लॉकडाउन Siraj Ansari द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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लॉकडाउन

आज इंटों के मकान में कैद हुआ तो ख्याल आया,
क्यों चहकना भूल जाते हैं परिंदे पिंजरे की कैद में!!
दोस्तों! आज कोरोना महामारी के तहत मुल्क के यह हालात हैं कि हम सब लोग अपने ही घरों में कैद हैं। आज़ाद हो कर भी आज़ाद नहीं हैं। घर मे सभी के साथ बैठे हैं, लेकिन वो खुशी और वो रौनक नहीं है चेहरे पर। अपनो के साथ हो कर भी अपनेपन का अहसास नहीं है। अजीब घुटन सी है माहौल में। बच्चे पहली बार अपने घर के सभी मेंबर्स के साथ रूबरू हैं। इसी कशमकश में क्वारंटिन में बैठा कुछ सोच रहा था तभी एक पिंजरे से चहचहाती हुई सदा जो अब मुझे कराहती हुई सी लग रही है, मेरे कानों से टकराई। मैं बिजली की तेजी से दौड़ कर पिंजरे की तरफ लपका। और पिंजरे का दरवाजा इस तरह खोल दिया जैसे अपने लिए जन्नत के दरवाजे खोल रहा हूँ। पिंजरे का दरवाजा खुलते ही वो परिंदा फ़ुर्र से यूं उड़ा जैसे बच्चा अपनी मां को देख कर उसकी तरफ दौड़ता है। मैं उस परिंदे को जाते हुए यूं देख रहा था जैसे टूटता हुआ कोई तारा। और मन ही मन यह दुआ कर रहा था कि ऐ मेरे पालनहार! कभी किसी को अपनों से जुदा मत करना और हर तरह की कैद से महफूज़ रखना।
दोस्तो! इस लॉकडाउन की स्थिति में अगर आपको आज़ादी के सही मायने समझ आ गए हों तो कृपया कर के अपने घरों में जो पंछी पिंजरों में क़ैद हैं उनको रिहा कर दें। साथ ही साथ इस आपातकाल की स्थिति में स्वयं के लिए, अपने बच्चों के लिए, परिवार के लिए और अपने देश के लिए कृपया घर से न निकलें। आप खुशनसीब है कि अपने परिवार के साथ हैं वरना परदेश में पड़े लोगों की स्थिति और भयावह है। सरकार का ध्यान इस ओर भी है। आप भी सरकार के द्वारा समय समय पर दी गयी गाइडलाइंस का पालन करें और कोरोना से निपटने में मदद करें। आपका एकांत में न रहना न खुद आपके बल्कि आपके परिवार के और बहुत से लोगों के देहांत का सबब बन सकता है। समय की मांग यही है कि सावधान रहें, सतर्क रहें और अपनी पीड़ा के साथ ही दूसरों का दुःख दर्द भी समझें और सभी धर्म को भूल कर मानवता का धर्म निभाएं।
इंसान ने समय समय पर बहुत संकट झेले हैं और इससे भी बड़ी विपदाएँ आईं और इस हाड़मांस के पुतले से टकरा कर नतमस्तक हो कर चली गयी। क्योंकि इस मानव ने मैथिलीशरण गुप्त जी की पंक्तियां "नर हो न निराश करो मन को" को चरितार्थ किया है और विपत्तियों पर कड़ा प्रहार किया है। यह समय आपके साहस और सब्र का इम्तिहान ले रहा है आप इसका सामना भी डट कर करिए और विजयश्री प्राप्त कीजिये।
यह एक छोटा सा मेसेज है अगर समझ आ जाय तो बहुत बड़ी बात है।
चलते चलते एक शेयर अर्ज़ है...
हर मुलाकात पर वक़्त का तकाज़ा हुआ,
हर याद पर दिल का दर्द ताज़ा हुआ,
सुनी थी सिर्फ लोगों से जुदाई की बातें,
खुद पर बीती तो हकीक़त का अंदाज़ा हुआ।