लोक डाउन कविताएं અમી વ્યાસ द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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लोक डाउन कविताएं

बंद हे दुकानें, बंद हे दफ्तरें
रोज की चहल पहल ने आज हो गई है परे
पंछी उड़ रहे खुले आकाश में और
जिंदगियां बंद हे चार दीवारों में
सब लगे हे मौत को हराने में
इंसान जो भूल गया था पैसे कमाने में
अब जो समय ने करवट ली है आज
इंसान को उसकी औकात समझा दी हे आज
बसे बंद,गाडियां बंद,बंद हवाईजहाज
घूमना बंद,फिरना बंद,बाहर जाना हे बंद
सब बंद हे छोड़कर कुछ सेवाएं चंद
मजदूरों के काम बंद हे
हाथों में अब पैसे चंद हे
छोड़ शहर सब गांव जा रहे हे
जो लोग गाव से शहर आ रहे थे
गांव की संस्कृतियों को भूल चुके थे
आज सब को वह सब याद आ रहा है
ग्लोबल वार्मिंग भी असर दिखा चुका हे
जो इंसान पशु पंखी ओ को मारता खाता था
पिंजरे में कैद करता था, मनमानी करता था
आज वही घरों में कैद हे,और पशु पंछी आजाद हे
सब दिन एक से लगते हे रविवार हो या सोमवार
काम पर जा नहीं सकते कोई भी हो वार
गरीबों ही हालत खस्ता हे,जो रोज का रोज मांगकर खाते हे
उनके लिए भी लोग आए हे जो खाना पहोचाते हे
भला हो उन लोगों का जो आपत्ति में बाहर आते हे
इंसानियत को दाग लगने से बचाते है
कितने सारे लोग देश को बचाने में लगे हे
डॉक्टर्स,पुलि सेस,सरकारी और यातयात सेवा कर्मी हे
जो हमारे लिए दिन रात लड़ रहे हे
आओ हम भी अपना फ़र्ज़ निभाए
घर में रह कर अपनी और अपनों की जान बचाए
खुद बचे और देश को भी बचाए।
इस लॉकडाउन को थोड़ा रचनात्मक बनाए
नया काम करे,नई चीजें शिखे
पुस्तकें पढ़े,गाना गए,खेल खेले,
पुरानी फोटो देखे,यादे ताज़ा करे,
अपनों के साथ खोया हुआ वक़्त फिर से जीने का अवसर आया हे
देश के लिए कुछ कर दिखाने का अवसर आया हे।


एक नए वाइरस के चलते आज हाल कुछ ऐसे हे
लोग बंद हे घर की दीवारों में
सूनापन छाया है चौक चोबारों में
बीवी के साथ सालो के बाद ऐसा वक़्त पाया हे
कितना सब कुछ करती हे वो आज ध्यान में आया हे
घर परिवार संभालते उसे समय नहीं मिला अपने लिए सोचने का
आज समय हे उसकी खोई हंसी खोजने का
जिम्मेदारियों ने उसके बालों में सफेदी लाई हे
मेरा घर संभालने में उसने पूरी उम्र लगाई हे
बच्चे इतने बड़े हो गए है समय के चलते
आज मेरा ध्यान रख रहे हे सैनिटाइजर हाथ में मलते
उनको होमवर्क करने का,पैरेंट्स मीटिंग में जानेका
समय दे नहीं पाया उनको में खेलने घूमने का
अब में दूंगा उनको प्यार उनके खोए बचपन वाला
बन जाऊंगा उनका वह पापा पुराने वाला
मा बाबा के पास में महीनों से बैठा नथी था
उनका हाल पूछने का मोका ही मिला नहीं था
पापा की उम्र और मा का घुटनों का दर्द
समय के साथ कब बढ़ा समझ ही नहीं पाया
उनके साथ बैठकर में वह चंद लम्हें सुकून के ना दे पाया
जो उनके सारे दर्द भुलाकर उनको जीने का हौसला दे
आज हम सब मिलकर उनको एक नया सिलसिला दे
अब में रहूंगा उनके साथ, उनकी सारी बातें सुनीं कर
दर्द ले लूंगा सर उनके आसपास रहेकर
सारी कमी पूरी करने का अचानक वक्त मिला हे
अब अपनों को ना कोई शिकवा न गिला हे
आज जब समय मिला हे तो मुझे सब चूकना नहीं हे
अपनों को प्यार देने का इससे अच्छा मोका नहीं है