परियों का पेड़ - 10 Arvind Kumar Sahu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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परियों का पेड़ - 10

परियों का पेड़

(10)

चल अकेला

इस साहस और युक्ति भरे मुक़ाबले के कारण खतरा टल गया था | राजू की जान छूट गयी थी | वह तत्काल वहाँ से आगे की ओर भाग निकला | आगे बढ़ते कदमों के साथ उसके दिल की धड़कनें भी बढ़ी हुई थी | लेकिन उस जगह राजू थोड़ा सा संयत होने के लिए भी नहीं रुका | अब वह इस घने और खतरनाक जंगल से जितनी जल्दी हो सके, बाहर निकल जाना चाहता था |

राजू अनुमान लगा रहा था कि वह अनायास बिजली कड़कने जैसी तेज चमक परी रानी की जादुई छड़ी से निकली होगी | तभी वह झुरमुट के अंधेरे में अपने डंडे को दुबारा देख कर पकड़ पाया था | वरना अब तक न जाने क्या हो जाता ? बहरहाल, राजू मन ही मन परी रानी को धन्यवाद देते हुए फिर आगे बढ़ चला | दूर पहाड़ की चोटी पर तेज चमकीली रोशनी उसे अब भी आगे का रास्ता दिखा रही थी अथवा लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने का संकेत कर रही थी |

आखिरकार जल्द ही यह घना व अंधेरा जंगल पार हो गया | ठंडा होता हुआ सूरज क्षितिज पर अब भी चमक रहा था | थोड़ा - बहुत उजाला अब भी बाकी था | सामने देखने में कोई विशेष कठिनाई नहीं हो रही थी | यहाँ से थोड़ी दूर तक गद्दे जैसी फैली हुई हरी घास का मैदान था | मुलायम घास पर चलते हुए राजू को बड़ी राहत मिली | यहाँ की हवा ताजी और ठंडी थी | इस ठंडक को महसूस करते हुए उसकी थकान गायब होने लगी थी |

लेकिन यहाँ उसकी मुसीबत का अंत नहीं था | यह तो शुरुआत भर थी |

राजू अभी ज्यादा दूर नहीं गया था | अचानक उसके पैरों में एक झटका सा लगा | तेज पीड़ा के साथ ज़ोरों की झनझनाहट और जलन अनुभव हुई | उसे न चाहते हुए भी क्षण भर को रुकना पड़ा | लगा कि बायें पैर में जूते के भीतर सैकडों चीटियाँ सी रेंग रही है | जब उसने पैर को घास के बीच से ऊपर उठाया तो दर्द से तिलमिलाकर रह गया |

राजू ने देखा, उसका जूता एक स्थान पर थोड़ा फट गया था | उसी जगह पर घास में छुपा हुआ एक विषैला बिच्छू पैर में चिपक गया था | बिच्छू उसे डंक मार चुका था | उसके जहर से ही ये असहनीय जलन पैदा हुई थी, जो असंख्य चीटियों के एक साथ काटने जैसा दर्द दे रहा था |

पहले तो राजू थोड़ा सा घबराया | फिर हिम्मत बटोर कर उसने पास पड़ा एक पत्थर उठाया और बिच्छू पर दे मारा | चोट खाते ही बिच्छू की पकड़ छूट गई | राजू जल्दी से घास के बाहर निकलने के लिए भागा | क्योंकि वहाँ ऐसे और भी जीव –जन्तु छुपे हो सकते थे | लेकिन इतनी ही देर में राजू का पैर दर्द से इतना भारी हो चुका था कि उसके लिए एक – एक कदम खींचना मुश्किल था |

लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी | किसी तरह घिसटता हुआ, अपने जख्मी पैर को खींचता हुआ, घास के मैदान से बाहर आ ही गया | फिर झटपट वहाँ आस-पास फैली वनस्पतियों को ध्यान से देखने लगा | जल्दी ही उसने काम की चीज ढूँढ निकाली | वह एक औषधीय जड़ी- बूटी थी, जो साँप का खतरनाक जहर भी उतार सकती थी | उसने झट से बूटी के पत्तों को तोड़ लिया | उनको एक पत्थर से कुचलकर महीन पीस डाला | फिर डंक के स्थान पर मलहम की तरह लेप कर लिया |

आश्चर्य की बात थी | कुछ ही पलों मे उस बूटी वाले मलहम का रंग काला पड़ने लगा | फिर देखते ही देखते वह काला मलहम कड़क होकर सूखने लगा | जैसे किसी ने गर्म होते तवे पर रोटी जला दी हो | फिर लगभग दस – पन्द्रह मिनटों में ही वह मलहम सूख कर पैर से स्वयं ही बिखर गया | वास्तव में इस जड़ी बूटी ने बिच्छू का सारा जहर राजू के शरीर से खींच लिया था | फिर उसी जहर की गरमी से मलहम सूखकर कड़क हो गया और फिर अपने आप बिखर कर छूट गया |

राजू ने प्रकृति का धन्यवाद दिया कि ऐसे खतरनाक जंगल में ऐसी जड़ी - बूटियाँ भी मौजूद थी, जो उसे जहरीले दर्द से तुरन्त राहत दे सकती थी | इस बूटी की पहचान राजू ने अपने पिताजी से जंगल में सीखी थी | ऐसी कई अन्य जड़ी - बूटियों के बारे में भी वह अच्छी तरह जानता था, जो कई दर्दों में हमेशा उपयोगी सिद्ध होती थी |

इन दर्द भारी घटनाओं और लम्बी भाग दौड़ से राजू बुरी तरह थक गया था | वह अपने शरीर में थकान भी महसूस कर रहा था | किन्तु इस स्थान पर थोड़ा सा आराम करने की इच्छा होते हुए भी वहाँ नहीं रुक सका | वह सूरज के पूरी तरह डूबने से पहले अधिक से अधिक दूर निकल जाना चाहता था | सो वह आगे ही आगे बढ़ता गया | लेकिन थोड़ी दूर चलते ही फिर उसकी आँखें विस्मय से चौड़ी हो गयी |

सामने एक विशालकाय नदी हहराती हुई बह रही थी | उसकी तेज धारा में कई झाड़ियाँ और छोटे – मोटे पेड़ भी बहे जा रहे थे | राजू तैरना तो जानता था, लेकिन इतनी बड़ी पहाड़ी नदी को पार करना उसके वश का बिलकुल भी नहीं था | वह भी ऐसी तूफानी धारा में ?

बड़ी मुश्किल दिख रही थी | क्या करे, कैसे आगे बढ़े ? काफी देर तक इसी उधेड़बुन मे पड़ा रहा | उसने नदी के दायें - बाएँ नजर उठाकर दूर तक देखा | लेकिन कहीं कोई पुल या नौका दिखाई नहीं दी | फिर उसने नदी के ऊपर की ओर नजर उठाई | दूर परियों के पेड़ की ओर वही चमकीली रोशनी तैर रही थी | मतलब जाना तो उस पार ही था | लेकिन कैसे ? किसी सहायता की नितान्त जरूरत थी | हाँ, यह आशा तो जरूर थी कि परी रानी कोई राह दिखा सकती है |

राजू यही सोचता हुआ तट के किनारे – किनारे नदी की ढलान पर चलने लगा | उसके दिमाग में यह विचार आया था कि नीचे की ओर पहाड़ अधिक चौड़े होते हैं | कहीं – कहीं दो पहाड़ आपस में मिलते हुए भी दिखते हैं | ऐसी स्थिति में कहीं न कहीं नदी का कोई संकरा पाट जरूर होगा |

राजू ढलान पर चलता गया – चलता गया | चलता हुआ वह कभी – कभी जल्दबाज़ी में दौड़ भी लगा देता था | कई बार वह सँकरे - पथरीले रास्ते पर फिसल कर गिरा भी | लेकिन उसे पहाड़ की खाई या नदी की तेज धारा में गिरने से उसकी विशेष सावधानी या फिर कोई अनजानी सी शक्ति बचा लेती थी | वह बड़े आराम से फिर उठकर खड़ा हो जाता और आगे बढ़ने लगता |

अंततः काफी दूर चलने के बाद उसे एक मनचाही जगह नजर आई |

राजू ने देखा, इस जगह पर दो पर्वत आपस में मिल रहे थे | लेकिन दोनों पर्वत मिलकर भी इस बहती हुई नदी का रास्ता नहीं रोक पाये थे | हालाँकि नदी के पाट की चौड़ाई यहाँ बहुत कम हो गई थी | इतनी ही चौड़ी कोई छोटी झील या समान्य तालाब पार करना होता तो राजू उसमें बिना सोचे समझे छलांग मार देता |

लेकिन यह कोई छोटी झील, तालाब या साधारण नदी नहीं थी | यह तीखे मोड़ और तेज ढलान के बहाव वाली एक पहाड़ी नदी थी, जिसका वेग ऐसी जगहों पर और विकराल हो जाता है | हालाँकि नदी का पाट बहुत कम चौड़ाई में आ गया था, लेकिन यहाँ भी तैर कर उस पार जाने की कोशिश करना, अपनी जान से खिलवाड़ करना ही था |

राजू कुछ पलों तक नदी के तट पर खड़ा सोचता रहा कि अब क्या करे? नदी के उस पार पर्वत की ऊँचाई पर परियों के पेड़ की तीखी रोशनी उसे चमकती हुई साफ दिख रही थी | उसने फैसला कर लिया था कि यदि कोई रास्ता नहीं मिला तो वह यहीं से तैरने के लिए कूद पड़ेगा | उसने सही अवसर की तलाश में थोड़ी देर प्रतीक्षा भी की | लेकिन कुछ समझ न आया | वह परीलोक पहुँचने की बहुत अधिक जल्दी में था | उसके दिमाग में एक नशा या दीवानगी जैसी छायी हुई थी | वह अधिक देर तक समय नष्ट नहीं कर सकता था ?

आखिरकार उसने नदी में छलाँग लगाने का खतरनाक निर्णय ले लिया | तैर कर उस पार जाने का दुस्साहसिक निर्णय | उसने अपनी सारी ऊर्जा और उत्साह बटोरा | फिर तट का उचित स्थान देख कर नदी की ओर कदम बढ़ा दिया | अभी वह पानी मे छलाँग मारने ही वाला था कि एक और भयंकर जीव को देखकर उसके होश उड़ गये |

पानी में से भयंकर सिर निकले एक विशालकाय मगरमच्छ उसी की ओर घात लगाये घूर रहा था | राजू उस नदी में कूदते ही मगरमच्छ के लिये बहुत आसान शिकार बनने वाला था | लेकिन किसी अदृश्य शक्ति ने मानो उसको सावधान कर दिया था | समय रहते उसकी आँखें खोल दी थी | इस भयानक खतरे को भाँपते ही राजू के रोंगटे खड़े हो गये | वह बड़ी तेजी से आगे बढ़ने के बजाय चार - पाँच कदम पीछे हट गया | यदि वह तत्काल तट से दूर नहीं भागता तो यह विशालकाय मगरमच्छ उसे वहीं से पानी मे खींच ले जाता |

अब राजू और परेशान हो गया | उसका नन्हा सा दिल डर के मारे फिर से धाड़ – धाड़ बजने लगा था | संभवतः दो या तीन घंटे ही इस यात्रा को हुए थे अभी |……और इस बीच में वह तीसरी बार मौत के मुँह में जाने से बाल – बाल बचा था |

अब एक ओर सूरज डूब रहा था, तो दूसरी ओर यह मुसीबत खड़ी थी | अब तैर कर उस पार जाने का विचार सम्भव नहीं रह गया था |

अब राजू को फिर परी रानी याद आयी | परी ने कहा था कि वह हर परिस्थिति में उसकी सहायता व मार्गदर्शन करेगी | राजू ने लाचार निगाहों से दूर चमक रही उस तेज रोशनी की ओर देखा | मानो पूछ रहा हो कि इस संकट से कैसे पार निकले ? वह किसी युक्ति के सूझने की प्रतीक्षा कर ही रहा कि तभी एक तूफान जैसी हरहराहट –घरघराहट की आवाज सुनकर उछल पड़ा |

---------------क्रमशः