दो बाल्टी पानी - 7 Sarvesh Saxena द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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दो बाल्टी पानी - 7



कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा…
पिंकी और सुनील दोनों पानी भरने के बहाने मिल जाते हैं और अपनी मीठी-मीठी बातें करते हैं लेकिन सरला जाग जाती है और नल खुला देख कर सौ बातें सुनाती है |

अब आगे….

पिंकी पानी की बाल्टी भरकर हांफते हुए घर आई पर उसके हांफने में थकान की जगह खुशी झलक रही थी |
गुप्ता जी - "अरे पिंकी.. चाय पी लो बना दी है, तुम्हारी मां तो उतने पानी से ही नहा कर चली गई, बहुत बड़बड़ा रही थी, कहां रह गई थी तुम? बड़ी देर लगा दी"?

पिंकी - "अरे पापा.. बड़ी भीड़ थी नल पर और ना पानी भी बड़ी धीरे-धीरे आ रहा था" |

गुप्ता जी कुछ और पूछते कि चालाक पिंकी पिता की बात काटते हुए बोली," अरे पापा… ये बताओ आज क्या खाओगे, आप दुकान में बैठो, मैं आपके लिए कुछ बना कर लाती हूं " |

बिटिया को बड़े गौर से गुप्ता जी ने देखा क्योंकि यह उम्मीद नहीं थी उनको, वह खुश होकर दुकान पर बैठ गए |

ऐसे ही दिन गुजरते रहे और फिर एक दिन…

गांव में "सुनो.. सुनो.. सुनो.. भाइयों और भाभियों, अरे मेरा मतलब है बहनों, ध्यान से सुनो कान खोलकर सुनो, घुंघट खोल कर सुनो क्योंकि सुनना बहुत जरूरी है, बहुत जरूरी सूचना है" |

यह आवाज सुनकर सब अपने चबूतरे पर आ गए और ध्यान से सुनने लगे तभी सरला निकल के गुस्से में आई और एनाउंसर का माइक छीन कर बोली, "अरे मुए मैं खूब समझती हूं तुझे, तेरे लिए बस भाई और बहन हैं, अरे भाइयों बहनों को तो बोल दिया और भाभियों और जीजाओ को भूल गया, अपनी अम्मा, मौसी चाची, चाचा, सब को बोल दे… नही तो यहीं से पिटके जाएगा" |

एनाउंसर - "अरे माताजी.. बस करो, हम पर दया करो.. मैं सब को बुला दूंगा" |

यह कहकर उसने सारे रिश्ते गिना डाले और फिर बोला, " जरूरी सूचना है कि गांव में पांच दिन बिजली नहीं आएगी, सभी लोग अपने घरों में बाल्टी, बड़े बर्तन, भगोना, कटोरी सब भरकर रख लें, सड़क के उस पार वाला ट्रांसफार्मर फूंक चुका है, जो अब ठीक नहीं हो पाएगा और नया ट्रांसफार्मर शहर से आने में समय लग जाएगा" |

यह सुनकर गांव में अफरा-तफरी मच गई और सब तरह तरह की बातें करने लगे |

मिश्राइन - "अरे ये बिजली वाले वैसे ही कौन सी बड़ी बिजली देते हैं, अरे इस भोंपू वाले ने भी पैसे लिए होंगे "|

वर्माइन - "अरे ये बड़े चालू हैं, इनके सबके घरों में खूब बिजली आती है, बस हमारे लिए बिजली नहीं है "|

मिश्राइन और वर्माइन ने ठकुराइन को पुकारा, " का जीजी का सोच रही हो, कुछ तो कहो "|

ठकुराइन - "अरे हम तो सोच रहे हैं कि पानी का क्या होगा"?

यह सुनकर मिश्राइन और वर्माइन भी सन्न रह गईं और अपने-अपने घरों में घुस गईं |
सबके गाल जो हंसी से गोलगप्पे की तरफ फूले रहते थे, वो अचानक पापड़ी जैसे पिचक गए |

शाम हो गई है और सभी पुरुष अपने काम धंधे से लौटकर घर आए |

आगे की कहानी अगले भाग में...