इश्क़ 92 दा वार - (पार्ट -5) Deepak Bundela AryMoulik द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ 92 दा वार - (पार्ट -5)

पार्ट -5
इंतजार.... इंतज़ार और सिर्फ इंतज़ार.... इस इंतज़ार में मनु स्कूल जानें का समय गवा चुका था... उसके मन में विचार आया क्यों ना जावेद के घर जाया जाए... लेकिन कैसे... अगर कोई लफड़ा हुआ होगा तो... अब हुआ होगा तो हुआ होगा आज नहीं तो कल सबको पता तो चलना ही हैं.... आखिर प्यार किया हैं मैंने... जो होगा देखा जायेगा... उसके कदम जावेद के घर की तरफ बढ़ने लगते हैं... लेकिन फिर कुछ दुरी तय करने के बाद फिर ठिठक जाते हैं... अगर सबको पता चला तो मम्मी पापा की कितनी बदनामी होंगी... ऐसे में पापा तो मुझसे ज़िन्दगी भर बात ही नहीं करेंगे... लोग क्या कहेंगे पापा मम्मी की कितनी बदनामी होंगी... हे भगवान क्या करू...
अरे क्यों मनु तुम यहां क्या कर रहे हो...?
मनु की तन्द्रता भंग होती हे...
जी अंकल वो... वो... मैं अपने दोस्त जावेद के यहां जा रहा हूं... थोड़ा काम था... आज वो स्कूल नहीं आया तो उसके पास जा रहा हूं..अंकल जी..
बेटा कोई फायदा नहीं...
क... क.. क्यों अंकल...?
बेटा वोतो आज सुबह से अस्पताल में हे...
क्यों अंकल... क्या हुआ उसको...?
उसको नहीं बेटा उनके पड़ोस में जो खन्ना जी रहते हे...
हा अंकल..?
हा उन्ही की तबियत आज अचानक सुबह सुबह बिगड़ गयी इसलिए मोहल्ले के अधिकतर लोग वही अस्पताल में हे में भी वही से आ रहा हूं...
मनु थोड़ा मायुश सा हो जाता हें
चलो बेटा मैं चलता हूं अभी फिर लौट कर अस्पताल जाना हें...
लेकिन अंकल अब खन्ना अंकल की तबियत कैसी हें..?
बेटा.... मैं जब तक था... तब तक तो कुछ पता नहीं चल पाया था बड़े डॉक्टर का इंतज़ार था... ठीक हें बेटा मैं चलता हूं और वो सायकल में पेडल मारते हुए दूसरी दिशा की और चले गये...
मनु खड़ा खड़ा सोच में डूबा रहा....

ICU के बाहर... सभी बेसब्री से आस का दामन पकड़े खडे थे... माहौल पहले से ज्यादा गमगीन हो चला था... अनु और अनु की मां का हाल बहुत बुरा था... अनु सिर्फ अपने पापा के लिए उस ऊपर वाले से दया की भीख मांग रही थी जो शायद सो रहा था... ICU का गेट खुलते ही सब उस और दौड़े थे... सीनियर डॉ अन्य डॉक्टर के साथ... गम गीन मुद्रा में खडे थे...

आई एम सॉरी....

और इतना कह कर डॉक्टर भीड़ को हटाते हुए निकल गये थे... मौजूद चेहरों पर एक अजीब सी मौनता छा गयी थी... अनु समझ चुकी थी कि अब उसके पापा इस दुनियां में नहीं रहे वो भीड़ को हटाते हुए बदहवास सी ICU में दाखिल हो चुकी थी... और वहां का पूरा माहौल गमगीन हो चला था...

मनु भी यहां पहुंच चुका था और दूर खड़ा होकर निसहाय अकेला सब देख रहा था... शायद जिंदगी के इस इश्क़ की कसमकस शुरू हो चुकी थी... एक और दार्द था एक और निराशा... मनु एकदम टूट सा चुका था चाह कर भी वो अनु को दिलासा भी देने में असहाय था... लेकिन ऐसे में लौट जाना भी इंसानियत को धिक्कार रही थी... मनु ऐसे लौट कर नहीं जाना चाहता था... उसके कदम मौजूद लोगों की तरफ अनयास ही धीरे धीरे बढ़ने लगे थे... माहौल बहुत ही गमगीन था अनु और उसकी मम्मी के रुदन की चित्तकार कानों में टीस मार रही थी... जिसके चलते मनु की आंखे भी आसुओं को रोक ना सकी थी..
और वो भी भीड़ के एक किनारे जाकर खड़ा हो गया था.. मनु की वहां पर उपस्थिति उसे सब से अलग कर रही थी क्योंकि वो स्कूल की ड्रेस में था.... तभी उसे कानों में कुछ दवी दवी सी बुदबुदाहट सुनाई दी...
तू यहां कैसे...?
मनु ने नज़रे घुमा कर देखा तो जावेद खड़ा था.
नायर अंकल ने बताया... के अनु के पापा की अचानक तबियत खराब हो गयी... तो में यहां चला आया... !
यहां से चल... उधर बाहर को चलते हैं...
क्यों... अबे क्वेश्चन मत कर...
और जावेद मनु को खींचता हुआ सा ले जाता हैं.. और दोनों अस्पताल के बाहर आ कर एक एकांत जगह पर खडे हो जाते हैं..
जावेद चुप खड़ा हो जाता हैं... मनु उसकी तरफ देखता हुआ पूछता हैं...
यहां किस लिए लाया मुझें..?
जावेद चुप था... मानो दिमाग में कोई योजना बना रहा हो..
यार जावेद मैं तुझसे कुछ पूछ रहा हूं... वहां से तू मुझें यहां क्यों लाया...?
अब क्या बोलू यार... कैसे बोलू...
यार जावेद तूं मेरा दोस्त हेना... तो बता ना क्या बात हैं..?
तुझे पता हैं ये जो कुछ भी हुआ हैं... तेरे खत की वजह से...
तो क्या वो लेटर अंकल...
हां यार...
अबे... तूभी यार..
मैं क्या... मैंने तो उस लेटर को एक कॉपी में रख कर ले गया था... अनु काम में विज़ी थी तो मैंने वो कॉपी अंकल को देदी ये थोड़ी ना पता था कि उस कॉपी को अंकल खोल कर देख लेंगे...
तो क्या अंकल को शक था..?
इसीलिए तो उन्होंने कॉपी खोल कर देख ली..
ओ शिट यार... और वो तुझसे क्या बोले..?
में तो खड़ा ही था उन्होंने लेटर रख लिया और वो गुस्से में बोले बेटा अब तुम जाओ तो यहां से ... मैं तो चुपचाप वहां से निकल आया... सुबह ये सब हो गया.. यार तूने ये लेटर देकर बहुत बड़ी गलती कर दी... अनु भी तेरे से बहुत गुस्सा हैं...
मनु रोने सा लगा था... उसने जावेद से पूछा..
अब क्या होगा जावेद...?
भाई अब कुछ नहीं हो सकता... ये तो अल्ला का शुक्र हैं कि मेरे अब्बा को पता नहीं चला नहीं तो वो मेरी जान लेलेते...
अब मैं क्या करूं भाई...
देख भाई बात बहुत बिगड चुकी हैं... तूं अब उससे दूर ही रहना..
लेकिन स्कूल में तो..
तूं देखना ही मत उसकी तरफ...
ये क्या हो गया जवेद भाई... और मनु उसके सीने से लग कर सिसकियाँ भरने लगता हैं... जावेद की चाल काम कर जानें की ख़ुशी में जावेद कुटिल मुस्कान बिखर जाती हैं... उसके हाथ मनु की पीठ को झूठी सहानुभूति में सहलाने लगते हैं...
कंटिन्यू पार्ट -6