परियों का पेड़
(11)
संकट से पार नहीं
उसने देखा, यह तूफानी शोर नदी के तेज बहाव तथा कटाव से उखड़े हुए एक मोटे और लंबे पेड़ का था | यह पेड़ अनायास ही इस नदी की वेगवती धारा में उलटता – पुलटता और लुढ़कता हुआ, लहरों के थपेड़ों के साथ संघर्ष से उपजी गर्जना करता हुआ, उसी ओर बहता चला आ रहा था | इस बहते हुए पेड़ की वह भयंकर गर्जना ही जबरन राजू का ध्यान खींच रही थी | .....या फिर तात्कालिक समस्या का कोई अच्छा समाधान बताने वाली थी |
बहरहाल, राजू उस पेड़ के वेग से घबराकर थोड़ा और पीछे की ओर हट गया | तभी उसकी ताक में बैठा मगरमच्छ भी एकबारगी उछला और गहरी धारा में डुबकी लगा गया | वह भी शायद अचानक आने वाली इस गर्जना की आवाज से घबरा गया था | राजू भी अपनी साँसे रोके हुए उस दृश्य को देखता रह गया | फिर जैसे एक मनचाही घटना हुई |
राजू के देखते ही देखते वह जड़ से उखड़ा हुआ पेड़ उसी जगह के सँकरे पाट में आकर फँस गया | राजू ने उसको थमते देखा तो राहत की एक लम्बी सांस खींचे बिना न रह सका |
अब राजू के दिमाग में एक अनोखा विचार कौंधा | उसे लगा कि यह पेड़ तो मानो उसकी समस्या हल करने के लिये ही आया था | उसका मोटा तना नदी के दोनों किनारों के बीच किसी पुल की तरह फँसा हुआ दिख रहा था | बस राजू को उपाय मिल गया | उसने थोड़ी सी हिम्मत दिखाई | बिना समय गँवाये, दौड़ कर पेड़ पर चढ़ गया | उसकी शाखाओं को पकड़कर उछलते – कूदते हुए, लेकिन सावधानी से तने के ऊपर चलते हुए नदी को पार कर गया |
पेड़ को रुका और उस पर राजू को चढ़ा देखकर वह भूखा मगरमच्छ फिर राजू की ओर झपटा | लेकिन राजू सावधान था | वह मगरमच्छ को दूसरा कोई मौका दिये बिना फुर्ती से कूदकर आगे निकल गया | मगरमच्छ उस पेड़ के तने टकराकर वापस पानी में उलट गया | राजू का शिकार उसके भाग्य में नहीं था |
आखिर राजू भी तो पेड़ों पर चढ़ने और उस पर चील -चिलांगर नामक उछल - कूद का खेल खेलने में माहिर था | शिकार को इतनी आसानी से भागते देख मगरमच्छ टुकर – टुकर ताकता ही रह गया | राजू की ये दोनों बाधायें एक साथ पार हो चुकी थी |
इधर जैसे ही राजू नदी के उस पार तट पर कूदा | वैसे ही उसके पीछे फिर से एक तेज तूफानी आवाज सुनायी दी | जैसे नदी ने कोई बाँध तोड़ दिया हो अपने तेज तेज बहाव के लिए | राजू ने पलट कर देखा तो सिहर कर रह गया |
हवा के झोंके और पानी के तेज बहाव के साथ वह पेड़ जल्द ही नदी में दूसरी ओर लुढ़क गया था | फिर देखते ही देखते वह पेड़ नदी की तेज धारा के साथ बहता हुआ आँखों से ओझल होता हुआ चला गया | नदी का तूफानी बहाव अपनी रफ्तार में बाधा बन रहे, उस जड़ से उखड़े हुए विशाल पेड़ को भी ज्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं कर सकता था |
राजू ने यह दृश्य देखकर एक झुरझुरी सी ली | उसकी पीठ में भय की एक ठंडी लहर फिर से दौड़ गयी थी | अगर वह समय से इस पार न पहुँच पाता तो ? इसके आगे वह कुछ भी न सोच सका | उसने सुकून के लिए एक लम्बी और गहरी साँस खींची और फिर वापस उसे धीरे – धीरे बाहर छोड़ता चला गया |
आज तो राजू के प्राण बाल – बाल बच रहे थे, या फिर कोई शक्ति उसे लगातार बचाये जा रही थी |
राजू ने बड़ी राहत की सांस ली थी | वह सोच रहा था कि यह कैसा संयोग था ? राजू को कुछ और समझ नहीं आया तो उसने इसे भी परी रानी का ही चमत्कार मान लिया और उसे धन्यवाद देता हुआ फिर ऊँचाई की दिशा में, अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने का प्रयास करने लगा |
अभी राजू थोड़ा सा आगे बढ़ा ही था कि ज़ोर से एक तीखी आवाज गूँजी – “खी खी - खी खी” |
पहले ऐसी कई आवाजों ने उसे चौंकाया, फिर उसकी पीठ पर तेजी से कुछ आकर गिरा – “धप्प.....|”
उसकी साँस मानो गले में ही अटक गई और पैर जहाँ के तहाँ थम कर रह गये |
वह फिर से डर गया था कि अब ये कौन सी नई मुसीबत आ पड़ी ?
एकबारगी तो उसके कुछ समझ में ही नहीं आया | लेकिन कुछ पलों बाद डरते – डरते उसने पलट कर देखा, उसके पैरों के पास सेब का एक बड़ा सा फल पड़ा था | निश्चित रूप से यह फल उसकी पीठ पर ऊपर से आकर गिरा था | ….और वह आवाज .....?
आशंकित राजू ने डर के मारे सिर को धीरे – धीरे ऊपर उठाया | फिर पेड़ की एक डाल पर उसकी दृष्टि अटक गयी - “ही ही ही ही” |
सामने का दृश्य देखकर अनायास ही उसकी हँसी छूट गयी थी – “अरे ! इनसे क्या डरना ? ये तो लाल मुँह वाले शरारती बंदर हैं |”
राजू के मन का भय एक झटके में ही भाग खड़ा हुआ था | अब उसे जंगल वाली अपनी शरारतें याद आ गई थी | अब उसने भी शरारती अंदाज में जवाबी “खी – खी, खी – खी” की आवाज निकालकर बन्दरों को चिढ़ाने के लिये जीभ दिखा दी | फिर तो जैसी कि उम्मीद थी, बंदरों ने चिढ़कर उस पर और फल फेंकने शुरू कर दिये | राजू को मजा आ गया |
लेकिन इस समय वह इन बन्दरों से अधिक खिलवाड़ करने की मनःस्थिति में नहीं था | अतः उसने हँसकर जमीन से कुछ फल उठा लिये और उन्हे गेंद की तरह हाथों में लेकर उछालता - खेलता हुआ आगे बढ़ गया | वह सोच रहा था कि चलो, अच्छा ही हुआ | आगे रास्ते में अधिक भूख लगेगी तो चलते - चलते ही इन फलों को खाकर भूख भी मिटा लेगा |
उसकी यात्रा पूर्ववत फिर जारी हो गयी थी |
वह लगातार नई ऊँचाई चढ़ता जा रहा था | कंकड़ों – पत्थरों से भरी राह पर उस के जूते कई जगहों से फटने लगे थे | पैरों में थकान का दर्द भी महसूस होने लगा था | लेकिन उसे अब भी किसी परेशानी की परवाह नहीं थी | वह तो बस, जल्दी से जल्दी अपने लक्ष्य का रास्ता पार कर लेना चाहता था |
अब तक सूरज तरह डूब चुका था | सिर्फ हल्का सुरमई उजाला शेष था | आगे ज्यादा साफ दिखाई नहीं दे रहा था | राजू भी काफी ऊपर नई ऊँचाई तक पहुँच चुका था | फिर अचानक एक मोड़ पर उसको आगे का रास्ता बंद जान पड़ा | उसने ध्यान से इधर – उधर निगाह दौड़ाई तो देखा कि वह एक घुप्प अँधेरी गुफा के मुहाने पर खड़ा था |
उसने बहुत ही मामूली तौर पर यह महसूस किया कि यह गुफा अंदर से कुछ ज्यादा चौड़ी और कई लोगों के आराम से रहने लायक थी | गुफा के द्वार पर एक स्थान पर कुछ सूखी लकड़ियाँ पड़ी थी | पास में ही एक ठंडे पड़ चुके अलाव में आग की कुछ चिंगारियाँ अभी भी झिलमिला रही थी |
राजू ने अनुमान लगाया | यह आग निश्चित रूप से किसी इंसान ने भोजन आदि बनाने के लिये जलायी होगी | अतः उसने आस – पास मुँह घुमा कर आवाज लगायी – “कोई है ? यहाँ पर कोई रहता है क्या ? ”
लेकिन राजू की अपनी आवाज ही उस गुफा से बार – बार गूँज कर लौटती हुई सुनायी पड़ी | इसका मतलब वहाँ कोई नहीं था | अगर रहा भी होगा तो वह इस समय यहाँ से जा चुका था |
राजू ने अंदाजा लगाया कि यहाँ कोई शिकारी या जंगली जड़ी बूटियाँ खोजने वाला बटोही या फिर कोई लकड़हारा रहा होगा | जो भी रहा होगा वह घुप्प अंधेरा होने से पहले ही अपने रास्ते चला गया होगा | निश्चित रूप से यह आग उसी ने जलायी होगी, जिसमें पड़ी कुछ गीली लकड़ियाँ अभी तक सुलगकर धुआँ उठा रही थी |
राजू सोचने लगा कि अब किधर जाए? यहाँ से पीछे की ओर तो एक ही रास्ता था, जिधर से वह खुद आया था | आगे कोई और रास्ता दायें – बायें दिख नहीं रहा था | सामने सिर्फ इस गुफा का मुहाना था | वह दो पल वहीं खड़ा होकर सोचने लगा – “.....तो क्या इस गुफा के भीतर से ही आगे बढ़ने का रास्ता है?”
राजू ने सिर उठाकर ऊपर की ओर देखा तो उसे परियों के पेड़ की रोशनी सामने ही चमकती हुई दिखाई दी | वह अपने लक्ष्य का संकेत समझ गया कि अब भी उसको इसी रास्ते पर आगे बढ़ना होगा | निश्चित रूप से इस गुफा के उस पार कोई रास्ता निकलता होगा |
अब राजू ने उस गुफा में प्रवेश करने का मन बना लिया था | अंदर घुप्प अँधेरा प्रतीत हो रहा था | हाथ को हाथ नहीं सुझाई दे रहा था | तब उसने सोचा, क्यों न अलाव से एक जलती हुई लकड़ी लेकर वह आगे बढ़े, ताकि रास्ता साफ दिखने लगे | वह लकड़ियों की ओर बढ़ा |
उसने प्रयास करके सुलगती हुई लकड़ियों को व्यवस्थित किया और उनमें फूँक मार कर आग जलाने की कोशिश करने लगा | लेकिन लकड़ियाँ थी कि उसकी छोटी- मोटी कोशिशों से जलने का नाम ही नहीं ले रही थी | कुछ देर प्रयास करके वह निराश हो गया | आखिरकार ऊब कर बिना रोशनी के ही गुफा में घुसने का मन बना लिया |
वह हिम्मत करके उठा और गुफा के भीतर घुसने के लिये अपने पैर बढ़ा दिये | लेकिन अभी एक ही पैर भीतर गया था कि वह चौंक उठा | सामने उसे तीखी लाल रोशनी जैसी चमक महसूस हुई थी | उसने समझने की कोशिश किया तो पाया कि भीतर के नीम घुप्प अंधेरे में कुछ ही दूरी पर दो लाल चिंगारियों जैसी कोई जलती हुई चीज मौजूद है | लेकिन यह आग जैसी रोशनी तो बिलकुल भी नहीं लग रही थी | फिर वह है क्या ? बार – बार घूरने पर भी उसे ठीक से समझ में न आया |
फिर भी उसने हिम्मत करके कुछ कदम अँधेरे में और आगे बढ़ाये, ताकि ठीक से समझ तो आये कि आखिर वह चीज है क्या ? तब उसे लगा कि वो चिंगारी जैसी दिखने वाली चीज अब अंगारों जैसी दहकती हुई और भी तीखी लगने लगी है | राजू की छठी इंद्रिय ने तुरंत किसी अनजाने खतरे का एहसास कराया | उसे कई घंटे पहले घने जंगल के अँधेरे में दिखी अजगर की चमकती हुई आँखों की याद आ गयी |
तो क्या यहाँ भी कोई खतरनाक जीव छुपा हुआ है?
----------क्रमशः