इश्क़ 92 दा वार (पार्ट -4) Deepak Bundela AryMoulik द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ 92 दा वार (पार्ट -4)

कंटीन्यू पार्ट -4

किसी की फिदाई भी किसी के लिए खता होती हैं... !
ये इश्क़ का मंज़र हैं दोस्त कम ही लोगों में वफ़ा होती हैं.. !!

रोज़ की तरह आज भी सूरज उगा था लेकिन अनु के जागने के बाद... अनु आज कोई भी भूल या चूक नहीं करना चाहती थी... उसने खत को अपने आंचल में छिपा लिया था... और तैयार होकर वो किचन में आ गयी थी..
मां ने इतनी जल्दी तैयार होने का कारण पूछा तो अनु ने भी जवाब दिया...

मां कल लेट होने के कारण स्कूल नहीं गयी थी इसलिए आज जल्दी पहुंच जाउंगी..

लेकिन बेटा स्कूल तो अपने रोज़ के टाइम पर ही लगेगा..
हां मां... कल केमिस्ट्री के लेक्चर थे... सर ने काफ़ी सारे नोट्स लिखवाये होंगे... में पहले पहुंच कर सर से पूछ लूंगी...

क्लास में किसी से भी लेलेना... इसमें क्या हैं...?
यही तो दिक्कत हैं ममा.... कोई नहीं देता 12th क्लास हेना... सब अपना अपना देखते हैं...

तभी डोर वैल की संगीत लहरी के स्वर... वार्तालाप में दखल देती हैं...

जा जल्दी गेट खोल तेरे पापा मॉर्निंग वाक् से आ गये हैं..
लेकिन पापा तो अभी ही निकले थे इतनी जल्दी...
और अनु जल्दी से जा कर गेट खोलती हैं... नमस्ते अंकिल जी...

बेटी जल्दी चलो तुम्हारे पापा की तबियत खराब हो गयी हैं...

क... क.... कहां अंकल.... मम्मी जल्दी आओ...

अनु की आवाज़ सुन कर अनु की मां दौड़ते हुए आती हैं... क्या हुआ अनु...?

मम्मी... वो...

अरे भाई सहाब आप...

जी भाभी जी आप लोग जल्दी चले....

मम्मी पापा की अचानक तबियत बिगड़ गयी...

लेकिन कैसे..?

भाभी जी आप सबाल मत करिये आप लोग जल्दी चलिए..

अनु और अनु की मां रुंधे हुए गले से पूछती हुई पीछे पीछे दौड़ती हुई चली जाती हैं...

दिन अपनी रफ्तार से अपने सफर की और बढ़ चला था.... दुनियां की हर चीज दिन की चाल में कदम ताल में व्यस्त हो चली थी...

मनु अनु के दीदार ए इंतज़ार में मायूश हो उठा था.. उसके मन में खत को लेकर कई सवाल उठ रहे थे.. कही अनु इस इज़हार का बुरा तो नहीं मान गयी... कही मेरा खत उसके पापा ने तो नहीं पढ़ लिया.... साला ये जावेद भी ना.... कितना समझाया था कि चुपचाप उस तक पहुंचा देना... लेकिन ज़रूर कोई ना कोई ऐसी वैसी हरकत की होंगी.... तभी तो आज स्कूल भी नहीं आया... साला... पता नहीं अनु के साथ क्या हो रहा होगा...

अस्पताल की लॉबी में अफरा तफरी लगी हुई थी.... लोग बीमारी के वास्ते यहां वहां व्यस्त थे... कोई डॉक्टर के इंतज़ार में दर्द से कर्राह रहा था तो कोई दवा की पर्ची लिए यहां वहां घूम रहा था... बात सरकारी अस्पताल की जो थी... क्योंकि उस दौर में बीमार होना यानी हौसला और बिमारी को झेलने की हिम्मत का होना बहुत ज़रूरी था... लेकिन बीमार तो हिम्मत कैसे ना कैसे जुटा ही लेता हैं लेकिन परिजन क्या करें... जो अपने मरीज़ की हालत देखते देखते... हिम्मत हारने लगते हैं...

ICU के बाहर लगभग अनु का आधा मोहल्ला इकट्ठा हो चुका था.... अनु की मां का रो रो कर बहुत बुरा हाल था... 2 घंटे हो चुके थे डॉक्टर कुछ भी बता पाने में असमर्थ थे.... सभी बड़े डॉक्टर के आने का इंतज़ार कर रहे थे... अनु अपनी मां को दिलाशा और हिम्मत की आस जगा रही थी.... जावेद की अम्मी अनु की मां को सीने से लगाए बैठी हुई थी..
तभी बड़े डॉक्टर का तेज़ी से आगमन हुआ था... उनको आता देख वहां मौजूद सभी लोग थोड़ा अलर्ट हो चुके थे... बड़े डॉक्टर सहाब सीधे ICU में दाखिल हो गये थे...
बहनजी अब बड़े डॉक्टर आ गये हैं... अल्ला सब खैर करेगा... जावेद की अम्मी से अनु की मां से दिलाशा देते हुए कहा था....
कुछ लोग डॉक्टर की काबिलियत का गुणगान कर रहे थे... कहते हैं ना दिलाशा की सार्थक किरण जब दिखाई देने लगती हैं तो विश्वास बढ़ने लगता हैं... ज़मीन के भगवान के गुणगान होने लगते हैं... यही हाल ICU के बहार का था... सब की नज़रे ICU के गेट पर टिकी हुई थी...

कंटिन्यू पार्ट -5