो.'' मेगा 325 कह रहा था.
'अरे, यह यहाँ कैसे? इसकी तो बैटरी डाउन हो गई थी न!' सोचते हुए वह उठ बैठा और बड़े ध्यान से मेगा 325 को देखने लगा.
मेगा 325 के माथे के बीचोंबीच एक बल्ब लगा हुआ था जिससे पता चल जाता था कि उसकी बैटरी की स्थिति क्या है. अगर उस बल्ब का रंग नीला होता था तो उसका मतलब यह होता था कि उसकी बैटरी अभी काफ़ी देर तक चलेगी. अगर बल्ब का रंग पीला होता था तो उसका मतलब यह होता था कि उसकी बैटरी बहुत ज़्यादा देर तक नहीं चल पाएगी. उस बल्ब का रंग अगर लाल हो जाता था तो उसका मतलब यह होता था कि बैटरी ख़त्म होनेवाली है और उसे चार्ज कर लिया जाए. बैटरी बिल्कुल ख़त्म हो जाने पर वह बल्ब बुझ जाता था.
शशांक ने देखा कि मेगा 325 के माथे पर लगे बल्ब का रंग नीला है.
'इसका मतलब इसकी बैटरी तो चार्ज हो गई है! पर यह हुआ कैसे? इसका चार्जर तो मेरी अलमारी में है और अलमारी को मैंने ताला लगा दिया हुआ था. अलमारी का ताला खोलने का पासवर्ड भी सिर्फ़ मुझे ही मालूम है.' - शशांक मन-ही-मन अपनेआप से बातें करने लगा.
''मेगा 325, तुम्हारी बैटरी किसने चार्ज की?'' शशांक पूछने लगा.
मगर मेगा 325 इस बात का क्या जवाब देता? उसका दिमाग़ तो बस तभी से काम करना शुरू करता था जब उसकी बैटरी चार्ज हो जाती थी.
''मैंने की है इसकी बैटरी चार्ज.'' कहते हुए बड़े दादा जी शशांक के कमरे में आ गए.
''मगर बड़े दादू, इसकी बैटरी चार्ज करनेवाला चार्जर तो मिल नहीं रहा था न. कहाँ मिला चार्जर?'' भोला-सा चेहरा बनाकर शशांक पूछने लगा.
''चार्जर तो तब मिलता जब कहीं बाहर पड़ा होता. अगर कोई उसे चुराकर ले जाए तो फिर कहाँ से मिलेगा वह?'' बड़े दादा जी कह रहे थे.
''क्या मतलब, बड़े दादू?'' शशांक ने भोलेपन का अभिनय जारी रखा.
''ज्यादा भोले मत बनो मिस्टर शशांक! शाम को जब बहुत ढूँढने पर भी चार्जर नहीं मिला, तो मैंने चार्जर रखे जाने वाली जगह के पास की सी.सी.टी.वी. की आज की रिकॉर्डिंग देखनी शुरू की. उस रिकॉर्डिंग से यह एकदम पता चल गया कि वह चार्जर तुम ही वहाँ से उठाकर लाए थे - अपनी पैंट की जेब में डालकर.'' बड़े दादा जी ने सख़्त आवाज़ में कहा.
बड़े दादा जी की बात सुनकर शशांक का सिर झुक गया. फिर कुछ देर बाद हिम्मत करके वह बोला, ''फिर मेगा 325 की बैटरी चार्ज हुई कैसे?''
''दूसरे चार्जर से.'' बड़े दादा जी ने जवाब दिया.
''मेगा 325 के लिए दूसरा चार्जर भी है क्या?'' शशांक ने हैरानगी से पूछा.
''पहले तो नहीं था, पर कुछ दिन पहले जब तुम्हारे मम्मी-पापा यहाँ आए थे तो मेगा 325 के साथ तुम्हारा बर्ताव देखकर उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम मेगा 325 को किसी-न-किसी तरह परेशान करते ही रहोगे. उन लोगों के वापिस मंगल ग्रह पर जाने के बाद मैंने उन सब बातों के बारे में सोचा जिनसे तुम मेगा 325 को तंग कर सकते हो. उनमें से एक बात उसके चार्जर को ग़ायब कर देने की भी थी. इसलिए मेगा 325 के लिए पिछले दिनों मैंने एक नया चार्जर खरीद लिया था.'' बड़े दादा जी ने विस्तार से सारी बात बता दी.
बड़े दादा जी की बात सुनकर शशांक हक्का-बक्का-सा रह गया. उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बड़े दादा जी ने मेगा 325 के लिए चोरी-छुपे एक नया चार्जर लेकर रख लिया होगा.
''बेटे, मैं तुम्हारे बाप के बाप का बाप हूँ! समझे!'' कहते हुए बड़े दादा जी ने शशांक के कंधे पर हल्का-सा एक धौल जमाया और कमरे से बाहर चले गए. मेगा 325 को भी उन्होंने बाहर बुला लिया.
'चार्जर छुपाने से अच्छा तो इस मेगा 325 की प्रोग्रामिंग में कुछ गड़बड़ कर देनी चाहिए थी. ढूँढता हूँ कोई तरीका जिससे ऐसी गड़बड़ कर सकूँ.' सोचते हुए शशांक अपनी कुर्सी-मेज़ पर जा बैठा - अगले दिन की स्कूल-परीक्षा की तैयारी पूरी करने के लिए.
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